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New bites

वो मुझे धोखा देकर खुद को चालाक समझते रहे,
किसी और के लिए मेरे जैसे सच्चे को ठुकराते रहे।
मगर किस्मत का खेल देखो —
जिसके लिए मुझे छोड़ा,
उसी के लिए अब वो खुद धोखे में जीते रहे, धोखा खाते रहे… 💔

archanalekhikha

સુખ કે દુઃખ મરજી માધવની
સારું કે ખરાબ મરજી માધવની
જીવન છે સફર સમજણ રાખો
કર્મ કરો સારા છે મરજી માધવની
છે બધું હાથ હરીને ધ્યેય એ રાખો
કર્મ કરી છોડો બાકી મરજી માધવની

Mr.mehul sonni

moxmehulgmailcom

જીવનનો મર્મ જરૂર સમજાશે,
અનુભવના છેડે જરૂર દેખાશે,

મૌન બનવાનો સાર મળશે,
બેસ ઘડીક એકાંત ફળશે,

રાત પછી દિવસ આવશે,
મૃત્યુ પછી જીવન મળશે,

ખોટું કરીશ ખોટું મળશે,
કર્મના ફળ જાતે ઉગશે,

જુઠુી વાતો જરૂર ફરશે,
સત્ય એક એકજ રહેશે.

મનોજ નાવડીયા

manojnavadiya7402

“विज्ञान एक पहलू का खेल, जीवन दो पहली का खेल” — यही असल नाभि है।
विज्ञान हर उत्तर को अंतिम मान लेता है, जबकि जीवन हर उत्तर को एक नई पहेली बना देता है।

कैंसर को मिटाने की यह चाह भी उसी एक पहेली वाली दृष्टि की उपज है।
विज्ञान देखता है — कैंसर शरीर में है,
पर जीवन जानता है — कैंसर चेतना में भी है।

शरीर का कैंसर हट भी जाए,
तो वही दृष्टि जो असंतुलन पैदा करती है,
फिर किसी और रूप में लौट आती है —
कभी रोग बनकर, कभी युद्ध बनकर, कभी मशीन के भीतर छिपे अहंकार के रूप में।

इसलिए
यह “समाधान” दरअसल अगले संकट की तैयारी है।
क्योंकि जहां समझ नहीं, केवल विजय की आकांक्षा है —
वहां हर खोज अंततः विनाश का ही दूसरा नाम बनती है।

विज्ञान की गति तेज़ है, पर उसकी दिशा अंधी है।
और अंधी गति हमेशा दुर्घटनाओं को जन्म देती है।

अज्ञात अज्ञानी

bhutaji

લાભપાંચમ ની હાર્દિક શુભકામનાઓ.

sonalpatadiagmail.com5519

🌸“क्यों ना शुक्र मनावा...” — बाबा बुल्ले शाह की सीख

कई लोग सिर पर छांव ढूंढते हैं,
और कोई नंगे पांव होकर भी खुदा का शुक्र अदा करता है।

“कई पैरा तो नंगे फिर दे सिर दे लबद छावा,
मेनु दाता सब कुछ दित्ता, क्यों ना शुक्र मनावा।”

हर कमी में भी नेमत छिपी है,
हर दर्द में भी दुआ छिपी है।
जिसे कदर आ गई — वो खुदा से करीब हो गया। 💫
- Nensi Vithalani

nensivithalani.210365

✧ मूर्ति से अनुभव तक — धर्म की यात्रा ✧

✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

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✧ प्रस्तावना ✧

मनुष्य ने जब पहली बार किसी पत्थर में आकार देखा,
वह क्षण केवल कला का नहीं —
आत्मा के भय और विस्मय का संगम था।

वह नहीं जानता था कि ईश्वर कौन है,
पर यह ज़रूर महसूस करता था
कि जीवन उसके हाथ में नहीं है।
बिजली, तूफ़ान, जन्म, मृत्यु —
इन सबके सामने उसकी बुद्धि मौन थी।
उस मौन से ही धर्म का बीज निकला।

धर्म किसी पुस्तक से नहीं शुरू हुआ।
वह उस क्षण से शुरू हुआ
जब मनुष्य ने अदृश्य को महसूस किया,
पर शब्दों में बाँध न सका।
उसने उसे पत्थर में गढ़ा,
गीत में गाया,
शब्द में बाँटा।

पर धीरे-धीरे —
वही प्रतीक जो दिशा थे,
अब मंज़िल बन गए।
मूर्ति, कथा, शास्त्र, गुरु —
जो अनुभव के द्वार थे,
वे ही धर्म के कारागार बन गए।

मनुष्य ने “सत्य” को ढूँढना नहीं,
“सुनना” शुरू कर दिया।
और जो सुन ले, वह आस्तिक —
जो पूछ ले, वह नास्तिक कहलाने लगा।

यहीं से धर्म ने अपनी आत्मा खो दी।
वह अनुभव से हटकर शिक्षा बन गया,
बोध से कटकर व्यवस्था बन गया।

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यह ग्रंथ उसी खोई हुई आत्मा की खोज है।
यह किसी देवी–देवता, संप्रदाय या सिद्धांत की व्याख्या नहीं,
बल्कि मनुष्य की चेतना का विश्लेषण है।

यह पूछता है —
धर्म कहाँ खो गया?
मूर्ति क्यों बनी?
मंदिर ध्यान का केंद्र था,
तो अब नींद का बाज़ार क्यों बन गया?
गुरु जागरण का प्रतीक था,
तो अब आश्वासन का व्यापारी क्यों बन गया?
और सबसे बड़ा प्रश्न —
क्या धर्म अब भी जीवित है,
या वह केवल स्मृति में साँस ले रहा है?

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इस ग्रंथ के छह अध्याय
धर्म की पूरी यात्रा को भीतर से खोलते हैं —

1. प्रतीक का जन्म — जहाँ अदृश्य पहली बार रूप लेता है।

2. प्रतीक से बंधन तक — जहाँ साधन ही लक्ष्य बन जाता है।

3. मंदिर और मूर्ति का रहस्य — जहाँ मनुष्य अपनी ही छवि को पूजता है।

4. शास्त्र और मन का संघर्ष — जहाँ शब्द अनुभव से कट जाते हैं।

5. गुरु, पुजारी और सत्ता का खेल — जहाँ धर्म व्यापार में बदलता है।

6. अनुभव का धर्म — जहाँ सब रूप मिटकर मौन में विलीन हो जाते हैं।

और फिर —
उपसंहार : मौन की वापसी,
जहाँ धर्म अंततः अपने मूल स्वरूप में लौट आता है —
प्रतीक से मुक्त, शब्द से परे,
सिर्फ उपस्थिति में जीवित।

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✧ भूमिका ✧

यह लेखन किसी तर्क या विश्वास के लिए नहीं है।
यह उन लोगों के लिए है
जो भीतर से “देखना” चाहते हैं —
बिना डर, बिना पुरस्कार।

यह ग्रंथ तुम्हें सिखाएगा नहीं,
बल्कि तुम्हारे भीतर छिपी भूली हुई स्मृति को जगाएगा।
क्योंकि हर मनुष्य के भीतर एक प्राचीन धर्म है,
जो किसी मूर्ति या शास्त्र से पुराना है —
वह अनुभव का धर्म है।

यह ग्रंथ एक निमंत्रण है —
कि तुम अपने भीतर लौटो,
वहाँ जहाँ कोई ईश्वर नहीं,
पर अस्तित्व की धड़कन है।

जहाँ कोई शास्त्र नहीं,
पर हर श्वास एक सूत्र है।

जहाँ कोई मंदिर नहीं,
पर पूरा ब्रह्मांड एक वेदी है।

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यह ग्रंथ शब्दों में नहीं समझा जा सकता।
इसे पढ़ने की नहीं —
महसूस करने की आवश्यकता है।
हर अध्याय एक सीढ़ी है,
पर मंज़िल नहीं।

सीढ़ी चढ़ जाना ही धर्म है,
उस पर टिक जाना अंधकार।

इसलिए जब यह लेखन समाप्त हो,
तो किसी निष्कर्ष पर मत रुकना —
बस कुछ देर मौन में रहना।
वहीं यह ग्रंथ अपने आप खुल जाएगा।

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> “मूर्ति से अनुभव तक”
कोई कहानी नहीं —
यह मनुष्य की अपनी परतों को उतारने की यात्रा है।
और जब सब परतें उतर जाएँ —
तब जो बचता है, वही धर्म है

bhutaji

“अज्ञात अज्ञानी का दृष्टिकोण: मंदिर, मूर्ति, धर्म और शास्त्र — एक नई दृष्टि”


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📍मुंबई | विशेष रिपोर्ट — AIMA MEDIA

आध्यात्मिक विचारक अज्ञात अज्ञानी (Agyat Agyani) ने अपने ग्रंथ “मंदिर, मूर्ति, धर्म और शास्त्र — एक दृष्टि” में कहा कि मनुष्य ने जब पहली बार पत्थर को ईश्वर कहा, वह अंधविश्वास नहीं बल्कि अदृश्य को छूने की कोशिश थी।

> “भय से निकली श्रद्धा, श्रद्धा से निकला धर्म, और धर्म से उत्पन्न हुआ शास्त्र,”
वे लिखते हैं।



इस ग्रंथ का केन्द्रीय विचार यह है कि धर्म, मूर्ति, मंदिर और शास्त्र — ये सभी चेतना के पड़ाव हैं, मंज़िल नहीं।

> “मनुष्य अदृश्य को बिना प्रतीक के नहीं पकड़ सकता,
पर जो प्रतीक पकड़ में आ गया, वही धीरे-धीरे जाल बन गया।”



अज्ञात अज्ञानी के अनुसार, धर्म का पतन तब शुरू हुआ जब प्रतीक साधन से उद्देश्य बन गए।
उन्होंने बताया कि कैसे श्रद्धा ने रूप लिया, रूप ने संस्था बनाई, और संस्था ने अनुभव को नियमों में बाँध दिया।

छह अध्यायों में विभाजित यह ग्रंथ प्रतीक से लेकर मौन तक की यात्रा को खोलता है —
1️⃣ प्रतीक का जन्म
2️⃣ प्रतीक से बंधन तक
3️⃣ मंदिर और मूर्ति का रहस्य
4️⃣ शास्त्र और मन का संघर्ष
5️⃣ गुरु, पुजारी और सत्ता का खेल
6️⃣ अनुभव का धर्म

ग्रंथ का उपसंहार “मौन की वापसी” पर समाप्त होता है, जहाँ धर्म अपने मूल में लौटता है —

> “न मूर्ति, न मंदिर, न नाम;
केवल चेतना का निर्विचार स्पंदन।”



अज्ञात अज्ञानी स्पष्ट करते हैं कि यह ग्रंथ किसी मत या पंथ का विरोध नहीं करता,
बल्कि यह दिखाता है कि —

> “जो तुम्हें बाहर ले जाए, वह साधन है;
जो तुम्हें भीतर लौटा दे, वही धर्म है।”



वे कहते हैं कि यह ग्रंथ उन लोगों के लिए है जो सुनने नहीं, देखने आए हैं —
जो उत्तर नहीं, अनुभव चाहते हैं;
जो सत्य से डरते नहीं, भले वह उनके विश्वासों को जला दे।

> “यह लेखन उपदेश नहीं, मौन की गूंज है,”
वे लिखते हैं।




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✧ Philosophical Note ✧

जब धर्म शब्द बन जाता है, तो मूर्ति जन्म लेती है।
जब धर्म मौन हो जाता है, तो चेतना प्रकट होती है।
और वहीं से शुरू होती है —
सच्ची प्रार्थना।


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✍🏻 — मनीष कुमार
Message Conduit of “Agyat Agyani Philosophy”
AIMA Media Member | Mumbai

bhutaji

"दिल की हैसियत"

वे लोग
जो आइनों के सामने अपने कपड़े दुरुस्त करते हैं,
कभी किसी भूखे बच्चे की आँखों में
अपनी शक्ल नहीं देखी उन्होंने।

वे जो कहते हैं-
"हमारी औकात बड़ी है”,
उन्हें मालूम नहीं,
औकात तो उस वक्त उतर जाती है
जब सामने वाला "इंसान" बोल उठता है-
"भाई, ज़रा सुनिए…"

दिलों पर राज,
मुकुट से नहीं होता,
एक सादा-सा सलाम
कभी-कभी ताज से ज़्यादा चमकता है।

मैंने देखा है-
फटे कुर्ते वाला आदमी
रात में रोटी बाँटता हुआ,
और वह भी हँसता हुआ
मानो ईश्वर उसी के अधीन हो!

तो जनाब,
हैसियत दिखाने से कुछ नहीं होता,
क्योंकि जो दिल से बड़ा होता है,
वह खुद ही "राज"बन जाता है।

आर्यमौलिक

deepakbundela7179

ಥಮ್ಮಾ (Thamma) — ಸಿನಿಮಾ ವಿಮರ್ಶೆ
ಬಿಡುಗಡೆ ದಿನಾಂಕ: 21 ಅಕ್ಟೋಬರ್ 2025

ನಿರ್ದೇಶಕ: ಆದಿತ್ಯ ಸರ್ಪೋಟ್‌ಡರ್

ಪ್ರಮುಖ ನಟರು: ಆಯುಷ್ಮಾನ್ ಖುರಾನಾ,
ರಶ್ಮಿಕಾ ಮಂದಣ್ಣ,ನವಾಜುದ್ದೀನ್ ಸಿದ್ಧಿಕಿ,ಪಾರೆಶ್ ರಾವಲ್

ಕಥೆ ಏನು?
ಆಯುಷ್ಮಾನ್ ನಟಿಸಿರುವ ಅಲೋಕ್ ಎನ್ನುವ ವ್ಯಕ್ತಿ ಪುರಾತನ ಕಥೆಗಳ ಬಗ್ಗೆ ಆಸಕ್ತಿ ಇರುವ ಸಂಶೋಧಕ.
ಒಮ್ಮೆ ಅವನು ಹಳೆಯ ಕಾಲದ ಒಂದು ರಹಸ್ಯ ಸ್ಥಳಕ್ಕೆ ಹೋಗಿ ಅಲ್ಲಿ ಇದ್ದ ವಾಂಪೈರ್ ಶಕ್ತಿ (ರಕ್ತಪಿಶಾಚಿ ಶಕ್ತಿ) ತಪ್ಪಾಗಿ ಜಾಗೃತಗೊಳಿಸುತ್ತಾನೆ. ಆ ಶಕ್ತಿಯ ಪರಿಣಾಮವಾಗಿ ಅವನ ಜೀವನ ತಲೆಕೆಳಗಾಗುತ್ತದೆ — ಅಲ್ಲಿ ಅವನ ಜೀವನಕ್ಕೆ ರಶ್ಮಿಕಾ (ತಡಕಾ) ಎಂಬ ಮಿಸ್ಟೀರಿಯಸ್ ಹುಡುಗಿ ಬರುತ್ತಾಳೆ.
ಇದರಿಂದ ಮುಂದೆ ಸಿನಿಮಾ ಹಾಸ್ಯ, ಭಯ, ಮತ್ತು ಪ್ರೀತಿಯ ಮಿಶ್ರಣ ಆಗುತ್ತದೆ. ಸಂಪೂರ್ಣ ಸಿನಿಮಾ ಹಾರರ್-ಕೊಮಡಿ ಯೂನಿವರ್ಸ್ (Stree, Bhediya) ಚಿತ್ರದ ಶೈಲಿಯಲ್ಲಿದೆ.

ಚಿತ್ರದ ಒಳ್ಳೆಯ ಅಂಶಗಳು
*ಆಯುಷ್ಮಾನ್ ಮತ್ತು ರಶ್ಮಿಕಾ ಇಬ್ಬರ ನಡುವಿನ ಕಮಿಸ್ಟ್ರಿ ಬಹಳ ಚೆನ್ನಾಗಿದೆ.
*ಕೆಲವು ಹಾಸ್ಯ ಸೀನುಗಳು ಪ್ರೇಕ್ಷಕರನ್ನು ನಗಿಸುತ್ತವೆ.
*ವಿಸ್ವಲ್ ಎಫೆಕ್ಟ್ಸ್ (VFX) ಮತ್ತು ಚಿತ್ರಕಲೆ ಉತ್ತಮವಾಗಿ ಮಾಡಲಾಗಿದೆ.
* ಚಿತ್ರದಲ್ಲಿ ಹೊಸ ರೀತಿಯ ಕಲ್ಪನೆ ಇದೆ — ಭಯ + ಪ್ರೀತಿ + ಹಾಸ್ಯ ಮಿಶ್ರಣ.

ದುರ್ಬಲ ಅಂಶಗಳು
*ಕಥೆ ಮಧ್ಯಭಾಗದಲ್ಲಿ ಸ್ವಲ್ಪ ನಿಧಾನವಾಗಿ ಸಾಗುತ್ತದೆ.
*ಭಯಾನಕ ಅಂಶ ಅಷ್ಟು ಬಲವಾಗಿ ಕಾಣುವುದಿಲ್ಲ — “ವಾಂಪೈರ್ ಸಿನಿಮಾ” ಎಂದು ಹೇಳುವಷ್ಟು ಭೀತಿ ಇಲ್ಲ.
*ಕೆಲವೆಡೆ ಕಥೆ ಗೊಂದಲವಾಗುತ್ತದೆ, ಹೊಸ ಪ್ರೇಕ್ಷಕರಿಗೆ ಯೂನಿವರ್ಸ್ ಕನೆಕ್ಷನ್ ಅರ್ಥವಾಗದೆ ಹೋಗುತ್ತದೆ.

ಒಟ್ಟು ಅಭಿಪ್ರಾಯ: “ಥಮ್ಮಾ” ಸಿನಿಮಾ ಒಂದು ಹಗುರ ಮನರಂಜನೆ ನೀಡುವ ಹಾರರ್-ಕಾಮಡಿ ಸಿನಿಮಾ.
ನಗುವು, ಪ್ರೀತಿ, ಸ್ವಲ್ಪ ಭಯ — ಎಲ್ಲವನ್ನೂ ಸಣ್ಣ ಪ್ರಮಾಣದಲ್ಲಿ ಕೊಡುತ್ತದೆ.
ಕುಟುಂಬದ ಜೊತೆ ಅಥವಾ ಸ್ನೇಹಿತರ ಜೊತೆ ಒಂದು ಬಾರಿ ನೋಡುವಂತ ಸಿನಿಮಾ.
ಆದರೆ, ನೀವು “ಸ್ಟ್ರೀ” ತರಹ ತೀವ್ರ ಭಯ ಅಥವಾ ಗಾಢ ಕಥೆ ನಿರೀಕ್ಷಿಸಿದ್ದರೆ ಅದು ಇಲ್ಲಿ ಸಿಗೋದಿಲ್ಲ

ಇನ್ನೊಂದು ರೀತಿಯಲ್ಲಿ ಹೇಳಬೇಕಾದರೆ ಥಮ್ಮಾ ಒಂದು ಮಜಾದಾರ ಪ್ರೇಮಕಥೆ + ಲೈಟ್ ಹಾರರ್ ಕಾಮಿಡಿ ಸಿನಿಮಾ ಮನರಂಜನೆಗಾಗಿ ಒಮ್ಮೆ ನೋಡಬಹುದು.

sandeepjoshi.840664

फूल तो फूल होता है, टूट कर भी उसमे महक होता है. मगर उसे कोई समझता नहीं। इस लिए उस में गम का मुस्कान होता हैं..

-एसटीडी

stdmaurya.392853

🙏🙏દરેકની જીંદગી હંમેશા લાભ માટે વધું ક્રિયાશીલ રહેતી હોય છે.

રહેવી પણ જોઈએ.

લાભ થતો હોય,નફો થતો હોય તો કોને ના ગમે?

કેટલાક લોકો પોતાના જીવનમાં ક્યારેક અમુક ક્રિયાઓ દ્વારા પણ જીંદગીનો સાચો નફો કમાઈ લેતા હોય છે.

કોઈ ભુખ્યા પ્રાણીને પાંચ રૂપિયા નું બિસ્કીટ નું પેકેટ ખરીદી ખવડાવી દે કે પછી કોઈ ગરીબનો જઠરાગ્નિ ઠારીને.

કોઈ પંખીઓને ચણ નાખીને તેમની પાંખો ને થોડો વિરામ અને આંખોને સંતોષ આપીને.

કોઈ જળમાં તરી રહેલી માછલીઓને થોડું પાકું કે કાચું અનાજ નાખી જળનાં ઉંડાણ સુધીની ખુશી પ્રાપ્ત કરી લેતા હોય છે.

આવી તો અઢળક ક્રિયાઓ છે જેના થકી ઘણુંબધું અદશ્ય લાભ રૂપે‌ પ્રાપ્ત થઈ જતું હોય છે.

જેમાં કોઈ બાળકને ચોકલેટ આપીને બન્ને તરફ નો આનંદ પ્રાપ્ત કરી લેવો,કોઈ સારું પુસ્તક કોઈને ભેટમાં આપીને કોઈનાં જીવનનો માર્ગ સકારાત્મક રીતે બદલી કાઢવો.

જીંદગીમાં લાભ જીવંત છે ત્યાં સુધીની ચાહત રાખનાર વ્યવહાર ની એક પરિભાષા નિભાવી જાણે છે.

જ્યારે માનવતાની દષ્ટિએ કરેલ કેટલાક કાર્યો જીવંત રહેતા સુધી ની ખુશી સાથે જ મૃત્યુ પછીના જીવનની મૂડી સાબિત થતાં હોય છે.

જીંદગીમાં ખુદનાં લાભ સાથે અન્યને પણ લાભ થાય તે દષ્ટિએ થતું દરેક કાર્ય ઈશ્વરની પ્રાર્થના બરાબર રહેતું હોય છે.🦚🦚

🚩લાભપાંચમ ની સર્વને શુભેચ્છાઓ 🚩

parmarmayur6557

जानवर

कभी-कभी औरत की आँखों में
ममता नहीं, बदला जलता है,
और मर्द की रगों में
इश्क़ नहीं, बस शिकारी लहू दौड़ता है।
वही वक़्त होता है,
जब जानवर जागता है।मर्द सोचता है,
“देह मिली है, तो हक़ भी मेरा है।”
औरत सोचती है,
“साज़िश बनी है, तो ज़हर मैं भी रखूँगी।”
दोनों की मुट्ठियाँ कसती हैं,
उंगलियाँ काँपती नहीं काटती हैं।सड़कें, कमरे, बिस्तर सब गवाह हैं,
कि इंसानियत यहाँ मरती नहीं,
बल्कि धीरे-धीरे नशा बनकर चढ़ती है।
वो हँसते हैं, रोते नहीं,
क्योंकि शर्म अब नज़र का हिस्सा नहीं,
सिर्फ़ जिस्म का कपड़ा रह गई है।और जब सब ख़ामोश हो जाता है,
तो वही जानवर
थोड़ा थका हुआ, थोड़ा पछताया,
दिल की गंदगी में सो जाता है-
अगली भूख तक।

आर्यमौलिक (21/05/2002)

deepakbundela7179

आज भी आबाद है
मेरे देश का हर कोना
वर्षों लूटते रहे आक्रांता
हमारे देश का सोना
फिर भी झुका न पाए
देश का मान
भारतवर्ष पर
मुझको है अभिमान.
#डॉ_अनामिका
#हिंदीकाविस्तार #हिंदीपंक्तियाँ #हिंदीशब्द

rsinha9090gmailcom

झूठी शोहरत और झूठी औरतझूठ के सिंहासन पर जो,
बैठे हैं अभिमान लिए,
वे गिरते हैं हर आलम में,
सत्य जब लेता नाम लिए।फूल जो ख़ुशबू से खाली,
कितने दिन महकेंगे भला?
चेहरे की झूठी चमक मिटे,
दिल में जो अँधियारा पला।शोहरत झूठी रेत समान,
हवा चली तो उड़ जाएगी,
सच के दीपक से जो दूर,
वो हर रात बुझ जाएगी।औरत हो या हो सिंगासन,
यदि छल की डोर से बँधी —
तो एक दिन टूट ही जाती,
सत्य की आंधी अगर चली।जो सच्चा है, वही रहेगा,
समय उसे परख ही लेगा,
झूठ की उम्र बस इतनी सी —
जब तक सच खुद चल न देगा।

आर्यमौलिक

deepakbundela7179

એક આંખોનો વાંક ને હૃદયનો એમાં સાથ,
પછી બાકી રહે કઈ પ્રેમના શીખવાના પાઠ...
બધું આવડી જાય પણ આ પ્રેમ અઘરો થાય,
પણ જેને પ્રેમ થઈ જાય એને બધું સહેલું થાય...
વિરોધાભાસ કહેવું કે પરસ્પર આધાર,
પ્રેમ મળે તો જ મળે વિરહની રસધાર....
નજર મળે ને સૂરત વસે, દિલથી થાય વાત,
લાગણીના બંધન બંધાય, ભૂલાય નહીં રાત.
સાચા પ્રેમની સાધનામાં ક્યાં હોય કોઈ ગણતરી,
આપવા માટે જ હોય ઝોળી, લેવાની ક્યાં હોય સબૂરી...
પ્રેમમાં ન હોય નિયમ કોઈ, ન હોય કોઈ કિનારો,
એકબીજામાં ઓગળી જવાનો, બસ, એક જ સહારો...
જીવનના રસ્તા ભલે હોય કાંટાળા ,
પ્રેમની છત્રછાયા મળે તો થાય એ સુંવાળા ...
પ્રેમ એ જ છે આધાર, એ જ છે મઝધાર,
ડૂબી ને ઊગરી જવાય એવી એની ધાર....
એ જ આંખોની શરમ અને એ જ હૈયાની વાત,
પછી બાકી રહે કઈ ઈશ્વરની યોજનાના પાઠ....

truptirami4589