बूँद भर
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ज़िंदगी के झरोखों से
झाँक चुपचाप छूते
करते भीतर की यात्रा
भर देते हैं एक असीम
अहसास से,जैसे घने वृक्ष
के पत्तों से छनती
शीतल पवन--
प्यास बुझाती,
अम्बर से टिप टिप झरती
उन बूँदों का प्यार नहीं जानती
शायद नहीं समझती
रिश्तों का गणित
ताउम्र जूझते हुए
समझ पाया है
कोई पीर,फकीर,पैगंबर?
दावा करता है, नहीं
कर पाई विश्वास कभी
प्रकृति का समागम
चातक की चोंच में भरी
केवल एक बूँद
जो रखता है खोले
अपनी चोंच - -
आस से भरी
उसकी पलक
झपक नहीं पाती
पल भर भी - -
कहीं उसी पल टपके बूँद ----?
रहेगा वह प्यासा
उम्र भर - - -
बूँद पा वह हो जाता है
तृप्त,नहीं की उसने
कभी कामना
महासागर की
उसका प्रेम,आस
केवल और केवल
वह पहली
एक बूँद जिसके
विश्वास में वह रहता है
प्यासा और पाते ही
भर उठता है
तृप्ति से!!
कबीर की
प्रेम वही अहसास है
जीने की आस है
आत्मा का आभास है
दूर होने पर भी पास है।।
डॉ. प्रणव भारती