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मैं...
यह तीन अक्षरों का शब्द नहीं,
एक पूर्ण ब्रह्मांड है —
जिसमें घमंड की धूल भी है,
और ज्ञान का अमृत भी।

मैं वह पहला स्वर हूँ
जो किसी ने बोला, “मैं हूँ!”
और उसी क्षण जन्मा
वियोग, द्वेष, अधिकार और सीमा का संसार।

क्योंकि जब “मैं” आया,
तो “तू” पीछे छूट गया।
वहीं से प्रारंभ हुआ
सबसे बड़ा युद्ध —
मनुष्य बनाम मनुष्य।

मैं ने कहा —
“यह मेरा है!”
और धरती काँप उठी।
पहाड़, नदियाँ, हवाएँ सब
बंधन में बंध गए।
मैं ने कहा — “यह तेरा नहीं!”
और आकाश भी तंग लगने लगा।

मैं ने रिश्तों को भी
संपत्ति की तरह बाँटा,
हर अपनापन में स्वार्थ मिलाया।
मित्रता के प्याले में जहर घोला,
प्रेम में भी स्वामित्व बोया।

मैं —
जो सबसे ऊँचा दिखना चाहता है,
पर खुद अपनी छाया से हार जाता है।
जिसे सम्मान चाहिए,
पर विनम्रता नहीं आती।
जो सबको झुका देखना चाहता है,
पर खुद झुकने से डरता है।

मैं ही वह अंधा राजा हूँ
जो अपने ही सिंहासन का कैदी है,
जिसे लगता है वह जीत गया—
पर हार चुका होता है अपने भीतर से।

मैं ने साम्राज्य रचे, मंदिर गढ़े,
किताबें लिखीं, युद्ध लड़े।
मैं ने कहा — “मैं ईश्वर हूँ।”
और यहीं से पतन आरंभ हुआ।
क्योंकि जिस दिन “मैं” ईश्वर हुआ,
उसी दिन ईश्वर मानव से चला गया।

मैं ने सत्य को भी अपनी माप में तौला,
धर्म को भी हथियार बना डाला।
मगर मृत्यु मुस्कराई —
धीमे से बोली, “ठहर,
अब मैं आ रही हूँ।”

जब देह राख बनी,
और अहंकार धुएँ में घुला,
तब जाना —
जो “मैं” समझा था, वह केवल भ्रम था।
वह “मैं” जो दिखता था,
मर गया।
पर जो नहीं दिखता था,
वह अमर हो गया।

सच्चा “मैं” तो वह है —
जो मौन में भी बोलता है,
जो किसी को नीचा नहीं देखता,
जो जानता है —
“मैं और तू अलग नहीं।”

वह “मैं” अहंकार नहीं,
वह आत्मा का प्रतिध्वनि है,
जो कहती है —

“मैं वही हूँ जो सबमें है,
और सब मुझमें हैं।”

इसलिए,
हे मानव —
जब तू “मैं” कहे,
तो भीतर झाँक कर देख,
कौन बोल रहा है —
अहंकार या आत्मा?

क्योंकि अंत में,
मृत्यु आकर सब “मैं” मिटा देती है,
और जो शेष रह जाता है —
वही सत्य है,
वही शांति है,
वही अनंत “मैं” है।

nromprakash220721

🙏🙏 આપણા હદયની ખુશીનો આધાર આપણે 'દિમાગમાં કેવું વિચારીએ' તેના પર આધાર રાખે છે.

દિમાગ પર 'ના કામનું' પ્રેશર 'કામના દિમાગને' પણ ના કામનું બનાવી દે છે.🦚🦚

🧠World stroke day 🧠

parmarmayur6557

good morning 🌄

sonishakya18273gmail.com308865

ek khani jo rula de
jo aap ke dil tak pahuche jald hi kalaratri univers se pehle

kumar00

new स्टोरी coming soon,,,,,, अगर आपको उत्सुकता है तो अभी मातृभारती पर जाकर पढ़ सकते है।

kajalsahu231963

Goodnight friends

kattupayas.101947

Har likhi line me ek naya hosla, ek nayi umeed ✨ – SilluWrites”
SilluWrites #Motivation #PositiveVibes #LifeThoughts #HindiShayari

sillulohamrod

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rajukumarchaudhary502010

✧ मानव की संभावना — अनिश्चितता का खेल ✧
“The potential of man — and life is a play of uncertainty.”

मनुष्य के भीतर जो संभावना है,
वह ब्रह्मांड जैसी है —
असीम, अनियंत्रित, और किसी भी सीमा में बंधने से इंकार करती हुई।
जो कुछ निश्चित किया जा सकता है —
वह उस संभावना का केवल एक छोटा-सा हिस्सा है।
बाकी सब कुछ अद्भुत है,
अंततः अलौकिक, अवर्णनीय।

मानव का विकास अब तक जो हुआ —
वह बस नियोजन का विकास है:
विज्ञान ने विधियाँ बनाईं,
धर्म ने नियम गढ़े,
राजनीति ने संरचनाएँ खड़ी कीं।
पर ये सब आयोजन हैं —
वे सिर्फ़ संभावना के किनारे पर हैं,
सागर नहीं।

अस्तित्व का स्वभाव आयोजन नहीं, खेल है।
खेल में सब कुछ उपस्थित होता है —
नियम भी, पर साथ ही अनिश्चितता भी।
यही अनिश्चितता जीवन को जीवित बनाती है।
जो खेल में उतरता है,
वह जानता है —
जीतना या हारना ही अर्थ नहीं,
खेलना ही अर्थ है।

धर्म, विज्ञान, राजनीति —
ये सब खेल को गंभीरता में बदल देते हैं।
इनमें सब कुछ “योजना” है:
कब जाना है, कहाँ पहुँचना है,
किसे हराना है, क्या हासिल करना है।
पर अस्तित्व की अपनी गति ऐसी नहीं है।
वह किसी लक्ष्य पर नहीं दौड़ता,
वह बस बहता है —
जैसे नदी, जो कभी खुद नहीं जानती
कि उसे कहाँ मिलना है।

मानव ने जब कहा — “हमें चाँद तक पहुँचना है,”
तब भी वह अपनी संभावना का
सिर्फ़ एक अंश छू पाया।
क्योंकि उसकी वास्तविक संभावना
चाँद से लाख गुना आगे है।
जिस तरह खेल की कोई संभावना निश्चित नहीं होती,
वैसे ही जीवन की कोई संभावना तय नहीं होती।

जब मनुष्य साधारण खेल में आनंद पाता है,
तो यह केवल एक संकेत है —
कि उसे अपनी अनंत संभावना की रसना हो चुकी है।
खेल उसका प्रतीक है,
कि वह भीतर से अज्ञात को स्वीकार कर सकता है।

विज्ञान, धर्म और राजनीति
इस अनिश्चितता को नियंत्रित करना चाहते हैं —
वे अस्तित्व को नियम में बाँधते हैं।
पर अनिश्चितता ही सृजन का स्रोत है।
जो निश्चित हो जाता है,
वह मृत हो जाता है।
जीवन की धड़कन ही उसका अनिश्चित होना है।

इसलिए जीवन को समझना
किसी निश्चित परिणाम को पाने का प्रयास नहीं,
बल्कि खेलते रहने की कला है।
जो खेलता है, वही जीवित है।
जो खेल को परिणाम से मापता है,
वह हार गया — चाहे जीता हो।

मनुष्य जब यह मान लेता है
कि उसे क्या बनना है —
राजनेता, वैज्ञानिक, गुरु —
तब वह अपने बनने की प्रक्रिया को रोक देता है।
क्योंकि “लक्ष्य” निश्चितता लाता है,
और निश्चितता रचनात्मकता को समाप्त करती है।

जिसने जीने को लक्ष्य बनाया —
वह हमेशा वर्तमान में होता है।
वह समय के साथ बहता है,
उसके विपरीत नहीं।
वह जानता है कि खेल का कोई अंत नहीं,
बस अनुभवों की एक निरंतरता है।

जो जीवन को खेल की तरह जीता है,
उसके भीतर सृजन की संभावना कभी समाप्त नहीं होती।
वह हर दिन एक नया प्रयोग है,
हर साँस एक नई खोज।
और जिसने अपनी किताब को कोरी रखी है,
वह कुछ अद्भुत लिखने के लिए
अब भी तैयार है।


---

जीवन लक्ष्य नहीं, संभावना है।
लक्ष्य वहाँ खत्म होता है जहाँ कल्पना रुक जाती है।
संभावना वहीं शुरू होती है जहाँ मनुष्य कहना छोड़ देता है —
और जीना शुरू करता है।

✍🏻 agyat agyani (अज्ञात अज्ञानी)

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bhutaji

Middle East Countries | મધ્ય પૂર્વ દેશો

ચાલો જાણીએ, મધ્ય પૂર્વ દેશોને ભૌગોલિક રીતે સરળતાથી. જેમાં જાણીશું એનાં દેશો,એની સાથે જોડાયેલ મહાસાગરો, રણ પ્રદેશો વગેરે.

વાંચવા અહીં ક્લિક કરો - https://vishakhainfo.wordpress.com/2025/10/28/middle-east-countries/

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