चाहत के धागे"
साथ कोई दे हमारा,
चाहत के धागों से संवारे कोई।
ज़ज़्बा था दिल में सावन जैसा,
पर कभी खुलकर बरसे नहीं कोई।
हमसे पराया हुआ ये जहाँ,
रूठे रिश्तों का टूटा किनारा।
दिल के कोने में चुप एक आवाज़,
जिसे हर बार खुद से ही हारा।
जब सहारा छूटा,
तो कोई पास भी बुलाने न आया।
क़दम रुके नहीं, पर हर मोड़ पर,
ज़माने ने रास्ता ही बदलाया।
चाहत का दरिया बहता रहा,
अरमानों में डूबा कोई।
अधूरा रहा मैं, बेवफ़ा न कोई,
फिर भी हर बार...
छूटा कोई।
_Mohiniwrites