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जो नहीं मानते अपना उनसे भला कैसे शिकवा, जिन्होंने दिल से अपनाया उन्हें क्यों दे दगा।
बरसात हो या बसंत हो, हो चाहे गर्मी सर्दी... मौसम की नहीं होती परवाह बस साथ रहे हमारे हमेशा हमारा हमदर्दी....
देखती हूं बारिश में उछलते हुए जब खुद के बच्चों को, बड़ा याद करती हूं बीते हुए मेरे बचपन को। जब तैरती देखती हूं कागज की कश्ती को , बड़ा याद करती हूं मेरे गांव की बस्ती को ।
ना like कर रहे हो, ना shere कर रहे हो। follow करना तो दूर की बात , अभी अभी की हैं हमने लिखने की शुरुआत। कभी जरूर लिखेगे आप जितने खूबसूरत अल्फ़ाज़, यू मत कीजिए हमें नजरअंदाज ।
मान लिया नहीं हैं हम काबिल आपके, पर आप भी नहीं हो काबिल उसके जिसको समझते हो काबिल अपने आपके।
खुद ही रुलाकर खुद ही मनाते हो खुद ही फिर तारीफ में कहते हो , तुम्हारी आंखे खूबसूरत लग रही हैं ऐसे बरसात के बाद खिली हो धूप जैसे।।
ए पागल इंसान मत कर प्रकृति का नुकसान, जब कुदरत कहर बरसाएगी कुदरती नजारे भी ख़त्म कर जाएगी। मत दे कुदरत को चुनौती नहीं हैं इतनी बड़ी तेरी हस्ती , कुदरत के कहर से जो बचा लेगा तू अपनी बस्ती।
हैं किसी में कोई कमी तो मिलेगी उसमें कोई खूबी भी , नदी जैसा मीठा नहीं होता समुन्द्र का पानी लेकिन समंदर में ही मिलते शंख, शिप और मोती ।
पानी भी मिलता हैं मिलावट का जहां, भला कौन होगा दूध से धुला वहां । ना मैं पाक ना तुम पवित्र कभी झांका करो अपने भीतर , अपने आप अंदाजा ना लगाया करो कि कैसा हैं सामने वाले का चरित्र।
जनाब आप जैसा कोई खूबसूरत नहीं दिखता , जो लगे खूबसूरत वो आप जैसा अच्छा नहीं लगता, और जो लगे अच्छा उसे दिल आप जितना अपना नहीं कहता।
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