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મને ખબર છે, પ્રેમ છે તો છે, બસ એ જ વાત રાખું છું,
હૃદયની આરસીમાં સદા તારી જ ઝલક રાખું છું.

નજરની ભાષા સૌને ક્યાં સમજાય છે, માનું છું,
છતાંયે આંખમાં તારા ભરોસાની શપથ રાખું છું.

​ગમે તેવાં ચઢાવ-ઉતાર આવે જિંદગીની રાહમાં,
પ્રેમના દીવાને હું અખંડ, અવિચલિત રાખું છું.

​તને મળવાની ઈચ્છામાં કદાચ રાતો જાય છે વિતી,
સવારની રાહમાં તારા જ સ્મરણની પલક રાખું છું.

દુનિયાની પરવા નથી, શું કહેશે આ જમાનો,
'પ્રેમ છે તો છે', કહીને આ સંબંધને અમરતુલ્ય રાખું છું.

palewaleawantikagmail.com200557

र्ण विज्ञान — जड़ से ब्रह्म तक ✧
(एक सूत्रग्रंथ)
🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

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भूमिका

वर्ण व्यवस्था धर्म नहीं, ऊर्जा का शास्त्र थी।
वेद ने मनुष्य को शरीर से नहीं, चेतना के स्तरों से मापा।
जन्म नहीं, कर्म नहीं — स्थिति ही वर्ण थी।
वह व्यवस्था नहीं थी — वह आरोहण थी।
शूद्र से ब्रह्म तक —
यह कोई समाज की सीढ़ी नहीं,
यह आत्मा की यात्रा थी।

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✧ 1. शूद्र — भूमि की ऊर्जा ✧

शूद्र वह नहीं जो नीचा है,
वह है जो अभी भौतिकता में कार्यरत है।
जो मिट्टी से जुड़ा है,
जो श्रम में जीवन की धड़कन खोजता है।
उसका धर्म श्रम है,
क्योंकि वही उसे जड़ से जगाता है।
शूद्र का अपमान नहीं —
वह प्रकृति का पहला स्पंदन है।

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✧ 2. वैश्य — प्राण की ऊर्जा ✧

जब श्रम में चेतना जागती है,
तो मनुष्य लेन-देन, प्रवाह,
और संबंध के अर्थ को समझता है।
यह प्राणिक स्तर है — जहाँ जीवन घूमता है।
वैश्य का धर्म है संतुलन।
वह देता भी है, लेता भी है।
वह समझता है —
“सृष्टि देना और लेना — दोनों है।”

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✧ 3. क्षत्रिय — मन की ऊर्जा ✧

यहाँ ऊर्जा आग बनती है।
कर्तव्य, निर्णय, संरक्षण, और युद्ध —
यह सब मन के धर्म हैं।
क्षत्रिय भीतर का योद्धा है —
जो अपने भय से लड़ता है।
उसका धर्म है साहस,
क्योंकि बिना साहस कोई धर्म नहीं टिकता।
यह वह स्तर है जहाँ
“मैं कौन हूं?” की लड़ाई शुरू होती है।

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✧ 4. ब्राह्मण — बुद्धि और आत्मा की ऊर्जा ✧

यहाँ सब शांत है।
ना लेना, ना देना, ना लड़ना।
सिर्फ़ देखना।
ब्राह्मण का धर्म कर्म नहीं,
साक्षी भाव है।
वह जानता है — सृष्टि भी भीतर से चलती है।
वह ब्रह्म के निकट है,
क्योंकि उसने अपने भीतर के चारों तत्त्वों को
संतुलित कर लिया है।

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✧ 5. ब्रह्म — एकत्व की ऊर्जा ✧

जहाँ वर्ण समाप्त होते हैं,
वहाँ ब्रह्म शुरू होता है।
ना शूद्र, ना वैश्य, ना क्षत्रिय, ना ब्राह्मण —
सब एक में विलीन।
यह वह क्षण है जहाँ
“कर्तव्य” भी झर जाता है,
सिर्फ़ अस्तित्व बचता है।

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निष्कर्ष

वेद की वर्ण व्यवस्था समाज के लिए नहीं,
आत्मा के लिए थी।
वह चार दीवारें नहीं,
चार दिशाएँ थीं —
जहाँ से चेतना यात्रा करती थी।
जिसे हमने जाति बना दिया,
वह असल में विज्ञान था।
ऊर्जा का विज्ञान, चेतना का क्रम।

✧ समापन ✧

सनातन की वर्ण व्यवस्था कोई असभ्य पद्धति नहीं थी —
वह चेतना का अद्भुत विज्ञान थी,
जहाँ हर स्तर सृजनात्मक था,
हर कर्म रचनात्मक था।

इस व्यवस्था का दोष उसमें नहीं,
हमारी नासमझी में था।
हमने उसे समझने से पहले बाँट दिया,
अपने स्वार्थ, अपने भय और अपने अहंकार में।

जो छोटा था, उसका कर्तव्य छोटा था,
जो बड़ा था, उसकी ज़िम्मेदारी बड़ी थी —
पर किसी ने अपने धर्म को समझा ही नहीं।
शूद्र ब्राह्मण बनना चाहता था,
ब्राह्मण राजा बनना,
राजा व्यापारी बन गया,
और व्यापारी उपदेशक।
इस तरह सबने अपना केंद्र खो दिया।

इसलिए दोष किसी एक वर्ण का नहीं —
दोष उस अविकसित आत्मा का है
जो खुद को पहचानना भूल गई।

वेद ने कहा था —
हर मनुष्य अपने कर्म से आगे बढ़ सकता है,
हर शूद्र ब्रह्मा बन सकता है।
पर जब दिशा खो जाती है,
तो हर वर्ण अंधकार में गिरता है।

आज भी उपाय वही है —
दूसरे को दोष देना बंद करो।
भीतर झाँको।
स्वीकृति से सीढ़ी शुरू होती है,
कर्तव्य से चरित्र,
और मौन से ब्रह्म।

यही धर्म है —
अपने भीतर लौट आना,
अपनी पात्रता पहचानना,
और सृष्टि के विज्ञान में
फिर से एक हो जाना।

🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷

bhutaji

🇮🇳 "वो कलाम थे..." 🇮🇳

वो कोई आम इंसान नहीं थे,
वो तो आसमान को छूने का अरमान थे।
रॉकेट की गूंज में गूँजता नाम था उनका,
हर बच्चे के दिल का सलाम थे।

सादगी में बसता था उनका राज,
हाथों में किताब, आँखों में परवाज़।
सपनों को हकीकत में ढालने वाले,
देश के असली नायाब ताज।

वो कहते थे — “सपने देखो, पर सोकर नहीं,”
मेहनत करो, गिरो, उठो — रुककर नहीं।
मुस्कुराकर झेलते थे हर मुश्किल,
जैसे आग में भी फूल खिलते हों कहीं।

मिसाइल मैन तो थे ही, पर उससे बढ़कर,
वो बच्चों के दिलों के भगवान थे।
ज्ञान, कर्म और विनम्रता के प्रतीक,
वो अब्दुल कलाम, एक पहचान थे।

आज भी जब कोई बच्चा सपना देखता है,
वो मुस्कुराते हैं आसमानों में कहीं।
कहते हैं — “भारत का भविष्य तुम्हारे हाथों में है,”
बस उसे सच कर दिखाओ यहीं। ✨🇮🇳

karthikaditya

एक बुझती माचिस

gsharma

#Monkeyબાત
સમુદ્ર મંથન વખતે કઢી અને સંભારો પણ નીકળ્યા હતા - લાલચોળ સંભારો દાનવો ઝુંટવીને લઇ ગયા અને મધુરી કઢી દેવોના ભાગે આવી.

દેવોને અમૃત મળતા દાનવો પણ અમૃતની શોધમાં નીકળ્યા

#હળવાશથી_લેવું #ગાંઠિયાપટ્ટી
હકીકતમાં તો સમુદ્રમંથન વખતે ચા અને ગાંઠિયા નિકળા હતા
ગાંઠિયા દાનવોને મળ્યા પણ હાથીદાંત ધરાવનાર દાનવોને ઢીલા લાગ્યા એટલે નળિયા જેવા બનાવીને આરોગે છે
જ્યારે ચા દેવોને મળી એટલે બિચારા દાનવો ચા જેવુ પાણીથી ભરપૂર પ્રવાહી 4 ચમચી જેટલું 15 રૂપિયામાં વેંચીને સમૃધ્ધ બની રહ્યા છે.

સાચી વાત તો એ છે કે રાહુ અને કેતુ કઢી અને નળિયાના સેવન બાદ જ સુમધુર વણેલા ગાંઠિયા, સંભારો, ચટણી, મરચા માટે દેવો ભેગા બેઠા હતા ને પકડાઈ ગયા.

નારદમુનિએ પીળુ પ્રવાહી દૂરથી બતાવી કહ્યું કે કદાચ આ અમૃત જેવુ છે, ત્યારથી 'કઢી'ને અમૃત સમજી જાપટી રહ્યા છે

પછી નળિયા નીકળ્યા તે એને રાખવાની તો મહાદેવે ય ના પાડી . તેઓ કહે વિષ તો બરોબર છે બાકી આને આય થી લઇ જાવ....,

(શ્રી. બધિર અમદાવાદી ની પોસ્ટ સાભાર.
એમની હ્યુમરસ પોસ્ટ સરસ હોય છે.)
શ્રી. બધિર અમદાવાદી ની ફેસબુક પોસ્ટ સાભાર.

sunilanjaria081256

जीवन का सन्नाटा

कभी नया घर था, नई खुशबू थी,
दीवारों पर बच्चों की हँसी की लहर थी,
हर सुबह आँचल में सूरज भर लेता था,
हर शाम चाँदनी में सपनों को गिनता था।

वक्त ने कदम आगे बढ़ाए यूँ,
जो खिलखिलाते थे, उड़ गए धूप में कहीं,
किसी शहर में, किसी देस में बसे वो,
माँ-बाप की चौखट हो गई खाली वहीं।

दो हाथ थे, जो अब थमे नहीं,
एक ने मौन धरा, शून्य गगन में लीन हुआ,
दूसरा अकेला बैठा आँसुओं में भीगता,
जहाँ पहले हँसी थी, अब बस प्रतिध्वनि हुआ।

दिन ढले तो सूरज भी थक गया,
दीप बुझा, जीवन की लौ शांति बनी,
अंत में एक आत्मा चली सहज गति से,
पीछे छोड़ गई घर, यादें और चुप्पी धनी।

कभी मन्दिर में दीप जला था,
अब वही दीप है राख तले,
जीवन एक पूरा वृत्त बन गया,
जो शुरू हुआ, वहीँ जाकर थम गया अकेले।

आर्यमौलिक

deepakbundela7179

બોલવાનું માપદંડ:

કોઈના વિશે સત્યના પ્રમાણ વગર કઈ રીત બોલી શકાય.

મનોજ નાવડીયા

#vishvyatri #vishvkhoj #heetkari #manojnavadiya #manojnavadiyabooks #manojnavadiyapoetry #saravichar #maravichar #marivat #universe #nature #truth

manojnavadiya7402

🙏🙏सुप्रभात 🙏🙏

sonishakya18273gmail.com308865

🥲 imran 🥲

imaranagariya1797

Good morning friends

kattupayas.101947

✧ सफलता का धर्म ✧
✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

सफलता अब खोज नहीं रही, व्यापार बन गई है।
वह किताबों में बेची जाती है, मंचों पर बोली जाती है, और विज्ञापनों में सजाई जाती है।
हर धर्म, हर विचारधारा, हर बौद्धिक या वैज्ञानिक प्रणाली अब “सफलता” सिखाती है —
कैसे पहुँचो, कैसे जीत लो, कैसे बनो ‘किसी’ जैसे।

लेकिन कोई भी सचमुच वहाँ नहीं पहुँचता।
क्योंकि वह रास्ता तुम्हारा था ही नहीं — वह किसी और की चाल थी, किसी और के जूते के निशान।
और इस नकल में मनुष्य ने अपनी दिशा, अपना मौलिक कम्पास खो दिया।

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सफल व्यक्ति अक्सर अंधा होता है।
वह देखता नहीं, दौड़ता है।
जो अंधविश्वासी है, वह अज्ञात को प्रश्न नहीं करता —
और इसी कारण वह कभी-कभी सफलता के नकली द्वार तक पहुँच भी जाता है।
पर जो देखता है, जो सूक्ष्म तल तक झाँकता है —
वह जान लेता है कि यह द्वार दीवार से बना है।

वह सूक्ष्म दृष्टि से देखता है कि “मिलना” का अर्थ है “खोना।”
हर उपलब्धि के भीतर एक कटाव है।
हर उन्नति के पीछे कोई जड़ टूटती है।
वह जितना ऊपर उठता है, उतना ही भीतर गिरता है।

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मनुष्य की सारी जड़ सफलता — विज्ञान से धर्म तक —
वैसी ही है जैसे कोई अपना बायाँ हाथ काटकर दाएँ में जोड़ ले।
उसे लगता है, “देखो, मेरा दायाँ हाथ कितना शक्तिशाली हो गया।”
वह भूल जाता है कि अब उसके पास दो नहीं, केवल एक हाथ है —
बस आकार बदल गया है।

वह मशीनें बना लेता है, गति पाता है, आंकड़े बढ़ा लेता है —
पर उसके भीतर का संगीत, उसकी संवेदना, उसकी धीमी थिरकन —
सब पीछे छूट जाती है।

सफलता का यह शोर, यह दौड़ —
असल में पराजित आत्माओं का उत्सव है।
यह उन लोगों का जश्न है जो जीतकर भी भीतर हार चुके हैं।
जो सब कुछ पा चुके हैं, पर अपने आप को नहीं।

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सत्य और हकीकत ने मनुष्य से हमेशा एक मूल्य माँगा है।
तुम आगे बढ़ सकते हो, पर किसी अंग को छोड़े बिना नहीं।
हर उपलब्धि एक अमputation है —
बस फर्क इतना है कि तुम उसे “प्रगति” कह देते हो।

सूत्र—

> “सत्य और हकीकत तय की एक हाथ हमेशा के लिए काट दिया है,
वह पुनः अपने स्थान लगाना मुमकिन नहीं लगता है।”

हाँ, यही है।
मनुष्य ने जो खोया है, वह अब वापस नहीं जोड़ा जा सकता —
क्योंकि उसे खोने में ही उसने अपनी सभ्यता खड़ी की है।
वह उसी कटे हिस्से पर गर्व करता है।

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सूत्र:

> सफलता वही है जो मनुष्य को संपूर्ण रखे;
बाकी सब, अधूरे हाथों का उत्सव है।

bhutaji

"🇮🇳 मैं जवान हूँ 🇮🇳"


रात ठंडी है, पर मेरा खून उबलता है,
सीमा पर खड़ा हूँ, जब देश मेरा मचलता है।
नींद से भारी ये आँखें नहीं झुकती कभी,
क्योंकि माँ की दुआओं में मेरे लिए आग जलती है।

जब घर में दीप जलते हैं, मैं अंधेरे में देखता हूँ,
हर सिसकती हवा में, वतन की खुशबू सूंघता हूँ।
गोली चलती है तो दिल नहीं डरता,
क्योंकि “भारत माँ” कहने से पहले कोई शब्द नहीं निकलता।

मैं जवान हूँ — मिट्टी की सौगंध खाई है,
हर सांस में तिरंगे की महक समाई है।
मेरी वर्दी पर धूल नहीं, इज़्ज़त का ताज है,
मेरे कंधों पर देश की सांसों का बोझ है।

जब सरहद पर बर्फ गिरती है, मैं हँसता हूँ,
अपने हड्डियों से आग बनाकर रातें गुज़ारता हूँ।
हर ठंडी हवा में माँ की याद आती है,
पर देश की हिफ़ाज़त — मेरी इबादत बन जाती है।

वो जो कहते हैं "जंग क्या देगी?" —
उन्हें क्या पता, वतन के लिए मरना भी ज़िंदगी होती है!
हम हँसते हैं दर्द में, क्योंकि वादा निभाना है,
कसम ली है — इस मिट्टी को फिर गुलाम न बनाना है।

जब तिरंगा लहराता है, आँखें भीग जाती हैं,
सीने पर हाथ रख, रूह मुस्कुराती है।
हर शहीद की कब्र पर जब फूल गिरते हैं,
तो लगता है जैसे आसमान झुककर सलाम करता है।

मैं जवान हूँ — मौत से आँख मिलाई है,
हर गोली में अपने देश की परछाई है।
ना तन की फिक्र, ना जान की कहानी,
बस एक ही धड़कन — "भारत मेरी माँ, तू अमर रहे सदा!"


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🔥 यह सिर्फ़ कविता नहीं, एक एहसास है...
हर उस बेटे के नाम जो रातों की नींद बेचकर, हमारे सवेरा बनता है।


लेखक - "आदित्य राज राय" ( कार्तिक )

karthikaditya

I still don't know

kattupayas.101947

what a quote

kattupayas.101947

sometimes its the truth

kattupayas.101947

Trust is just like a mirror

kattupayas.101947

Trust issues

kattupayas.101947

Good evening friends

kattupayas.101947

पता है मुझ को कि अब वो तपाक-ए-दिल नहीं है
हमारे दरमियाँ शायद वो पहले मंज़िल नहीं है

नज़र से नूर-ए-उल्फ़त आज-कल है दूर बैठा
ख़ुशी में भी कोई दिल का शगुफ़्ता महफ़िल नहीं है

वो बातें अब फ़क़त रस्मों की इक दीवार बन गईं हैं
जहाँ एहसास की कोई भी ताज़ा शामिल नहीं है

ये ख़ामोशी जो छाई है ये धोका ही नहीं तो क्या है
लबों पे लफ़्ज़ हैं लेकिन वो सच्चा साहिल नहीं है

गुज़र तो वक़्त जाएगा मगर ये याद रखना 'हमदम'
रिश्ते की नज़ाकत में कोई भी ग़ाफ़िल नहीं है

palewaleawantikagmail.com200557

શાયરી

વિથ સ્ટેજ ડાયલોગ યુવાનો અજમાવી જોજો 😊😊

પહેલો:
દરેક શરૂઆત... કોઈ અંતનો પુરાવો હોય છે।
(થોડો વિરામ)

બીજો:
અને દરેક અંત... કોઈ નવી શરૂઆતની ધ્વનિ હોય છે।
(ધીમે ધીમે બોલાય)

પહેલો:
દરેક સ્મિતમાં... કોઈ છુપાયેલું આંસુ વસે છે।
(વિરામ)

બીજો:
અને દરેક આંસુમાં... કોઈ જૂનું સ્મિત ધૂંધળું હસે છે।

પહેલો:
દરેક પ્રકાશ... કોઈ અંધકારનો અંશ છે।
(શાંતિથી બોલાતું વાક્ય)

બીજો:
અને દરેક છાંયો... કોઈ રોશનીની યાદ છે।

પહેલો:
દરેક ક્ષણ... જે હાલ ધબકે છે...
(પલ માટે ચૂપાઈ)

બીજો:
તે કોઈ વીતી ગયેલા સમયનું... ઓસરતું હૃદય છે।

(લાઇટ ધીમે ધીમે ફેડ થાય, એક નરમ સંગીતના સ્વર સાથે અંત...)

heenagopiyani.493689

ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं
https://youtu.be/Ddld4Zs0DQE?si=0G8dHzG1yMcypVY1

mamtatrivedi444291

स्नेहिल नमस्कार मित्रो
पता नहीं, कहाँ, कहाँ खो गई हैं रचनाएँ😒
पिछले वर्ष एफ़बी महाराज हैक हो गए थे, बहुत सारा मैटर ग़ायब...
अब जहाँ कहीं से कुछ पुराना मिल रहा है, सहेजने का टूटा फूटा प्रयास..
उसी खोज में प्राप्त एक पुरानी रचना।
क्यूँ????
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ये मेरा मन सुबह सुबह ,है आज क्यूँ डरा डरा,
क्यूँ आसमाँ से झाँकता है मन मेरा ज़रा ज़रा।
ये पत्थरों के दरमियाँ घुटे घुटे सवाल हैं,
ज़मीं पे चाँद उग रहा ,ये रेशमी ख़याल हैं।
कडक रही हैं बिजलियाँ,यहाँ सभी धुआँ धुआँ,
ये रास्तों के दरमियाँ खुला हुआ कुआँ कुआँ।
मुहब्बतों के रास्ते,यहाँ हैं किसके वास्ते,
सभी की आँख बंद हैं, सभी हैं बंद रास्ते।
न बात कर तू इश्क की, ये डूबने की राह है,
जो डूब जाए इसमें फिर न आगे कोई चाह है।
ये मन मेरा सुबह सुबह...
पिटारों में क्यूँ बंद हैं,ये बिन तराशे छंद हैं
मलाल ही मलाल है ,ये कागज़ी ख्याल हैं
सभी शरीक दौड़ में ,सभी हैं लक्ष्य के बिना
ये मन मेरा सुबह सुबह....
सलीब पे टंगी हुई ,है प्रश्न याचिका बड़ी
यहाँ है दौड़ लग रही ,टूटती कड़ी कड़ी
आँसुओं से सींच लीं सभी कवारी क्यारियाँ
उत्तरों की खोज में सभी की गुम है दास्ताँ
ये मन मेरा सुबह सुबह....
क्यूँ आसमाँ से झाँकता है मन मेरा ज़रा ज़रा....
ये मन मेरा.....

डॉ. प्रणव भारती
अहमदाबाद

pranavabharti5156