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माना कि गिरे हैं तो क्या ? उठने की कोई चाह नही? खाई गहरी है तो क्या ?निकलने की कई राह नही? कौन बेदाग है दाग सही ! क्या दाग से जीवन का आभाष नही? ,,,,,,- Ruchi Dixit
उस आत्मा से भला क्या छिपा है जो हमे निरंतर भीतर बाहर देख रही है। हमारा आँख मिलाना यदि स्वंय की श्रेष्ठता देखनी है तो यह दूषित है । किन्तु जो अपनी सारे अवगुनो को स्वीकार कर उसके त्याज्य भाव के साथ आत्मा मे समर्पण का भाव रखता है। और अपनी ही आत्मा से सामर्थ्य आग्रह करता है । वह आईने के समक्ष खड़ा हो सकता है। और उस सत्य को देखने की लालसा रख सकता है।। - Ruchi Dixit
चाहते हैं खुशी सभी खुशियों के आस - पास तमाम भीड़ जमी कौन पूछता है उदासी भला गमे मुलाकात भला किसको पड़ी।। - Ruchi Dixit
कई मासूम प्रश्न अपने अन्दर अनगिनत प्रश्न और उत्तर समेटे होते हैं। जो कल्पनाओं से बाहर वास्तविकता का दर्पण होते हैं।। - Ruchi Dixit
आत्मग्लानि पश्चाताप दूसरे के सही होने का प्रमाण नही बल्कि दूसरे के व्यवहार से प्रभावित प्रत्युत्तर होता है।। - Ruchi Dixit
मुझे न अच्छा बनना है न बुरा मुझे वो बनना है जो तु बनाना चाहती है। मुझे न अच्छा करना है न बुरा बस वही करना है जो तु कराना चाहती है। मुझे न पाप के मार्ग पर चलना न पुण्य के मार्ग पर ! मेरा हाथ पकड़ चलना है मुझे जहाँ तु चलाना चाहती है। - Ruchi Dixit
पत्नी के लिए उसका पति गर्व होता है। जिसकी भावना सम्मान सुरक्षा और सच्चाई पर टिकी होता है। इनमे से यदि एक का भी आभाव है तो असंतुष्टि स्वभाविक है। पति अपनी जरूरत के लिए अपने माता पिता से माँग सकता है लेकिन पत्नी केवल अपने पति से ही माँग सकती अथवा माँगना उचित है। - Ruchi Dixit
कड़ुआ लग सकता है किन्तु सच है। बहु कभी बेटी नही बन सकती वह कर्तव्य मे बेटी से कहीं अधिक हो सकती है किन्तु अधिकार मे केवल बहु। हाँ प्रिय भी हो सकती है लेकिन बेटी नही। हर रिश्ता स्वयं मे पूर्ण है किसी रिश्ते को किसी दूसरे रिश्ते से तुलना करने का अर्थ पहले रिश्ते को निम्नतर समझना। यह सोच अपेक्षा उपेक्षा से उत्पन्न हुई है। - Ruchi Dixit
सामन्य ! सामन्यतर! विशेष ! विशिष्टतर ! विशिष्टतम !!! सभी स्तरों पर सत्य ही प्रेम करने योग्य और सुन्दर है।। - Ruchi Dixit
विश्वास भी दे रही दे वही संशय भी मुझमे मेरा करने जैसा कुछ नहीं।। आँखों से छलकती केवल अरदास है लगता है मुझको हरपल तु मेरे आसपास है, भीतर मेरे मुझसे पहले मुझमें खास है।।
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