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Good morning friends have a great day

kattupayas.101947

ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं
कविता का शीर्षक है। साया

mamtatrivedi444291

Goodnight friends

kattupayas.101947

એક નજરે સૌંદર્ય ભાળી, હૃદય પ્રેમે છલકાય;
બીજી પળે એ જ પંખ જોઈ, ભક્તિમાં જીવ તલ્લીન થાય.
કાન્હાના માથે બિરાજી, આ પંખ અજાયબી બતાવે;
પ્રેમથી પરમ તરફની, આ અદ્ભુત લીલા સમજાવે.
DHAMAK

heenagopiyani.493689

अज्ञात अज्ञानी

“सबसे वास्तविक रूप में यदि मनुष्य स्वयं को अज्ञात और अज्ञानी समझे, तब केवल अस्तित्व रह जाता है” —
यहीं से आत्मज्ञान की असली देहरी शुरू होती है।

क्योंकि “जानना” हमेशा किसी से अलग खड़ा होता है।
जैसे ही तुम कहते हो — “मैं जानता हूं”,
तुम अस्तित्व से अलग हो गए।
एक सीमित देखने वाला बन गए।

पर अस्तित्व खुद तो बिना जानने के भी है —
वह बस है।
उसके होने के लिए कोई ‘ज्ञानी’ जरूरी नहीं।

ज्ञान, संस्कार, सभ्यता — सब बाहर के आवरण हैं।
वे व्यवस्था देते हैं, पर सत्य नहीं देते।
सत्य तभी झलकता है जब सारा जाना हुआ गिरता है।
जब भीतर यह स्वीकार होता है — “मैं नहीं जानता”।
यह स्वीकार ही सतीत्व का टूटना है —
जहाँ झूठी स्थिरताएँ, झूठी निश्चितताएँ ढहती हैं।

और तभी जो शेष बचता है —
वही आत्मा है।
वही शुद्ध अज्ञात, जो किसी नाम या विचार में नहीं बंधता।

ज्ञान से जो मिलता है वह क्षणिक होता है;

अज्ञान की गोद में जो मिलता है, वह सनातन।
@highlight Agyat Agyani

bhutaji

मशीन के भीतर एक मनुष्य ✧
विज्ञान, शिक्षा और धर्म—तीनों ने मिलकर हमें सुव्यवस्थित कर दिया है।
हमारे शब्द, हमारी मुस्कान, हमारे आँसुओं की समय-सारिणी बन गई है।
वह जीवन जो कभी अनिश्चित, खिलता और प्रयोगशील था, अब एक चुके हुए कार्यक्रम की तरह चलता है।

अस्तित्व कभी मशीन नहीं बनाता।
अस्तित्व जन्म देता है — विबन्धित, अराजक, कहीं-कहीं जर्जर पर जिंदा।
लेकिन समाज के नियमों ने उस जन्म को पॉलिश कर दिया; स्वभावों को मोड़ा गया, आकांक्षाओं को अभिलेखित कर दिया गया।

खतरा केवल बाहरी नहीं—खतरा भीतर दबी हुई ऊर्जा का है।
जिसे हमने अनदेखा कर रखा है, उसे हमने विवेक और अनुशासन के नाम पर दफना दिया।
इसी दमन से असुर की पीठ पर उभरे हुए छायाचित्र उभरते हैं; उसी दमन से देवत्व के गीत चुप होते हैं।

प्रकृति ने विविधता दी है: असुर, मानव और देव—तीनों संभावनाएँ हमारे भीतर बराबर मौजूद हैं।
लेकिन सभ्यता ने इन्हें इकठ्ठा कर अचेतन रूप से एक स्वरूप में बाँध दिया—एक तरह का 'ठीक' मनुष्य, जो प्रबंधनीय हो।
अगर राम या कृष्ण आज उठ खड़े हों, तो उन्हें न ही सम्मान मिलेगा न ही समझ; वे पागल या विद्रोही कहे जाएँगे।

असल विपत्ति यह नहीं कि कोई महान व्यक्ति जन्म ले—विपत्ति यह है कि उस जन्म का समाज से मेल नहीं बैठता।
भीड़ उस सत्ता को नकार देती है जो व्यवस्था के विरुद्ध बोले; और व्यवस्था ही भीड़ को आकार देती है।
इसलिए केवल तस्वीरों में ही देवता सुरक्षित हैं—जीवित होते तो असहज होते।

पर भीतर एक कणिका बची रहती है — वह सन्नाटा नहीं, हलचल है; वह पुर्जा नहीं, प्रवाह है।
वही कणिका पूछती है: क्या मैं पूरक हूं या स्वयं अस्तित्व?
यदि वह कणिका सुन पाई जाए, यदि उसे मौका दिया जाए — तो मशीन के भीतर भी एक मनुष्य फिर खिल उठेगा।

यह किसी भविष्यवाणी का कथन नहीं—सिर्फ एक सच की पहचान है।
हमारे समय का रहस्य यही है: व्यवस्था ने कितना भी समेट लिया, पर अस्तित्व की अनिश्चितता हमेशा कहीं न कहीं बची रहती है।
और उसी अनिश्चितता में असली मानव बनने की राह छिपी है।

🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

bhutaji

“बुद्धत्व”
जो आज भी अकेला चलता है —
वह भीड़ से नहीं, अपने भीतर से जुड़ा है।
उसे साथ की ज़रूरत नहीं, क्योंकि उसे सत्य का स्वाद मिल चुका है।

जो प्रश्न पूछने से डरता नहीं —
वह परंपरा की दीवारें तोड़ चुका है।
प्रश्न डर को जलाता है, और जहाँ डर नहीं,
वहीं से बोध जन्म लेता है।

जो किसी देवता, किताब या संस्था की छाया में नहीं छिपता —
वह समझ चुका है कि कोई भी छाया, चाहे कितनी भी पवित्र हो,
सत्य का स्थान नहीं ले सकती।

वह मंदिर नहीं बनाता —
क्योंकि उसे पता है कि हर मंदिर के भीतर एक नया पिंजरा जन्म लेता है।
वह अपने भीतर दीपक जलाता है —
क्योंकि उसे बाहरी रोशनी से अब उधार नहीं चाहिए।

यही है “बुद्ध” —
न अतीत का व्यक्ति,
न किसी पंथ का नाम,
बल्कि चेतना की वह लपट जो आज भी उन सब में जलती है
जो स्वयं से चलने की हिम्मत रखते हैं।

Agyat Agyani

bhutaji

✧ बुद्ध — न संगठन, न एकता, केवल सजगता ✧

बुद्ध ने कभी भी धर्म, संगठन या एकता की बात नहीं की।
उन्होंने न किसी झंडे के नीचे लोगों को बुलाया,
न किसी काफ़िले का नेतृत्व किया।
उन्होंने बस कहा —
“अपने भीतर चलो।”

भीड़ को दिशा चाहिए।
सजग आदमी को बस देखने की आँख चाहिए।

बुद्ध जानते थे —
जहाँ भी भीड़ बनती है, वहाँ अंधापन जन्म लेता है।
भीड़ चाहे धार्मिक हो या राजनीतिक,
उसका पहला काम होता है — सोचने वाले को मौन करना।

इसलिए उन्होंने कहा —
“अप्प दीपो भव” — स्वयं प्रकाश बनो।
किसी और के उजाले पर निर्भर मत रहो।
किसी ग्रंथ, किसी गुरु, किसी नियम को
अपनी चेतना पर हावी मत होने दो।

बुद्ध ने कभी नहीं कहा —
“मेरे पीछे चलो।”
उन्होंने कहा —
“मेरे जैसा देखो।”

यह अंतर बहुत सूक्ष्म है —
और यही जगह है जहाँ से बुद्ध मरे, और बुद्धमत जन्मा।
जहाँ सजगता थी, वहाँ अनुकरण आ गया।
जहाँ स्वतंत्रता थी, वहाँ नियम बन गए।
जहाँ खोज थी, वहाँ संगठन बन गया।

लोगों ने समझा — “संघ” का अर्थ भीड़ है।
पर बुद्ध के लिए “संघ” का मतलब था —
सजग आत्माओं का समुदाय,
जहाँ कोई नेता नहीं,
कोई अनुयायी नहीं,
सिर्फ़ खोजी हैं।

आज के तथाकथित “बुद्धमार्गी”
बुद्ध के नहीं —
भीड़ के शिष्य हैं।
वे फिर वही कर रहे हैं
जिसके विरुद्ध बुद्ध उठे थे —
मूर्ति बनाना, पूजा करना, जुलूस निकालना,
और “हम बनाम वे” की राजनीति।

बुद्ध ने धर्म को तोड़ा था,
लोगों ने उनके नाम पर नया धर्म बना लिया।
उन्होंने कहा था —
“मैं तुम्हें कुछ नहीं दूँगा, सिर्फ़ देखने की कला दूँगा।”
और हमने कहा —
“हमें नियम चाहिए, संगठन चाहिए, सुरक्षा चाहिए।”

सच यह है —
बुद्ध किसी धर्म के संस्थापक नहीं थे,
वे तो धर्म तोड़ने वाले थे।
उन्होंने कहा —
धर्म वह नहीं जो समाज देता है,
धर्म वह है जो भीतर से जागता है।

इसलिए जो सच में बुद्ध का अनुयायी है,
वह कभी अनुयायी नहीं रहेगा।
वह स्वयं बुद्ध बन जाएगा।
क्योंकि बुद्धत्व कोई परंपरा नहीं —
वह चेतना की अवस्था है।

---

जो आज “बुद्ध” के नाम पर भीड़ जुटाते हैं,
मंदिर बनाते हैं,
नारे लगाते हैं,
वे बुद्ध के विरोधी हैं,
चाहे नाम कितना भी पवित्र क्यों न हो।

बुद्ध ने कहा था —
“जो मार्ग मैं दिखा रहा हूँ, उस पर अकेले चलना होगा।”
भीड़ नहीं चल सकती,
सिर्फ़ व्यक्ति चल सकता है।

इसलिए —
जो बुद्ध को सच में मानता है,
वह किसी ध्वज के नीचे नहीं रहेगा।
वह मौन में रहेगा,
सत्य की जाँच में रहेगा,
और हर क्षण खुद से पूछता रहेगा —
"क्या मैं देख रहा हूँ,
या बस मान रहा हूँ?"

---

✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

bhutaji

Good afternoon friends

kattupayas.101947

મળે ખાવાનું ભાત ભાતનું,
શું ખાવું શું ન ખાવું?
સાંભળવું ન કોઈનું આમાં ક્યારેય,
હોય જે પ્રકૃતિ પોતાનાં શરીરની,
ખાવું ખોરાક અનુરૂપ એને!
ફેલાવવા જાગૃતિ અન્ન પ્રત્યેની,
અટકાવવા એનો બગાડ,
ઉજવે દુનિયા 16 ઑક્ટોબરે,
'વિશ્વ ખાદ્ય દિવસ'.
ચાલો લઈએ સંકલ્પ આજે,
વેડફીશું નહીં અન્નનો એકેય દાણો,
હોય ભૂખ જેટલી,
થાળીમાં લઈશું એટલું જ!
છોડી દેખાડો બૂફે ભોજનનો,
જમાડીએ આમંત્રિતોને પ્રેમથી
બેસાડી પંગતમાં ભાવથી!
અટકશે બગાડ અન્નનો પંગતમાં,
પેટ ભરી ખાશે સૌ આગંતુકો!

s13jyahoo.co.uk3258

ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं
कविता का शीर्षक है! द्वार द्वार

mamtatrivedi444291

આપણે જે સ્પંદનો કર્યાં તે જ આપણી પર ઊડ્યાં. અણસમજણમાં જે ક્રિયા કરી, તેની જ પ્રતિક્રિયા થાય છે. - દાદા ભગવાન

વધુ માહિતી માટે અહીં ક્લિક કરો: https://dbf.adalaj.org/CePex2IR

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dadabhagwan1150

My Tamil novels available in google play store.

kattupayas.101947

मोहब्बत खामोश नहीं होती

वह कुछ नहीं कहती-
पर उसकी आँखों का समुंदर बोलता है,
हर लहर में छिपा है एक नाम,
जो उसने कभी पुकारा नहीं...

उसकी चुप्पी में है एक गूंज,
जो दिल की दीवारों से टकरा कर लौटती है,
जैसे पुरानी हवेली में
अब भी किसी की परछाईं गुजरती हो।

खामोश मोहब्बत
वह नहीं जो आवाज़ मांगे,
वह तो गंध है मिट्टी में घुली,
गीत है जो बिना सुर के गाया गया।

कभी वह आह बनती है,
कभी किसी हँसी में छिप जाती है,
कभी किसी अधूरे ख़त के कोने में
साँस लेकर थम जाती है।

कहते हैं प्रेम बोलता नहीं-
पर सच यह है,
मोहब्बत खामोश नहीं होती.

आर्यमौलिक

deepakbundela7179

🙏🙏ક્યારેક જે હોય છે તે ખરેખર હોતું નથી.

બસ દેખાય આવે છે.
ઝાંઝવાનાં જળ સમાન.

કોઈ જાદુગરની જાદુગરી સમાન.
ફક્ત આભાસ! નથી પણ છે તેનો.

જો આ આભાસ છે.
તે સત્ય જો જાણ્યું તો ઘણું છે.

બધું જ આપોઆપ સમજાઈ જશે.
મતિ ભ્રમ ત્વરિત દૂર થશે.

પછી જે સ્નેહની કૂંપળ ફૂટે છે,
તે કૂંપળ નું વિસ્તરણ થાય છે.
તેનું આયખું ટુંકુ નહી!
વૃક્ષ બની વ્યોમમાં ફેલાઇ જાય છે.

ક્યારેક સુરજની ગેરહાજરીમાં "નાના ફાનસ" નો થોડાં ઉજાસ.
પવનની ગતિમાં પણ આગળ 'પગલું મુકવા' માટે માર્ગ દશ્યમાન કરાવે છે.

ત્યારે આ 'નાનો ઉજાસ' સુર્ય સામે કંઈ જ નથી તે ભ્રમણા ભાંગી નાખે છે.

વાસ્તવિકતાનું ભાન સાથે જીવવામાં આવતા જીવનમાં કદાચ ભ્રમણા થઈ શકે પણ ઝાઝો સમય 'ટકી' ના શકે.

આમ પણ "ભ્રમણાઓ" ભાગ્યા પછી ની વાસ્તવિકતા સંતોષકારક હોય છે‌.

બસ સ્વને જાણીને સત્ય તરફની 'ઉર્ધ્વ ગતિ' અનુભવવા જેવી હોય છે.🦚🦚

parmarmayur6557

ईश्वर

deepakbundela7179

🙏🙏અભણ માણસ પણ થાળીમાં પડેલા 'અન્નનો આદર' કરે છે અને તેનો બગાડ થવા દેતો નથી.

બસ તો ભલે પછી શિક્ષણ થોડું ઓછું હશે પણ 'સંસ્કાર' શ્રેષ્ઠ કક્ષાના હશે.🦚🦚

🍜World food day 🍝

parmarmayur6557

फा़ख़ता वादियों तक में मेरी बात पहुंचा आ
कहतें हैं मालिक-ए-तख्त-ओ-ताज वहाँ बसते हैं
--डॉ अनामिका--
#हिंदीकाविस्तार #हिंदीपंक्तियाँ #हिंदीशब्द #बज्म़ #ऊर्दूअलफ़ाज़

rsinha9090gmailcom

Good morning friends

kattupayas.101947

🙏🙏आपका दिन मंगलमय हो 🙏🙏

sonishakya18273gmail.com308865

🦋... SuNo न┤_★__
मेरी जान सर्द रातों में गर्म किसी
कंबल की तरह, ओढ़ कर, तुम्हें
     सो जाने को जी चाहता है,

ये दुनिया की बातें, ये दुनिया के
झगड़े सब छोड़ कर, तुम्हारा हो
      जाने को जी चाहता है,

तुम्हारी ज़ुल्फ़ की खुशबू तुम्हारी
            आँख का जादू,

बस इन्हीं सब में, कहीं खो जाने
          को जी चाहता है,

सितारों की हँसी हो तुम या फूलों
            की कली कोई,

तुम्हारे रूप में गुम हो जाने को ज़ी
                चाहता है,

ये दिल है एक परिंदा कब से उड़ने
                 को बेचैन,

तुम्हारी बाहों के पिंजरे में खो जाने
           को जी चाहता है,

कोई ग़म न हो अमावस का, कोई
          फिक्र न हो कल की,

तुम्हारे लम्स में गुम, सो  जाने  को
           जी चाहता है...❤️
╭─❀💔༻ 
╨──────────━❥
♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦
#LoVeAaShiQ_SinGh
╨──────────━❥

loveguruaashiq.661810

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"काश हम बच्चे होते..."
यह किताब केवल बचपन की यादों का पिटारा नहीं है, बल्कि एक ऐसा जादुई दर्पण है, जिसमें झाँकते ही हम अपने मासूम दिनों की गलियों में लौट जाते हैं — जहाँ माँ की गोदी सबसे सुरक्षित ठिकाना थी, पापा की डाँट में छुपा हुआ दुलार था, और दादी की धोती में बंधे सिक्के किसी ख़ज़ाने से कम नहीं लगते थे।

ज़िंदगी की इस भागदौड़ में जब मन थककर चुप हो जाता है, जब अवसाद (डिप्रेशन) और दिमागी दबाव हमें भीतर से भारी कर देते हैं, तब यह किताब हमारे दिल को थाम लेती है। इसके शब्द थके हुए मन को सहलाते हैं, बोझिल दिमाग को हल्का करते हैं और हमें उस मासूमियत की धरती पर ले जाते हैं, जहाँ चिंता का नाम भी नहीं था।

लेखक निर्भय शुक्ला ने अपने सहज और गहरे शब्दों से यह दिखाया है कि बड़ा होने की जटिलताओं के पीछे आज भी एक बच्चा हम सबके भीतर जीवित है — जो हँसना चाहता है, खेलना चाहता है और बिना किसी बोझ के जीना चाहता है।

यह किताब केवल स्मृतियाँ नहीं जगाती, बल्कि आपके अंतर्मन को छूकर आपके भीतर की टूटन को जोड़ती है। यह आपको अपने उस भूले-बिसरे रूप से मिलवाएगी और शायद आपके होंठों पर भी वही आहट ले आएगी —
"काश हम बच्चे होते..." 🌸

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🌟 Exciting News! 🌟
My new story “मृत्यु: एक अंत या नई शुरुआत?” is now live on Matrubharti! 💫

✨ एक ऐसी कहानी जो ज़िंदगी और मौत के रहस्यों को छूती है — जहाँ हर अंत में छिपी होती है एक नई शुरुआत की किरण।

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nensivithalani.210365