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ताइवान क्यों तरक्की कर रहा है और भारत क्यों पीछे है? कारण देश नहीं, नागरिक अधिकार हैं आज जब हम ताइवान जैसे छोटे से देश को देखते हैं, तो सवाल उठता है कि ना उसके पास अधिक तेल है, ना अधिक लोहे की खान है, ना बड़ी जमीन है, ना विशाल सेना है — फिर भी वह तकनीक, उद्योग, शिक्षा और लोकतंत्र में आगे कैसे है? . इसका जवाब बहुत सीधा है: क्योंकि ताइवान के नागरिकों के हाथ में असली कानूनी ताकत है। नीचे ताइवान और भारत के नागरिक अधिकारों की तुलना समझिए। 1. राइट टू रिकॉल (नेता को हटाने का अधिकार) ताइवान में अगर कोई राष्ट्रपति, सांसद, विधायक, मेयर या जनप्रतिनिधि भ्रष्टाचार करता है, काम नहीं करता या जनता के खिलाफ जाता है, तो जनता उसके अगले चुनाव का इंतजार नहीं करती। वह: हस्ताक्षर इकट्ठा करती है, रिकॉल वोट कराती है और उसी कार्यकाल में नेता को हटा देती है इसके बाद जनता नया चुनाव कराकर नया प्रतिनिधि चुनती है। भारत में: 5 साल तक नेता चाहे कुछ भी करे जनता उसे हटा नहीं सकती है, जनता केवल दर्शक बनी रहती है, जहाँ जनता मालिक होती है, वहाँ नेता डरते हैं। जहाँ जनता बेबस होती है, वहाँ नेता बेलगाम हो जाते हैं। . 2. रेफरेंडम (जनता द्वारा कानून तय करने का अधिकार) ताइवान में: जनता किसी कानून, नीति या सरकारी फैसले से असहमत हो तो हस्ताक्षर जुटाकर पूरे देश में जनमत संग्रह (Referendum) करा सकती है सरकार उस फैसले को मानने के लिए बाध्य होती है। भारत में: कानून जनता नहीं बनाती है, जनता से कभी नहीं पूछा जाता संसद जो चाहे, वही कानून बनता है। ताइवान में कानून जनता के लिए हैं, भारत में जनता कानूनों के लिए है। . 3. जूरी सिस्टम जैसा नागरिक न्याय (Lay Judge System) ताइवान में गंभीर आपराधिक मामलों में: केवल जज ही नहीं बल्कि आम नागरिक भी अदालत में बैठकर फैसला करते हैं यानी न्याय व्यवस्था सिर्फ जजों की नहीं, जनता की भागीदारी वाली है। भारत में: न्याय पूरी तरह जजों के हाथ में होता है, आम नागरिक की कोई भागीदारी नहीं, इसलिए न्याय आम आदमी से दूर होता चला गया है। . 4. बैलेट पेपर से चुनाव (Paper Ballot Elections) ताइवान में: आज भी कागज के बैलेट पेपर से मतदान होता है, वोट की गिनती सबके सामने हाथ से होती है, कोई EVM नहीं, कोई EVM मशीन आधारित रहस्य नहीं भारत में: EVM आधारित चुनाव, सीमित जांच, जनता के मन में लगातार अविश्वास। जिस लोकतंत्र पर भरोसा न हो, वह लोकतंत्र कमजोर होता है। . 5. नतीजा क्या निकला? ताइवान में: नेता जवाबदेह हैं, सिस्टम पारदर्शी है, जनता सशक्त है इसलिए देश आगे बढ़ रहा है। भारत में: नेता सुरक्षित हैं, जनता असहाय है सिस्टम केवल प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, जज, और जिले के सरकारी अधिकारियों के पास है!! इसलिए समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अपराध — ये किसी देश की किस्मत नहीं होते, ये खराब कानूनों का परिणाम होते हैं। . 6. अब सवाल यह है: भारत में यह अधिकार क्यों नहीं? क्योंकि: जनता को कभी बताया ही नहीं गया!! कि, कानून लागू किया जा सकता है। कि, कानून जनता के दबाव से बनते हैं। कि, जनआंदोलन से अधिकार छीने जाते हैं। ताइवान ने यह अधिकार भीख में नहीं पाए, उन्होंने जन आंदोलन से हासिल किए!! . 7. भारत को भी यही रास्ता अपनाना होगा अगर हम चाहते हैं: नेता ईमानदार हों, सस्ता और तेज न्याय हों, पारदर्शी चुनाव हों, और सशक्त नागरिक हों। तो हमें भी: वोट वापसी पासबुक कानून। रेफरेंडम कानून। जूरी कोर्ट कानून। बैलेट पेपर चुनाव कानून, जैसे कानूनों को लागू करवाने के लिए संगठित होना पड़ेगा। . 8. यह लड़ाई किसी पार्टी की नहीं, नागरिक अधिकारों की है यह आंदोलन: सरकार बदलने के लिए नहीं है, बल्कि सिस्टम बदलने के लिए है। अगर आप भी चाहते हैं कि: भारत में नागरिक मालिक बनें नेता नौकर हों और कानून जनता के हाथ में हों। तो इस विचार को आगे बढ़ाइए, लोगों को कानूनों की जानकारी दीजिए। और हमारे इस नागरिक अधिकार जनआंदोलन से जुड़िए। देश बदलता है जब कानून बदलते हैं, और कानून बदलते हैं जब नागरिक अच्छे कानूनों की मांग करते हैं। ________ हमारे आंदोलन से जुड़ने के लिए संपर्क करें: 88106-40928 RRPindia.in , EvmHatao.co
मोदी, रागा और अरके अरावली को नष्ट क्यों करना चाहते हैं — भारत में मैन्युफैक्चरिंग की मौत के कारण फॉरेक्स की कमी। EVM, ज़मीन की ऊँची कीमतें, GST, जज सिस्टम और दुर्लभ चुनावों की वजह से भारत में मैन्युफैक्चरिंग खत्म हो रही है। लेकिन कोई भी पंखा, मोबाइल या AC जैसे सामान के बिना जी नहीं सकता। इसलिए मोदी, रागा और अरके चीनी सामान पर कस्टम ड्यूटी घटाकर आयात को बढ़ावा दे रहे हैं। आयात ज़्यादा, निर्यात कम। यह स्थिति एक साल भी टिकाऊ नहीं है। इसलिए मोदी, रागा और अरके ने फैसला किया है कि अरावली की खनन करके मार्बल, ग्रेनाइट, कोटा स्टोन आदि चीन, पाकिस्तान, ईरान, सऊदी अरब, बांग्लादेश आदि देशों को निर्यात किया जाए ताकि फॉरेक्स मिल सके। मैं जो समाधान प्रस्तावित करता हूँ वह है — पर्यावरण मंत्री पर राइट टू रिकॉल। आप के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा, जो एक नकली रिकॉलिस्ट हैं, उन्होंने पर्यावरण मंत्री पर RTR का विरोध किया है। और सभी सेलेब्रिटीज़ ने भी पर्यावरण मंत्री पर RTR का विरोध किया है।
(1) भ्रष्ट सुप्रीम कोर्ट जजो द्वारा खनन माफिया को अरावली में प्रवेश करने की जो अनुमति दी गयी है, उसके परिणामस्वरूप अगले 50 वर्षों में अरावली के इस पार स्थित राजस्थान के दर्जन भर जिले - भीलवाड़ा, अजमेर, ब्यावर, चित्तौड़, जयपुर, अलवर, कोटा, बूंदी, दौसा आदि रेगिस्तान होना शुरू हो जायेंगे, और अगले 100 वर्षों में रेगिस्तान दिल्ली, मध्यप्रदेश, बिहार एवं उत्तरप्रदेश आदि राज्यों को पूरी तरह अपनी चपेट में ले लेगा !! . (2) इसमें कोई अतिशियोक्ति नहीं है, यह भौगोलिक एवं पारिस्थितिकी तंत्र की सच्चाई है !! पूरा उत्तर भारत रेगिस्तान नहीं है, तो इसकी एक मात्र वजह अरावली है। इस बात को समझने के लिए विशेषज्ञ होने की जरूरत नहीं है, जिस भी व्यक्ति ने कक्षा 12 की पाठ्यपुस्तकों में राजस्थान का भूगोल पढ़ा है, या अरावली के इस पार के जिलों से उस पार के जिलों में गया है, या कम से कम अजमेर से कभी पुष्कर भी गया है, तो वह इस बात को समझ सकता है। . (3) पर्यावरण को तबाह करने वाले ऐसे फैसले निरंतर किए जा रहे है, और आगे भी किए जाते रहेंगे। क्योंकि इसके पीछे पैसा है। अकूत पैसा। माइनिंग माफिया जो पैसा लूटता है, उसमें से एक हिस्सा प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और जजों को देता है। और पर्यावरण मंत्री नाम की चिड़िया को तो वे चिल्लर के भाव भी नहीं गिनते। क्योंकि पर्यावरण मंत्री की नौकरी पीएम की कृपा पर रहती है। . (4) स्थायी समाधान सिर्फ यह है कि, पर्यावरण मंत्री को वोट वापसी पासबुक के दायरे में लाया जाये। इससे पर्यावरण मंत्री की छोटी पीएम एवं खनन माफिया के हाथ से निकल कर नागरिकों के हाथ में आ जाएगी। और तब, सिर्फ तब ही पर्यावरण को तबाह करने वाले ऐसे फैसलों को रोका जा सकता है। . (5) बड़ी समस्या यह है कि भारत में पर्यावरण वादी जितने भी लीडर-फ़्री लोडर (जग्गी वासुदेव, प्रशांत त्रिपाठी, वन्दना शिवा आदि) है, उन सभी को अपना धंधा चलाने और ख्याति लाभ के लिए यू ट्यूब, फेसबुक, ट्विटर और पेड मीडिया का समर्थन चाहिए और सोशल मीडिया और पेड मीडिया को माइनिंग माफिया स्पॉन्सर करता है। इसलिए ये फ़्री लोडर्स पर्यावरण मंत्री को वोट वापसी के दायरे में लाने की माँग का विरोध करते है, और अपने कार्यकर्ताओं को अराजनैतिक बनाए रखने के भाषण-प्रवचन देकर उन्हें उलझाए रखते है। . (6) मेरा सुझाव है कि जो कार्यकर्ता पर्यावरण बचाना चाहते है, उन्हें पर्यावरण मंत्री को वोट वापसी पासबुक के दायरे में लाने के कानून की मांग खड़ी करने के लिए काम करना चाहिए। यदि एक बार पर्यावरण मंत्री वोट वापसी पासबुक के दायरे में आ जाता है तो अरावली भी बचेगी, आरे के जंगल भी बचेंगे, गंगा-यमुना भी बचेगी, और उत्तराखंड भी बचेगा। वरना एक एक करके सब कुछ उजड़ेगा। ये लोग पूरा का पूरा पारिस्थितिक तंत्र तबाह कर देंगे। जल, जंगल, जमीन सब कुछ। अभी अरावली निशाने पर है, कल सतपुड़ा और नीलगिरी। . मैं आज जद पे हूँ तो खुशगुमान न हो, चिराग सब के बुझेंगे हवा किसी की नहीं!! . ——————- #वोट_वापसी_पासबुक #जूरी_कोर्ट
सभी देशो की सभी सरकारे एवं उनके नेता एंटी नेशनल होते है. कोई अपवाद नहीं, कोई भी अपवाद नहीं ! जितना मैंने समझा है उस आधार पर कह सकता हूँ कि राजनीति का ककहरा इस समझ से शुरू होता है कि — देश को सबसे बड़ा खतरा सरकार से ही होता है. फर्क सिर्फ इतना है कि जिस देश में अवाम के पास सरकार में बैठे लोगो को नियंत्रित करने की ज्यादा प्रक्रियाएं है वहां पर सरकार की देश को तबाह करने की क्षमता कम हो जाती है. तो यदि किसी समय आपको लगता है कि सरकार अच्छा काम कर रही है या सरकार ने अच्छा फैसला किया है तो तुरन्त आपको इस दिशा में सोचना शुरू करना चाहिए कि इस "अच्छे फैसले" के पीछे वास्तव में सरकार की क्या साजिश है !! . क्योंकि सरकार कभी भी किसी भी स्थिति में जन हित के फैसले नहीं करती !! पिछले 20 साल में मेरे पास ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है जब किसी सरकार ने जनहित में स्वेच्छा से कोई फैसला किया हो !! . सरकार यानी राजवर्ग वे मांसाहारी पशु है जो हर समय शाकाहारी जीवो (प्रजा) का शिकार करने की घात में रहते है !! ----
हिंदुओं की हालत की जिम्मेदार हिन्दू धर्म गुरु , बाबा , पुजारी आदि हैं । सिक्खों , मुस्लिमो की अपनी व्यवस्था थी जिसे अगर सरकार छिनती है तो सरकार पर आरोप बनता है । पर हिंदुओं की कोई व्यवस्था ही नही थी । और ज्यादातर हिन्दू मठाधीश , धर्मगुरु , बाबा नही चाहते कि ऐसी कोई व्यवस्था बने । हिन्दूबोर्ड के ना आने में ज्यादा जिम्मेदार ये लोग हैं । धर्म के मामले में ज्यादातर लोग नेता या सरकार की नही अपने धर्मगुरु की सुनते हैं । और हिन्दू धर्मगुरु सिर्फ यही चाहते हैं कि हिन्दू धार्मिक ज्ञान गप्पे गहन आध्यात्मिक चर्चों में लगा रहे या गुरु की जयकारे की करता रहे , ये कभी ना सोचे कि दान के पैसे का क्या होगा । यही उनका बिजनेस है । . आजतक किसी छोटे मोटे हिन्दू गुरु ने भी हिन्दुबोर्ड की मांग नही उठाई , उसका महत्व अपने अनुयायियों को नही समझाया , इस विषय मे रुचि नही ली । पर हम आरोप सिर्फ सरकार पर ही लगाते हैं । क्यों कि धर्म गुरुओं पर आरोप लगाना नेताओं पर आरोप लगाने से ज्यादा महंगा पड़ता है ।
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