*दोहा-सृजन हेतु शब्द*
*कुनकुना,धूप,नर्म,ठिठुरन,सूरज*
पानी जब हो *कुनकुना*, तभी नहाते रोज।
काँप रहा तन ठंड से, प्राण प्रिये दे भोज।।
*धूप* सुहानी लग रही, शरद शिशिर ऋतु मास।
बैठे कंबल ओढ़ कर, गरम चाय की आस।।
*नर्म* दूब में खेलतीं, रोज सुबह की बूँद।
सूरज की किरणें उन्हें, सिखा रहीं हैं कूँद।।
*ठिठुरन* बढ़ती जा रही, ज्यों-ज्यों बढ़ती रात।
खुला हुआ आकाश चल, मिल-जुल करते बात।।
*सूरज* की अठखेलियाँ, दिन में करे बवाल।
शीत लहर का आगमन, तन-मन है बेहाल।
मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*
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जबलपुर का भेड़ाघाट, बंदरकूदनी