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ये वाक्य अपनी दुकान पर लगाना : १. प्राप्त को भोगो - अप्राप्त की चिंता मत करो। २. भुगते उसी की भूल। ३. डिस्ऑनेस्टी इज़ द बेस्ट फूलिशनेस! (बेईमानी करना श्रेष्ठ मूर्खता है) - दादा भगवान

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dadabhagwan1150

શિક્ષણ અને આત્મા ✧
✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

આજનો માણસ જેટલો શિક્ષિત છે, એટલો જ ભ્રમિત પણ છે।
તે જ્ઞાનના પ્રકાશમાં ચાલે છે, પણ દિશાના અંધકારમાં ખોવાઈ ગયો છે।
શિક્ષણએ તેને સાધનો આપ્યા — પરંતુ સાધના છીનવી લીધી।
તે ઘણું જાણે છે, પરંતુ અનુભવે નથી;
ઘણું બોલે છે, પરંતુ સાંભળતો નથી।

શિક્ષણનો સાચો અર્થ હતો — અંદરની આંખ ખોલવી।
પણ હવે તે માત્ર બુદ્ધિને તેજ આપે છે, હૃદયને નહીં।
અમે અણુને વહેંચી નાખ્યો, પણ અહંકારને તોડી શક્યા નહીં।
અમે ધરતીને માપી લીધી, પણ અંદરની ઊંડાઈ અજાણી જ રહી।

આધુનિક શિક્ષણ માણસને ઉપયોગી બનાવે છે,
પણ પૂર્ણ નથી બનાવતું।
તે સ્પર્ધા શીખવે છે, પ્રેમ નહીં।
તે સફળતાનો માર્ગ બતાવે છે, શાંતિનો નહીં।
એટલા માટે દુનિયા આગળ વધી ગઈ છે,
પણ માણસ પાછળ રહી ગયો છે।

જો શિક્ષણ આત્મા સાથે જોડાયેલ હોત —
જ્યાં જાણતા પહેલા જીવવું શીખવાત,
જ્યાં પ્રશ્નો પહેલા મૌન શીખવાત —
તો આ ધરતી સ્વર્ગ બની શકતી હતી।

સાચું શિક્ષણ એ છે,
જે માણસને માત્ર જ્ઞાની નહીં, જાગૃત બનાવે છે।
જે શબ્દ નહીં, અનુભવ આપે છે।
જે જીવિકાથી આગળ જઈને જીવનનો અર્થ સમજાવે છે।

જે દિવસે શિક્ષણ ફરી આત્મા સાથે મળી જશે,
તે દિવસે માનવતાનો પુનર્જન્મ થશે।
પછી વિજ્ઞાન અને ધર્મ એક દીવાના બે જ્યોત બની જશે —
એક બહાર પ્રકાશ કરશે, બીજું અંદર।


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“શિક્ષણ તેટલાં પૂરું નથી,
જેટલાં સુધી તે આત્માને ન સ્પર્શે।”

🙏🌸 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

bhutaji

✧ Education and the Soul ✧
✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

Today’s human is as educated as he is confused.
He walks in the light of knowledge, yet wanders in the darkness of direction.
Education has given him tools — but taken away his meditation.
He knows much, but experiences nothing;
He speaks endlessly, but listens rarely.

The true meaning of education was to open the inner eye.
Now it sharpens the intellect, not the heart.
We split the atom, but never broke the ego.
We measured the earth, but not the depth within.

Modern education makes man useful,
But not whole.
It teaches competition, not compassion.
It shows the road to success, not to peace.
That’s why the world has advanced,
But humanity has fallen behind.

If education were connected to the soul —
where one learns to live before to know,
where silence is taught before questions —
this Earth would have turned into heaven.

True education is that
which makes a person not just knowledgeable, but awakened.
That offers not words, but realization.
That gives not livelihood, but meaning to life.

The day education reunites with the soul,
will be the day of humanity’s rebirth.
Then science and religion will become two flames of one lamp —
one lighting the outer world, the other the inner.


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“Education remains incomplete
until it touches the soul.”

🙏🌸 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲


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bhutaji

फा़ख्ता़ उड़ कर संदेशा पहुंचा आना
गुजरे वक़्त की बातें बता आना
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अबकी जो जाना कुछ नया लेकर जाना
बदलते कायनात के रंग ढंग बता आना
डॉ अनामिका

rsinha9090gmailcom

बस उसी को नहीं समझ पाया
जिसको समझने में बिता दी उम्र...!

deepakbundela7179

मोह क्या है, इसकी उत्पत्ति कैसे होती है और इसका सकारात्मक पहलू क्या है?

मोह, वासना और लोभ — ये तीन अलग-अलग नहीं हैं।
ये एक ही वृक्ष के फल हैं।
एक को दबाओ, दूसरा उग आता है।
क्योंकि कारण एक ही है —
हम अपने आप को केवल देह मान बैठे हैं।

वास्तव में हम केवल शरीर नहीं हैं।
यह देह तो एक माध्यम है, एक सूर्य की किरण है।
असल में हम उस अग्नि के गोले से आए हैं —
चेतना की अग्नि से।

हमारी दृष्टि जब केवल देह पर रुक जाती है,
तो ऊर्जा का प्रवाह ठहर जाता है।
यही ठहराव “मोह” बनता है।
देह को सत्य मान लेना ही मोह की जड़ है।
क्योंकि तब आत्मा, जो साक्षी है,
वह पीछे हट जाती है —
और चेतना देह में बंध जाती है।

जब दृष्टि पुनः भीतर मुड़ती है,
और हम उस चेतन स्रोत को देखने लगते हैं
जिससे जीवन बह रहा है,
तो वही मोह, वही ऊर्जा
प्रेम, आनंद और शांति में बदल जाती है।
इसलिए मोह को नकारना नहीं, समझना चाहिए।
यह आत्मा की एक गलत दिशा में बहती हुई शक्ति है।

मोह का सकारात्मक पहलू यही है —
यदि तुम उसकी दिशा बदल दो,
तो वही मोह भक्ति बन सकता है,
वही आसक्ति समर्पण बन सकती है,
वही तृष्णा ध्यान बन सकती है।

मूल में दोष दिशा का है, न कि ऊर्जा का।
भीतर का विकास रुक जाए,
तो ऊर्जा विकृति बन जाती है —
वह क्रोध, मोह, लोभ का रूप लेती है।
पर वही ऊर्जा यदि भीतर लौटे,
तो वही शक्ति आत्मा का प्रकाश बनती है।

हम आज केवल गति प्रधान हो गए हैं —
चलना जानते हैं, रुकना नहीं।
जब तक रुकना, देखना, मौन में उतरना नहीं सीखेंगे,
तब तक मोह की जड़ नहीं कटेगी।
रुकना ही संतुलन है,
और यही संतुलन — मुक्ति का आरंभ।

अज्ञात अज्ञानी
*********
सब परिणाम पर भिड़े हैं — फल से प्रेम, फल से नफरत, फल से धर्म, फल से पाखंड।

धर्मगुरु हों या बुद्धिजीवी —
सब बस परिणामों की व्याख्या करते हैं।
किसी को कारण में उतरने का धैर्य नहीं।
वे यह नहीं देखते कि हर फल के पीछे
एक ही बीज है — अज्ञान।

जब तक कोई भीतर के कारण को नहीं देखता,
वह या तो प्रचारक बनता है या आलोचक,
पर साधक नहीं बनता।

धर्म का सच यह है कि
वह तब तक झूठ है जब तक तुम्हें भीतर की दृष्टि न मिल जाए।
और बुद्धि तब तक मूर्ख है
जब तक वह मौन में झुकना न सीख ले।

bhutaji

🙏🙏सुप्रभात 🙏🙏

sonishakya18273gmail.com308865

ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं
कविता का शीर्षक है 🌹 सच के कवि 🌹

mamtatrivedi444291

Good morning friends. have a great day

kattupayas.101947

दिनांक ०२/१०/२०२५ रोजी ई साहित्य प्रतिष्ठान वर प्रा. श्रीराम काळे यांचा*टुरिंग टॉकीज*कथासंग्रह
लेखक प्रा. श्रीराम काळे यांचा टुरिंग टॉकीज म्हणजे कोकणच्या सुंदर पार्श्वभूमीवरच्या मजेदार कथांचा संग्रह. हा कथासंग्रह म्हणजे कोकणातील परंपरांचा सुगंध आणि आजच्या काळाशी जोडणारा पूल आहे. या कथा कदाचित एखाद्या वाड्याच्या ओसरीवर, वडाच्या झाडाखाली किंवा गावच्या चौकात संध्याकाळच्या गप्पांमध्ये सांगितल्या गेल्या असतील; पण त्यांचा भावविश्वावरचा परिणाम खोलवर रुजलेला आहे. कारण काळ बदलला तरी मानवी मनातील भावना, विचार आणि वृत्ती कायम तशाच राहतात.
या कथासंग्रहात लेखकाने कोकणातील प्रथा, परंपरा, समजुती, हेवेदावे आणि त्यातून निर्माण झालेल्या गावोगावच्या आख्यायिकांना शब्दांत गुंफलं आहे. एका लग्नाची गोष्ट, पडपड आंब्या, टूरिंग टॉकीज, देवाचं देवपण, थंड झाल्यार खावचा, दातारांचा त्रिपुर आणि लिंग्या गुरुवाला लॉटरी लागली या सात कथा कोकणच्या साध्या पण गहिऱ्या अनुभवांना शब्दरूप देतात. जसं टूरिंग टॉकीज गावोगाव फिरत चित्रपट दाखवायचं, तसंच या कथा कोकणातील आठवणी, नाती, सवयी आणि चमत्कारांच्या कथांनी आपल्या मनापर्यंत पोहोचतात.
कोकण ही फक्त निसर्गसौंदर्याची भूमी नाही; इथल्या समुद्रकाठच्या वाऱ्यांत, लाटांच्या गाजेत, भातशेतीच्या मातीच्या सुगंधात आणि डोंगरदऱ्यांतून वाहणाऱ्या ओढ्यांत एक सातत्यपूर्ण अनुभव दडलेला आहे. या अनुभवात कोकणच्या बोलीचा गोडवा, माणसांचं रोजचं जगणं, त्यांच्या श्रद्धा-समज आणि त्यांच्या भोवतालचं गूढविश्व सामावलेलं आहे. टूरिंग टॉकीज हा कथासंग्रह म्हणजे या अनुभवांचा जिवंत दस्तऐवज आहे.
सुनिळ सामंत (ई साहित्य प्रतिष्ठान)

ysnyrsno2175.mb

ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं
कविता का शीर्षक है 🌹 सच और सृजन का संगम, यह कविता अनेक रूपों को दर्शाती हुई क्या कहती है यही कविता में दर्शाया है

mamtatrivedi444291

Mein paani tu kinara
Iss duniya mein tu sahara

Mein chidiya to tu
Uss panchi ka asamaan

Jisne mujhse rone se
Hasna sikhaya
Meri hasi ko sundar bataya

Subah tu raat tu
Har din iss dil mein
Baasne wali awaj tu

Jo Maan ko bhajaye
Vo eshaas tum
Jisse na bhul paye
Vo yaad ho tum

Agar mein novel hu
Uss ki puri kahani tum ho
Dost tum yaar tum
Jisne jeena sikhaya
Voh pyar tum

Nhi janti kon tum
Pyar Dil ko pata hai
Kya ho tum

Aankhe aisi jo
Heartless mein bhi
Pyar bhar de

Baatein aisi jo
Khamosh ko bhi hasa de

Behaviour means vyaktitva
Aisa jo deewana bana de

Nhi janti ki pyar kya hai
Par agar hai toh tum ho voh pyar
Prem

Mi innamoro di te Raghav, non so come ma i tuoi occhi, la tua voce, il tuo comportamento e la cosa più importante Le tue parole e i tuoi consigli sono la risposta a ogni problema.
Mi innamoro di te Raghav,
Mi innamoro di te Raghav

poem by Gunjan gayatri

gunjangayatri949036

**बढ़ती उम्र का लिवास**

धीमे-धीमे घटता नहीं है जीवन का सागर,
बस बदलता है उसका रूप, उसका आकार।
सफेद होते बालों में छुपी है कहानी,
वक्त की नर्म छुअन, यादों की रवानी।
हाथों की लकीरों में लिखा अनगिनत संघर्ष,
हर लहर में है जिंदगी का एक अवलंब।
धीमी पड़ती सांसों में भी गूंजता है शोर,
फ़र्क़ बस इतना है कि अब कम है दौर।
यह उम्र नहीं है बोझ, ना कोई बंदिश,
यह एक सुकून है मन की, वक्त की गंध।
संघर्ष से परे अब मिलेगा विश्राम,
जहाँ आत्मा पाएगी अपना स्वाभिमान।
बढ़ती उम्र का यह लिवास है वरदान,
स्नेह, सम्मान और प्रेम का महान।
जो पाता इसे, वह समझता है सच,
जीवन का संगीत है, इस धीमी गति का मधुमय स्पर्श।

आर्यमौलिक

deepakbundela7179

कब्र तक पहुंच जाते जनाब,बड़ी देर करदी आने मे
वो तो हम अब तक होश मे है, बड़ी भीड़ लगी थी मयखाने मै .

कुछ कर भी नहीं सकता तेरा, तू आज भी मेरा कल भी मेरा
तुझसे जुदा मै रहे नही सकता ,तू पल भी मेरा तू भर भी मेरा .

लगी थी आग पानी में, जमाने लगे बुझाने मे
ओरो पर इतना भरोसा, बस हमसे शर्म लगी बताने मे .

mashaallhakhan600196

कुछ भी नहीं होना चाहिए
बेवजह इस जहाँ में
अरे यहाँ तो पैदाइश पर भी
सौ सवाल उठाये जाते है।

गजेंद्र

kudmate.gaju78gmail.com202313

अध्याय 1 — सौंदर्य का जन्म ✧

✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

आरंभ में कुछ नहीं था —
न रूप, न रंग, न शब्द, न ध्वनि।
बस एक मौन था,
जो स्वयं को देखना चाहता था।

देखने की उसी चाह से
सृष्टि की पहली लहर उठी।
और जब चैतन्य ने स्वयं को प्रतिबिंबित किया,
वहीं से सौंदर्य का जन्म हुआ।

सौंदर्य कोई वस्तु नहीं,
वह आत्मा की तरंग है —
जो पंचतत्व में उतरकर
रूप ले लेती है।

मिट्टी ठहरना चाहती थी,
जल बहना,
अग्नि जलना,
हवा नाचना,
आकाश सबको थामे रहना।
जब ये पाँचों तत्व
एक साथ चैतन्य के स्पर्श में आए —
तब सृष्टि मुस्कराई,
और उसी मुस्कान का नाम पड़ा — सौंदर्य।

सौंदर्य पहली दृष्टि में नहीं,
पहले अनुभव में था —
जहाँ कोई देखने वाला नहीं था,
केवल देखा जाना था।

जब देह बनी,
तो सौंदर्य सीमित हो गया।
अब वह रूप बन गया —
कभी स्त्री का, कभी पुरुष का,
कभी फूल का, कभी तारों का।
पर असल में,
हर रूप के पीछे वही चेतना थी
जो स्वयं को पहचानना चाहती थी।

स्त्री उस चेतना का ग्रहणशील भाग है,
पुरुष उसका दर्शक भाग।
एक भीतर झिलमिलाता है,
दूसरा बाहर से झांकता है।
दोनों में ही सौंदर्य है —
क्योंकि दोनों ही अधूरे हैं।

सौंदर्य पूर्णता नहीं,
अधूरापन का नृत्य है।
जहाँ एक दूसरे की ओर झुकता है,
वहाँ से अस्तित्व खिलता है।

रूप का सौंदर्य तभी तक है
जब तक भीतर की रोशनी उसे छूती रहती है।
जिस दिन चेतना पीछे हटती है,
रूप मिट्टी बन जाता है।

इसलिए जो केवल देखने में रुक जाता है,
वह सौंदर्य खो देता है।
और जो देखने के पार पहुँच जाता है,
वह स्वयं सौंदर्य बन जाता है।

क्योंकि सौंदर्य का असली जन्म
बाहर नहीं,
भीतर होता है —
जहाँ कोई “मैं” नहीं,
सिर्फ एक मौन साक्षी रह जाता है।

वही साक्षी —
वही चैतन्य —
वही सौंदर्य।

अगला अध्याय “रूप और दृष्टि का संवाद”

bhutaji

आज के समय में शादीशुदा मर्दों को किसी और औरत से रिश्ता बनाना मुश्किल नहीं रहा।
वे जानते हैं कैसे किसी की कमजोरी, अकेलेपन या झूठे स्नेह के बहाने दिल में जगह बना लेनी है।
लेकिन असल सवाल यह है —
क्या गलती सिर्फ़ मर्दों की है?
क्योंकि दूसरी तरफ़ की औरत भी जानती है कि वह किसी की पत्नी को दुख दे रही है।
फिर भी बहुत कम ऐसी औरतें मिलती हैं, जो साफ़-साफ़ कह दें —

> “नहीं, तुम्हारी पत्नी जैसी भी है, तुम्हारी ज़िम्मेदारी है।
मैं किसी के बीच नहीं आऊँगी।”



अगर हर औरत यह “ना” कह देती,
तो शायद
घर टूटने से बच जाएंगे।

archanalekhikha

have love and get life

kattupayas.101947

plans vs life

kattupayas.101947

ask help when you are in trouble

kattupayas.101947

mm let's fight

kattupayas.101947

Good evening friends..

kattupayas.101947

ye meri post thi . idhar se thik 300 mtr pakistan ki post thi . bahut maja aata tha aaps me gali dene ka aur fire karne ka aaj yad aaya laga diya

virdeepsinh