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Desai Pragati

Desai Pragati

@desaipragati1108gmail.com102305
(7)

🍁😌✨🕊️✍🏻

उसके आँशुओ का कहा कोई घर था..!
नयन मे समाया हुआ उमड़ता समंदर था ,
बाहर तकिया भीगने का डर था ,
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उसके आँशुओ का कहा कोई घर था ,
दिल उसका बहलने को बड़ा ही बेसबर था ,
मगर कोई सब्री सुनने वाला सब्र नहीं था
.
हर कोई उस शख्स के दर्द से बेखबर था ,
खामोश मुस्कान और आँशु ही जैसे उसका स्वर था
उसके आँशुओ का कहा कोई घर था..!

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स्त्रीयाँ..!!✨🍁

नदिया सी ही तो होती है स्त्रीयाँ
जैसे प्रकृति मे समाई खूबसूरतीयाँ
.
बेह जाना और सेह जाना है स्वभाव
जो नहीं चाहती कभी माफियाँ ,
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घुल जाये कहीभी औरो को भी संभाले,
बिठाती अपने भीतर गंदगीसे गुस्सेकी गर्मीयाँ
.
प्यास बुजाती कभी डुबोती प्रेम से खुद मे,
हो जाये कभी गुस्सेमे संदिग्ध बनके दरियाँ ..!

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papa ❤️

छोटी हो क्या कहके बड़ी भी नहीं होने देते ,
पापा ,डांट के फिर मनाये ऐसे रोने भी नहीं देते
.
आत्मनिर्भर बनो अकेले चलना सीखो कहके,
बस स्टैंड पर लेने आते समान भी ढोने नहीं देते
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रातमे कंबल उढ़ाये सेहलाये छोटे बच्चों सा ,
सुबह उठाये जिम्मेदारो सा की सोने भी नहीं देते
.
अकेला छोड़ के बाज़ार मे खोने भी नहीं देते,
छोटी हो क्या कहके पापा बड़ी भी नहीं होने देते!

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पापा की नानी अम्मा बन के उन्हें डांटने का ,
और बिगाड़ने का एक अलग ही मजा़ है ।

जो सबके लिए बड़े है सम्माननीय बस बेटी को,
उन्हें माँ बन के डांट ने का दररजा़ है ।

कहती माँ पापा से मेरी शैतानियों पर बार बार
हर बार ये आप ही के लाड़ का नतीजा़ है ।

अब किसने किसको बिगाड़ा है ये तो बाप - बेटी
के आलावा आखिरकार कौन ही समजा है ।

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की अब प्यार कही कहीना सौदा हो गया है ,,
फरवरी अब फरेबी महीना हो गया है । 🥀

जब तक मोह हो किसी पते को शाख से गिरता क्यु नही ?🥀
गिरके भी जब तक कोई कूचल न दे बिखरता क्यु नही ?🥀
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खुदके अस्तित्व को मिटते देख वो घबराता क्यु नही ? 🥀
पतझड़ का प्रेमी बसंत मै फिर से सवँरता क्यु नही ?🥀

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क्यू चुनता हे एक इंसान खुदखुशी का रास्ता?
क्या उसे किसी से नहीं रहति हमदर्दी या वास्ता ।
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न जाने कितना घुटा होगा कितनी होगी उनकी दर्द-ए- दास्ता ,
इतना बड़ा कदम उठाया होगा जब बढ़ गया होगा जिंदगी का बस्ता ।
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आसान नहीं होता निर्दोष होते हूए भी खुद को मोत की सजा देना,
ना जाने कितनी आत्माहत्याये कहती हे कईयो की कारश्ता ।

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तुम मुझे बुलाओ पुराने अवतारमे तो मै आऊ ,
वरना बस इसी दायरे मे ठहर कर रह जाऊ ।
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मुठ्ठी मे बांध ली है जैसे पुरानी शख्सियत,
बोल दे जो तु आजा़दी तो मै खोल पर आऊ ।
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नही लगता अच्छा कुछ युँ बदलके खुदको,
रोकलो इसे पहलेकी मै नई छवि घर कर आऊ।
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ख्वाहिश है या तो तुम पे पहलेसा कहर बनके ढा़उ,
या युँ हि खुल्ले आसमाँ सा खामोश शहर रह जाऊ।

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किसान
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सुबह सूरज की पहली किरन से आखिरी किरन तक काम करते किसान ।
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बहोत कश्टीया पडती पैर मे छाले तपता बदन फिर भी सदा मुस्कान ।
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किसान है ईश्वर का एक प्यारा वरदान जिसकी पूरी कायनात मानती अहेसान ।
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जिसे प्यार है पैड ,पंछी ,पौधे ,मिट्टी ,और बैल जो है ईश्वर के बनाए निशान ।
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"जगत का तात" युँ ही नही दिन रात करते काम तभी बनते तुम्हारे मीठे पकवान ।
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किसान भले ही छोटा हो लेकिन क्रुषि की महता है बड़ी तभी देश 70% क्रुषिप्रधान।

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