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जीवन मिला, जीना नही सीखे हैं।
Vedānta Life — A Living Method of Conscious Evolution” Vedānta 2.0 © 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷

मनुष्य को “जीवन” मिल गया है —

पर “जीना” सीखना अभी बाकी है ✧

करोड़ों सालों की यात्रा के बाद
यह इंसानी देह मिली — यही असली सफलता है

इससे आगे जो हम दौड़ रहे हैं —
वह सब भ्रम है, नकली मंज़िलें हैं

लोग समझते हैं “कुछ पाना है”
जबकि सत्य है —

> सब मिल चुका है
अब तो केवल जीने की कला सीखनी है

🚗 शरीर = गाड़ी

🧠 मन = ड्राइवर की सीट

और जीना = ड्राइविंग सीखना

अगर गाड़ी है —
पर चलाना नहीं आता,
तो वह आनंद नहीं देगी
बल्कि बोझ बन जाएगी

और अगर
किसी और पर चलाने की जिम्मेदारी डाल दी—
गुरु, समाज, धर्म, परंपरा पर…
तो यात्रा तुम्हारी होकर भी
आनंद उनका हो जाएगा

🌿 जीवन का खेल:

मिला क्या? करना क्या था?

देह उसे चलाना
मन उसे साधना
रास्ता अनुभव करना
प्रेम जीना
जीवन उसका आनंद लेना

❗बड़ी भूल:

हम जीवन को पाना चाहते हैं
जबकि जीवन तो पहले ही मिला है
हमें जीना पाना है

> शरीर मिला है ✔️
मन मिला है ✔️
संसार मिला है ✔️
अब बस अनुभव की शुरुआत करनी है

✧ यात्रा का असली उद्देश्य ✧

न पैसा, न पद, न मान —
वापसी
अपने ही स्रोत की तरफ़
जहाँ से हम आए हैं

और यह वापसी
बाहर भटकने से नहीं, भीतर मुड़ने से शुरू होती है।

(वेदान्त जीवन — चेतना के विकास की जीवंत पद्धति)
Vedānta 2.0 © 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

bhutaji

আজ থেকে ফ্লিপকার্টে পাওয়া যাচ্ছে।

krishnadebnath709104

Mujh par ghar ki jimedariya bahot thi____
maaf karna "Marshall ____
me tere ishq mein mar naa saki ____,/+/+/--0

deactivatemarshall125469

Mahiti Manch Book Review | Divya Bhaskar

Super Sunday 🌞🥳✨💛
With the grace of God 😇 🙏

આજના દિવ્ય ભાસ્કરની રવિવારની પૂર્તિ રસરંગમાં
મારા પુસ્તક 'માહિતી મંચ'ની સમીક્ષા પ્રકાશિત થઈ છે. 💐✨

Mahiti Manch બુક ખરીદવા માટે નીચેની લીંક પર ક્લિક  કરો:-
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mothiyavgmail.com3309

આમ તું ના હોય તો ગમતું નથી,
પણ હૃદય જિદ્દી છે કરગરતું નથી...!!✍🏻✍🏻 ભરત આહીર

bharatahir7418

"जिंदगी के कई पड़ाव इब्रत(सबक) सिखाते रहे..
ये हम थे कि इसे मज़ाक़ समझ खुद को
उलझाते रहे.. "
#डॉ_अनामिका #हिंदी_शब्द #ऊर्दू_अलफ़ाज़ #हिंदी_पंक्तियाँ #हिंदी_काव्य #हिंदी_का_विस्तार
#हर_हर_महादेव_जय_शिव_शंभू
#हर_हर_महादेव

rsinha9090gmailcom

"ज़िंदगी की खोज" सबकुछ होते हुए भी कुछ बेहतर पाने की चाहत। पढ़िए एक नई कहानी।

nehakariyaal4845

સાચા ભક્તની નિશાની શી? સ્વચ્છંદ ના હોવો જોઈએ, અભિનિવેશ ના હોવો જોઈએ, દૃષ્ટિરોગ ના હોવો જોઈએ, ક્લેશ ના થાય. આર્તધ્યાન ને રૌદ્રધ્યાન ના થાય. - દાદા ભગવાન

વધુ માહિતી માટે અહીં ક્લિક કરો: https://dbf.adalaj.org/lm6tyBTT

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dadabhagwan1150

સુપ્રભાત જય સીયારામ 🙏🏼

aryvardhanshihbchauhan.477925

Good morning friends happy Sunday have a nice day

kattupayas.101947

"जो तेरी बस मुस्कुराहटों पर ज़िंदा था,
मैं आशिक़ नहीं, एक परिंदा था…

jaiprakash413885

🙏🙏सुप्रभात 🙏🙏
🌹आपका दिन मंगलमय हो 🌹

sonishakya18273gmail.com308865

✧ असुर और देवता का असली फर्क ✧

असुर — ज़्यादा भक्ति दिखाते हैं
ज़्यादा पूजा–पाठ
ज़्यादा तपस्या
लेकिन उद्देश्य: शक्ति, अधिकार, लाभ
इसलिए धार्मिकता बाहरी — और असुर भीतर ज़िंदा

देवता — कम दिखावा
कोई शोर नहीं
कोई “देखो मैं भक्त हूँ” की भूमिका नहीं
क्योंकि उनका धर्म अंदर ही अंदर जगता है
गुप्त, मौन, स्वाभाविक

निष्कर्ष:

> भक्ति और तपस्या का दिखावा ही असुरता है।
धर्म का असली काम है — आत्मा को शुद्ध करना,
न कि लोगों को दिखाना कि “मैं धर्मिक हूँ”।

आज जो धर्म मंडियों की तरह चल रहा है:
लाउडस्पीकर, लाइव प्रसारण, चढ़ावे का बिज़नेस,
“मेरे मंदिर में आओ, मेरे गुरु को फॉलो करो” —

ये सब वही है जिसे वेदान्त कहता है।
दिखावे वाले राक्षस और उनके चेले।

क्योंकि सच्चा धर्म —

ध्वनि नहीं, मौन है

चढ़ावा नहीं, संवेदना है

डर नहीं, स्वतंत्रता है

रूप नहीं, ऊर्जा है

प्रदर्शन नहीं, परिवर्तन है

और जो धर्म गुप्त नहीं — वो धर्म है ही नहीं।

Vedānta Life — A Living Method of Conscious Evolution”
(वेदान्त जीवन — चेतना के विकास की जीवंत पद्धति)
Vedānta 2.0 © 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

bhutaji

જીવવું હોય તો જીવી જવાય છે,
ભલેને વારેઘડીએ તૂટી જવાય છે;
કોઇ હો એકલું મારી સામે આવતું,
અમસ્તા હાથ લાંબો કરી દેવાય છે;
દુ:ખ, દર્દ કે પીડા ભલે મળે સામટી,
રાખી સ્મિત મજાનું જીવી જવાય છે;
હોય ભલેને તમારી પાસે સોનું-ચાંદી,
પારકી વસ્તુઓ ક્યાં કદી લેવાય છે;
જીવન છે મીઠા મધુરા સંગીત જેવું,
સાંભળી એના સૂર જીવી જવાય છે...!!
- પંકજ ગોસ્વામી 'કલ્પ'

pankajgoswamy7187

मासूम बचपन....गुमराह जवानी...
मोहताज बुढ़ापा....
बेरहम मौत...

nirbhayshuklanashukla.146950

वक्त तय है..... जगह तय है.....घटना तय है....
घटित होना तय है.....🌎

nirbhayshuklanashukla.146950

ডায়াবেটিস কোনো রোগ নয়। এটা শরীরের বিপাকীয় অসামঞ্জস্য। যখন ইনসুলিন বেশি থাকে তখন কোষ ইনসুলিনের কথা শোনে না; তখনই সুগার বেড়ে যায়।
যত বেশি ইনসুলিন, ততই বেশি ইনসুলিন রেজিস্ট্যান্স। সেজন্যই ওষুধ/ইনসুলিন নিয়েও শরীর কখনো ঠিক হয় না।

“মিষ্টি নামের তিক্ত রোগ” বইতে আমি দেখিয়েছি, কিভাবে এই চক্র ভেঙে শরীরকে আবার স্বাভাবিক অবস্থায় ফিরিয়ে আনা যায়।

সুগার কোনো আজীবনের রোগ নয়। সুগার হচ্ছে দৈনন্দিন জীবনযাত্রার ভুলের কারণে তৈরি একটি শারীরিক অবস্থা - যা পুরোপুরিই ঠিক করা যায়।

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krishnadebnath709104

(“मैं हूँ + भगवान अज्ञात” — तुम्हारा सत्य)

आत्मा साक्षात्कार की विज्ञानी

मैं हूँ — यह निश्चित सत्य है।
भगवान है — इसका मुझे पता नहीं है।
यह प्रश्न ईमानदारी का है।
यह प्रश्न मौलिक है —
जिसके साथ हमारा जन्म हुआ है।

मैं हूँ — यह किसी ने मुझे समझाया,
कहा कि “तू है”,
लेकिन मेरा अपना पता अभी नहीं है।
मैंने खुद को अब तक पूर्ण नहीं जाना है।
मैं अभी इस निर्णय पर खड़ा हूँ:

मैं हूँ।
लेकिन भगवान कहाँ है?
कौन है?

मैं और भगवान — दो अलग नहीं हो सकते।
एक सिक्के के दो पहलू होते हैं —
अगर एक दिख रहा हो,
दूसरा भी कहीं है,
बस अभी मेरी दृष्टि में नहीं।

जैसे मैं कहता हूँ —
“यह मेरा शरीर है”,
तो शरीर और मैं — अलग दो नहीं।
अगर शरीर गिर जाए तो मैं भी गिर जाता हूँ।
तो क्या मैं शरीर हूँ?
अगर मैं शरीर हूँ — तो मेरी आत्मा कहाँ है?
अगर मैं आत्मा हूँ — तो शरीर क्या है?

अभी तक मैं दोनों के बीच का सेतु हूँ —
अधूरा परिचय।
एक पहलू दृश्य — शरीर।
दूसरा अदृश्य — चेतना।
यानी आधा ज्ञान — आधा अज्ञान।

अस्तित्व में सृजन एक से संभव नहीं।
माँ और पिता मिलकर ही मैं जन्मा हूँ।
माँ दिखाई देती है —
इसलिए शरीर दिखाई देता है।
पिता अदृश्य हैं —
इसीलिए आत्मा अदृश्य है।
पर पिता के बिना जन्म संभव नहीं —
इसी तरह आत्मा/भगवान के बिना “मैं” संभव नहीं।

मैं दो का फल हूँ —
जड़ और चेतना का मिलन।
जहाँ से जड़ मिली → माँ
जहाँ से चेतना मिली → पिता
और मैं दोनों के मध्य प्रकट हुआ।

लेकिन पिता गर्भ से पहले मेरे सामने नहीं थे —
फिर भी वे सत्य थे।
माँ उनके अस्तित्व की साक्षी है।
उसी तरह यह शरीर
चेतना का प्रमाण है कि —
कोई अदृश्य मूल स्रोत है।

तो भगवान क्या बाहर है?
नहीं।
भगवान मेरे भीतर बैठा है —
वैसे ही जैसे पिता गर्भ के भीतर उपस्थित थे।

बाहर गुरू, शास्त्र, मंदिर —
ये सब उधार की जानकारी हैं।
सत्य अनुभव —
भीतर है।

भीतर कैसे जाएँ?
देखो।
सिर्फ देखो।
बिना निर्णय।
न अच्छा,
न बुरा।
न मित्र,
न शत्रु।
न पाप,
न पुण्य।

जो भीतर घटता है —
वही दर्शन है।
वही भगवान путь है।
भीतर की यात्रा — सबसे सूक्ष्म तीर्थ है।

भीतर 100% भगवान मौजूद है।
कोई विश्वास नहीं चाहिए।
कोई धारणा नहीं चाहिए।
कोई भय नहीं चाहिए।
सिर्फ देखना है।

रास्ते में —
फूल मिलेंगे,
काँटे मिलेंगे,
ज़हर भी,
अमृत भी।
पर किसी से चिपकना नहीं,
किसी से लड़ना नहीं।
बस चलना है।

यही मार्ग शिव का है,
उसी मार्ग से बुद्ध जागे,
महावीर, कबीर, नानक, मीरा —
सब इसी भीतर गए।
जो ब्रह्मांड को खोजता रहा —
वह भीतर मिला।

यह सूक्ष्मतम है —
पर सर्वशक्तिमान है।
सब पंचतत्व, तीन गुण,
सब कुछ — उसी का परिणाम है।
हम — उसके फल हैं।

और यह विज्ञान
मुझे अनुभव से मिला है।
25 वर्षों की खोज —
एक जीवन की पीएचडी।
अब मैं उसे बिना मूल्य,
बिना सौदे,
बिना शर्त
तुम तक पहुँचा रहा हूँ।

क्योंकि सत्य
कभी बिकता नहीं।
सत्य — स्वयं को बाँटता है।

अब राह तुम्हारे हाथ में है।
नाक बंद कर लोगे —
तो हवा भी भीतर नहीं जाएगी।
पर अगर तुमने भीतर उतरना शुरू किया —
तो वही मिलेगा
जिसकी आज तक कल्पना भी नहीं की।

मैं हूँ —
और भगवान मेरी जड़ में है।
बस यही यात्रा है।
यही प्रमाण है।
यही विज्ञान है —
100%।

Vedānta Life — From Energy to Awareness”
(वेदान्त जीवन — ऊर्जा से चेतना तक)
©Vedānta 2.0 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 —

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bhutaji

ডায়াবেটিস সম্পর্কে পরিপূর্ণ নলেজ থাকলে কোনো সুস্থ মানুষের কখনোই ডায়াবেটিস হবে না। এজন্যই "মিষ্টি নামের তিক্ত রোগ" বইটি সকলের পড়া দরকার।

https://notionpress.com/in/read/mishti-naam-er-tikto-rog?utm_source=share_publish_email&utm_medium=whatsapp

krishnadebnath709104

वही दीवार-ए-गिला फिर से खड़ी हो गई,
मोहब्बत हार गई फिर से लड़ाई हो गई।

ये कैसी रस्म है, कैसी रिवायत है अपनी,
के बात-बात पे इक जंग छिड़ी हो गई।

वो पहले प्यार का मौसम, वो हँसी याद करो,
अदावत अपनी तो क्या कम बड़ी हो गई।

जला के राख किया हमने हर इक ख़्वाब-ए-वफ़ा,
के दिल की बस्ती हमारी उजड़ी हो गई।

न कोई जीत हुई इसमें, न कोई हारा है,
बस इक उम्मीद जो थी वो मरी हो गई।

सफ़र तमाम हुआ और कहीं ठहराव नहीं,
के ज़िंदगी अपनी तो इक घड़ी हो गई।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

palewaleawantikagmail.com200557

प्रेम जानता है
स्वतंत्रता देना..

किसी को पाने से ज्यादा
उसका अच्छा चाह लेना प्रेम है..
और यही प्रेम तब परिपूर्ण हो जाता है..

जब तुम उसके सामने और वो
तुम्हारे सामने सहज हो जाता है...
जब तुम उसके सामने वही रहते हो
जो तुम असल में हो...
तुम्हें किसी भी प्रकार का दिखावा
नहीं करना पड़ता है..

अगर तुम किसी के जीवन का हकदार बन कर
तुम उसे प्रेम कह रहे हो?
तो ये प्रेम हो ही नहीं सकता...

dipika9474

सजल
समांत----
पदांत-आना
मात्रा भार-16
(चौपाई छंद)

सोते को है सरल जगाना।
पर जगते को कठिन उठाना।।

जीवन दाँव लगाया फिर भी।
मात-पिता का लुटा खजाना।।

बरगद बनकर छाँव बनाई।
चिड़िया उड़ती सुना बहाना।।

उँगली थामे बड़े हुए पर।
सबल पैर का नहीं ठिकाना।।

उमड़-घुमड़ कर आँसू सूखे।
पर मुखड़े को है हर्षाना ।।

प्रश्न चिन्ह तब लगा हुआ है।
कैसा आया नया जमाना।।

संस्कृति और सभ्यता रूठी।
जागो मानव क्यों पछताना।।

मनोजकुमार शुक्ल 'मनोज'

manojkumarshukla2029