Most popular trending quotes in Hindi, Gujarati , English

World's trending and most popular quotes by the most inspiring quote writers is here on BitesApp, you can become part of this millions of author community by writing your quotes here and reaching to the millions of the users across the world.

New bites

jaldi padhe
nbv novel book univers ki taraf se....
anuj Shrivastava ki kalam se.......
ek Prem Katha

kumar00

may be in next life my luv🫂😘🖤

ponnuponnoos16gmail.com812800

Mai raat ban jau teri ya aankho ki teri nind..

Tu khab ban jaaye ..mera tu sukoon

bas ek lamha ban ke dil mein thehar jaye

aur khamoshiyon ko apni Labzo ka rang de jaye
_Mohiniwrites

neelamshah6821

धर्म के पार की यात्रा ✧

✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

१. जो जननी को नहीं समझता — वही शास्त्र पढ़ने लगता है।
२. जो शास्त्र को नहीं समझता — वह धर्म-कर्म और पूजा-पाठ में उलझ जाता है।
३. जो धर्म को समझता है — वह शास्त्र से आगे बढ़ जाता है।
४. जो शस्त्र (ज्ञान की धार) को समझ लेता है — वही स्त्री को समझ लेता है।
५. और जो स्त्री को समझ लेता है — वह ब्रह्म को भी जान लेता है।

६. लेकिन धर्म की यह सीढ़ी बहुत शूद्र है —
यह भीड़, स्वप्न और कल्पना की दुनिया है।

७. इससे ऊपर ही वास्तविक यात्रा आरंभ होती है।
८. धर्म में कोई यात्रा नहीं है — जब तक इसे पार न किया जाए।

९. जो यहीं रुक गया — वह भीतर सड़ जाता है।
१०. और फिर भ्रम, अंधविश्वास और पाखंड के नए नर्क रचता है।

११. एक भौतिक, भोगी नास्तिक को समझाना आसान है —
क्योंकि वह अब भी जीवित है, अब भी खोज में है।

१२. पर जो धर्म में अटक गया — उसे समझना अत्यंत कठिन है।
१३. क्योंकि वह ज्ञान की नकली संतुष्टि में सो गया है।

१४. जिसने धर्म नहीं देखा — उसे आध्यात्मिक बनाना सरल है।
१५. पर जिसने धर्म देखा और वहीं ठहर गया —
उसे जागृत करना लगभग असंभव है।
वेदांत 2.0 — अज्ञात अज्ञानी©
Vedānta 2.0 © 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 —

bhutaji

આજના સમયમાં બાળકો ડ્રગ્સ લે છે, ડિપ્રેસ થઈને આપઘાત કરી નાખે છે. આવામાં માતા - પિતા તરીકે આપણે બાળકો સાથે કેવી રીતે વ્યવહાર કરવો જોઈએ જેથી તેઓ આવા ગેરમાર્ગે ન દોરવાય?

Watch here: https://youtu.be/PUR6H-NQ8HA

#parenting #parentingtips #relationship #relationshptips #DadaBhagwanFoundation

dadabhagwan1150

अगर आपको किसी ने रोका हुआ है,तो आप वक्त बन जाओ फिर आपको कोई नही रोक पायेगा,क्यूकि वक्त ना तो किसी के लिए रुकता है और ना ही इसे कोई रोक सकता है .

mashaallhakhan600196

नग्नता और सभ्यता ✧

✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

नग्नता में आज सब आगे हैं —
पढ़ी-लिखी सभ्यता सबसे आगे।
कभी कोई अनपढ़ नग्न नहीं हुआ।
भले कोई स्त्री अनपढ़ हो,
पर उसे अस्तित्व लाज और शर्म देकर भेजता है।
और वही स्त्री जब पढ़-लिख जाती है,
तो अपनी लाज और शर्म गिरवी रख देती है।

जीवन फिर किसी दाम पर खरीदा नहीं जा सकता।
यदि कोई अनपढ़ आदिवासी स्त्री नग्न है,
तो वह उसकी असभ्यता नहीं — उसकी मजबूरी है।
वह अज्ञान है, लेकिन उसका अज्ञान प्रदर्शन नहीं।
उसकी नग्नता फैशन नहीं —
वह तो प्रकृति की सादगी है,
जो गंगा से भी अधिक पवित्र है।

---

यह समाज, जो “आधुनिकता” के नाम पर फैशन कहता है,
वह दरअसल संवेदना की मृत्यु है।
हृदय बाहर छूट गया है,
और सत्य अब केवल बुद्धि की कला बन गया है।
कला सुंदर तो होती है,
पर जब वह आत्मा से कट जाती है,
तो वह अंधकार का संकेत बन जाती है।

स्त्री का सौंदर्य पर्दे में है —
जैसे अस्तित्व पर्दे के भीतर सृजन करता है।
कोई नहीं देखता कि फूल कैसे खिलता है,
बीज कैसे फूटता है,
फिर भी सृष्टि चलती है।
वैसे ही स्त्री लगती है कुछ नहीं करती,
पर वही समस्त सृजन की जड़ है।

पर आज उसकी नज़र आना ही ईनाम बन गया है।
जो अधिक दिखे — वही “वर्ल्ड सुंदरी”।
अपनी मौलिकता बेचने का नाम बन गया — “विश्व सुंदरी”।
क्या यही देखने का ढंग है अस्तित्व का?
क्या यही स्त्री का मूल्य है —
कि जो अधिक नग्न हो, वही सुंदर कहलाए?

यह खेल आंधों का है,
किसी देखने वाले का नहीं।
दुनिया की नज़रों में करोड़ों स्त्रियाँ नग्न होती हैं —
और उनके साथ पुरुष भी अपनी आत्मा बेच देता है।
क्योंकि मशीनों की कोई आत्मा नहीं होती।
पत्थर में आत्मा संभव है,
पर किसी मशीन में नहीं।
क्योंकि जब धातु से आत्मा छिन ली जाती है —
तभी मशीन बनती है।
और वैसी ही “विश्व सुंदरी” भी बनती है —
निर्जीव, चमकदार, पर चेतना से रिक्त।

“यूनिवर्सल मिस” —
मतलबी दुनिया की पत्नी है,
नाम बड़ा है, पर उसमें बदबू है।
वह ईनाम जितना बड़ा,
उतनी ही उसकी नग्नता गहरी।
जिस स्त्री को अस्तित्व ने रहस्य दिया था,
पुरुष उसी रहस्य को छीन लेता है।

---

आधुनिक मानव कहता है —
“हम स्त्री को समानता, इज्जत और सम्मान दे रहे हैं।”
पर यह मूर्खता है।
क्योंकि ईश्वर ने स्त्री को पहले ही सब कुछ दिया है —
केवल एक कमी छोड़ी है —
एक जाग्रत पुरुष की चेतना-किरण।

स्त्री के पास सब कुछ है —
सृजन की शक्ति, रचनात्मकता, करुणा, सौंदर्य —
पर उस प्रेम की किरण के बिना
वह भीतर से अधूरी रह जाती है।
वह कमजोर नहीं है,
पर पुरुष की आँखें बंद हैं।
वह उसकी किरण देख नहीं पाता,
जो उसे पूर्ण बना सकती है।

सभ्यता, विज्ञान, और आधुनिकता ने
पुरुष की चेतना को ढक दिया है।
और जब वह जाग्रत किरण नहीं मिलती,
स्त्री भीतर-ही-भीतर नग्न होती रहती है —
भावनाओं में, आकांक्षाओं में, अधूरे प्रेम में।

स्त्री को सृजन की सारी कला दी गई,
पर केवल एक चीज़ कम दी गई —
पुरुष के प्रेम की वह चेतना,
जो उसके भीतर ज्योति जगा सके।
पुरुष का समाज आज उसी किरण से रिक्त है।
वह योजनाएँ बनाता है, प्रेम नहीं जगाता।

और इसीलिए —
स्त्री जीवन भर उस प्रेम-किरण के लिए
पुरुष की गुलामी करती है

bhutaji

🙏🙏सुप्रभात 🙏🙏
🌹 आपका दिन मंगलमय हो 🌹
"बहुत समय पड़ा है,
यही वहम
सबसे बड़ा है "
🙏🙏ओम् नमः शिवाय 🙏🙏

sonishakya18273gmail.com308865

ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं
कविता का शीर्षक है 🌹 समय की पुकार

https://www.instagram.com/reel/DQ14pMXknRm/?igsh=MWw3ZDlydjZycjl4ag==

mamtatrivedi444291

maksud Raja ki kahani motivational

makshudhraja.211924

शायरी✍️

soni1993

👌शायरी✍️

soni1993

https://www.instagram.com/the_openbook_store?igsh=MTMwZmltZW9iZTNtYw==
aap sap hamare instagram page ko follow kare 🙏🙏🙏

kumar00

उपयोग का युग — चेतना का पतन

वेदांत 2.0 — अज्ञात अज्ञानी©
Vedānta 2.0 © 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

आज मनुष्य की सभ्यता उपभोग की सभ्यता है।
जो चीज़ इस्तेमाल होती है, वह जीवन नहीं देती —
वह जीवन खा जाती है।
जो फेंकी जाती है, वही विष बन जाती है।
जो जलाई जाती है, वही हवा को ज़हर कर देती है।
जो दिखाई देती है, वही झूठी सुंदरता बन जाती है।

बुद्धि और आँख — दोनों ही बाहर की ओर उन्मुख हैं,
इसलिए वे भीतर की दिव्यता नहीं देख पाते।
जहाँ बीज गर्भ में पलता है,
जहाँ वृक्ष धरती के भीतर जड़ पकड़ता है —
वहीं जीवन का मूल है।
जो भीतर नहीं घटता, वह स्थायी नहीं होता।

सुख, प्रेम, शांति, आनंद — ये फल हैं भीतर के वृक्ष के।
पर मनुष्य अब बाहर की बगिया में दौड़ रहा है,
जहाँ फूल कृत्रिम हैं और खुशबू रासायनिक।

??
अब जीवन नाटकघर के बाहर लगे चित्रों जैसा हो गया है।
भीतर फिल्म चल रही है, संगीत बज रहा है,
और लोग बाहर खड़े होकर पोस्टर से ही आनंदित हो रहे हैं।
यही “सभ्यता” है —
दिखावे की, तुलना की, प्रतिस्पर्धा की।

हर कोई दूसरे की रोशनी से अपनी परछाईं नाप रहा है।
और फिर कहता है — “मैं खुश हूँ।”
पर उसकी खुशी उधार की है,
दुख भी उधार का,
सफलता भी उधार की,
और ईश्वर भी उधार का।

जो खुद को दानी कहते हैं,
वे प्रसिद्धि की भीख माँगते हैं।
जो सेवा करते हैं,
वे नाम की पूजा मांगते हैं।
धार्मिकता अब आडंबर है —
कर्तव्य नहीं, प्रदर्शन है।

इसलिए असली गरीब वह नहीं जिसके पास धन नहीं,
बल्कि वह है जिसके भीतर कुछ नहीं।
और वही अब “विकसित” कहलाता है।

यह सारा दृश्य उलट गया है —
सत्य भीतर था, पर उसे झूठ ने बाहर कर दिया।
अब झूठ का राज्य है, और सत्य निर्वासित है।

bhutaji

સવાર
વહેલી પરોઢે બોલ્યો રે મોરલો
સાથ પૂરે સાથે પેલી રે ઢેલડ!....
કૂકડો પણ ઝબકી જાગ્યો ને બોલ્યો,
સાદ સાંભળી તેતરને ટીટોડી રે બોલ્યા!....
ઉગમણે આકાશે શુક્ર તારલો ચમક્યો
ભાગ્યો અંધકારને કેસરિયો ચમક્યો!....
જોઇ ઝાડવેથી પંખી સૌ ચહેક્યા
જાગી ગયાનેઝાડવા બુંદોથી તેય ચમક્યા!.....
ઝાકળ કેરી ચાદર પથરાઈ
ફૂલ ગુલાબી ઠંડી છે પ્રસરાઈ!.....…
સોનેરો સૂરજ છે ચમક્યો
સોનેરા કિરણો તેના ભરે અનેરો ઉમંગ!...
જય શ્રી કૃષ્ણ:પુષ્પા.એસ.ઠાકોર

thakorpushpabensorabji9973

રાધે કૃષ્ણ 🙏🏻

falgunidostgmailcom