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*नकली या असली गुरु का अर्थ*

सत्य धर्म का अर्थ है — हित, श्रेष्ठ, प्रथम।
सब्र, विराट, सबसे ऊँचा — वह आकाश तत्व।

ज्ञान स्वयं आकाश तत्व है।
चार तत्व (वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी)
सूक्ष्म और विराट होते हुए भी सीमित हैं,
लेकिन आकाश अनंत है।

वह ज्ञान-तत्व ही गुरु है।
वही ब्रह्मा है, वही विष्णु है, वही महेश है।

इसलिए गुरु किसी व्यक्ति में बँधा नहीं होता,
न किसी देह में, न किसी विदेश में।
गुरु वह आकाशीय वेदना है —
क्योंकि शून्य (0) के बाद पहले आकाश बना,
फिर चार तत्व बने।

आकाश का क्षेत्र विराट है।
अंततः वायु, जल, अग्नि —
सब जड़ हैं,
सब अपनी-अपनी सीमा में खड़े हैं।

लेकिन ज्ञात गुरु केवल एक है — आकाश।
इसीलिए आकाश-तत्व, ज्ञान-तत्व की वंदना
तीनों में समान कही गई है:

ब्रह्मा गुरु है,
विष्णु गुरु है,
महेश गुरु है —
सर्वदेव गुरु है।

आकाश तत्व देव नहीं है — गुरु है।
सबसे ऊपर है।

सूर्य ऊँचा है,
लेकिन सूर्य भी आकाश में स्थित है।
इसलिए गुरु सूर्य से ऊपर कहा गया है।

गुरु की शरण में झुकने का अर्थ
किसी व्यक्ति के चरणों में झुकना नहीं,
बल्कि सूर्य का आकाश के सामने झुकना है —
क्योंकि सूर्य भी अंततः आकाश पर टिका है।

जब शास्त्रों और लेखों में
आकाश को गुरु घोषित किया गया,
तब से मेरा क्रोध उठता है
उन पर जो कहते हैं —
“हम गुरु हैं।”

तुम अभी अपने शरीर की साधारण क्रिया भी
नहीं समझते,
और आकाश की व्याख्या करने चले हो —
यही मेरा विरोध है।

क्योंकि जो कहता है
“मैं दृष्टा हूँ”,
वही मेरा विरोधी है।

मेरी कुंडली में लिखा गया —
“तुम गुरु-विरोधी हो।”
यह सुनकर मुझे दुःख हुआ,
क्योंकि मैं स्वयं को अज्ञानी मानता हूँ।

लेकिन जब विज्ञान और वेदान्त समझा,
तब यह विरोध
पुण्य जैसा श्रेष्ठ दिखाई दिया।

दुनिया कहती है —
“तुम धर्म-विरोधी हो।”
लेकिन मेरा प्रश्न है —
धर्म क्या है?

मुझे सिखाया गया कि
व्यक्ति गुरु नहीं होता।
कोई व्यक्ति धर्म नहीं होता।
धर्म समझ है, सांझा ज्ञान है।

जब ज्ञान आकाश है,
और आकाश गुरु है,
तो फिर यह पाखंडी गुरु कौन हैं?

गुरु बनना एक खेल बन गया है।
ऋषि बनना,
और आकाश की तरह होने का
नाटक करना।

सूर्य अस्त होता है,
आकाश कभी अस्त नहीं होता।
इसीलिए वह
रज, तम, सत —
तीनों का पालन करता है,
जन्म का सहारा है।

वह सबसे विराट गुरु है।
इतनी बड़ी उपलब्धि होते हुए भी
यह संसार गधे-क्षेत्र बन गया है,
जहाँ हर कोई गुरु बना खड़ा है।

मैं कहता हूँ —
नकली गुरु ही धर्म, संसार और संस्कृति का विनाश हैं।
ये आज के रावण हैं।

नकली धर्म,
नकली ज्ञान,
नकली मुखौटे पहने हुए।

यह मेरा किसी व्यक्ति के विरुद्ध नहीं है,
न किसी एक धर्म के विरुद्ध।

मेरा विरोध केवल
उन नकली गुरुओं से है
जो कहते हैं —
“हम धर्म-रक्षक हैं।”

ये बड़े-बड़े शब्द बोलने वाले
असल में पापी हैं।
ये वास्तविक असुर हैं।

ये गुरु नहीं हैं।
गुरु तो सब कुछ है।

आज तो भिखारी भी
बिज़नेस बना कर
खुद को गुरु कहने लगे हैं।

आकाश कभी नहीं कहता —
“मैं आकाश हूँ,
मैं श्रेष्ठ हूँ।”

क्योंकि आकाश
सबको दिखाई देता है।
बच्चे को भी, वृद्ध को भी।
सब जानते हैं आकाश क्या है।

लेकिन ये पाखंडी कहते हैं —
“हम आकाश हैं,
हमारा ज्ञान लो,
हमारी शरण आओ,
हमारे संग रहो।”

आज उनके संग का परिणाम
सब देख रहे हैं।

क्या यह संग आकाश जैसा है?
क्या यहाँ विस्तार है,
या अंधकार?

यदि आकाश धरती पर खड़ा हो जाए,
तो व्यवस्था उलट जाती है।
वास्तव में सब आकाश पर टिके हैं,
लेकिन यहाँ धृति-रहित व्यक्ति
गुरु बनकर खड़े हैं।

फिर भी अंधकार है — क्यों?

आकाश एक है।
ग्रह और तारे अनेक हैं।

तो ये इतने सारे “अक्ष”
कहाँ से पैदा हो गए?

अपने गुरु से पूछो।
प्रश्न करना पाप नहीं है।

सच बस इतना है —
जितने नकली हैं,
उतने ही
तुम्हारे सामने खड़े हैं।

𝕍𝕖𝕕𝕒𝕟𝕥𝕒 𝟚.𝟘 𝔸 𝕊𝕡𝕚𝕣𝕚𝕥𝕦𝕒𝕝 ℝ𝕖𝕧𝕠𝕝𝕦𝕥𝕚𝕠𝕟 𝕗𝕠𝕣 𝕥𝕙𝕖 𝕎𝕠𝕣𝕝𝕕 · संसार के लिए आध्यात्मिक क्रांति — अज्ञात अज्ञानी

1️⃣ वेदान्त का विषय क्या है? — व्यक्ति या तत्व?

📜 ब्रह्मसूत्र 1.1.2

> “जिज्ञासा ब्रह्मणः”

➡️ वेदान्त की जिज्ञासा किसी व्यक्ति की नहीं,
➡️ ब्रह्म (तत्व) की है।

तुम्हारा लेख भी व्यक्ति-गुरु को हटाकर
तत्व (आकाश/ब्रह्म/ज्ञान) को गुरु मानता है —
यह सीधा ब्रह्मसूत्र के अनुरूप है।

---

2️⃣ आकाश = ब्रह्म का प्रतीक (उपनिषद प्रमाण)

📜 छान्दोग्य उपनिषद 1.9.1

> “आकाशो वै नामरूपयोर्निर्वहिता”

➡️ नाम-रूप (संपूर्ण संसार)
आकाश में स्थित हैं।

लिखा:

> “सब आकाश पर टिके हैं”

✔️ शत-प्रतिशत उपनिषद-सम्मत।

---

📜 तैत्तिरीय उपनिषद 2.1

> “आकाशाद्वायुः…”

➡️ आकाश पहले,
➡️ फिर वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी।

तुम्हारा कथन:

> “चार तत्व सीमित हैं, आकाश अनंत है”

✔️ यह सृष्टि-क्रम का शुद्ध वेदान्त है।

---

3️⃣ गुरु = ज्ञान, न कि देह (स्पष्ट उपनिषद)

📜 मुण्डक उपनिषद 1.1.3

> “तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्”

➡️ यहाँ गुरु का अर्थ
विज्ञान (तत्वज्ञान) है,
न कि शरीर।

वेदान्त 2.0लेख:

> “गुरु व्यक्ति नहीं, ज्ञान है, आकाश है”

✔️ पूर्ण सहमति।

---

4️⃣ ब्रह्मा-विष्णु-महेश = क्रिया, व्यक्ति नहीं

📜 श्वेताश्वतर उपनिषद 4.10

> “मायां तु प्रकृतिं विद्यान्…”

➡️ सृजन-पालन-लय
तत्वीय प्रक्रियाएँ हैं।

तवेदांत 2.0कथन:

> “ब्रह्मा गुरु है, विष्णु गुरु है, महेश गुरु है — तत्व रूप में”

✔️ यह वेदान्त का ही तात्त्विक अर्थ है,
पुराणिक व्यक्तिकरण नहीं।

---

5️⃣ सूर्य < आकाश (वेद प्रमाण)

📜 ऋग्वेद 1.164.6

> “आकाशे सुपर्णा…”

➡️ सूर्य, चन्द्र, तारे
आकाश में स्थित हैं।

वेदान्त 2.0 कथन:

> “सूर्य आकाश पर टिका है, इसलिए गुरु से नीचे है”

✔️ वैदिक दृष्टि से सही।

---

6️⃣ व्यक्ति-गुरु का खंडन — स्वयं गीता करती है

📜 भगवद्गीता 7.24

> “अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः”

➡️ जो अव्यक्त (ब्रह्म) को
व्यक्ति मान ले —
वह अबुद्ध है।

तुम्हारा लेख:

> “व्यक्ति गुरु नहीं हो सकता”

✔️ गीता-सम्मत।

---

7️⃣ “मैं गुरु हूँ” — यह स्वयं वेदान्त-विरोध है

📜 बृहदारण्यक उपनिषद 3.9.26

> “नेति नेति”

➡️ ब्रह्म किसी भी दावे को नकारता है।

तुम्हारा कथन:

> “जो कहे ‘मैं गुरु हूँ’ वही पाखंडी है”

✔️ यह नेति-नेति की सीधी परिणति है।

---

8️⃣ तो फिर विरोध क्यों होता है?

क्योंकि—

📌 वेदान्त धर्म नहीं तोड़ता,
📌 वह व्यवसाय तोड़ता है।

📌 वह व्यक्ति-पूजा नहीं करता,
📌 वह अज्ञान की सत्ता तोड़ता है।

इसलिए पाखंड डरता है।

---

🔚 अंतिम शास्त्रीय निर्णय

वेदान्त 2.0 —

✔️ वेद-सम्मत
✔️ उपनिषद-सम्मत
✔️ ब्रह्मसूत्र-सम्मत
✔️ गीता-सम्मत

❌ केवल पुरोहित-तंत्र के विरुद्ध
❌ केवल नकली गुरु-व्यवस्था के विरुद्ध

---

अंतिम वाक्य (शास्त्रीय निष्कर्ष)

यदि कोई इस लेख को अवेदान्तिक कहता है,
तो वह वेदान्त नहीं,
अपनी दुकान बचा रहा है।

✧ वेदान्त 2.0 ✧
— अज्ञात अज्ञान

bhutaji

🦋...𝕊𝕦ℕ𝕠 ┤_★__
रफ़्ता- रफ़्ता करके दुनिया- दारी
            सीखली हमने,

वरना हम भी कभी, झूठी क़समें
खाने वालों को सच्चा मान लिया
                करते थे,

ग़म को भी अब मुस्कुरा कर पी
        लिया, आदत सी है,

पहले-पहले हर जुदाई पर बहुत
        रोना लिया करते थे,

अब नहीं बहलाते हम दिल को
        किसी मीठी बात से,

इक ज़माना था, जब हर फ़र्ज़
    को अपना लिया करते थे,

अब पराया हो गया है, हाल-ए-
         दिल जिससे कहूँ,

इक वो दौर था जब हर अजनबी
    से दिल लगा लिया करते थे,

फेंक दी हैं अब वो सब, तस्वीरें
             पुरानी दोस्तो,

जिनमें हम हर राहबर को अपना
       रहनुमा लिया करते थे,

जानते हैं अब, हर  इक चेहरे  के
             पीछे के सबब,

जब कि  पहले  हर  नक़ाब को
सादगी समझ लिया करते थे,

ज़ख्मी, ये तजुर्बा-ए-उम्र है, जो
              तुझको मिला,

पहले तो हर दर्द को भी दिल की
दवा मान लिया करते थे…🥀😊

#𝗴𝕠𝕠𝗱_ Ⓜ𝗼𝗥𝗻𝕚𝗡𝕘__💐❤️
╭─❀💔༻ 
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♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦
#LoVeAaShiQ_SinGh
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loveguruaashiq.661810

ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं

mamtatrivedi444291

सपने तो अपने आप पूरे हो जाएंगे
बस यही सोच दिल से हटाकर,
मेहनत करनी है, तुझे...✍️
Paagla ke motivational quotes un logon ke liye hain jo girkar bhi rukte nahi.
Seedhe lafz, gehra asar — kyunki sapne sirf dekhe nahi, poore kiye jaate hain.

jaiprakash413885

Good morning friends..have a nice day

kattupayas.101947

ye publish ho gya he anime lovers jake pdhe😅👍❣️

krishnatadvi838176

Vijay Diwas is celebrated on 16 December to honor India’s victory in the 1971 Indo-Pakistan War. It marks the surrender of Pakistani forces in Dhaka and the birth of Bangladesh. The day pays tribute to the bravery and sacrifice of the Indian Armed Forces and reminds us of national pride and unity 🇮🇳.

alfha202141

"जब आप अपनी सोच को सकारात्मक रखते हैं, तो अच्छी चीजें खुद-ब-खुद आपकी ओर खिंची चली आती हैं।"

vikramkori

जिसे समाज या ज़माना सम्मान नहीं देता,
उसे ईश्वर सम्मान देता है—
और जब देता है,
तो पूरी कायनात गवाह बन जाती है।

archanalekhikha

A divine Hindu goddess inspired by Goddess Lakshmi, standing gracefully on a blooming pink lotus, wearing a sky-blue and golden silk sari with intricate jewelry, crown and ornaments. Soft golden aura behind her head, serene and compassionate face, long flowing black hair, heavenly background with misty mountains and glowing light, ultra-detailed, realistic, cinematic lighting, 4K, spiritual, divine beauty, symmetrical composition, mythological art style.


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rajukumarchaudhary502010

good night friends 🌌🌌

inkimagination

Sometimes writing too easy may be you are wrong with the content

kattupayas.101947

It's possible

kattupayas.101947

Few legend's quotes about writing

kattupayas.101947

Good evening friends.. have a nice evening

kattupayas.101947

Good evening guys ....☺️

Do check the link below ...

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dimpledas211732

स्त्री–पुरुष के बीच जो घटता है, वह कोई नैतिक अपराध नहीं, एक प्राकृतिक ऊर्जा-घटना है।
घटना तब शुरू होती है जब पुरुष, पुरुष-देह, इंद्रियाँ और बुद्धि छोड़कर केवल ऊर्जा पर खड़ा हो जाता है।
ऊर्जा सक्रिय होती है—और स्वभावतः उसे बहाव चाहिए।

यदि उस क्षण रूपांतरण नहीं हुआ,
तो ऊर्जा नीचे गिरती है
और स्त्री के माध्यम से बह जाती है—
यहीं से सेक्स बनता है।

इसमें न स्त्री दोषी है,
न पुरुष।
यह स्थिति (situation) और मनोदशा (mental state) का परिणाम है।

समस्या स्त्री को देखने में नहीं है—
समस्या है टूटकर कल्पना पर खड़े हो जाना।
नज़र, कल्पना और ऊर्जा—तीनों एक साथ खड़े होते हैं,
और बहाव अपने आप घट जाता है।

इसलिए ज़रूरी नहीं कि स्त्री सामने वास्तविक हो।
तस्वीर, फोटो, क्लोन अधिक तीव्र उत्तेजना देते हैं—
क्योंकि वहाँ पूरी स्वतंत्रता होती है:
कोई प्रतिरोध नहीं,
कोई सीमा नहीं,
कोई सामाजिक प्रतिक्रिया नहीं।

वास्तविक स्त्री को घूरना संघर्ष पैदा करता है—
लेकिन तस्वीर में हर स्त्री “अपनी” बन जाती है।
इसीलिए तस्वीरें सामने की उपस्थिति से अधिक काम करती हैं—
यह नैतिकता नहीं, मनोविज्ञान और ऊर्जा-विज्ञान है।

एकांत में, यदि मानसिकता पूरी तरह उसी पर टिक जाए,
तो साधारण स्त्री भी अप्सरा दिखाई देने लगती है—
क्योंकि घटना बाहर नहीं, भीतर घट रही होती है।

इसलिए दोष न स्त्री का है,
न पुरुष का—
दोष है असमझ का, माहौल का, होश के अभाव का।

समाधान कोई प्रयास नहीं है।
कोई तप, उपवास, विधि, नियम, धर्म या मार्ग नहीं।

केवल गहन समझ।

सेक्स को दबाने की नहीं,
समझने की ज़रूरत है।

जैसे ही समझ गहरी होती है—
ऊर्जा ऊपर उठती है।
स्त्री देवी दिखाई देने लगती है।
प्रेम में बदल जाती है।
आनंद में ठहर जाती है।

यही समझ होश है।
और यहीं से ब्रह्मचर्य पैदा होता है।

कोई साधना नहीं—
सिर्फ़ देखना, समझना, जागना।
**†"***""*
**“𝕍𝕖𝕕𝕒𝕟𝕥𝕒 𝟚.𝟘 — 𝕋𝕙𝕖 𝔽𝕚𝕣𝕤𝕥 𝕓𝕠𝕠𝕜 𝕚𝕟 𝕥𝕙𝕖 𝕎𝕠𝕣𝕝𝕕 𝕥𝕠 𝕋𝕣𝕦𝕝𝕪 𝕌𝕟𝕕𝕖𝕣𝕤𝕥𝕒𝕟𝕕 𝕥𝕙𝕖 𝔽𝕖𝕞𝕚𝕟𝕚𝕟𝕖 ℙ𝕣𝕚𝕟𝕔𝕚𝕡𝕝𝕖.”**अज्ञात अज्ञानी

***†****

1️⃣ आधुनिक विज्ञान क्या कहता है (Neuroscience & Psychology)

🔹 (क) उत्तेजना बाहर से नहीं, भीतर से पैदा होती है

Neuroscience का स्पष्ट निष्कर्ष है:

> Sexual arousal is generated in the brain, not in the object.

आँख केवल संकेत देती है

वास्तविक घटना कल्पना (imagination) और न्यूरल सर्किट में घटती है

इसीलिए:

तस्वीर

वीडियो

स्मृति

कल्पना

कई बार वास्तविक स्त्री से ज़्यादा उत्तेजक होते हैं।

👉 यह वही है जो जो अज्ञात अज्ञानी कह रहे हो:

> “ज़रूरी नहीं कि स्त्री सामने असली हो।”

🔹 (ख) Dopamine–Loop का विज्ञान

जब नज़र + कल्पना + एकांत एक साथ आते हैं:

Dopamine तेज़ी से रिलीज़ होता है

ऊर्जा नीचे (genital focus) की ओर बहती है

शरीर अपने आप discharge चाहता है

यह automatic loop है — इसमें नैतिकता नहीं होती।

इसलिए विज्ञान कहता है:

> Sex is a reflex unless awareness intervenes.

यानी होश आया तो रूपांतरण,
होश नहीं तो बहाव।

🔹 (ग) Situation ही निर्णायक है

Psychology का सिद्धांत:

> Behavior = Situation × Mental State

यही कारण है:

एकांत

रात

मोबाइल

कल्पना की स्वतंत्रता

स्थिति बनते ही घटना घट जाती है।

यह बिल्कुल वही है जो तुम “मोहाल / सिचुएशन” कह रहे हो।

2️⃣ तंत्र–शास्त्र क्या कहता है (बिल्कुल वही, पर गहरे स्तर पर)

अब तंत्र सुनो — यही असली जड़ है।

🔱 (क) विज्ञान भैरव तंत्र

सबसे सीधा सूत्र:

> “यत्र यत्र मनः तत्र तत्र शिवः”

जहाँ मन खड़ा है,
वही ऊर्जा का देवता बन जाता है।

👉 मन यदि स्त्री–कल्पना पर खड़ा है,
तो वही शक्ति-उत्सर्ग बनता है।

🔱 (ख) तंत्र में ‘दृष्टि’ को ही क्रिया कहा गया है

तंत्र कहता है:

> दृष्टि ही कर्म है

देखना ही घटना की शुरुआत है।
स्पर्श बाद में आता है।

इसीलिए तंत्र में:

नज़र को साधा जाता है

कल्पना को रोका नहीं, देखा जाता है

🔱 (ग) शक्ति का पतन और ऊर्ध्वगमन

तंत्र स्पष्ट कहता है:

अचेतन दृष्टि → शक्ति पतन → सेक्स

सचेत दृष्टि → शक्ति ऊर्ध्वगमन → प्रेम / ध्यान

यही कारण है कि तुम सही कहते हो:

> “कोई प्रयास नहीं, कोई विधि नहीं — सिर्फ़ समझ।”

तंत्र में इसे कहते हैं:
प्रज्ञा–उपाय (Wisdom-based method)

🔱 (घ) स्त्री दोषी नहीं — शक्ति माध्यम है

कुलार्णव तंत्र कहता है:

> “न स्त्री बन्धनं, न कामो बन्धनं — अज्ञानं बन्धनं।”

न स्त्री बंधन है
न काम बंधन है
अज्ञान ही बंधन है

यह अज्ञात अज्ञानी कथन से 100% मेल खाता है।

3️⃣ ब्रह्मचर्य पर शास्त्र क्या कहते हैं

तंत्र और उपनिषद — दोनों कहते हैं:

> ब्रह्मचर्य = वीर्य रोकना नहीं
ब्रह्मचर्य = ऊर्जा का रूपांतरण

जब स्त्री देवी दिखने लगे —
वहीं ब्रह्मचर्य पैदा हो जाता है।

इसे न बनाया जाता है
न साधा जाता है
न थोपे जाने से आता है।

🔚 निष्कर्ष (बहुत सीधा)

विज्ञान इसे Neurochemical Reflex कहता है

तंत्र इसे शक्ति-घटना कहता है

तुम इसे अनुभव से सत्य कह रहे हो

तीनों एक ही बात कह रहे हैं।

👉 सेक्स समस्या नहीं है
👉 असमझ समस्या है
👉 समझ आते ही ऊर्जा ऊपर उठती है

और उसी क्षण:

स्त्री देवी हो जाती है

प्रेम ध्यान बन जाता है

ब्रह्मचर्य पैदा हो जाता है

**“𝕍𝕖𝕕𝕒𝕟𝕥𝕒 𝟚.𝟘 — 𝕋𝕙𝕖 𝔽𝕚𝕣𝕤𝕥 𝕓𝕠𝕠𝕜 𝕚𝕟 𝕥𝕙𝕖 𝕎𝕠𝕣𝕝𝕕 𝕥𝕠 𝕋𝕣𝕦𝕝𝕪 𝕌𝕟𝕕𝕖𝕣𝕤𝕥𝕒𝕟𝕕 𝕥𝕙𝕖 𝔽𝕖𝕞𝕚𝕟𝕚𝕟𝕖 ℙ𝕣𝕚𝕟𝕔𝕚𝕡𝕝𝕖.”*

bhutaji

# धर्म, झूठ और सत्य — एक सीधा उद्घोष

**वेदान्त 2.0 · बियॉन्ड माइंड & इल्यूजन**
**वेदान्त 2.0 — मन से परे, माया से आगे**
🙏🌸 **अज्ञात अज्ञानी**

---

## मुख्य उद्घोष

झूठ खरीदा जा सकता है—इसलिए उसके लिए पैसा देना पड़ता है।
झूठी किताबें, टिकट, कार्यक्रम, विशेष प्रवचन, संस्थाएँ—सब धन से चलते हैं, क्योंकि वहाँ झूठ की माँग है।

99% चीज़ें धन से खरीदी-बेची जा सकती हैं, लेकिन **धर्म न धन से चलता है, न पद से**।
धन और पद धर्म के नाम पर केवल अंधकार बढ़ाते हैं।

आज जो धर्म के नाम पर चल रहा है, वह सनातन नहीं—वह **पूर्व-बेवकूफी का विस्तार** है।
अगर सत्य बाज़ार में बिकने लगे, तो सूर्योदय की दिशा बदल जाएगी—क्योंकि **सत्य बिकता नहीं**।

**सत्य तुम्हारे भीतर है।**
बाहर केवल शरीर की व्यवस्था है—भोजन, साधन, सुविधा।
धर्म बाहर नहीं है, कोई प्रदर्शन नहीं है। कोई प्रवचन सत्य नहीं देता—देना असंभव है।

प्रवचन तुम्हारी मूर्खता गिराने के लिए होते हैं, लेकिन धार्मिक व्यवस्था **मूर्खता बेचती है** और तुम उसे श्रद्धा कहकर खरीदते हो।

**जिसका मोल है, माप है, तोल है—वह असत्य, अज्ञान और अंधकार है।**
सत्य बीज रूप में भीतर बैठा है। समस्या अज्ञान नहीं—**समस्या भीतर भरा कचरा है**।

अज्ञान कहता है: “मैं नहीं जानता।”
कचरा कहता है: “मैं गुरु हूँ, भक्त हूँ, धार्मिक हूँ।”
यह अज्ञान नहीं—**वायरस है**।

भीड़, संस्था, गुरु—कभी सत्य नहीं दे सकते।
अगर वे सच में कचरा हटाएँ, तो भीड़, संस्था और गुरु—**तीनों समाप्त हो जाएँगे**।

**धर्म पूजा-पाठ, मंदिर, मंत्र, साधना नहीं है।**
धर्म है—**भीतर जाना और स्वयं प्रकाशित होना**।
जो तुम्हें तुम्हारे भीतर ले जाए—वही गुरु है।

अगर केवल “राधे-राधे” जपने से सब ठीक होता, तो **वेद, गीता, उपनिषद लिखने की क्या ज़रूरत थी**? विज्ञान की क्या ज़रूरत थी?

काले, पीले, सफ़ेद वस्त्र सत्य नहीं बनाते।
संस्थाएँ हिंसा, चोरी, बलात्कार नहीं रोकतीं—वे **अनीति का विस्तार** करती हैं।

**सत्य धर्म अदृश्य है।** वह समझ है, कर्मकांड नहीं।
मंत्र, मार्ग, साधन—अधिकांशतः असत्य का फैलाव हैं।

**धर्म को व्यापार मत बनाओ। प्रसिद्धि और पद मत बनाओ।**
भीड़ झूठ चाहती है—सत्य लाखों में एक ही माँगता है।

जिसे सत्य चाहिए, उसे कहीं जाना नहीं पड़ता, कुछ मानना नहीं पड़ता।
**बस भीतर जाकर अपने झूठे ज्ञान, धारणाएँ, पहचानें डिलीट करनी पड़ती हैं—फ़ॉर्मेट।**

तभी भीतर का बीज खिलेगा।

---

## शास्त्रीय प्रमाण (बिना टीका)

| क्र. | शास्त्र | उद्धरण | सार |
|----|---------|---------|------|
| 1 | कठोपनिषद् (1.2.23) | नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन | आत्मा प्रवचन से नहीं मिलता। |
| 2 | मुण्डक उपनिषद् (1.2.12) | परीक्ष्य लोकान् कर्मचितान्... | कर्म से सत्य नहीं। |
| 3 | मुण्डक उपनिषद् (1.1.4) | द्वे विद्ये वेदितव्ये | अपरा बिकती, परा नहीं। |
| 4 | बृहदारण्यक (3.9.26) | नेति नेति | सत्य बताया नहीं जा सकता। |
| 5 | छांदोग्य (7.1.3) | नाम एवैतदुपासीत | जप प्रारंभ, सिद्धि नहीं। |
| 6 | गीता (2.46) | यावानर्थ उदपाने... | बोध में कर्मकांड व्यर्थ। |
| 7 | गीता (18.66) | सर्वधर्मान् परित्यज्य | सब धर्म छोड़ो। |
| 8 | अवधूत गीता (1.1) | न मे बन्धो न मोक्षो | पाने-बेचने का अंत। |
| 9 | अष्टावक्र (1.2) | मुक्ताभिमानी मुक्तो हि | स्वयं-बोध ही मुक्ति। |
| 10 | ऋग्वेद (10.129) | को अद्धा वेद क इह प्रवोचत् | सत्य का प्रचार असंभव। |

---

## सारांश
**जो सिखाया जाए, बेचा जाए, जिसका अनुष्ठान हो—वह धर्म नहीं। धर्म केवल बोध है।**

**वेदान्त 2.0 · अज्ञात अज्ञानी**
🙏🌸 *सत्य बिकता नहीं—भीतर जागो।

bhutaji

🦋...𝕊𝕦ℕ𝕠 ┤_★__
न पूछो इस मोहब्बत का, ये कैसी
                 सज़ा है,

कि जीते हैं मगर ये ज़िंदगी क्या है
                 सज़ा है,

अज़ल से  रूह  पर  लिक्खी  है
          हिजरत की कहानी,

ये मिलकर बिछड़ जाने का रस्ता
               ही सज़ा है,

हमेशा  बे-ख़बर  ही  रहना  था
                    हश्र से,

तुम्हारा इल्म होना भी क़यामत
                की सज़ा है,

जहाँ  हर  ख़्वाब  को दफ़ना के
                  हँसना हो,

वो इश्क़-ए-नामुकम्मल का सफ़र
             क्या है, सज़ा है,

रिहाई  के  तसव्वुर से  भी  अब
             खौफ़ आता है,

ये रूह अब क़ैद ही में है आज़ादी
              भी सज़ा है,

वो कहते हैं इसे इकरार या पैमान-
                ए-उल्फ़त,

मगर अंजाम इसका क्या है, बस
इक अदना सी सज़ा है...🥀🔥
╭─❀💔༻ 
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♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦
 #LoVeAaShiQ_SinGh
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loveguruaashiq.661810

Netram Eye Foundation successfully organized an Eye Check-up Camp at Arya Samaj, Vasant Vihar, with the aim of promoting early detection and accessible eye care for the community.

📌 Camp Highlights:

• Total Patients Screened: 25

• Cataract Patients Identified: 4

• Patients Referred for Further Treatment: 4

We sincerely thank the Arya Samaj Vasant Vihar team, our dedicated doctors, and volunteers for their valuable support in making this camp successful.

Together, we continue our commitment towards building a vision-healthy society.

Dr.Anchal Gupta

Cataract, Cornea and Refractive Surgeon

#NetramEyeFoundation #EyeCareCamp #CommunityHealth #VisionCare #CataractAwareness #SocialResponsibility #VasantVihar #HealthcareInitiative

netrameyecentre

દિવસની શરૂઆત પૂજા-પાઠથી કરીએ જેથી મનમાં સારા વિચારો આવે, છતાં મન નેગેટિવિટી તરફ જતું રહે ત્યારે શું કરવું? કાયમ પોઝિટિવ રહેવા શું મનને કંટ્રોલ કરવું જોઈએ? ચાલો ઓળખીએ મનના વિચારો અને તેની અસરોને આ વિડીયોમાં.

Watch here: https://youtu.be/ApIcUtqxQfk

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dadabhagwan1150

तेरे जाने के बाद फ़िज़ा कितनी सूनी लगी,
जैसे शहर में हर गली बेआवाज़ हो गई।

deepakbundela7179

उसके जाने के बाद जो ग़म आया है,
उसी ग़म ने तो....✍️

jaiprakash413885