मैं..............................
मैं अटल हूँ, अचल हूँ, अड़िग हूँ,
मैं सुंदर हूँ, सशक्त हूँ, सुशोभित हूँ,
मैं खामोश हूँ फिर भी आवाज़ देता हूँ,
गौर से देखों मुझे मैं बिन आँखें ही तुमको निहारता हूँ........................
मेरे परिचय में कुछ तो बदलाव आया हैं,
मेरी जड़ों में कोई अनजाना सा मेहमान घुस आया है,
पहले मैं मुसलाधार बारिश को अपना साथी समझता था,
बादल फटने को मैं उसका नमस्कार समझता था,
अब हालात बदल चुके हैं दिखने में मैं वैसा ही हूँ,
अब मेरे पुराने अंदाज़ फरामोश हो चुके हैं..................................
कभी मिट्टी मुझसे बंधी रहती थी,
पेड़ों के सहारे मुझे सहलाती थी,
यारी ऐसी कि दूर - दूर से लोग हमें देखने आते थे,
हमें तस्वीरों में कैद कर घर ले जाते थे,
अब ज़रा सी बारिश से मैं सहम जाता हूँ,
बादल फटने की आवाज़ से हदस जाता हूँ................................
ग़म में डूब जाता हूँ मैं जब लोगों के घर ढ़ह जाते हैं,
क्या फायदा मेरी मज़बूती ऐ सवाल वो अपनी नज़रों से कह जाते हैं,
चीखता हूँ मैं भी जब हरे - भरे पेड़ मेरी छाती से कट कर गिरते है,
रो पड़ता हूँ मैं जब मेरे साथी पहाड़ मेरा साथ छोड़ देते हैं,
वो द्श्य कभी मेरी आँखों के सामने से जाता ही नहीं,
फर्क साफ दिखाता है पहले और आज मैं,
मगर यकीन करों समझ में मेरी कुछ आता नहीं...................................
स्वरचित
राशी शर्मा