पूरब से चल रहीं हवाएँ....( राधेश्याम छंद)

पूरब से चल रहीं हवाएँ।
दीप्तिमान हो गईं दिशाएँ।।
कहलाएँ सोने की चिड़िया ।
फसलें खुशियों की लहराएँ।।

हर आँखों के आँसू पौंछें।
भारत के ध्वज को फहराएँ.....

दुनिया भर के बने चहेते।
अंतरिक्ष की सैर कराते ।।
कीर्तिमान कर बढ़ते जाते।
सूर्य चाँद पर कदम बढ़ाते।।

दिशा दिखाएँ मानवता की ।
सबको उन्नति राह सुझाएँ.....

क्षमताओं में कब हैं पीछे।
महाशक्तियों से हम आगे।।
जाग उठे हैं भारत वासी।
अब प्रगति के बुनेंगे धागे।।

बनीं पाँचवीं अर्थ व्यवस्था।
विश्व गुरू बन राह दिखाएँ...

दुश्मन सीमा पर है छलता।
करता नित प्रति कारिस्तानी।।
समझाने पर नहीं समझता।
कैसा है वह पाकिस्तानी।

मेघ गर्जना करते देखो।
अरि-मर्दन को भुजा उठाएँ....

दुनिया में बदनाम रहा है।
चीन हमारा बना पड़ोसी।।
करे हमेशा सीनाजोरी।
धरा हड़पने का है दोषी।।

बहिष्कार हो सामानों का।
उसकी आर्थिक शक्ति ढहाएँ...

विश्व पटल पर मान बढ़ा है।
सम्मानों का ताज गढ़ा है।।
नहीं युद्ध यह धरा बुद्ध की।
राम राज्य का पाठ पढ़ा है।।

हिलमिल कर सबको है रहना।
सारे जग को हमीं लुभाएँ.....

मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*
30/8/24

Hindi Poem by Manoj kumar shukla : 111948668
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