The Download Link has been successfully sent to your Mobile Number. Please Download the App.
Continue log in with
By clicking Log In, you agree to Matrubharti "Terms of Use" and "Privacy Policy"
Verification
World's trending and most popular quotes by the most inspiring quote writers is here on BitesApp, you can become part of this millions of author community by writing your quotes here and reaching to the millions of the users across the world.
શબ્દો થકી સત્કર્મ
મોટા ભાગના લોકો વ્યર્થ જ બોલતાં હોય છે. શબ્દોનું કોઈ મૂલ્યાંકન આંકતુ નથી.
નેકી વ્યર્થ નહીં જાતી, હરી લેખાં જોખા રખતે હે,
ઔરો કો ફુલ દીયે જીસને, ઉસકેભી હાથ મહેકતે હે...
સારાં કર્મ કરતાં રહો. કર્મ જ માણસને સજ્જન મનુષ્ય બનાવે છે. ખોટાં કર્મને ઓળખતાં શિખો અને એને સામે બાથ ભીડી દો. એને ત્યાં જ થોભાવી દો, એને આગળ વધવા ના દો.
આપણાં બધાં પાસે આપણાં કપડામાં એક ખીસ્સુ હોય છે અને એ ખીસ્સામાં શું રાખતાં હોય છે? પૈસાનું પોકેટ કે રૂપિયા. એનાં વગર આ જીવન ચાલતું નથી.
એવી જ રીતે આ શબ્દો પણ હું ખીસ્સામા રાખીને ફરું છું. આ શબ્દો ઘણાં મુલ્યવાન છે.આપણને જરુરીયાત હોય ત્યાંરે જ રૂપિયા બહાર કાઢીએ છીએ. એવી જ રીતે આ શબ્દોને ગમે ત્યારે બહાર ના કઢાય. એ તો જ્યારે જરૂર હોય ત્યારે જ સત્કર્મ માટે બહાર કાઢવા જોઈએ.
મનોજ નાવડીયા
કોઈ તમારા પર વિશ્વાસ રાખે,
કોઈ તમને પોતાના માને,તમારી જવાબદારી સ્વીકારે.....
તો ત્યાં જવાબદારી તમારી પણ વધી જાય છે એના વિશ્વાસ ને તૂટવા ના દેવાની...
બની શકે સામેના વ્યક્તિ જેટલી લાગણી તમને એના માટે ના હોય...
પણ સામેનાની લાગણીને માન આપવાની,એને ઠેશ ના પહોંચાડવાની તો સમજ એક વ્યક્તિ તરીકે આપણામાં હોવી જ જોઈએ...
महाशक्ति
लखनऊ के एक मध्यमवर्गीय मोहल्ले में रहने वाली नीलम एक स्कूल शिक्षिका थी। उम्र लगभग 38 साल, दो बच्चों की माँ, और पति एक प्राइवेट कंपनी में अकाउंटेंट। बाहर से सब कुछ सामान्य लगता था — सुबह बच्चों को स्कूल भेजना, फिर खुद स्कूल जाना, शाम को खाना बनाना, बच्चों की पढ़ाई देखना — वही रोज़मर्रा की जिंदगी।
लेकिन इस सामान्य ज़िंदगी के पीछे छिपी थी एक संघर्षरत महिला की असाधारण कहानी।
नीलम के पति राकेश शराब का आदी था। गुस्सैल स्वभाव और शक करने की आदत ने नीलम की जिंदगी को एक बंद कमरे जैसा बना दिया था। आए दिन ताने, चिल्लाना, हाथ उठाना — ये सब नीलम के जीवन का हिस्सा बन चुके थे। मोहल्ले में सब जानते थे, लेकिन "ये घर का मामला है" कहकर सब चुप रहते।
कई बार नीलम ने सोचा कि वह सब कुछ छोड़ दे, बच्चों को लेकर मायके चली जाए, लेकिन फिर बच्चों का भविष्य, समाज की बातें, और आर्थिक असुरक्षा उसे रोक देतीं।
एक दिन, स्कूल में एक वर्कशॉप हुआ — "घरेलू हिंसा पर जागरूकता"। वहां एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा,
"चुप रहना भी अपराध को बढ़ावा देना है। हर बार जब आप सहती हैं, आप अपने साथ-साथ अगली पीढ़ी को भी यही सहना सिखा रही होती हैं।"
उस दिन नीलम देर तक सोचती रही। रात को जब राकेश ने फिर से शराब के नशे में उसे अपशब्द कहे और धक्का दिया, तो पहली बार उसने राकेश की आंखों में आंखें डालकर कहा —
"बस बहुत हुआ। अब और नहीं। अगर तुम नहीं सुधरे, तो मैं पुलिस में शिकायत करूँगी। और ये वादा है — अपने बच्चों को डर नहीं, हिम्मत सिखाकर बड़ा करूँगी।"
राकेश हँस पड़ा। लेकिन जब अगले दिन नीलम ने अपने स्कूल की मदद से एक NGO से संपर्क किया, और पहली बार पुलिस से औपचारिक शिकायत की, तो उसका डर जाता रहा। मोहल्ले के लोग चौंके, लेकिन नीलम को कोई परवाह नहीं थी।
उसे समझ आ गया था —
"महाशक्ति कोई देवी नहीं जो आसमान से उतरे — वो हर उस औरत के अंदर है जो चुप्पी तोड़ती है, जो अपने आत्म-सम्मान के लिए खड़ी होती है।"
नीलम ने न सिर्फ अपनी जिंदगी में बदलाव लाया, बल्कि स्कूल में लड़कियों को आत्मरक्षा, कानूनी अधिकार और आत्म-सम्मान के पाठ पढ़ाने शुरू किए। धीरे-धीरे वह अपने शहर में महिलाओं की आवाज़ बन गई।
नीलम जैसी महिलाएँ ही आज की असली 'महाशक्ति' हैं — जो दर्द से नहीं, साहस से इतिहास लिखती हैं।
*ज़िंदगी का सफर*
ज़िंदगी का सफर है अजीब,
कहीं धूप, कहीं छाँव का नसीब।
कभी हँसना, कभी रोना,
कभी खुद से मिलना, कभी खुद को खोना।
सुबह की पहली रौशनी,
उम्मीद का पैग़ाम लाती है।
रात के अंधेरों में भी,
कहीं न कहीं रौशनी छुपा जाती है।
मंज़िल की तलाश में,
हर दिन नई राह चुनते हैं।
कभी गिरते, कभी संभलते,
सपनों के पीछे दौड़ते रहते हैं।
रिश्तों की डोर है नाज़ुक,
फिर भी सब कुछ जोड़ लेती है।
एक मुस्कान, एक आँसू,
दिल से दिल को छू लेती है।
बचपन की यादें,
मिट्टी की खुशबू,
माँ के हाथ का खाना,
और दोस्तों की मस्ती—सब कुछ याद आता है।
कभी भीड़ में तन्हा,
कभी तन्हाई में भीड़।
हर पल एक नई कहानी,
हर दिन एक नई उम्मीद।
सपने बिखरते हैं,
फिर भी हम सजाते हैं।
दिल टूट भी जाए तो,
फिर से मुस्कुराते हैं।
ज़िंदगी है एक किताब,
हर पन्ने पर कुछ नया लिखा है।
कभी खुशी, कभी ग़म,
सब कुछ इस सफर का हिस्सा है।
तो चलो, आज से नए सपने सजाएँ,
दिल की बातें खुद से ही बताएँ।
ज़िंदगी के रंगों को मिलकर सजाएँ,
हर दिन, हर पल, खुशियों से महकाएँ।
---
*शीर्षक: “अनकही राहें”*
हर सुबह जब सूरज उगता है,
कोई नई उम्मीद जगा जाता है।
छत की मुंडेर पर बैठा पंछी
अपने पंखों में आसमान समेट लाता है।
माँ की पुकार, रसोई की खुशबू,
पिता की हँसी, बहन की शरारतें,
घर का हर कोना
यादों की बगिया सा महक जाता है।
बचपन के वो दिन,
मिट्टी में खेलना,
बारिश में भीगना,
कागज़ की नाव बनाकर
नाले में बहाना,
कभी गिरना, कभी उठना,
फिर भी न थकना,
हर चोट में माँ की दवा,
हर आँसू में पिता का प्यार।
स्कूल की घंटी,
दोस्तों की टोली,
कभी झगड़ा, कभी मिठास,
लंच बॉक्स में छुपा प्यार,
क्लासरूम की खिड़की से
बाहर झाँकती आँखें,
कभी सपनों के पीछे भागना,
कभी टीचर की डाँट में
अपना नाम ढूँढना।
जवानी की दहलीज़ पर कदम रखते ही
सपनों का रंग गहरा हो जाता है।
पहली मोहब्बत की मीठी सी तकरार,
दिल की धड़कनों में उसका नाम,
रातों की नींदें उसकी यादों के नाम,
कभी चुपके से मुस्कुराना,
कभी बेवजह उदास हो जाना।
कॉलेज की गलियों में
दोस्तों के संग हँसी के ठहाके,
कभी किताबों में डूब जाना,
कभी कैंटीन में बैठकर
ज़िंदगी के सपने बुनना,
कभी इम्तिहान की चिंता,
कभी भविष्य की उलझनें।
फिर आती है जिम्मेदारियों की बारी,
करियर की दौड़,
सपनों की उड़ान,
माँ-बाप की उम्मीदें,
समाज की बातें,
कभी समझौता,
कभी संघर्ष,
कभी हार,
कभी जीत।
फिर एक दिन
किसी की मुस्कान में
अपना घर मिल जाता है,
किसी की आँखों में
अपनी दुनिया बस जाती है।
शादी, बच्चे,
नई जिम्मेदारियाँ,
पुराने सपनों की
नई परिभाषाएँ।
समय के साथ
चेहरे पर झुर्रियाँ,
पर दिल में वही
बचपन की मासूमियत,
कभी बच्चों के साथ
फिर से बच्चा बन जाना,
कभी उनकी बातों में
खुद को ढूँढना।
ज़िंदगी का ये सफर
चलता ही रहता है,
हर मोड़ पर
नई कहानी,
हर रास्ते पर
नई पहचान,
कभी रुकना,
कभी चलना,
कभी थकना,
कभी संभलना।
शाम ढलती है
तो यादों की चादर ओढ़
मन मुस्कुरा उठता है—
क्या खोया, क्या पाया,
सब अधूरा सा लगता है,
पर सफर का हर लम्हा
खूबसूरत लगता है।
*यही है अनकही राहें—
हर दिन नया,
हर पल सच्चा,
हर याद अमर।*
कैसी लगी आपको ये कविता?
मुझे पसंद थे चूड़ी पायल,
साड़ी , झुमके , काले– काजल।
लेकिन डरता था , क्या लोग कहेंगे ?
पहनूंगा तो , क्या लोग हंसेंगे ?
ये आसपास के लोग है कहते ,
ये हाव भाव तेरे ठीक नहीं ।
ये सजना– संवरना , हैं मर्दों की सीख नहीं ।
तू पुरुष है , तू सख्त बन ।
तू क्षत्रिय का पूत है , क्षत्रिय सा रक्त बन।
मारा – पीटा , न जाने कितने दिन की भूख सही।
मैं बच्चा दर्द की पीड़ा , दर्द न मुझसे सही गई।
बोल पुरुष है , क्या अब भी स्त्री जैसा बर्ताव करेगा ?
रहा इसी तरह जो तू, हमारे लिए अपमान बनेगा।
कुल का तू अभिशाप बनेगा।
एक बार नहीं , सौ बार कहा ,
खुद से झूठ मैने बार – बार कहा ।
लेकिन मन को न मार सका।
तो खुद को मैं मारने चला ।
लेकिन उसमे भी मैं हार गया।
जख्मी शरीर ले,
छोड़ घर से भाग गया।
उम्र थी बारह बहुत डरा मैं
इस जालिम दुनियां में , न जानी कितनी बार मरा मैं।
छक्का, हिजड़ा लोग बुलाते।
मुंह पर हंसते मुझे चिढ़ाते ।
देख मुझे तालियां बजाते।
अगर लोग इनके जैसे , निर्दय है होते ।
अगर समझते होते मैं भी इंशा हूं ।
दर्द मुझे भी होता है,
तो यह दर्द की वजह न होते।
कई बार मैं सोचा ,
क्यों न पूरी स्त्री मैं ?
क्यों मैं न पूर्ण पुरुष बना ?
अगर होते है दुनिया में , इन जैसे ज़ालिम लोग।
तो शुक्र है मैं नही इसके जैसा हूं
कौन है कहता मैं नहीं पूरा ?
असल रहे यह आधे अधूरे।
*Poems Parley*
https://shopizen.app.link/rsRN4Cd76Sb ">
https://shopizen.app.link/rsRN4Cd76Sb
This collection, 'Poems Parley', is not just a volume of verses; it is a conversation across the chambers of hope, love, loss, laughter and reflection. Each poem has been chosen with purpose, not merely for its words, but for the feelings it evokes and the silences it understands. Spread across themes like motivation, relationships, nature, philosophy, emotional healing, modern life and gentle humour, these hundred poems trace the inner map of what it means to be human.
https://shopizen.app.link/rsRN4Cd76Sb ">
https://shopizen.app.link/rsRN4Cd76Sb
Continue log in with
By clicking Log In, you agree to Matrubharti "Terms of Use" and "Privacy Policy"
Verification
Copyright © 2025, Matrubharti Technologies Pvt. Ltd. All Rights Reserved.
Copyright © 2025, Matrubharti Technologies Pvt. Ltd. All Rights Reserved.