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*ज़िंदगी का सफर* ज़िंदगी का सफर है अजीब, कहीं धूप, कहीं छाँव का नसीब। कभी हँसना, कभी रोना, कभी खुद से मिलना, कभी खुद को खोना। सुबह की पहली रौशनी, उम्मीद का पैग़ाम लाती है। रात के अंधेरों में भी, कहीं न कहीं रौशनी छुपा जाती है। मंज़िल की तलाश में, हर दिन नई राह चुनते हैं। कभी गिरते, कभी संभलते, सपनों के पीछे दौड़ते रहते हैं। रिश्तों की डोर है नाज़ुक, फिर भी सब कुछ जोड़ लेती है। एक मुस्कान, एक आँसू, दिल से दिल को छू लेती है। बचपन की यादें, मिट्टी की खुशबू, माँ के हाथ का खाना, और दोस्तों की मस्ती—सब कुछ याद आता है। कभी भीड़ में तन्हा, कभी तन्हाई में भीड़। हर पल एक नई कहानी, हर दिन एक नई उम्मीद। सपने बिखरते हैं, फिर भी हम सजाते हैं। दिल टूट भी जाए तो, फिर से मुस्कुराते हैं। ज़िंदगी है एक किताब, हर पन्ने पर कुछ नया लिखा है। कभी खुशी, कभी ग़म, सब कुछ इस सफर का हिस्सा है। तो चलो, आज से नए सपने सजाएँ, दिल की बातें खुद से ही बताएँ। ज़िंदगी के रंगों को मिलकर सजाएँ, हर दिन, हर पल, खुशियों से महकाएँ। ---
*शीर्षक: “अनकही राहें”* हर सुबह जब सूरज उगता है, कोई नई उम्मीद जगा जाता है। छत की मुंडेर पर बैठा पंछी अपने पंखों में आसमान समेट लाता है। माँ की पुकार, रसोई की खुशबू, पिता की हँसी, बहन की शरारतें, घर का हर कोना यादों की बगिया सा महक जाता है। बचपन के वो दिन, मिट्टी में खेलना, बारिश में भीगना, कागज़ की नाव बनाकर नाले में बहाना, कभी गिरना, कभी उठना, फिर भी न थकना, हर चोट में माँ की दवा, हर आँसू में पिता का प्यार। स्कूल की घंटी, दोस्तों की टोली, कभी झगड़ा, कभी मिठास, लंच बॉक्स में छुपा प्यार, क्लासरूम की खिड़की से बाहर झाँकती आँखें, कभी सपनों के पीछे भागना, कभी टीचर की डाँट में अपना नाम ढूँढना। जवानी की दहलीज़ पर कदम रखते ही सपनों का रंग गहरा हो जाता है। पहली मोहब्बत की मीठी सी तकरार, दिल की धड़कनों में उसका नाम, रातों की नींदें उसकी यादों के नाम, कभी चुपके से मुस्कुराना, कभी बेवजह उदास हो जाना। कॉलेज की गलियों में दोस्तों के संग हँसी के ठहाके, कभी किताबों में डूब जाना, कभी कैंटीन में बैठकर ज़िंदगी के सपने बुनना, कभी इम्तिहान की चिंता, कभी भविष्य की उलझनें। फिर आती है जिम्मेदारियों की बारी, करियर की दौड़, सपनों की उड़ान, माँ-बाप की उम्मीदें, समाज की बातें, कभी समझौता, कभी संघर्ष, कभी हार, कभी जीत। फिर एक दिन किसी की मुस्कान में अपना घर मिल जाता है, किसी की आँखों में अपनी दुनिया बस जाती है। शादी, बच्चे, नई जिम्मेदारियाँ, पुराने सपनों की नई परिभाषाएँ। समय के साथ चेहरे पर झुर्रियाँ, पर दिल में वही बचपन की मासूमियत, कभी बच्चों के साथ फिर से बच्चा बन जाना, कभी उनकी बातों में खुद को ढूँढना। ज़िंदगी का ये सफर चलता ही रहता है, हर मोड़ पर नई कहानी, हर रास्ते पर नई पहचान, कभी रुकना, कभी चलना, कभी थकना, कभी संभलना। शाम ढलती है तो यादों की चादर ओढ़ मन मुस्कुरा उठता है— क्या खोया, क्या पाया, सब अधूरा सा लगता है, पर सफर का हर लम्हा खूबसूरत लगता है। *यही है अनकही राहें— हर दिन नया, हर पल सच्चा, हर याद अमर।* कैसी लगी आपको ये कविता?
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