सदा याद आती है हँसती.....
सदा याद आती है हँसती, मेरी प्यारी मम्मी जी।
चूल्हे में लकड़ी सँग लड़ती,मेरी प्यारी मम्मी जी।।
जब संसार है सोया करता, भुनसारे उठ जाती वह।
सुबह नहा कर पूजा करती, मेरी प्यारी मम्मी जी।।
मेहमान की लगी कतारें, रिश्तेदार खड़े हर पल।
आगत के स्वागत में भगती,मेरी प्यारी मम्मी जी।।
दो चूल्हों में बने रसोई, स्वेद बहा ठंडक पाती।
मुस्कानों सँग रोटी सिकती,मेरी प्यारी मम्मी जी।।
तरह-तरह का व्यंजन पकता,पूरे मन से रम जाती ।
सिल बट्टे से चटनी पिसती, मेरी प्यारी मम्मी जी।।
तपन बढ़े बच्चों के तन में, हवा डुलाती आँचल से।
फिर माथे पर हाथ फेरती, मेरी प्यारी मम्मी जी।।
रस्मों में काशी जाने का, कुआँ-कूद का हो नाटक।
मान मनौवल करती दिखती, मेरी प्यारी मम्मी जी।।
ज्वर का कभी न ताप सताया, थका शरीर नहीं हारा।
नाम दवा का सुनकर उठती,मेरी प्यारी मम्मी जी।।
वृद्धावस्था शिथिल हुई जब, ईश्वर से मनुहार करे।
जाने की तब बाट जोहती,मेरी प्यारी मम्मी जी।।
कोटि कोटि वंदन करते हम, हमको उसने जन्म दिया।
मेरी खातिर जग से लड़ती,मेरी प्यारी मम्मी जी।।
मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*