मैं नज़र .......................
मैं देखती भी हूँ, मैं छुपाती भी हूँ,
मैं हंसती भी हूँ, मैं हंसाती भी हूँ,
दूरदर्शी भी हूँ और नज़दीक का भी भाप लेती हूँ,
मैं सो कर भी सब जान लेती हूँ ....................................
ना खुशी से बेखबर हूँ, ना मातम से अंजान हूँ,
हर इंसान का अक्स हूँ मैं,
मैं ही तो हर खामोश ज़ुबान की आवाज़ हूँ,
रोता हूँ तो खारा हूँ मैं,
जब होता हूँ शांत तो खुद में ही उदास हूँ मैं ................................
तकलीफ, दर्द और अकेलापन सब मुझमे झलकता हैं,
कुछ भी कहने की ज़रूरत नहीं मुझे,
समझने वालों को बंद आँखों का इशारा भी खूब समझ में आता हैं,
सुंदरता का खिताब है मेरे पास,
सच्चाई का ताज है मेरे पास,
यकीन मानो कुछ नहीं करता फिर भी चर्चे है मेरे,
किसी से नज़र मिला लूँ तो बदनामी भी लिखवा लेता हूँ अपने नाम ....................................
स्वरचित
राशी शर्मा