शब्दों की आवाज़
जिन्हें शब्दों की आवाज़ सुनाई नहीं देती,
वो इंसान की आवाज़ क्या सुनेंगे?
जिनकी आत्मा सोई है पत्थर बनकर,
वो दर्द की धड़कन क्या सुनेंगे?
जो अक्षरों में आग नहीं पहचानते,
उन्हें सच की गर्मी क्या छू पाएगी?
जो खामोशी में भी शोर नहीं पढ़ते,
उन्हें चीख़ की भाषा क्या समझ आएगी?
जिनकी आँखों में मतलब मर चुका है,
वो आँसुओं की इबारत क्या पढ़ेंगे?
जिन्हें शब्दों की आवाज़ सुनाई नहीं देती,
वो इंसान की आवाज़ क्या सुनेंगे?
और जो सुनते हैं शब्दों की सरगोशी,
वो ही ज़मीर की साज सुनाते हैं,
वो हर टूटी आवाज़ को जोड़कर,
इंसानियत को फिर जिंदा कर जाते हैं।
आर्यमौलिक