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New bites

એક મીઠો અહેસાસ છે તું
તને ખબર નથી કેટલી ખાસ છે તું
મારા વણમાંગ્યા પ્રશ્નનો જવાબ છે તું
પ્રેમની પૂજ્ય મૂર્તિનો એક સારાંશ છે તું....

મારા ટૂંકા જીવનનો જાણે શ્વાસ છે તું
આજીવન લઈ શકું જેને એવી મીઠાશ છે તું
ઉડીને આંખે વળગે એવો અહેસાસ છે તું
મારા પ્રેમના અંધકારનો જાણે પ્રકાશ છે તું.....

હૃદયમાં ઉગેલા સુંદર ફૂલની જાણે સુવાસ છે તું
પ્રેમના પરોઢિયે ઉદભવેલો એવો અહેસાસ છે તું
હાથેથી લખાયેલા શબ્દોનો જાણે સંગાથ છે તું
ઈશ્વરે મોકલેલો મારા જીવનમાં પવિત્ર પવિત્ર સહવાસ છે તું....

રાજાના મુગટ પર બિરાજમાન સરતાજ છે તું
હૃદયના ઊંડાણમાં થંભી જાય એવો અવાજ છે તું
જિંદગીની આ રોજબરોજની મથામણ માં જાણે  "પીયૂ"
હૃદયની અંદર પાડવા વાળો ઠંડા શેરડાં સમો સંગાથ છે તું....



इस दिल के आंगन में रेन बसेरा है आपका, ऐसा लगता है मेरे जीवन में जैसे सवेरा हो आपका, लगता तो नहीं इस जिंदगी में कभी मिल पाए, फिर भी लगता है हमें जैसे हमारी जिंदगी में डेरा हो आपका।। - पीयू.....

meetpiyush0077gmailc

कभी-कभी ज़िंदगी हमें इतना तोड़ देती है…
कि इंसान को खुद पर भी शक होने लगता है।
लेकिन वही ज़िंदगी हमें वो मोड़ भी देती है…
जहाँ से उड़ान शुरू होती है।

ये कहानी है आदित्य की…
एक ऐसे लड़के की जिसने ज़मीन से आसमान तक का सफर तय किया –
लेकिन बिना शॉर्टकट, बिना किसी चमत्कार के।
सिर्फ अपने हौसले, मेहनत और विश्वास के दम पर।

आदित्य सिंह – बिहार के एक छोटे गाँव का लड़का।
पिता खेती करते थे, माँ गृहिणी थीं।
घर में टीवी नहीं था, मोबाइल नहीं था…
बस था तो एक सपना – IAS बनना।

जब वो अपनी माँ से कहता, "मैं अफसर बनूंगा…"
तो माँ मुस्कुरा देतीं… और कहतीं,
"तू कुछ भी कर सकता है, बेटा… तू मेरा शेर है।"

गाँव वाले हँसते थे, दोस्त मज़ाक उड़ाते –
"तू IAS?"
लेकिन आदित्य के कानों में सिर्फ माँ की बात गूंजती –
"तू कर सकता है…"

12वीं के बाद उसने ग्रेजुएशन किया – गाँव में रहकर ही।
कोचिंग नहीं थी… YouTube पर फ्री लेक्चर देखे।
गाँव के छोटे पुस्तकालय में बैठकर घंटों नोट्स बनाता।

पहली बार परीक्षा दी… और फेल हो गया।
रात को खूब रोया… अकेले… माँ के सामने नहीं।
पर सुबह उठते ही… फिर से किताबों में झुक गया।

दूसरी बार… फिर असफल।
तीसरी बार… सिर्फ दो नंबर से चूक गया।
सबसे बड़ा झटका था।

लोग बोले – “अब छोड़ दे।”
पर आदित्य ने कहा –
"आखिरी बार सही… लेकिन इस बार जान लगा दूंगा।"

सुबह 5 बजे उठना… 14 घंटे पढ़ाई…
सोशल मीडिया बंद… दुनिया से दूरी…
सिर्फ किताबें, चाय, और सपना।

चौथी बार परीक्षा दी…
हर पेपर में आत्मविश्वास था।

रिज़ल्ट आया…
दोस्त ने फोन कर कहा – "भाई… तू टॉप 50 में है!"
वो चुप रहा…
फिर माँ की गोद में सिर रखकर… फूट-फूट कर रो पड़ा।
आज उसका सपना… सच था।

गाँव में ढोल बजे…
जिसे लोग ‘बेकार’ कहते थे… अब उसे ‘साहब’ कहा जाने लगा।
माँ की आँखें नम थीं… लेकिन मुस्कान थी।

अब वही लोग इंटरव्यू लेने आए…
जो कभी कहते थे – "तेरे बस का नहीं।"

ज़िंदगी में गिरना ज़रूरी है…
क्योंकि तभी तो उड़ने का हौसला पैदा होता है।

अगर आदित्य… उस छोटे गाँव का लड़का…
बिना साधन, बिना कोचिंग…
देश का अफसर बन सकता है –
तो आप क्यों नहीं?

"हार सकते हो… लेकिन हार मानना मत।"

अगर ये कहानी आपको प्रेरणा देती है…
तो वीडियो को Like करें,
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आपका एक Like…
एक नए आदित्य को हिम्मत दे सकता है।"बुद्धिमानीका १० चिन्ह – जसले जीवन बदल्न सक्छ…"

१. कम बोल्छन्, बढी सुन्छन्।
शब्दको होइन, मौनको पनि शक्ति बुझ्छन्।
बोल्नुभन्दा बुझ्नुलाई प्राथमिकता दिन्छन्।

२. दोस्रोको विचारलाई सम्मान गर्छन्।
अझै सिक्न बाँकी छ भन्ने सोच राख्छन्।
सबै कुरा आफूलाई थाहा छ भन्ने भ्रममा बस्दैनन्।

३. क्रोधलाई नियन्त्रण गर्न सक्छन्।
उत्तेजनामा निर्णय लिँदैनन्,
शान्ति र धैर्य उनीहरूको असल अस्त्र हो।

४. आफ्नो समय, ऊर्जा र शब्द व्यर्थमा खर्च गर्दैनन्।
जुन ठाउँमा परिवर्तन सम्भव छैन,
त्यहाँ मौन बस्न जान्दछन्।

५. सत्यको पक्ष लिन्छन्, भीडको होइन।
सत्यका लागि एक्लिन पनि तयार हुन्छन्,
जसले गर्दा उनीहरूलाई समयपछि सबैले सम्झन्छन्।

६. जसले सम्मान दिन्छ, त्यसलाई सम्मान फर्काउँछन्।
तर जसले घमण्ड देखाउँछ,
त्यसलाई मौनमै उत्तर दिन्छन्।

७. हर समय सिक्न तयार हुन्छन्।
कहिले बालकबाट त कहिले वृद्धबाट —
जीवनलाई विद्यालय ठान्छन्।

८. माफ गर्न जान्दछन्, तर बिर्सँदैनन्।
अघिल्लो चोटले फेरि घाउ नदियोस् भनेर
अनुभवलाई पाठ बनाउँछन्।

९. बोल्दैनन् कि उनीहरू कति सक्षम छन् —
तर उनका कर्महरू आफैँ बोल्छन्।
उनीहरूलाई प्रमाण दिनुपर्दैन, समयले दिन्छ।

१०. आफ्नो खुसी अरूमा खोज्दैनन्।
शान्त मन, सरल हृदय र सेवाको भावना —
यही नै तिनीहरूको साँचो परिचय हो।

बुद्धिमानी पढाइले होइन, बुझाइले आउँछ।
किताबले होइन, व्यवहारले देखिन्छ।
त्यसैले बुद्धिमान बन्न सिकौं —
बोल्नुभन्दा अघि सोचौं,
ब्युझाउनुभन्दा अघि सुतेका मन बुझौं

rajukumarchaudhary502010

"बुद्धिमानीका १० चिन्ह – जसले जीवन बदल्न सक्छ…"

१. कम बोल्छन्, बढी सुन्छन्।
शब्दको होइन, मौनको पनि शक्ति बुझ्छन्।
बोल्नुभन्दा बुझ्नुलाई प्राथमिकता दिन्छन्।

२. दोस्रोको विचारलाई सम्मान गर्छन्।
अझै सिक्न बाँकी छ भन्ने सोच राख्छन्।
सबै कुरा आफूलाई थाहा छ भन्ने भ्रममा बस्दैनन्।

३. क्रोधलाई नियन्त्रण गर्न सक्छन्।
उत्तेजनामा निर्णय लिँदैनन्,
शान्ति र धैर्य उनीहरूको असल अस्त्र हो।

४. आफ्नो समय, ऊर्जा र शब्द व्यर्थमा खर्च गर्दैनन्।
जुन ठाउँमा परिवर्तन सम्भव छैन,
त्यहाँ मौन बस्न जान्दछन्।

५. सत्यको पक्ष लिन्छन्, भीडको होइन।
सत्यका लागि एक्लिन पनि तयार हुन्छन्,
जसले गर्दा उनीहरूलाई समयपछि सबैले सम्झन्छन्।

६. जसले सम्मान दिन्छ, त्यसलाई सम्मान फर्काउँछन्।
तर जसले घमण्ड देखाउँछ,
त्यसलाई मौनमै उत्तर दिन्छन्।

७. हर समय सिक्न तयार हुन्छन्।
कहिले बालकबाट त कहिले वृद्धबाट —
जीवनलाई विद्यालय ठान्छन्।

८. माफ गर्न जान्दछन्, तर बिर्सँदैनन्।
अघिल्लो चोटले फेरि घाउ नदियोस् भनेर
अनुभवलाई पाठ बनाउँछन्।

९. बोल्दैनन् कि उनीहरू कति सक्षम छन् —
तर उनका कर्महरू आफैँ बोल्छन्।
उनीहरूलाई प्रमाण दिनुपर्दैन, समयले दिन्छ।

१०. आफ्नो खुसी अरूमा खोज्दैनन्।
शान्त मन, सरल हृदय र सेवाको भावना —
यही नै तिनीहरूको साँचो परिचय हो।

बुद्धिमानी पढाइले होइन, बुझाइले आउँछ।
किताबले होइन, व्यवहारले देखिन्छ।
त्यसैले बुद्धिमान बन्न सिकौं —
बोल्नुभन्दा अघि सोचौं,
ब्युझाउनुभन्दा अघि सुतेका मन बुझौं।

rajukumarchaudhary502010

Har Lafz Mere Andar Hai

vparyekar29gmail.com812133

“हर किताब एक इंसान की तरह होती है…”
कभी किताबों को इस नज़र से देखा है?
जितना पढ़ोगे, उतना समझोगे… और शायद खुद को भी। 💭✨

📖 मन की हार, ज़िंदगी की जीत — एक ऐसी किताब जो आपको खुद से मिलवा सकती है।

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Battlefield that present without any weapon or field,no army ,no people just you vs you

wonderland

radhe 🖤✨

hiralb

women's life is just like a glass..

krupalipatel.810943

નાનપણના ઘા સારા હતા,
ગોઠણના ઘા રૂઝાઈ જતા.

કાચા મનના એ સંસ્મરણો,
જીવનના સાચા પાઠ શીખવી જતા

સમયના વહેણમાં બધું બદલાયું,
નવા ઘા, નવી સમજણ આપતા રહ્યા.

નાનપણના ઘા સારા હતા,
ગોઠણના ઘા રૂઝાઈ જતા.

એ દર્દ તો ક્ષણિક હતું,
ખરા ઘા તો હૃદયમાં રહી જતા.
heena Gopiyani

heenagopiyani.493689

* गर प्यार भी पंछियों की तरह होता,,
तो कभी किसी सीमाओं में ना बंधता..

* गर सच्चा प्यार दूरियों से खत्म हो जाता,,
तो किसी जवान के घर प्यार इंतजार ना करता..

* गर साथ रहकर ही प्यार बढ़ता होता,,
तो कोई भी प्यार का घर ना टूटता..

* प्यार किसी नजदीकियों का मोहताज नहीं होता,,
प्यार सच्चा हो तो दूर रहकर भी भूलाया नहीं जाता..

* गर दिल के फासले हो तो पास रहकर भी क्या होगा ?
दुरिया भी नजदीकी है लगती जो दिल से पास होता..

* ना कर दुआ ऐसे हमारे दिलेे हालात की अब अमी,,
ये दूरियों वाला प्यार है मरते दम तक काम नहीं होगा..

.....अमी.....

hitumodimodihitu000gmail.com104112

प्यार…

वो चीज़ है जो इंसान को पूरी तरह बदल देती है।

जहां आपके अंदर खुद को सँवारने की भी ताक़त होती है

और उसी प्यार में खुद को पूरी तरह खो देने का भी हौसला।



जब आप किसी से सच्चा प्यार करते हो,

तो आपको वो सब अच्छा लगने लगता है जो उसे पसंद हो।

और जो उसे ज़रा भी पसंद नहीं — वो चीज़ें खुद-ब-खुद आपके दिल से उतर जाती हैं।



शायद इसीलिए मैंने ये जगह चुनी है…

अपने जज़्बात कहने की,

उन कहानियों को जीने की जो मैंने कभी बताई नहीं…

क्योंकि मुझे पता है — वो यहीं कहीं है,

हर लफ़्ज़ पढ़ती है,

हर एहसास को महसूस करती है…

और शायद… किसी दिन… इन लफ़्ज़ों में खुद को भी ढूंढ ले। ✨



और तुम...?

तुमने ये लफ़्ज़ों की दुनिया क्यों चुनी?

क्या है तुम्हारा मक़सद यहाँ अपनी बात कहने का?

क्या किसी को सुनाने आए हो…

या किसी को महसूस कराने आए हो…?



चलो ना… थोड़ा सा अपने दिल का किस्सा सुनाओ,

मैं सिर्फ सुनने नहीं — हर लफ़्ज़ को महसूस करने आया हूँ। 🤍

somewhereforyou

હારીને સ્મિત બંકરોમા છુપાઈ બેઠું છે.
શાંતિ માટે ખરેખર યુદ્ધ લડાઇ રહ્યું છે?

અઢળક ચિચિયારીઓ વચ્ચે જયનાદ ગૂંજે છે.
અવાજ ખરેખર બોલીને પણ દબાઈને બેઠો છે.

તોપને નાડચે ગોળો સણસણતો નીકળે છે.
પારેવાંને ક્યાં આકાશમાં ઉંચે ઉડવા દેવાઈ છે?

કોઈ પાગલ મગજ સમજું ને જ્યારે મૌન કરાવી દે.
બસ ત્યારે લાશો પર આક્રંદ નાં પડઘા સંભળાય છે.

parmarmayur6557

Do You Know that if the words are going to be hurtful, then they should be spoken with humility and respect?

Read more on: https://dbf.adalaj.org/SIK6Nx56

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dadabhagwan1150

આટલો બધો આડંબર તે હોય કંઇ,
દરિયો સંઘરે મોતીડાં પણ દેખાડો હોય કંઇ,
ઘડી બે ઘડીની બાજી ઘડી બે ઘડીમાં પૂરી,
અવિરત મળે જીત જ એવું હોય કંઇ,
બાળક રમતમાં અને સંત વૈરાગ્યમાં પણ સુખી,
સુખની માપણી સંસાધન જ હોય કંઇ...!
                                - આશા વળિયા

asha09

“कभी-कभी ज़िंदगी की सबसे बड़ी ख्वाहिश होती है — बस खुद से मिलने की।”

रिश्ते, समाज, समय — सबकी भीड़ में हम अक्सर खुद को खो देते हैं।
“काठगोदाम की गर्मियां” एक ऐसी किताब है जो हमें भीतर की आवाज़ सुनना सिखाती है।

👉 बातें बढ़ने दो, रुकावटें नहीं।
👉 खुद से जुड़ने दो, दुनिया को नहीं।

✍️ धीरेंद्र सिंह बिष्ट की लेखनी में
पढ़िए एक ऐसी यात्रा, जो दिल से शुरू होकर आत्मा तक जाती है।

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👇 Tag someone who’s ready to choose themselves — today.

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🤗😃

gayatreegayatree.482743

Rejections don’t define your future — just your present.
Keep trying.
The ones who refuse to quit are the ones who rewrite destiny.
📘 — Dhirendra Singh Bisht
Author of “मन की हार, ज़िंदगी की जीत”
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dhirendra342gmailcom

જે અત્યારે સમયની સાથે વહી રહ્યું છે,
વર્તમાનમાં જે અનુભવ થઈ રહ્યો છે,
એ જ સાચાં આનંદની અનુભૂતિ છે,
તું જે ઈચ્છા રાખે છે, ભુત અને ભવિષ્યની,
એ આનંદ મેળવવાનો એક ભ્રમ છે.

મનોજ નાવડીયા

manojnavadiya7402

Good morning Nikita, imaran, inkimagination, madam, joshi

kattupayas.101947

अर्धनग्न होती हुई अदाकारो वाले मॉडर्न जमाने मे
वो अपनी सादगी से महफिल की चांद बनी हुई है

mayurchaudhary942gmail.co

तुम मेरी जिंदगी में
अल्पविराम बन के आना,
में हार जन्म के पूर्णविराम
तक साथ निभाउंगी...

heemashree3430

बाबा अजीब थे—शब्दों में कहानी ढूंढना आसान होता है, मगर बाबा जैसे लोग सिर्फ शब्द नहीं होते, वे अनुभव होते हैं, वे अकुलाहट होते हैं।

पाँच साल तक मैंने उन्हें देखा—एक बूढ़े मगर मेहनती इंसान को। जितना जोश मैंने नौजवानों में नहीं देखा, उतना उनके झुके कंधों में दिखता था। बाबा लोहे की बनी चीज़ें—बैठी, छलनी, चूल्हा, कढ़ाई—बेचते थे। पसीने से भीगी उनकी कमीज़ जैसे मेहनत की गवाही देती थी।

फिर एक दिन, जब मैं पड़ोस की आंटी के साथ गप्पें मार रही थी, बाबा लौटे। पाँव में फटे लेकिन मज़बूत जूते, और हाथ में वही झोली। उन्होंने मुझे देखा और बोले, “बिटिया, कपड़े धो देगी?”

शब्द मेरे गले में अटक गए। आंटी उठकर चली गई, मगर मैं वहाँ से हिल न सकी। थोड़ी झिझक के बाद मैंने ‘हाँ’ कह दिया। उन्होंने कुर्ता और धोती पकड़ा दी। जब कपड़े धोने लगी, तब महसूस हुआ कि ये महीनों से नहीं धुले थे।

फिर ये सिलसिला चलता रहा। हर महीने, दो महीने में बाबा कपड़े लेकर आ जाते। मैं अब बिना संकोच धो देती। मगर एक दिन बाबा आना बंद हो गए।

समय बीत गया। मैं बाबा को भूल गई… या शायद भूलने का नाटक करने लगी।

B.Ed. की अंतिम परीक्षा के दिन बाबा फिर दिखे। मगर इस बार उनके हाथ में लोहे का सामान नहीं, एक कटोरी थी… और वो लोगों के आगे फैला रहे थे हाथ। मेरा हृदय जैसे किसी ने मरोड़ दिया हो। मगर मेरे पास किराए भर के ही पैसे थे। आगे बढ़ गई। मगर मन न माना। दौड़कर लौटी, बैग से केला और पाँच रुपये निकालकर उनके हाथों में रख दिए।

लेकिन जब उन्होंने पैसे लिए, तो मेरे भीतर कुछ चुभ गया—मेहनत वाले हाथों में भीख?

अगले दिन फिर दिखे बाबा। इस बार कुछ खाने को रख आई। सोचा—काश मैं अमीर होती। लेकिन उस दिन समझ में आया, अमीर पैसा नहीं, दिल से होते हैं।

आख़िरी परीक्षा के दिन टिफिन में थोड़ा ज़्यादा खाना रखा। स्टेशन पहुँची… बाबा को ढूँढा… मगर वो कहीं नहीं थे।

फिर कभी नहीं मिले।

आज भी जब ज़िंदगी की भीड़ में चलती हूँ, तो कोई कोना भीतर से कहता है—क्या सच में हमने बाबा को खो दिया, या खुद को?

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“मुश्किल हालात सबके हिस्से आते हैं,
पर जो डटकर खड़े रहते हैं —
वो हालात नहीं, पूरी ज़िंदगी बदल देते हैं।”
🔥 यही है “अग्निपथ” की आत्मा।

धीरेंद्र सिंह बिष्ट की लेखनी आपको न सिर्फ़ पढ़ने को मजबूर करती है,
बल्कि खुद से मिलने का हौसला भी देती है।

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