कहानी का नाम: "आख़िरी ठोकर"
कहानी:
एक बार की बात है…
एक नौजवान लड़का पहाड़ चढ़ने की कोशिश कर रहा था। बार-बार गिरता, चोट खाता, मगर फिर भी हर सुबह नए जोश के साथ कोशिश करता। गांव के लोग हँसते, मज़ाक उड़ाते –
> “अरे पगला गया है ये लड़का! क्या करेगा ये पहाड़ चढ़कर?”
मगर वो बस एक बात कहता –
"जब तक साँस है, कोशिश है!"
एक दिन, वो फिर गिरा। बुरी तरह। खून निकल आया। आँखों से आँसू बह निकले।
उसने आसमान की ओर देखा और कहा,
> "भगवान, ये आख़िरी बार है। अगर आज भी हार गया… तो छोड़ दूँगा!"
और वो फिर चढ़ा।
घंटों बाद…
वो पहाड़ की चोटी पर खड़ा था। थका हुआ, मगर आँखों में चमक लिए।
नीचे से गांव वाले देख रहे थे – हैरान, शर्मिंदा, चुप।
वो चिल्लाया:
> "हर आख़िरी ठोकर, अगली जीत की तैयारी होती है!"
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सीख:
कभी हार मत मानो। दुनिया तुम्हारी हँसी उड़ाएगी, मगर जब तुम जीतोगे… वही लोग तालियाँ बजायेंगे।
हर असफलता, सफलता की सीढ़ी होती है। ठोकरें खाओ, मगर गिर कर उठो – क्योंकि आख़िरी ठोकर ही सबसे बड़ी जीत का रास्ता बनाती है।