इजरायल की वह धरा.....
इजरायल की वह धरा, देती है संदेश।
देश प्रेम के पाठ में, होता सुफल निवेश।।
दो पाटों के बीच में, याहूदी-परिवेश ।
सीना ताने है खड़ा, जूझ रहा है देश।।
छोटे से इस देश में, धीर-वीर-गंभीर।
चौतरफा से है घिरा, कहलाता है वीर।।
मजहब ने आतंक का, पहना नया लिबास।
तोड़ रहे निर्दय बने, जनमत का विश्वास।।
हार गया अलकायदा, भस्मासुरी हमास।
खड़ा लश्करे-तैयबा, नंगा हुआ हमाम।।
मानवता के असुर हैं, हिजबुल मुजाहिद्दीन।
जैश-मोहम्मद सरफिरे, बजा रहे हैं बीन।।
फिरकापरस्ति देखकर, जगत हुआ हैरान।
अग्निकुण्ड में जल-मरे , लुटे-पिटे इंसान।।
इस्लामिक फिलिस्तीनी, हुए एक जुट आज।
मौन विश्व है देखता, इनका यह अंदाज।।
अपनी सीमा में रहें, करें भलाई काम।
खुद अपने को बदल लें, जग में होगा नाम।।
अमन चैन सुख शांति से, रहना चाहें लोग।
कट्टरता की आग में, पाल रहे नित रोग।।
दुखद बना आतंक अब, इसका हो उद्धार।।
जग समाज का हित सधे, हो मानव उपकार।।
कर प्रहार आतंक पर, मिलकर करें विरोध।
मठा जड़ों में डाल कर, करें खत्म प्रतिशोध।।
भारत ने आतंक के, अनगिन झेले घाव।
मिली मुक्ति है इस घड़ी, शीतल चली बहाव।।
मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "
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