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JUGAL KISHORE SHARMA

JUGAL KISHORE SHARMA

@jugalkishoresharma
(39)

मगर कभी न हुई

चिराग जलते रहे, रोशनी मगर कभी न हुई।
शोंख पहली ज़िया, सुकू मगर कभी न हुई।

हवाएँ बज्म कहती रहीं, चमन में बहार है,
मस्ती-ए-सबा सदॉए, मगर कभी न हुई।

दरीचों से झाँकती, वो चाँदनी की रात,
लम्हों मेहरबान अदा, मगर कभी न हुई।

बहार आई कई बार, घुले रंग बिखरे यहाँ,
सबे खुशबू-ए-वफ़ा, मगर कभी न हुई।

नज़र नज़र में जमी रही दास्तान-ए-हिज्र,
किसरा हर्फ़-ए-मुद्दआ, मगर कभी न हुई।

बरा हयात जीती रही, दर्द के धुएँ मगर,
मर्हबा लम्हा-ए-शिफ़ा, मगर कभी न हुई।

ख़्वाब आँख में आए थे पलक़ों की छाँव में,
शिर्क ऐलाने सूरतें सजी, मगर कभी न हुई।

जलवा हज़ार बार सुना, कि वक़्त मदावा करे,
रूखसत राहत-ए-सिला, मगर कभी न हुई।

कोई तो आए रूह संभालने, मगर कभी न हुई।
मुदाखिल दस्त-ए-मेहरबाँ, मगर कभी न हुई।
.......................
ज्ञस्य केवलमज्ञस्य न भवत्येव बोधजा । अनानन्दसमानन्दमुग्धमुग्धमुखद्युतिः ॥
सविनय सप्रेम और सहज भाव से
जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर ।

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मगर कभी न हुई

चिराग जलते रहे, रोशनी मगर कभी न हुई।
शोंख पहली ज़िया, सुकू मगर कभी न हुई।

हवाएँ बज्म कहती रहीं, चमन में बहार है,
मस्ती-ए-सबा सदॉए, मगर कभी न हुई।

दरीचों से झाँकती, वो चाँदनी की रात,
लम्हों मेहरबान अदा, मगर कभी न हुई।

बहार आई कई बार, घुले रंग बिखरे यहाँ,
सबे खुशबू-ए-वफ़ा, मगर कभी न हुई।

नज़र नज़र में जमी रही दास्तान-ए-हिज्र,
किसरा हर्फ़-ए-मुद्दआ, मगर कभी न हुई।

बरा हयात जीती रही, दर्द के धुएँ मगर,
मर्हबा लम्हा-ए-शिफ़ा, मगर कभी न हुई।

ख़्वाब आँख में आए थे पलक़ों की छाँव में,
शिर्क ऐलाने सूरतें सजी, मगर कभी न हुई।

जलवा हज़ार बार सुना, कि वक़्त मदावा करे,
रूखसत राहत-ए-सिला, मगर कभी न हुई।

कोई तो आए रूह संभालने, मगर कभी न हुई।
मुदाखिल दस्त-ए-मेहरबाँ, मगर कभी न हुई।
.......................
ज्ञस्य केवलमज्ञस्य न भवत्येव बोधजा । अनानन्दसमानन्दमुग्धमुग्धमुखद्युतिः ॥
सविनय सप्रेम और सहज भाव से
जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर ।

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मगर कभी न हुई

चिराग जलते रहे, रोशनी मगर कभी न हुई।
शोंख पहली ज़िया, सुकू मगर कभी न हुई।

हवाएँ बज्म कहती रहीं, चमन में बहार है,
मस्ती-ए-सबा सदॉए, मगर कभी न हुई।

दरीचों से झाँकती, वो चाँदनी की रात,
लम्हों मेहरबान अदा, मगर कभी न हुई।

बहार आई कई बार, घुले रंग बिखरे यहाँ,
सबे खुशबू-ए-वफ़ा, मगर कभी न हुई।

नज़र नज़र में जमी रही दास्तान-ए-हिज्र,
किसरा हर्फ़-ए-मुद्दआ, मगर कभी न हुई।

बरा हयात जीती रही, दर्द के धुएँ मगर,
मर्हबा लम्हा-ए-शिफ़ा, मगर कभी न हुई।

ख़्वाब आँख में आए थे पलक़ों की छाँव में,
शिर्क ऐलाने सूरतें सजी, मगर कभी न हुई।

जलवा हज़ार बार सुना, कि वक़्त मदावा करे,
रूखसत राहत-ए-सिला, मगर कभी न हुई।

कोई तो आए रूह संभालने, मगर कभी न हुई।
मुदाखिल दस्त-ए-मेहरबाँ, मगर कभी न हुई।
.......................
ज्ञस्य केवलमज्ञस्य न भवत्येव बोधजा । अनानन्दसमानन्दमुग्धमुग्धमुखद्युतिः ॥
सविनय सप्रेम और सहज भाव से
जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर ।

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मगर कभी न हुई

चिराग जलते रहे, रोशनी मगर कभी न हुई।
शोंख पहली ज़िया, सुकू मगर कभी न हुई।

हवाएँ बज्म कहती रहीं, चमन में बहार है,
मस्ती-ए-सबा सदॉए, मगर कभी न हुई।

दरीचों से झाँकती, वो चाँदनी की रात,
लम्हों मेहरबान अदा, मगर कभी न हुई।

बहार आई कई बार, घुले रंग बिखरे यहाँ,
सबे खुशबू-ए-वफ़ा, मगर कभी न हुई।

नज़र नज़र में जमी रही दास्तान-ए-हिज्र,
किसरा हर्फ़-ए-मुद्दआ, मगर कभी न हुई।

बरा हयात जीती रही, दर्द के धुएँ मगर,
मर्हबा लम्हा-ए-शिफ़ा, मगर कभी न हुई।

ख़्वाब आँख में आए थे पलक़ों की छाँव में,
शिर्क ऐलाने सूरतें सजी, मगर कभी न हुई।

जलवा हज़ार बार सुना, कि वक़्त मदावा करे,
रूखसत राहत-ए-सिला, मगर कभी न हुई।

कोई तो आए रूह संभालने, मगर कभी न हुई।
मुदाखिल दस्त-ए-मेहरबाँ, मगर कभी न हुई।
.......................
ज्ञस्य केवलमज्ञस्य न भवत्येव बोधजा । अनानन्दसमानन्दमुग्धमुग्धमुखद्युतिः ॥
सविनय सप्रेम और सहज भाव से
जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर ।

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रूखत ए हुजाम ए सराब पर बवाल होना था ।
कदम कदम पर दिल को बदहाल होना था ।।

जमाल ए खूंबा नाम की धुन में खो गए सब ।
हर्फे शुदःमक्तुब ज़िन्दगी ए दज्जाल होना था ।।

महफूज जे हर रूए चाँद भी डूबा तेरी यादों में ।
बजूज खुद ए निस्त चाँदनी उजाल होना था ।।

बे कर्द तज्जली महस्सूस में जल गया दिल तो ।
शाहिद ए मसूद सर्द सितारों को सवाल होना था।।

आखिरशः ए कदद्त गर आँखों में छुपा था असर तो ।
मस्तकुंचा ए ईश्क रूकन गर्क बेवफ़ा सज़ा होना था ।।

हर शब-ए-फ़ुरक़त में रोता अलबत्ता क्युकर वो तो ।
आफरीदंद अज्मत बु जाहिल दिल को बेचैन होना था ।।

इ’श्क़-ए-आमद खबर के जीना खु अधूरे होना था ।
बदस ओ बदन तो अब ज़िन्दा ला खुसुशे होना था ।।
-----
रूखत ए हुजाम ए सराब पर बवाल होना था ।
"मिथ्या सौंदर्य के मैदान में अवश्य ही उथल-पुथल होनी थी।"
कदम कदम पर दिल को बदहाल होना था ।।
"हर कदम पर दिल को बेचैन होना था।"
जमाल ए खूंबा नाम की धुन में खो गए सब ।
"सभी 'जमाल-ए-खूब' (अद्भुत सौंदर्य) की धुन में खो गए।"
हर्फे शुदःमक्तुब ज़िन्दगी ए दज्जाल होना था ।।
"जीवन लिखित अक्षरों की तरह धोखेबाज़ और बेईमान साबित हुआ।"
महफूज जे हर रूए चाँद भी डूबा तेरी यादों में ।
"चाँद का चेहरा भी तेरी यादों में डूब गया।"
बजूज खुद ए निस्त चाँदनी उजाल होना था ।।
"अस्तित्व के बिना भी चाँदनी को चमकना था।"
बे कर्द तज्जली महस्सूस में जल गया दिल तो ।
"बेबसी के जलने के बाद दिल जल गया।"
शाहिद ए मसूद सर्द सितारों को सवाल होना था।।
"शहीद-ए-मसूद ने ठंडे सितारों से सवाल किया।"
आखिरशः ए कदद्त गर आँखों में छुपा था असर तो ।
"धैर्य के अंत में अगर आँखों में असर छुपा था।"
मस्तकुंचा ए ईश्क रूकन गर्क बेवफ़ा सज़ा होना था ।।
"प्रेम का नशा रुकना था, अगर बेवफाई की सजा होनी थी।"
हर शब-ए-फ़ुरक़त में रोता अलबत्ता क्युकर वो तो ।
"हर अलगाव की रात में वह उसके लिए रोता था।"
आफरीदंद अज्मत बु जाहिल दिल को बेचैन होना था ।।
"खुदा ने इस अज्ञानी दिल को बेचैन बनाया।"
इ’श्क़-ए-आमद खबर के जीना खु अधूरे होना था ।
"आने वाले प्रेम की खबर में जीना अधूरा रहना था।"
बदस ओ बदन तो अब ज़िन्दा ला खुसुशे होना था ।।
"सांस और शरीर के बिना अब जीवित रहना, लेकिन खुशी के बिना।"

जुगल किशोर शर्मा
ग़ज़ल, नज़्म और निबंध जैसे विभिन्न विधाओं में काम करने वाले थे। उनकी कविताओं की विशेषता यह है कि वे दार्शनिक गहराई, भावनात्मक गूढ़ता और सामाजिक टीका को जोड़ते हैं। उनकी भाषा में हिंदी और उर्दू का संगम है, जो उनके काव्य को सांस्कृतिक समृद्धि प्रदान करता है।

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रूखत ए हुजाम ए सराब पर बवाल होना था ।
कदम कदम पर दिल को बदहाल होना था ।।

जमाल ए खूंबा नाम की धुन में खो गए सब ।
हर्फे शुदःमक्तुब ज़िन्दगी ए दज्जाल होना था ।।

महफूज जे हर रूए चाँद भी डूबा तेरी यादों में ।
बजूज खुद ए निस्त चाँदनी उजाल होना था ।।

बे कर्द तज्जली महस्सूस में जल गया दिल तो ।
शाहिद ए मसूद सर्द सितारों को सवाल होना था।।

आखिरशः ए कदद्त गर आँखों में छुपा था असर तो ।
मस्तकुंचा ए ईश्क रूकन गर्क बेवफ़ा सज़ा होना था ।।

हर शब-ए-फ़ुरक़त में रोता अलबत्ता क्युकर वो तो ।
आफरीदंद अज्मत बु जाहिल दिल को बेचैन होना था ।।

इ’श्क़-ए-आमद खबर के जीना खु अधूरे होना था ।
बदस ओ बदन तो अब ज़िन्दा ला खुसुशे होना था ।।
-----
रूखत ए हुजाम ए सराब पर बवाल होना था ।
"मिथ्या सौंदर्य के मैदान में अवश्य ही उथल-पुथल होनी थी।"
कदम कदम पर दिल को बदहाल होना था ।।
"हर कदम पर दिल को बेचैन होना था।"
जमाल ए खूंबा नाम की धुन में खो गए सब ।
"सभी 'जमाल-ए-खूब' (अद्भुत सौंदर्य) की धुन में खो गए।"
हर्फे शुदःमक्तुब ज़िन्दगी ए दज्जाल होना था ।।
"जीवन लिखित अक्षरों की तरह धोखेबाज़ और बेईमान साबित हुआ।"
महफूज जे हर रूए चाँद भी डूबा तेरी यादों में ।
"चाँद का चेहरा भी तेरी यादों में डूब गया।"
बजूज खुद ए निस्त चाँदनी उजाल होना था ।।
"अस्तित्व के बिना भी चाँदनी को चमकना था।"
बे कर्द तज्जली महस्सूस में जल गया दिल तो ।
"बेबसी के जलने के बाद दिल जल गया।"
शाहिद ए मसूद सर्द सितारों को सवाल होना था।।
"शहीद-ए-मसूद ने ठंडे सितारों से सवाल किया।"
आखिरशः ए कदद्त गर आँखों में छुपा था असर तो ।
"धैर्य के अंत में अगर आँखों में असर छुपा था।"
मस्तकुंचा ए ईश्क रूकन गर्क बेवफ़ा सज़ा होना था ।।
"प्रेम का नशा रुकना था, अगर बेवफाई की सजा होनी थी।"
हर शब-ए-फ़ुरक़त में रोता अलबत्ता क्युकर वो तो ।
"हर अलगाव की रात में वह उसके लिए रोता था।"
आफरीदंद अज्मत बु जाहिल दिल को बेचैन होना था ।।
"खुदा ने इस अज्ञानी दिल को बेचैन बनाया।"
इ’श्क़-ए-आमद खबर के जीना खु अधूरे होना था ।
"आने वाले प्रेम की खबर में जीना अधूरा रहना था।"
बदस ओ बदन तो अब ज़िन्दा ला खुसुशे होना था ।।
"सांस और शरीर के बिना अब जीवित रहना, लेकिन खुशी के बिना।"

जुगल किशोर शर्मा
ग़ज़ल, नज़्म और निबंध जैसे विभिन्न विधाओं में काम करने वाले थे। उनकी कविताओं की विशेषता यह है कि वे दार्शनिक गहराई, भावनात्मक गूढ़ता और सामाजिक टीका को जोड़ते हैं। उनकी भाषा में हिंदी और उर्दू का संगम है, जो उनके काव्य को सांस्कृतिक समृद्धि प्रदान करता है।

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मेरा दिल हर लम्हा जाता है सू-ए-दिगर की तरफ़,
क्यों ये फ़िराक़ ही रहा क़ाबिल-ए-शिफर की तरफ़?

नज़र आती थी जो दूरी, वो भी क्या कम थी मगर,
अचानक युकें मौसम बदला रुख़-ए-मिगर की तरफ़।

वो भी फ़साना था फ़लक की दस्तकों का सदियों से,
वो उतर आया अब दर-ओ-दीवार-ए-तिगर की तरफ़।

बंदा या सलामत, रहमत है ये कि ये फ़ासले टूट गए,
नहीं तो हम भी थे मुतमईन इन्तज़ार-ए-दिगर की तरफ़।

मनफ़रीद, ये कैसा नशेब है कि जो मंज़िल थी बहुत दूर,
वहीं पे ख़त्म हुआ सफ़र-ए-गुमान-ए-जिगर की तरफ़।
------
उसके शगल ने छीन ली महफ़िल की रौनक़ भी,
वो इक लम्हा था जिसे उम्र भर का सोज मिला।
तवानद ताउम्र देखा है उसकी नज़रों का जादू,
मीकसद इसे ’शगल’ कहे है क्या इबादत कहते हैं!

जुगल किशोर शर्मा बीकानेर
ग़ज़ल एक गहरी भावनात्मक और दार्शनिक यात्रा को प्रस्तुत करती है। दूरियों, इंतज़ार, और अचानक बदलती परिस्थितियों का चित्रण किया गया है। प्रेम को ईश्वर की पूजा के रूप में देखते हैं, जो उन्हें शांति और संतोष प्रदान करता है।
#उर्दूशायरी #ग़ज़ल #दूरीऔरनिकटता #आध्यात्मिकता #भावनाएँ #शगल #प्रेम #इबादत

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मेरा दिल हर लम्हा जाता है सू-ए-दिगर की तरफ़,
क्यों ये फ़िराक़ ही रहा क़ाबिल-ए-शिफर की तरफ़?

नज़र आती थी जो दूरी, वो भी क्या कम थी मगर,
अचानक युकें मौसम बदला रुख़-ए-मिगर की तरफ़।

वो भी फ़साना था फ़लक की दस्तकों का सदियों से,
वो उतर आया अब दर-ओ-दीवार-ए-तिगर की तरफ़।

बंदा या सलामत, रहमत है ये कि ये फ़ासले टूट गए,
नहीं तो हम भी थे मुतमईन इन्तज़ार-ए-दिगर की तरफ़।

मनफ़रीद, ये कैसा नशेब है कि जो मंज़िल थी बहुत दूर,
वहीं पे ख़त्म हुआ सफ़र-ए-गुमान-ए-जिगर की तरफ़।
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उसके शगल ने छीन ली महफ़िल की रौनक़ भी,
वो इक लम्हा था जिसे उम्र भर का सोज मिला।
तवानद ताउम्र देखा है उसकी नज़रों का जादू,
मीकसद इसे ’शगल’ कहे है क्या इबादत कहते हैं!

जुगल किशोर शर्मा बीकानेर
ग़ज़ल एक गहरी भावनात्मक और दार्शनिक यात्रा को प्रस्तुत करती है। दूरियों, इंतज़ार, और अचानक बदलती परिस्थितियों का चित्रण किया गया है। प्रेम को ईश्वर की पूजा के रूप में देखते हैं, जो उन्हें शांति और संतोष प्रदान करता है।
#उर्दूशायरी #ग़ज़ल #दूरीऔरनिकटता #आध्यात्मिकता #भावनाएँ #शगल #प्रेम #इबादत

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कुछ ज़ुल्म-ओ-सितम सहने की बेसक आदत भी है हम को,
तुफान ए हवादिश गर्दन कटे तो बस राहत भी है हम को।
इंसाफ़ का सूरज महकूम यहाँ डूबा हुआ देखा,
बेईमानी का क़ाफ़िला बस फुलाया हुआ देखा।
लहू से रोशन हुई थीं कूचा-ए-अदालत बे मुकामा,
हर मगरूर हाकिम ने चिराग़ को ठोकर ये बुझाया।
असीरान-ए-क़फ़स को दिया सब्र का यो पयग़ाम,
सय्याद ने हँसकर कहा, “अब तो परों को क़लाम“।
अदालत के दर पर लगा है मुनाफ़िक़ों का मेला,
वहाँ हक़ बिकता है और झूठ का बजता है रेला।
जो नज़रों में खटकते थे, वो मंसूब हो गए,
दरबार में सच्चे लोग अक्सर मंसूख हो गए।
हुक्मरानों की महफ़िल में सच कहने की गुंजाइश नहीं,
बस चाटुकारों के लिए दरबार खुला खैर नुमाइश वहीं,
कल तक जो नायक थे, गुनहगार कहे गए,
और जो डाकू थे, तबीअत सरकार कहे गए।
अदालत में हाकिम से पूछा, “इंसाफ़ कहाँ?“
उसने जवाब दिया, “अभी नीलाम ह यहॉं’’
सियासत के धंधे में सबसे बड़ा सौदा बखूब या खिंचता
हाय री ग़रीब का पेट ये अमीर की दौलत का रिश्ता।
मैं ख़ून से लिखता रहा सदा-ए-हक़, भुलाते रहे ।
और हाकिम उसे मिटाने के लिए दरिया बुलाते रहे।
इंसाफ़ की गली में कोई सच्चा नहीं,
और झूठ के बाज़ार में कोई भूखा नहीं।
मेरा हक़ लिख दिया गया हुक्मरानों की गुत्थी बही में,
ठोकरों मेरा सर झुका दिया गया जुल्म की गली में।
------------------
सहज समझ में कुछ पढे कुछ अनगढे ना कहे तो ठीक कहे तो ठीक यु ही कुछ लिखा मन बेमन से । अल्हड़ या मस्ती, या सरपरस्ती अनथक अविराम! मंच को सहज भाव से सादर समर्पित ।
जुगल किशोर शर्मा बीकानेर।
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कुछ ज़ुल्म-ओ-सितम सहने की बेसक आदत भी है हम को,
तुफान ए हवादिश गर्दन कटे तो बस राहत भी है हम को।
इंसाफ़ का सूरज महकूम यहाँ डूबा हुआ देखा,
बेईमानी का क़ाफ़िला बस फुलाया हुआ देखा।
लहू से रोशन हुई थीं कूचा-ए-अदालत बे मुकामा,
हर मगरूर हाकिम ने चिराग़ को ठोकर ये बुझाया।
असीरान-ए-क़फ़स को दिया सब्र का यो पयग़ाम,
सय्याद ने हँसकर कहा, “अब तो परों को क़लाम“।
अदालत के दर पर लगा है मुनाफ़िक़ों का मेला,
वहाँ हक़ बिकता है और झूठ का बजता है रेला।
जो नज़रों में खटकते थे, वो मंसूब हो गए,
दरबार में सच्चे लोग अक्सर मंसूख हो गए।
हुक्मरानों की महफ़िल में सच कहने की गुंजाइश नहीं,
बस चाटुकारों के लिए दरबार खुला खैर नुमाइश वहीं,
कल तक जो नायक थे, गुनहगार कहे गए,
और जो डाकू थे, तबीअत सरकार कहे गए।
अदालत में हाकिम से पूछा, “इंसाफ़ कहाँ?“
उसने जवाब दिया, “अभी नीलाम ह यहॉं’’
सियासत के धंधे में सबसे बड़ा सौदा बखूब या खिंचता
हाय री ग़रीब का पेट ये अमीर की दौलत का रिश्ता।
मैं ख़ून से लिखता रहा सदा-ए-हक़, भुलाते रहे ।
और हाकिम उसे मिटाने के लिए दरिया बुलाते रहे।
इंसाफ़ की गली में कोई सच्चा नहीं,
और झूठ के बाज़ार में कोई भूखा नहीं।
मेरा हक़ लिख दिया गया हुक्मरानों की गुत्थी बही में,
ठोकरों मेरा सर झुका दिया गया जुल्म की गली में।
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सहज समझ में कुछ पढे कुछ अनगढे ना कहे तो ठीक कहे तो ठीक यु ही कुछ लिखा मन बेमन से । अल्हड़ या मस्ती, या सरपरस्ती अनथक अविराम! मंच को सहज भाव से सादर समर्पित ।
जुगल किशोर शर्मा बीकानेर।
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