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JUGAL KISHORE SHARMA

JUGAL KISHORE SHARMA

@jugalkishoresharma
(39)

मेरा दिल हर लम्हा जाता है सू-ए-दिगर की तरफ़,
क्यों ये फ़िराक़ ही रहा क़ाबिल-ए-शिफर की तरफ़?

नज़र आती थी जो दूरी, वो भी क्या कम थी मगर,
अचानक युकें मौसम बदला रुख़-ए-मिगर की तरफ़।

वो भी फ़साना था फ़लक की दस्तकों का सदियों से,
वो उतर आया अब दर-ओ-दीवार-ए-तिगर की तरफ़।

बंदा या सलामत, रहमत है ये कि ये फ़ासले टूट गए,
नहीं तो हम भी थे मुतमईन इन्तज़ार-ए-दिगर की तरफ़।

मनफ़रीद, ये कैसा नशेब है कि जो मंज़िल थी बहुत दूर,
वहीं पे ख़त्म हुआ सफ़र-ए-गुमान-ए-जिगर की तरफ़।
------
उसके शगल ने छीन ली महफ़िल की रौनक़ भी,
वो इक लम्हा था जिसे उम्र भर का सोज मिला।
तवानद ताउम्र देखा है उसकी नज़रों का जादू,
मीकसद इसे ’शगल’ कहे है क्या इबादत कहते हैं!

जुगल किशोर शर्मा बीकानेर
ग़ज़ल एक गहरी भावनात्मक और दार्शनिक यात्रा को प्रस्तुत करती है। दूरियों, इंतज़ार, और अचानक बदलती परिस्थितियों का चित्रण किया गया है। प्रेम को ईश्वर की पूजा के रूप में देखते हैं, जो उन्हें शांति और संतोष प्रदान करता है।
#उर्दूशायरी #ग़ज़ल #दूरीऔरनिकटता #आध्यात्मिकता #भावनाएँ #शगल #प्रेम #इबादत

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मेरा दिल हर लम्हा जाता है सू-ए-दिगर की तरफ़,
क्यों ये फ़िराक़ ही रहा क़ाबिल-ए-शिफर की तरफ़?

नज़र आती थी जो दूरी, वो भी क्या कम थी मगर,
अचानक युकें मौसम बदला रुख़-ए-मिगर की तरफ़।

वो भी फ़साना था फ़लक की दस्तकों का सदियों से,
वो उतर आया अब दर-ओ-दीवार-ए-तिगर की तरफ़।

बंदा या सलामत, रहमत है ये कि ये फ़ासले टूट गए,
नहीं तो हम भी थे मुतमईन इन्तज़ार-ए-दिगर की तरफ़।

मनफ़रीद, ये कैसा नशेब है कि जो मंज़िल थी बहुत दूर,
वहीं पे ख़त्म हुआ सफ़र-ए-गुमान-ए-जिगर की तरफ़।
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उसके शगल ने छीन ली महफ़िल की रौनक़ भी,
वो इक लम्हा था जिसे उम्र भर का सोज मिला।
तवानद ताउम्र देखा है उसकी नज़रों का जादू,
मीकसद इसे ’शगल’ कहे है क्या इबादत कहते हैं!

जुगल किशोर शर्मा बीकानेर
ग़ज़ल एक गहरी भावनात्मक और दार्शनिक यात्रा को प्रस्तुत करती है। दूरियों, इंतज़ार, और अचानक बदलती परिस्थितियों का चित्रण किया गया है। प्रेम को ईश्वर की पूजा के रूप में देखते हैं, जो उन्हें शांति और संतोष प्रदान करता है।
#उर्दूशायरी #ग़ज़ल #दूरीऔरनिकटता #आध्यात्मिकता #भावनाएँ #शगल #प्रेम #इबादत

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कुछ ज़ुल्म-ओ-सितम सहने की बेसक आदत भी है हम को,
तुफान ए हवादिश गर्दन कटे तो बस राहत भी है हम को।
इंसाफ़ का सूरज महकूम यहाँ डूबा हुआ देखा,
बेईमानी का क़ाफ़िला बस फुलाया हुआ देखा।
लहू से रोशन हुई थीं कूचा-ए-अदालत बे मुकामा,
हर मगरूर हाकिम ने चिराग़ को ठोकर ये बुझाया।
असीरान-ए-क़फ़स को दिया सब्र का यो पयग़ाम,
सय्याद ने हँसकर कहा, “अब तो परों को क़लाम“।
अदालत के दर पर लगा है मुनाफ़िक़ों का मेला,
वहाँ हक़ बिकता है और झूठ का बजता है रेला।
जो नज़रों में खटकते थे, वो मंसूब हो गए,
दरबार में सच्चे लोग अक्सर मंसूख हो गए।
हुक्मरानों की महफ़िल में सच कहने की गुंजाइश नहीं,
बस चाटुकारों के लिए दरबार खुला खैर नुमाइश वहीं,
कल तक जो नायक थे, गुनहगार कहे गए,
और जो डाकू थे, तबीअत सरकार कहे गए।
अदालत में हाकिम से पूछा, “इंसाफ़ कहाँ?“
उसने जवाब दिया, “अभी नीलाम ह यहॉं’’
सियासत के धंधे में सबसे बड़ा सौदा बखूब या खिंचता
हाय री ग़रीब का पेट ये अमीर की दौलत का रिश्ता।
मैं ख़ून से लिखता रहा सदा-ए-हक़, भुलाते रहे ।
और हाकिम उसे मिटाने के लिए दरिया बुलाते रहे।
इंसाफ़ की गली में कोई सच्चा नहीं,
और झूठ के बाज़ार में कोई भूखा नहीं।
मेरा हक़ लिख दिया गया हुक्मरानों की गुत्थी बही में,
ठोकरों मेरा सर झुका दिया गया जुल्म की गली में।
------------------
सहज समझ में कुछ पढे कुछ अनगढे ना कहे तो ठीक कहे तो ठीक यु ही कुछ लिखा मन बेमन से । अल्हड़ या मस्ती, या सरपरस्ती अनथक अविराम! मंच को सहज भाव से सादर समर्पित ।
जुगल किशोर शर्मा बीकानेर।
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कुछ ज़ुल्म-ओ-सितम सहने की बेसक आदत भी है हम को,
तुफान ए हवादिश गर्दन कटे तो बस राहत भी है हम को।
इंसाफ़ का सूरज महकूम यहाँ डूबा हुआ देखा,
बेईमानी का क़ाफ़िला बस फुलाया हुआ देखा।
लहू से रोशन हुई थीं कूचा-ए-अदालत बे मुकामा,
हर मगरूर हाकिम ने चिराग़ को ठोकर ये बुझाया।
असीरान-ए-क़फ़स को दिया सब्र का यो पयग़ाम,
सय्याद ने हँसकर कहा, “अब तो परों को क़लाम“।
अदालत के दर पर लगा है मुनाफ़िक़ों का मेला,
वहाँ हक़ बिकता है और झूठ का बजता है रेला।
जो नज़रों में खटकते थे, वो मंसूब हो गए,
दरबार में सच्चे लोग अक्सर मंसूख हो गए।
हुक्मरानों की महफ़िल में सच कहने की गुंजाइश नहीं,
बस चाटुकारों के लिए दरबार खुला खैर नुमाइश वहीं,
कल तक जो नायक थे, गुनहगार कहे गए,
और जो डाकू थे, तबीअत सरकार कहे गए।
अदालत में हाकिम से पूछा, “इंसाफ़ कहाँ?“
उसने जवाब दिया, “अभी नीलाम ह यहॉं’’
सियासत के धंधे में सबसे बड़ा सौदा बखूब या खिंचता
हाय री ग़रीब का पेट ये अमीर की दौलत का रिश्ता।
मैं ख़ून से लिखता रहा सदा-ए-हक़, भुलाते रहे ।
और हाकिम उसे मिटाने के लिए दरिया बुलाते रहे।
इंसाफ़ की गली में कोई सच्चा नहीं,
और झूठ के बाज़ार में कोई भूखा नहीं।
मेरा हक़ लिख दिया गया हुक्मरानों की गुत्थी बही में,
ठोकरों मेरा सर झुका दिया गया जुल्म की गली में।
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सहज समझ में कुछ पढे कुछ अनगढे ना कहे तो ठीक कहे तो ठीक यु ही कुछ लिखा मन बेमन से । अल्हड़ या मस्ती, या सरपरस्ती अनथक अविराम! मंच को सहज भाव से सादर समर्पित ।
जुगल किशोर शर्मा बीकानेर।
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ग़ज़ल: बहुत देर कर दी
लेखक: जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
सादर वन्दन सहित मंच में सभी को आदर सहित समर्पित कृपया लघु रचना आकलन, समालोचना अपेक्षित है -
बहुत देर कर दी
सुरूर हसरतों ने हर घाव को गहरा किया,
ओ सवाल ने मुझे तन्हाई ने करारा दिया।
ग़म के साए में जब भी तुझे पुकारा किया,
अजामत यादों के दरीचों में गुज़ारा किया।
खुशामद-ए-मोहब्बत का कोई इल्म नहीं,
जैसे आईना हो और अपना नज़ारा लिया।
बहुत देरे शामकर दी तुझे भुलाने में हमदम,
मलाल हर ख्वाब ने बदनसीब इशारा किया।
दिल-ए-नाकाम का सुकून भी अधूरा सा है,
जैसे चिराग़ ने अंधेरों को यु बेसहारा किया।
इश्क़ और गवारा शिकस्त फ़िर भी नहीं,
वादों ने बस खामोशी का मुजारा किया।
हर मोड़ से तेरी ख़ुशबू की गवाही आई,
हर मंज़िल ने मेरे दिल का सहारा किया।
बहुत देर कर दी तुझे यादे निशा करने में,
आहट ने फिर नया इश्तिहार सुधारा किया।
अब चाँदनी रातें भी तुझसे सवाल करती हैं,
तेरी परछाइयों ने हर ज़ख़्म को हरा किया।
बहुत देर कर दी फख्रे सुकून को पाने में,
हजारात मोहब्बत ने हर दर्द खुदारा किया।
तेरे बिना ये गली, ये सफर बंजारा किया,
रस्म सांस ने बस मुझी को छलावा दिया।
--
प्रतिदिन आहार में संभव करे कि साबुत अनाज जिसमें जौ, ज्वार, मक्का, बाजरा, चना मूंग मोठ आदि स्थानीय बतौर उपज को अपने भोजन में रोटी दलिया और राब में स्थान देवें और उत्तम जीवन के साथ आदर्श, स्वस्थ्य और समग्र जीवन को अग्रसर सभी रहे यदि साद्र प्रार्थना-सविनय निवेदन है ।
------
जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
मननं कुरु, चिन्तनं कुरु, कर्मभावं धारय the importance of reflection, contemplation, and maintaining the spirit of action (karma). - लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु में समाहित सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित

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ग़ज़ल: बहुत देर कर दी
लेखक: जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
सादर वन्दन सहित मंच में सभी को आदर सहित समर्पित कृपया लघु रचना आकलन, समालोचना अपेक्षित है -
बहुत देर कर दी
सुरूर हसरतों ने हर घाव को गहरा किया,
ओ सवाल ने मुझे तन्हाई ने करारा दिया।
ग़म के साए में जब भी तुझे पुकारा किया,
अजामत यादों के दरीचों में गुज़ारा किया।
खुशामद-ए-मोहब्बत का कोई इल्म नहीं,
जैसे आईना हो और अपना नज़ारा लिया।
बहुत देरे शामकर दी तुझे भुलाने में हमदम,
मलाल हर ख्वाब ने बदनसीब इशारा किया।
दिल-ए-नाकाम का सुकून भी अधूरा सा है,
जैसे चिराग़ ने अंधेरों को यु बेसहारा किया।
इश्क़ और गवारा शिकस्त फ़िर भी नहीं,
वादों ने बस खामोशी का मुजारा किया।
हर मोड़ से तेरी ख़ुशबू की गवाही आई,
हर मंज़िल ने मेरे दिल का सहारा किया।
बहुत देर कर दी तुझे यादे निशा करने में,
आहट ने फिर नया इश्तिहार सुधारा किया।
अब चाँदनी रातें भी तुझसे सवाल करती हैं,
तेरी परछाइयों ने हर ज़ख़्म को हरा किया।
बहुत देर कर दी फख्रे सुकून को पाने में,
हजारात मोहब्बत ने हर दर्द खुदारा किया।
तेरे बिना ये गली, ये सफर बंजारा किया,
रस्म सांस ने बस मुझी को छलावा दिया।
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प्रतिदिन आहार में संभव करे कि साबुत अनाज जिसमें जौ, ज्वार, मक्का, बाजरा, चना मूंग मोठ आदि स्थानीय बतौर उपज को अपने भोजन में रोटी दलिया और राब में स्थान देवें और उत्तम जीवन के साथ आदर्श, स्वस्थ्य और समग्र जीवन को अग्रसर सभी रहे यदि साद्र प्रार्थना-सविनय निवेदन है ।
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जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
मननं कुरु, चिन्तनं कुरु, कर्मभावं धारय the importance of reflection, contemplation, and maintaining the spirit of action (karma). - लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु में समाहित सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित

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ग़ज़ल: बहुत देर कर दी
लेखक: जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
सादर वन्दन सहित मंच में सभी को आदर सहित समर्पित कृपया लघु रचना आकलन, समालोचना अपेक्षित है -
बहुत देर कर दी
सुरूर हसरतों ने हर घाव को गहरा किया,
ओ सवाल ने मुझे तन्हाई ने करारा दिया।
ग़म के साए में जब भी तुझे पुकारा किया,
अजामत यादों के दरीचों में गुज़ारा किया।
खुशामद-ए-मोहब्बत का कोई इल्म नहीं,
जैसे आईना हो और अपना नज़ारा लिया।
बहुत देरे शामकर दी तुझे भुलाने में हमदम,
मलाल हर ख्वाब ने बदनसीब इशारा किया।
दिल-ए-नाकाम का सुकून भी अधूरा सा है,
जैसे चिराग़ ने अंधेरों को यु बेसहारा किया।
इश्क़ और गवारा शिकस्त फ़िर भी नहीं,
वादों ने बस खामोशी का मुजारा किया।
हर मोड़ से तेरी ख़ुशबू की गवाही आई,
हर मंज़िल ने मेरे दिल का सहारा किया।
बहुत देर कर दी तुझे यादे निशा करने में,
आहट ने फिर नया इश्तिहार सुधारा किया।
अब चाँदनी रातें भी तुझसे सवाल करती हैं,
तेरी परछाइयों ने हर ज़ख़्म को हरा किया।
बहुत देर कर दी फख्रे सुकून को पाने में,
हजारात मोहब्बत ने हर दर्द खुदारा किया।
तेरे बिना ये गली, ये सफर बंजारा किया,
रस्म सांस ने बस मुझी को छलावा दिया।
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प्रतिदिन आहार में संभव करे कि साबुत अनाज जिसमें जौ, ज्वार, मक्का, बाजरा, चना मूंग मोठ आदि स्थानीय बतौर उपज को अपने भोजन में रोटी दलिया और राब में स्थान देवें और उत्तम जीवन के साथ आदर्श, स्वस्थ्य और समग्र जीवन को अग्रसर सभी रहे यदि साद्र प्रार्थना-सविनय निवेदन है ।
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जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
मननं कुरु, चिन्तनं कुरु, कर्मभावं धारय the importance of reflection, contemplation, and maintaining the spirit of action (karma). - लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु में समाहित सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित

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ग़ज़ल: बहुत देर कर दी
लेखक: जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
सादर वन्दन सहित मंच में सभी को आदर सहित समर्पित कृपया लघु रचना आकलन, समालोचना अपेक्षित है -
बहुत देर कर दी
सुरूर हसरतों ने हर घाव को गहरा किया,
ओ सवाल ने मुझे तन्हाई ने करारा दिया।
ग़म के साए में जब भी तुझे पुकारा किया,
अजामत यादों के दरीचों में गुज़ारा किया।
खुशामद-ए-मोहब्बत का कोई इल्म नहीं,
जैसे आईना हो और अपना नज़ारा लिया।
बहुत देरे शामकर दी तुझे भुलाने में हमदम,
मलाल हर ख्वाब ने बदनसीब इशारा किया।
दिल-ए-नाकाम का सुकून भी अधूरा सा है,
जैसे चिराग़ ने अंधेरों को यु बेसहारा किया।
इश्क़ और गवारा शिकस्त फ़िर भी नहीं,
वादों ने बस खामोशी का मुजारा किया।
हर मोड़ से तेरी ख़ुशबू की गवाही आई,
हर मंज़िल ने मेरे दिल का सहारा किया।
बहुत देर कर दी तुझे यादे निशा करने में,
आहट ने फिर नया इश्तिहार सुधारा किया।
अब चाँदनी रातें भी तुझसे सवाल करती हैं,
तेरी परछाइयों ने हर ज़ख़्म को हरा किया।
बहुत देर कर दी फख्रे सुकून को पाने में,
हजारात मोहब्बत ने हर दर्द खुदारा किया।
तेरे बिना ये गली, ये सफर बंजारा किया,
रस्म सांस ने बस मुझी को छलावा दिया।
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प्रतिदिन आहार में संभव करे कि साबुत अनाज जिसमें जौ, ज्वार, मक्का, बाजरा, चना मूंग मोठ आदि स्थानीय बतौर उपज को अपने भोजन में रोटी दलिया और राब में स्थान देवें और उत्तम जीवन के साथ आदर्श, स्वस्थ्य और समग्र जीवन को अग्रसर सभी रहे यदि साद्र प्रार्थना-सविनय निवेदन है ।
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जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
मननं कुरु, चिन्तनं कुरु, कर्मभावं धारय the importance of reflection, contemplation, and maintaining the spirit of action (karma). - लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु में समाहित सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित

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ख्वाबों के नियाज, तन्हाई की रंजो गमवा से,

दिल में उमड़े हैं हज़ारों सवालात वेवफा से।

ग़म की परछाईं में मगरूर नर्म तड़फती रही,

अंजाम-ए-सुकून की तलाश गंजो जख्मा से

मगर वो नूर, जो धुंध में चमकता दुश्वा से,

उसकी हर किरन जहां महकता सहरवा से।



गुलदहा-ए-रंग और दिले बे नियाज ये ताज़गी,

तेबा की हवाओं से आई ये रवानगी आश्नावा से।

वो दीदार, जो दिल को कर दे महताब ए सुकून,

इक पल की झलक, और रूह बेहतरीन हवा से ।

फितरत मगर हर चाहत के साथ बंधा एक धागा,

दिल को बाँधता है, दर्द का उजाला कुरबवा से।



“देखो!“ सूफ़ी ने फ़रमाया शोक ए पैगामात ये,

“तेरी ये तमन्नाएँ बस धोखे साया बदलवा से।

नजदीक तर जो मिट्टी की सूरतें तूने अपनाईं,

वो तो हैं बस एक पल की परछाईं हंजीशमा से।

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प्रतिदिन आहार में संभव करे कि साबुत अनाज जिसमें जौ, ज्वार, मक्का, बाजरा, चना मूंग मोठ आदि स्थानीय बतौर उपज को अपने भोजन में रोटी दलिया और राब में स्थान देवें और उत्तम जीवन के साथ आदर्श, स्वस्थ्य और समग्र जीवन को अग्रसर सभी रहे यदि साद्र प्रार्थना-सविनय निवेदन है ।

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जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर

मननं कुरु, चिन्तनं कुरु, कर्मभावं धारय the importance of reflection, contemplation, and maintaining the spirit of action (karma). - लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु में समाहित सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित

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ख्वाबों के नियाज, तन्हाई की रंजो गमवा से,

दिल में उमड़े हैं हज़ारों सवालात वेवफा से।

ग़म की परछाईं में मगरूर नर्म तड़फती रही,

अंजाम-ए-सुकून की तलाश गंजो जख्मा से

मगर वो नूर, जो धुंध में चमकता दुश्वा से,

उसकी हर किरन जहां महकता सहरवा से।



गुलदहा-ए-रंग और दिले बे नियाज ये ताज़गी,

तेबा की हवाओं से आई ये रवानगी आश्नावा से।

वो दीदार, जो दिल को कर दे महताब ए सुकून,

इक पल की झलक, और रूह बेहतरीन हवा से ।

फितरत मगर हर चाहत के साथ बंधा एक धागा,

दिल को बाँधता है, दर्द का उजाला कुरबवा से।



“देखो!“ सूफ़ी ने फ़रमाया शोक ए पैगामात ये,

“तेरी ये तमन्नाएँ बस धोखे साया बदलवा से।

नजदीक तर जो मिट्टी की सूरतें तूने अपनाईं,

वो तो हैं बस एक पल की परछाईं हंजीशमा से।

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प्रतिदिन आहार में संभव करे कि साबुत अनाज जिसमें जौ, ज्वार, मक्का, बाजरा, चना मूंग मोठ आदि स्थानीय बतौर उपज को अपने भोजन में रोटी दलिया और राब में स्थान देवें और उत्तम जीवन के साथ आदर्श, स्वस्थ्य और समग्र जीवन को अग्रसर सभी रहे यदि साद्र प्रार्थना-सविनय निवेदन है ।

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जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर

मननं कुरु, चिन्तनं कुरु, कर्मभावं धारय the importance of reflection, contemplation, and maintaining the spirit of action (karma). - लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु में समाहित सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित

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