साथियों, आज के दिन समस्त विश्व में नव वर्ष हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता रहा है| फिर भी हमारे देश में कुछ विशेष विचारधारा के लोग इसे पाश्चात्य नव वर्ष की संज्ञा देकर इसका विरोध करते रहे हैं| सोशल साइट्स पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह "दिनकर" के नाम से एक रचना "ये नववर्ष हमें स्वीकार नहीं, है अपना ये त्यौहार नहीं" प्रचारित होने लगती है| ये सही है कि जनवरी से शुरू होने वाला ग्रेगेरियन कैलेंडर अंग्रेजों ने अपने शासन काल में भारत में लागू किया| ये भी सही है कि हमारे देश के एक बड़े सांस्कृतिक हिस्से में चैत्र शुक्लपक्ष से नववर्ष का प्रारम्भ होता है जब वातावरण भी नव हिलोरें लेने लगता है| परन्तु ये भी सत्य है कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न तिथियों पर नव वर्ष मनाया जाता है, जैसे कुछ क्षेत्रों में दीपावली से नव वर्ष का प्रारंभ होता है|
कभी अंग्रेजों ने बलपूर्वक हमारे ऊपर इस ग्रेगेरियन कैलेंडर को थोपा था परन्तु आज ये कैलेंडर समस्त विश्व में सर्वमान्य है| सरकारी कामकाज में हमारी जन्मतिथि,आयु इत्यादि समस्त सूचनाएं इसी कैलेंडर के अनुसार प्रयुक्त होती हैं| इस प्रकार इस कैलेंडर का प्रभाव तो हम पर पड़ता ही है|
हम अपनी संस्कृति के अनुसार नववर्ष मनाएं, इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं, किन्तु समस्त विश्व में सर्वमान्य जनवरी से शुरू होने वाले नववर्ष को नकार तो नहीं सकते| हम इसे त्यौहार की संज्ञा ना दें, पर उत्सव के रूप में मना तो सकते हैं| आईये हम सब इस नवर्ष में कम से कम एक संकल्प अवश्य लें, जो हमारे लिए, हमारे परिवार के लिए, हमारे समाज के लिए कल्याणकारी हो|
आप सभी के लिए नववर्ष मंगलदायक हो|
स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें|
जय हिन्द||