हर साल पांच जनवरी को राष्ट्रीय पक्षी दिवस मनाया जाता हैं। आज पक्षियों की कई प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं तो कुछ प्रजातियाँ खतरे में हैं। जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और जंगलों के कटने से पक्षियों के घोंसले उजड़ रहे हैं।
प्रकृति की देन है एक से बढ़कर एक खूबसूरत पक्षी। जो अपनी चहचहाहट से हमारे जीवन में उत्साह भरते हैं एवं प्राकृतिक वातावरण को शुद्ध रखते हैं। पक्षियों की सुंदरता हम सब का मन मोह लेती हैं। कोयल,मैना, गौरैया ,तोता,हंस,मोर, कबूतर, एवं अन्य पक्षी हमारे जीवन का अहम हिस्सा है
हमारे ये सब पक्षी कहीं लुप्त न हो जाएं इस लिए उनके संरक्षण के लिए राष्ट्रीय पक्षी दिवस मनाया जाता है। हम को इनकी रक्षा करनी है।
राष्ट्रीय पक्षी दिवस पर प्रस्तुत है मेरी कुछ रचनाएं 🙏🙏
1) परिंदा
----------------
मैं परिंदा अमन चैन का
घूमा करता हूँ गली -गली और चौराहा
मिल जाए कोई शायद
मानवता का रखवाला ।
आकाश से धरती तक
फैलाए हैं मैंने अपने पंख
नजरे ढूंढा करती है मिल जाए
कहीं शांति प्रेम संग ।
नफरत की डाल मुझे भाती नहीं
ऐसी जिंदगी रास आती नहीं
मार्ग मेरा सीधा सादा है
प्रेम से ही बस मेरा नाता है ।
मैं शांति दूत परिंदा हूँ
इसी आस में जिंदा हूँ
रहे सभी अमन चैन से
दिलों में सबके प्यार पले
नफरत से क्या होगा हासिल
सिवाय रक्त की नदी बहे ।
2)पंछी
---------
मैं पंछी हूँ उस डाली का जिसको तुम काट रहे हो
हरी -भरी इस धरती को इमारतों में पाट हो
मैं तो चाहूँ प्यार सभी का इसलिए घर- घर इठलाऊँ
छोटे -छोटे दाने पाकर मैं संतुष्ट हो जाऊँ
इस डाली से उस डाली तक फुदक- फुदक कर इतराऊँ
नन्हे -नन्हे पर है मेरे छोटी सी एक चोंच है
चीं-चीं की आवाज से तुम सब को सुबह जगाऊँ
चाहूँ सब को मित्र बनाना प्रेम से गले लगाना
तुम सब के संग मिलकर जीवन अपना जी जाऊँ
एक निवेदन तुम सबसे है काटो न अब पेड़ों को
रहने दो इस धरा पर हरियाली चहुँओर
ताकि मैं पंछी अपने घोंसले में निश्चिंत होकर रह पाऊँ ।
3)मोर
----------
रंग -बिरंगे पंख मोर के
मन हरते चित्तचोर के
कृष्ण के मुकुट में विराजे
दिखते हैं सुंदर भोर के ।
मोरनी को रिझाने करते नृत्य
बरखा को भाए उनका कृत्य
खूबसूरत उनकी छवि प्यारी लागे
सभी को लुभाता है सुंदर दृश्य ।
राष्ट्रीय पक्षी है मोर हमारा
सुंदर-सुंदर पंखों से लगे प्यारा
वाहन है श्री कार्तिकेय देव का
शान बढ़ाए देश का है दुलारा।
5)कौआ
--------
चंचल, चतुर ,चालाक
कहलाता है कौआ
मन के भावों को वो
बखूबी भाँप जाता है ।
श्राद्ध के दिन चल रहे
कहीं -कहीं नजर आ
जाता है ये कौआ
पर बुलाने से कभी नहीं
आता बल्कि कहीं दूर छुप
जाता और सताता कौआ।
काला तन आवाज कर्कश
बुद्धिमान कहलाता पर ये
काग भुशुंडि की कथा लिख
गए संत तुलसीदास महान
अमर कर दिया कौवे का गुणगान।
कहते हैं अमृत रस चखा था
कौआ ने एक बार कहीं
इसलिए आसानी से मरता
नहीं, वह अकस्मात ही छोड़ता है
शरीर।
आभा दवे
मुंबई