दोहा-सृजन हेतु शब्द*
*प्रत्याशा, प्रत्यूषा, प्रथमेश, प्राकट्य, प्रहर्ष*
*प्रत्याशा* हर राष्ट्र से, हों मानव-हित काम।
हिंसा को त्यागें सभी, बढ़े देश का नाम।।
नव *प्रत्यूषा* की किरण, बिखरी भारत देश।
जागृति का स्वर गूँजता, बदल रहा परिवेश।।
करूँ *प्रथमेश* वंदना,गौरी तनय गणेश।
मंगलमय की कामना, कारज-सिद्धि प्रवेश।।
रामचंद्र *प्राकट्य* हुए, पुण्य धरा साकेत।
रघुवंशी दशरथ-तनय, राम राज्य के हेत।।
विकसित भारत बढ़ रहा, सबका है उत्कर्ष।
दिल आनंदित हो उठा, होता भव्य *प्रहर्ष*।।
मनोजकुमार शुक्ल *मनोज*