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congratulations 👏🎉

piku

*" मैं हैरान हूँ "*
— महादेवी वर्मा,
(इतिहास में छिपाई गई एक कविता)

👉' मैं हैरान हूं यह सोचकर ,
किसी औरत ने क्यों नहीं उठाई उंगली ..??
तुलसी दास पर ,जिसने कहा ,
"ढोल ,गंवार ,शूद्र, पशु, नारी,
ये सब ताड़न के अधिकारी।"

👉मैं हैरान हूं ,
किसी औरत ने
क्यों नहीं जलाई "मनुस्मृति"
जिसने पहनाई उन्हें
गुलामी की बेड़ियां .??

👉मैं हैरान हूं ,
किसी औरत ने क्यों नहीं धिक्कारा ..??
उस "राम" को
जिसने गर्भवती पत्नी सीता को ,
परीक्षा के बाद भी
निकाल दिया घर से बाहर
धक्के मार कर

किसी औरत ने लानत नहीं भेजी
उन सब को, जिन्होंने
" औरत को समझ कर वस्तु"
लगा दिया था दाव पर
होता रहा "नपुंसक" योद्धाओं के बीच
समूची औरत जाति का चीरहरण ..??
महाभारत में ?

👉मै हैरान हूं यह सोचकर ,
किसी औरत ने क्यों नहीं किया ..??
संयोगिता अंबा -अंबालिका के
दिन दहाड़े, अपहरण का विरोध
आज तक !

👉और मैं हैरान हूं ,
इतना कुछ होने के बाद भी
क्यों अपना "श्रद्धेय" मानकर
पूजती हैं मेरी मां - बहने
उन्हें देवता - भगवान मानकर..??

👉मैं हैरान हूं,
उनकी चुप्पी देखकर
इसे उनकी सहनशीलता कहूं या
अंध श्रद्धा , या फिर
मानसिक गुलामी की पराकाष्ठा .??

*महादेवी वर्मा जी की यह कविता, किसी भी पाठ्य पुस्तक में नहीं रखी गई है,क्यों कि यह भारतीय संस्कृति पर गहरी चोट करती है..!*

hemantparmar9337

💔इमरान 💔

imaranagariya1797

पंक्तियाँ जो दिल को छू गयीं

पीठ में बहुत दर्द था
डाॅक्टर ने कहा कि
अब और मत झुकना
अब और अधिक झुकने की
गुंजाईश नहीं रही...

झुकते झुकते
तुम्हारी रीढ़ की हड्डी में
गैप आ गया है...

सुनते ही हँसी और रोना
एक साथ आ गया...

ज़िंदगी में पहली बार
किसी के मुँह से सुन रही थी
ये शब्द ^ मत झुकना...

बचपन से तो
घर के बड़े बूढ़ों
माता पिता
और समाज से
यही सुनती आई हूँ
कि झुकी रहना...

नारी के झुके रहने से ही
बनी रहती है गृहस्थी...

नारी के झुके रहने से ही
बने रहते हैं संबंध...

नारी के झुके रहने से ही
बना रहता है
प्रेम...प्यार...घर...परिवार

झुकती गयी
झुकते रही
झुकी रही,
भूल ही गयी कि
उसकी कहीं कोई
रीढ़ भी है...

और ये आज कोई
कह रहा है कि
झुकना मत...

परेशान सी सोच रही हूँ
कि क्या सच में
लगातार झुकने से
रीढ़ की हड्डी
अपनी जगह से
खिसक जाती है...??

और उनमें कहीं गैप
कोई ख़ालीपन आ जाता है...??

सोच रही हूँ...!!

बचपन से आज तक
क्या क्या खिसक गया
उसके जीवन से
कहाँ कहाँ ख़ालीपन आ गया
उसके अस्तित्व में
कहाँ कहाँ गैप आ गया
उसके अंतर्मन में...

बिना उसके जाने समझे...!!

उसका
अल्हड़पन
उसके सपने
कहाँ खिसक गये...??

उसका मन
उसकी चाहत
कितने ख़ाली हो गये...

उसकी इच्छा अनिच्छा में
कितना गैप आ चुका है...

क्या वास्तव में नारी की
रीढ़ की हड्डी भी
होती है
समझ में नहीं आ रहा...

hemantparmar9337

good night 🌌

mrsfaridadesar

રાધે કૃષ્ણ 🙏🏻

falgunidostgmailcom

Mujhe mohbbat lag gayi
Nazar ki taraah.....

dp000751gmail.com213658

Asul-e ishq me
tum bhee bewafaa ho
wo jab bichdaa to tum mar kyu nahi gaye....?

dp000751gmail.com213658

Zindagi se tang hoon, Ek mashwara chayye
khud khushi karu yaa ishq???

dp000751gmail.com213658

gautam0218

gautam0218

gautam0218

gautam0218

gautam0218

मेरी जिन्दगी

meerasingh3946

:- " વિતેલા વરસના સંભારણાં " - :


ચાલો વાગોળીએ વિતેલા વરસના સંભારણાં;
હસી ખુશી મળી છે જે જણસના સંભારણાં;

ક્યાંક રહ્યાં સચેત તો ક્યાંક લપસાઈ જવાયું,
જીવનરૂપી લીસી ને સપાટ ફરસના સંભારણાં;

ગુજરતા હર વરસે નશો દોસ્તીનો ગહેરો થાય,
નવાં ને જૂનાં મિત્રો નામના ચરસના સંભારણાં;

ચોવીસ ગયું ને ને થયું છે આગમન પચ્ચીસનું,
છતાં રહી ગઈ અઘૂરી એ તરસના સંભારણાં;

હર નિરાશા બાદ મળે છે એક ઉમ્મીદ "વ્યોમ"
નિરસ જિંદગીમાં જાગતાં, રસના સંભારણાં;

✍... વિનોદ. મો. સોલંકી "વ્યોમ"
જેટકો (જીઈબી), મુ. રાપર.

omjay818

"तुमने कैसे मान लिया,रिश्ता टूटने की वजह
मैं थी,कभी टूटे हुए अरमानों से ही पूछते"
_________
"पुरजोर कोशिशें की रिश्तों को संभालने की
आईना भी चीखता रहा कुछ तो बदलेगा "
_________
वजह समझ नहीं आया इतना तो जान गयी
उस वजह की वजह न तुम थे न मैं थी.
---डॉ अनामिका--

rsinha9090gmailcom

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er.hr.731220

मनपसंद शख़्स के साथ समय को पंख लग जाता हैं किसी को भूख नहीं लगती, किसी की आँख लग जाती हैं..!

hemantparmar9337

Suna hai teri ek nazar se mar jaate hai log,
Ek nazar humhko bhee dekh lo
tum bin zindagi acchi nahi lagti......

dp000751gmail.com213658

कभी बन न पाऊं मरहम तेरा
अब कोई ऐसी खता कर जाऊंगी
तुमसे जुदा तो बहुत थी मैं
अब खुद से ही खुद को सजा दे जाऊंगी.....

ना बात मैं तेरी करुंगी और न उन राहों का
जिन राहों पर लिखा था दूर जाना
सांसों का चलना एक दिन थम जायेगा
रह जायेगी बस यही कही यादों का ख़ाक में मिलना....

आंखों की नमी कुछ कहने को बेताब थी
धड़कनें मानो सीने में रूठने को तैयार थी
समझ न पाई मैं रातों में पहर का बदलना
अमावस्या से चांद का चांदनी रातों में जलना.....


_Manshi k

manshik094934

અધૂરી પંક્તિમાં પ્રાણ
પૂર્યાં તેં પ્રાસ થઈને
શબ્દોની કેડીએ સઘળાં
મળ્યાં ધરાર પ્રીત થઈને…
-કામિની

kamini6601