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लेखन क्षेत्र में उत्तर छायावाद काल से चौर्य कला पनपी जो आज भी प्रासंगिक है.
#डॉ_अनामिका #हिंदी_का_विस्तार
#हिंदी_शब्द #गद्य_साहित्य

rsinha9090gmailcom

"आख़िरी बीज"

गाँव के एक बुज़ुर्ग किसान का नाम था हरिलाल।
उसकी उम्र ढल चुकी थी, मगर मेहनत अब भी वैसी ही थी।
एक दिन उसने अपने पोते मोहन से कहा —

> “बेटा, यह मेरे खेत का आख़िरी बीज है। इसे अच्छे से बोना।”



मोहन हँस पड़ा,

> “दादाजी, अब तो ये पुराना बीज है, इससे क्या होगा?
नया लेंगे तो फ़सल बेहतर होगी।”



हरिलाल मुस्कुराया और बोला,

> “बेटा, कभी-कभी जो पुराना लगता है, वही ज़मीन की जड़ तक जानता है।”



मोहन ने फिर भी ध्यान नहीं दिया।
वो बीज को एक कोने में फेंक कर चला गया।

साल बीता —
खेत में कई जगह नई फसलें बोई गईं, पर अजीब बात हुई —
जहाँ-जहाँ नया बीज बोया गया था, वहाँ सूखा पड़ गया।
सिर्फ़ उसी जगह एक छोटा पौधा उग आया था —
जहाँ मोहन ने पुराना बीज फेंका था। 🌱

धीरे-धीरे वही पौधा बड़ा हुआ और पूरे खेत को हरा कर गया।
गाँव वाले चकित थे।
मोहन अब समझ चुका था कि

> “कभी-कभी नया सबक सीखने के लिए पुरानी बातों को याद रखना ज़रूरी होता है।”



उसने अपने दादाजी की कब्र के पास जाकर कहा —

> “दादाजी, आपने जो बीज दिया था, वो सिर्फ़ मिट्टी में नहीं,
मेरे दिल में भी उग गया है।” 🌾




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💭 कहानी का संदेश:

हर इंसान के अंदर एक “आख़िरी बीज” होता है —
एक उम्मीद, एक हिम्मत, या एक सपना।
दुनिया चाहे हज़ार बार कहे कि अब कुछ नहीं हो सकता,
पर अगर वो बीज ज़मीन से नहीं, दिल से बोया जाए,
तो वो ज़रूर उगता है। 🌅


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hansrajsaini783gmail.com942962

Jay Shree Ram 🙏🏻 Jay Hanumanji 🙏🏻

hardikashar6777

🙏🙏सुप्रभात 🙏🙏
‌‌। 🌹आपका दिन मंगलमय हो 🌹

sonishakya18273gmail.com308865

ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं
कविता का शीर्षक है 🌹 रंग बेरंग

mamtatrivedi444291

જરૂર આવજો

bhavnabhatt154654

पर्दा — आनंद की रक्षा का धर्म ✧
✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

स्त्री... अपने भीतर एक स्वाभाविक परदा रखती है।
यह कोई सामाजिक परंपरा नहीं...
यह उसके आनंद, बोध और प्रेम की रक्षा है।

जब उसके भीतर बोध खिलता है,
तो वह बिना किसी शिक्षा के जान लेती है —
कैसे संसार की दृष्टि से अपने उस आनंद को सुरक्षित रखना है।

मैंने गांवों में देखा है...
स्त्रियाँ इतनी सहज, इतनी अनुशासित होती हैं —
मानो उन्हें किसी सैनिक-शाला में साधना मिली हो।
पर यह अनुशासन imposed नहीं — जन्मजात है।
क्योंकि जिसके पास आनंद है... वह रक्षा करना भी जानता है।

आज यह स्वाभाविकता खो गई है।
फैशन और आधुनिकता के नाम पर...
नग्नता को स्वतंत्रता मान लिया गया है।
पर यह फैशन नहीं — यह असंवेदनशीलता है।
यह भीतर की स्त्री-ऊर्जा की हत्या है।

जितनी स्त्री असंवेदनशील होगी...
उतनी ही वह बाहरी रूप से नग्न होगी।
और उसी अनुपात में...
पुरुष भी हिंसक और जड़ बनता जाएगा।

जहाँ दृष्टि असंवेदनशील होती है,
वहाँ प्रेम... मातृत्व... और धर्म — तीनों सूख जाते हैं।

जो कहते हैं कि स्त्री को पर्दे में रखा गया —
वे नहीं जानते कि वह पर्दा बंधन नहीं, बुद्धि है।
वह आत्म-संरक्षण है...
वह चेतना का आवरण है, जो उसे गंध से, दृष्टि से, अपमान से बचाता है।

और जो लोग इस रहस्य को नहीं समझते —
वे गीता, वेद, उपनिषद्... कुछ नहीं समझ सकते।
क्योंकि उनके लिए चेतना अब कोई जीवित अनुभव नहीं,
बस एक विचार... एक वस्तु बन चुकी है।

आज का पढ़ा-लिखा इंसान,
ज्ञान के अहंकार में इतना अंधा है...
कि उसे अब ईश्वर नहीं दिखता।
उसकी आँखें बंद हैं — किताबों में।

जब संवेदना मरती है,
तो लाउडस्पीकर जन्म लेते हैं।
जब मौन खोता है,
तो गुरु-मंच बनते हैं।
क्योंकि सत्य की सीधी समझ...
मर चुकी होती है।

जितनी शिक्षा बढ़ी... उतना धर्म धंधा बना।
जितना ज्ञान बढ़ा... उतना मनुष्य पत्थर हुआ।
और यही पत्थरत्व —
आधुनिक शिक्षा का सबसे बड़ा परिणाम है।

पर्दा — आनंद की रक्षा का धर्म ✧

✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

सूत्र १ — पर्दा भय नहीं, आनंद की ढाल है।
जिसके भीतर बोध का दीप जलता है,
वह अपने ही प्रकाश से बचने के लिए छाया ओढ़ लेता है।
यही छाया उसका धर्म है।

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सूत्र २ — स्त्री छिपाती नहीं, संभालती है।
वह हर सुख को तप में बदलती है,
हर स्पर्श को मौन में।
उसकी रक्षा ही उसका समर्पण है।

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सूत्र ३ — लाज कोई सामाजिक अनुशासन नहीं,
यह चेतना की नमी है।
जो जितनी भीतर से जीवित है,
वह उतनी ही लाज से नम होती है।

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सूत्र ४ — जहाँ आनंद है, वहाँ पर्दा है।
जहाँ अभाव है, वहाँ प्रदर्शन है।
जो भीतर से भरा है, वह मौन रहता है।
जो खाली है, वही चिल्लाता है “मैं हूँ।”

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सूत्र ५ — स्त्री का पर्दा धर्म है, पुरुष की दृष्टि परीक्षा है।
पर्दा तभी तक आवश्यक है जब तक दृष्टि अशुद्ध है।
दृष्टि पवित्र हो जाए, तो संसार भी वस्त्र बन जाता है।

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सूत्र ६ — आधुनिक खुलापन, आत्मा की मृत्यु का उत्सव है।
जिसने भीतर के मौन को खो दिया,
वह शरीर की सजावट में लिपट गया।
यह सौंदर्य नहीं, विरक्ति की नकल है।

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सूत्र ७ — पुरुष का पत्थर बनना, स्त्री की नग्नता का कारण है।
जब प्रेम ठंडा पड़ता है, तो देह गर्म करनी पड़ती है।
जो भीतर से नहीं जलता, वह बाहर से जलाता है।

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सूत्र ८ — शिक्षा ने ज्ञान दिया, पर आँखें छीन लीं।
जो अंधा नहीं था, उसे पढ़ाकर अंधा कर दिया।
अब शब्द हैं, अर्थ नहीं।
पुस्तक है, अनुभव नहीं।

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सूत्र ९ — लाउडस्पीकर और मंच वहाँ बने जहाँ मौन खो गया।
जहाँ आत्मा सुनना बंद करे,
वहाँ धर्म बोलने लगता है।
और जो बोलता है, वह अक्सर सत्य नहीं होता।

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सूत्र १० — पर्दा उतारने से नहीं, समझने से हटता है।
जिस दिन पुरुष स्त्री को शरीर नहीं,
ऊर्जा के रूप में देखना सीखेगा —
उस दिन दोनों निर्वस्त्र होंगे, पर कोई नग्न नहीं रहेगा।

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सूत्र ११ — पर्दा जब भीतर से उतरता है, तभी मिलन घटता है।
वह मिलन देखने का नहीं, विलीन होने का है।
जहाँ दो नहीं बचते, वहीं धर्म जन्म लेता है।
वहाँ स्त्री नहीं रहती, पुरुष नहीं रहता — केवल मौन रहता है।

bhutaji

“❤️ सच्चा प्यार वही है जो दूरी में भी करीब महसूस हो। तुम्हारी story क्या है? Comment में बताओ 💬”

rajukumarchaudhary502010

Goodnight friends sweet dreams

kattupayas.101947

“वेदांत.2.0 — स्त्री अध्याय”

हार का धर्म — जब पुरुष ने स्त्री से डरकर ईश्वर गढ़ा ✧

धर्म की गहराई में एक पुरुष की हार दबाई गई है —
स्त्री से हारा हुआ पुरुष ही धर्म बनाता है।
क्योंकि उसे जीवन को नियम में बाँधना पड़ता है,
कहीं वह उस सहज लय से फिर न हार जाए जो स्त्री में सहज है।

स्त्री को समझना कठिन नहीं है,
पर उसे स्वीकार करना असंभव लगता है —
क्योंकि स्त्री को स्वीकार करना मतलब
नियंत्रण छोड़ देना, तर्क छोड़ देना, जीत छोड़ देना।
और पुरुष ने सदा अपनी पहचान किसी न किसी जीत से बनाई है।

इसलिए धर्म उसके लिए सुरक्षा है,
जहाँ वह अपने भय को पवित्र नाम दे सके।
वह लय, जो स्त्री के भीतर स्वाभाविक है —
ममता, मौन, समर्पण, और सहजता —
उसे पुरुष ‘शक्ति’ कह कर पूजा में रख देता है,
पर कभी उसमें उतरने की हिम्मत नहीं करता।

स्त्री की यह स्वाभाविकता ही उसका धर्म है —
उसे किसी मंत्र, किसी विधि, किसी तप की ज़रूरत नहीं।
वह जीवित धर्म है —
जिसमें सृष्टि बिना आदेश, बिना प्रयोजन,
बस बहती है, खिलती है, मिटती है।

और पुरुष —
जो इस लय को नहीं समझ पाता —
वह व्यवस्था बनाता है,
राज्य बनाता है,
विज्ञान बनाता है,
और फिर उसमें उस लय का कृत्रिम संस्करण खोजता है।

जब स्त्री पुरुष जैसी हो जाती है —
तेज़, लक्ष्यवान, प्रतियोगी —
तब आकर्षण मिट जाता है।
क्योंकि आकर्षण दो विरोधों के बीच की विद्युत् है —
मौन और वाणी की, स्थिरता और गति की।
जब दोनों एक जैसे हो जाते हैं,
तो संगीत रुक जाता है।

स्त्री की शक्ति उसकी करुणा है,
पुरुष की सीमा उसका अहंकार।
शिव और कृष्ण इसलिए पूर्ण हैं —
क्योंकि वे हारने को तैयार थे।
एक ने नृत्य किया,
दूसरे ने रास।
दोनों ने अपने भीतर की स्त्री को स्वीकार किया —
तभी वे ईश्वर बने।

आज का पुरुष फिर वही भूल दोहरा रहा है —
वह स्त्री के संग खड़ा है,
पर अपने भीतर स्त्रीत्व खो चुका है।
वह संग नहीं, सत्ता में खड़ा है।
वह संवाद नहीं, निर्देशन कर रहा है।

जब वह फिर से श्री के संग मौन में खड़ा होगा —
जब वह जीतने के बजाय सुनने लगेगा —
जब वह वाणी नहीं, लय खोजेगा —
तब वह पुनः हारेगा।
और यही हार — सच्चा धर्म है।
क्योंकि धर्म जीतने का नहीं, पिघलने का नाम है।

Vedānta 2.0 © 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲 —

bhutaji

🌸 Niyati: The Girl Who Waited – Part 16 is out now! 💫

Every chapter brings her closer to destiny…
Some truths heal, some break — but Niyati still waits,
with hope in her heart and fire in her soul. ❤️‍🔥

📖 Read now on Matrubharti:
👉 https://www.matrubharti.com/book/19983377/niyati-the-girl-who-waited-16-by-nensi-vithalani

✨ Written by Nensi Vithalani
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nensivithalani.210365

🧑‍🍼राज कुमार🧑‍🍼

ओ मेरे राज कुमार
तेरे बिन अब रहा न जाए।
याद तेरी पल पल तड़पाए,
दिल में मेरे जख्म कर जाए
रहा न जाए ,अब रहा न जाए
ओ मेरे......
हर पल याद तुझे मैं करूं,
सांसों में मेरे तुझे मैं भरूं ,
भुलू कैसे जरा तू बताएं ,
ओ मेरे......
देकर पल भर की खुशियां ,
उम्र भर का गम दे गया,
उम्र भर की खुशियां तु संग ले गया,
क्या कहें ,अब रहा न जाए,
ओ मेरे .....
मां तेरी तुझको हर रोज पुकारे,
रो-रो पगली तेरे कपड़े निहारे,
बाप तेरा बड़ा समझें ,
कुछ भी अब समझ ना आए,
ओ मेरे.....
हमें जरा सी नींद क्या आई ,
तूमने तो मोड़ लिए हमसे अपनी परछाई,
रूह तेरी हमसे कर गयी जुदाई,
अब तुझको हम कही देख ना पाए , ओ मेरे.....
जाना ही था तो तू क्यों था आया, अपना हमें फिर क्यों बनाया,
अब हम किसी को अपना ना बनाए,
ओ मेरे राज कुमार,
तेरे बिन अब रहा न जाए.....

knrooh

ദൂരം

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બાળપણની યાદો આજ
ભેગી મળી છે
સ્મૃતિઓનાં ખજાનામાંથી
વેગળી પડી છે…
-કામિની

kamini6601

वो मैदान जंग था, और तुम थी महारानी,
हर गेंद पर लिखी, जीत की एक कहानी।
दो नवंबर, पच्चीस का, वो दिन अमर हुआ,
पहला विश्व कप लाकर, हर सपना सच हुआ।
चुनौतियों को चीरा, इरादों को साधा,
हर हार को भुलाकर, खुद को ही वादा।
नज़रें थीं ट्रॉफी पर, दिल में थी आग,
तिरंगे की शान में, तुम खेलीं बेदाग।
शेफाली की धमक, दीप्ति का कमाल,
हरमनप्रीत की कप्तानी, हर चाल बेमिसाल।
ये सिर्फ खेल नहीं, ये है हिम्मत का नाम,
दुनिया ने देखा है, भारत का मुकाम।
तुम शक्ति हो, तुम साहस, तुम हो विश्वास,
हर बेटी के लिए, अब नया आकाश।
ये जीत गूँजेगी, हर कोने हर द्वार,
नारी शक्ति को हमारा, शत-शत नमस्कार!
जय हिन्द! 🇮🇳

nidhimishra705356

🩸नाचणी पुडींग

🩸एक वाटी नाचणी पीठ
एक वाटी साईसकट दुध
एक वाटी मिल्क पावडर
वेलदोडे पूड
एक वाटी गुळ

🩸प्रथम एक वाटी दुध पावडर एक वाटी पाण्यात चांगली मिसळून घ्यावी
गाठी असतील तर फोडून घ्याव्यान नाचणी पीठ, ,दुध, मिल्क पावडर चे मिश्रण आणि गुळ सर्व एकत्र करून
(साखर आवडत असेल तर साखर घ्यावी)
चांगले मिसळून घ्यावे
वेलदोडे पावडर काजु काप घालावे

🩸एका पॅन मध्ये शिजत ठेवावे
पळीने सतत घोटत रहावे
गुठळी होउ देऊ नये
हळूहळू मिश्रण घट्ट होत पॅन पासुन अलग होऊ लागते व रंग बदलू लागते

🩸गोळा तयार झाला की
एका थाळीला तूप लावून
हे मिश्रण त्यात ओतावे
थाळी चारी बाजूने हलवुन ठोकून मिश्रण एकसारखे पसरेल असे बघावे
थोडे गार झाले की
फ्रिज ला सेट करावे
तासाभराने बाहेर काढून वड्या कापाव्या

🩸सजावट अख्खे बदाम ..

🩸हे पुडिंग थंडगार छान लागते

jayvrishaligmailcom