ताज बेगम मुग़ल औरंगज़ेब की भतीजी थी। औरंगज़ेब की पुत्री जैबुन्निसा बेगम और ताज बेगम ने 'कृष्ण-भक्ति' की दीक्षा ले ली थी।
ताज़ बेगम के कृष्ण की भक्ति के पदों ने तो मुस्लिम समाज को सोचने पर विवश कर दिया था, जिसके कारण मुग़लिया सल्तनत में हलचल मच गई। ताज़ बेगम जिस तरह से कृष्ण-भक्ति के पद गाती थीं, उससे कट्टर मुस्लिमों को बहुत कष्ट होता था।
औरंगज़ेब की भतीजी ताज बेगम का एक प्रसिद्ध पद निम्नलिखित है-
छैल जो छबीला, सब रंग में रंगीला
बड़ा चित्त का अड़ीला, कहूँ देवतों से
न्यारा है।
माल गले सोहै, नाक-मोती सेत जो है
कान,
कुण्डल मन मोहै, लाल मुकुट सिर
धारा है।
दुष्टजन मारे, सब संत जो उबारे ताज,
चित्त में निहारे प्रन, प्रीति करन
वारा है।
नन्दजू का प्यारा, जिन कंस
को पछारा,
वह वृन्दावन वारा, कृष्ण साहेब
हमारा है।।
सुनो दिल जानी, मेरे दिल
की कहानी तुम,
दस्त ही बिकानी,
बदनामी भी सहूंगी मैं।
देवपूजा ठानी मैं, नमाज हूँ भुलानी,
तजे कलमा-कुरान साड़े
गुननि गहूंगी मैं।।
नन्द के कुमार, कुरबान तेरी सुरत पै,
हूँ तो मुगलानी, हिंदुआनी बन
रहूंगी मैं।।