नयन हँसे तो जग हँसे.........
नयन हंँसें तो जग हँसे, हँसे चाँदनी - धूप।
नयन चलें तो नेह की, डोरी बँधे अनूप।।
नयन विनोदी जब रहें, करें हास परिहास।
व्यंग्य धार की मार से, कब दे दें वनवास।।
नयन जलें क्रोधाग्नि से, डरें देख कर रूप।
राजा हो या रंक हो, लगती सबको धूप।।
नयन रो पड़ें जब कभी, मिट जाता अभिमान।।
पत्थर दिल रोते दिखें, आँसू हैं वरदान।।
नयनों की अठखेलियाँ, जब-जब होतीं तेज।
नेह प्रीत के सुमन से, सजती तब-तब सेज।।
जो नयनों को भा गया, खुलें दिलों के द्वार।
नैनों की मत पूछिये, दिल के पहरेदार ।।
नयनों की भाषा अजब, इसके अद्भुत ग्रंथ।
बिन बोले जब बोलते, अलग धर्म हैं पंथ।।
बंकिम नैना हो गये, बरछी और कटार।
पागल दिल है चाहता, नयन करें नित वार।।
प्रकृति छटा को देखकर, नैना हुए निहाल।
सुंदरता के दृश्य को, मन में रखे सँभाल।।
नैंना चुगली भी करें, नैना करें बचाव।
नैना से नैना लड़ें, नैंना करें चुनाव।।
नैना बिन जग सून है, अँधियारा संसार।
जग सुंदरता व्यर्थ है, जीवन लगता भार।।
सम्मोहित नैना करें, चहरों की है जान ।
मुखड़े में जब दमकतीं, बढ़ जाती है शान।।
प्रभु की यह कारीगिरी, नयन दिए वरदान।
साहित्य बने लालित्य, उपमाओं की खान।।
मनोज कुमार शुक्ल 'मनोज'
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