चाहती हूँ ...................
मरना नहीं जीना चाहती हूँ,
दौड़ना नहीं उड़ना चाहती हूँ,
समझना चाहती हूँ अपनी हदों को मैं,
मैं खुद को तुमसे आज़ाद करना चाहती हूँ ........................
दुनिया का नहीं खुद का साथ चाहती हूँ,
सुंदर नज़ारों को मेहसूस कहना चाहती हूँ,
रहना चाहती हूँ दूर मैं इस दुनियादारी से,
मैं तो केवल अपनी सोच में गुम जाना चाहती हूँ ................................
देखना चाहती हूँ मेरे सपने कहां ले आएं है मुझे,
कितने हुए पूरे और कितनों ने अधूरा किया है मुझे,
सालों - साल की जद्दोजहद ने थकावट का लिबास दिया है मुझे,
दी होंगी उसने औरों को शाबाशी मुझे तो कोशिशों का पन्रा थमाया है उसने ..........................
स्वरचित
राशी शर्मा