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Jitendra Suryavanshi

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Hindi News › Kavya › Mere Alfaz › Khamosh Kamra Kuch Kitabein
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ख़ामोश कमरा कुछ किताबें
Jitendra Suryavanshi Jitendra Suryavanshi
Mere Alfaz
ख़ामोश कमरा, कुछ किताबें,
कुछ अधूरी बात है।
कुछ बिखरे से पन्ने बगल में,
कुछ पन्ने मेरे हाथ में।

मेरे लफ़्ज़ चुप अब हर जगह,
ख़ामोशी में एक दास्ताँ।
हर पन्ना उस किताब का,
हर हर्फ़ — अधूरा इम्तिहान।

अल्फ़ाज़ों में सुकून-सा,
एक बेचैनी सी है सब जगह।
जैसे किसी ने कुछ कहा,
ना मैंने सुना, ना उसने सुना।

दीवारें भी टकरा रही हैं,
ख़्याल कुछ काग़ज़ पर है।
कलम भी गई है थक अभी,
ये कमरा अब साज़िश पर है।

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आराम है कुछ काम है,
कुछ ये करूं कुछ वो करूं।

कुछ भागता कुछ ठहरता,
फिर उड़ पड़ूं या गिर पड़ूं।

है वही विथामान जिसको,
ढूंढता मैं फिर रहा।

इसे पास लूं थोड़ा सांस लूं,
ये भी करूं वो भी करूं।
- Jitendra Suryavanshi

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आराम है कुछ काम है,
कुछ ये करूं कुछ वो करूं।

कुछ भागता कुछ ठहरता,
फिर उड़ पड़ूं या गिर पड़ूं।

है वही विथामान जिसको,
ढूंढता मैं फिर रहा।

इसे पास लूं थोड़ा सांस लूं,
ये भी करूं वो भी करूं।

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