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New bites

I really don't know how to spend time without you. I need you. I always wait for you.

kattupayas.101947

Birds Building a Nest



"A bird doesn't build its nest in one go.

It collects one straw, then another, and another.

With time, effort, and focus—it creates a safe home in the sky.

That’s what consistency looks like—small steps, big results. 🐦✨"



"Consistency is the silent builder of greatness — one small effort at a time. 🌿✨"

nensivithalani.210365

It's a short period, but you know me much better.

kattupayas.101947

🕉 नम: शिवाय
🙏🏻💐🙏🏻💐🙏🏻

shaileshjoshi0106gma

नेक्स्ट पार्ट ऑफ कभी यादो मे आओ कल आएगा । ये अगले भाग की एक झलक । कहानी पर कमेंट और रेटिंग दे। इस से स्टोरी की रीच बडेगी। कहानी कैसी लग रही है वो कमेंट सेक्सन मे बताए। समीक्षाएं दे!

gautamreena712gmail.com185620

"मेरा नाम सुशीला है।


मुझे पापा-मम्मी की यादें अब धुंधली सी लगती हैं।
पर एक चीज़ जो कभी धुंधली नहीं हुई, वो है मेरा सवाल —
क्या मैं इस घर की हूं?"

"जब पहली बार मानवी दीदी को राखी बांधते देखा, और सब उनके लिए गिफ्ट ले कर आए…
तो मैं कोने में बैठ कर सोचती रही –
मेरे लिए कोई क्यों नहीं लाया?"

"पर मैं ये कभी नहीं जानती थी कि बड़े पापा ने मेरे लिए वह गुलाबी कुर्ता खुद से सिलवाया था।
बड़ी मम्मी ने जो खीर बनाई थी, उसमें सबसे ज़्यादा ड्रायफ्रूट मेरे कटोरे में थे।
पर मैंने वो सब नहीं देखा... मैंने सिर्फ दीदी की चूड़ियों की खनक सुनी।
क्योंकि तब मुझे लगता था, दीदी सबकी प्यारी हैं।
और मैं... बस रह गई हूं।"

मेरी जुबानी मेरी कहानी रक्षाबंधन

मुझे नहीं पता कि जब लोग कहते हैं "घर", तो वो क्या सोचते हैं। पर मेरे लिए "घर" कभी एक छत नहीं रहा... एक एहसास रहा है। कभी ममता की गोद, कभी भाई की उंगली, कभी दादी की लोरी... और कभी कभी... मानवी दीदी की वो चुप मुस्कान, जो मुझे अब जाकर समझ आती है।

मेरा नाम सुशीला है। हाँ, वही सुशीला, जो सबके लिए शायद थोड़ी जिद्दी थी, कभी समझ ना आने वाली... और अक्सर गलतफहमियों की गिरफ्त में रहने वाली। लेकिन क्या आप जानना चाहेंगे कि मेरी गलतफहमियाँ क्या थीं?

मैं पाँच साल की थी जब माँ-पापा एक एक्सीडेंट में हमें छोड़कर चले गए। उस दिन मुझे कुछ ठीक-ठीक याद नहीं, बस इतना कि कोई सफेद चादर में लिपटी दो देहें थीं... और मैं चीख रही थी। कुछ दिनों तक सब धुंधला था। मैं बात नहीं करती थी। बस दीवार की ओर देखती रहती।

फिर एक दिन, मैं किसी और घर में थी। वहाँ एक औरत ने मुझे गोद में लिया। उसका आँचल बहुत गरम था। और उस दिन पहली बार किसी ने मेरे बालों में हाथ फेरकर कहा, "अब से तू हमारी बिटिया है।"

वो मेरी बड़ी मम्मी थीं — सरला मम्मी। और उनके साथ मेरे बड़े पापा थे — दिनेश चाचा, जो अब मेरे पापा बन गए थे।

वहाँ पहले से तीन बच्चे थे — दो बेटे: विनीत भैया और आरव, और एक बेटी: मानवी।

और यही से शुरू होती है मेरी कहानी...


---

"जलन" की शुरुआत:

शुरू में सब अच्छा था। मम्मी हर सुबह मेरे बाल बनातीं, टिफिन में वो चीज़ें रखतीं जो मुझे पसंद थीं। पर जैसे-जैसे मैं बड़ी हुई, मुझे लगने लगा कि... मानवी दीदी को ज़्यादा तवज्जो मिलती है।

उनके लिए नए कपड़े आते थे, उनके रिज़ल्ट्स पर सब ताली बजाते थे, और हर बार जब वो रक्षाबंधन पर भाइयों को राखी बांधतीं, तो सब कहते — "देखो, कितनी समझदार हो गई है हमारी मानवी!"

और मुझे लगता... क्या मैं नहीं हूँ? क्या मैं कुछ भी नहीं?

लेकिन शायद मैं जानबूझ कर देखती ही नहीं थी कि दीदी मेरे लिए अपनी चीज़ें छोड़ देती थीं। मेरी पसंद की किताबें पहले वो खुद पढ़कर मुझे देतीं। जब मैं बीमार होती, तो रात भर पास बैठतीं।

पर मैं क्या करती?

मैं तो सिर्फ वही देखती जो मेरे अंदर की कमी ने मुझे दिखाया।


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दादी और मेरी दुनिया:

मेरे लिए सबसे बड़ा सहारा थीं — मेरी दादी। वो मेरी माँ के ससुराल आई थीं, लेकिन मुझे लगता था जैसे वो मेरी माँ की आत्मा ही थीं। जब सब सो जाते, वो मुझे अपने पास बुला लेतीं, और कहानियाँ सुनातीं — माँ की, पापा की, मेरी बचपन की।

लेकिन फिर भी... कभी-कभी मैं दादी से भी रूठ जाती। जब वो मानवी दीदी की तारीफ़ करतीं, तो मुझे लगता, "सबको वही पसंद है।"

पर सच तो ये था कि... दादी सबसे ज़्यादा अगर किसी से जुड़ी थीं, तो वो मैं थी।


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रक्षाबंधन की एक सुबह:

आज जब मैं ये लिख रही हूँ, रक्षाबंधन की सुबह है। मैं अब 20 साल की हूँ। और आज पहली बार... मैंने मानवी दीदी को राखी बाँधी है। नहीं, भाइयों को नहीं... दीदी को।

क्योंकि आज मैं समझ पाई हूँ कि माँ-पापा के जाने के बाद, जो मुझे सबसे ज़्यादा बाँधकर रखे रही, वो कोई डोर नहीं... वही थीं।

आज दादी ने कहा, "सुशीला, तू बड़ी हो गई है।" और मेरी आँखों में आँसू थे।


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मैंने जो नहीं देखा था...

मुझे लगता था, मैं अकेली हूँ।

पर सच तो ये था कि मम्मी-पापा के जाने के बाद, एक और लड़की थी, जो रोज़ रात को रोती थी — मानवी दीदी।

एक और औरत थी, जो मुझे माँ बनकर चाहती थी, लेकिन हर बार डरती थी कि मैं उसे असली माँ न मान लूँ — मेरी बड़ी मम्मी।

एक पिता था, जो मेरी हर स्कूल फीस भरते समय छुपकर आँसू पोंछता था — मेरे बड़े पापा।

और दादी... जो खुद के पोते-पोतियों में मुझमें मेरी माँ का चेहरा देखती थीं।


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अब मैं क्या चाहती हूँ?

अब मैं हर रक्षाबंधन पर सबको बाँधूंगी — प्यार की डोर से। अब मैं जलन नहीं, अपनापन देखूंगी। अब मैं छोटी बहन नहीं, बड़ी सोच की बहन बनूंगी।

और यही है मेरी कहानी।

मैं सुशीला हूँ। और ये मेरी ज़ुबानी है।

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद जो भी मेरी कहानी पड़ रहा है यह रियल स्टोरी है मेरी दोस्त सुशीला की वैसे रक्षाबंधन और यह रक्षाबंधन की कहानी आपके लिए आप सभी को रक्षाबंधन की ढेर सारी शुभकामनाएं अगर आप ऐसे ही रियल स्टोरी और जानना चाहते हो तो मैं फॉलो जरूर करें हम ऐसे ही रियल स्टोरी डालते रहेंगे अगर आपको स्टोरी अच्छी लगी हो तो हमें कमेंट में जरूर बताएं

manishpatel818537

Good evening friends

kattupayas.101947

imperfect..

krupalipatel.810943

#....!

gautamsuthar129584

Right...👍

gautamsuthar129584

time for 😴

kattupayas.101947

it's lunch time enjoy yourself

kattupayas.101947

good morning

kajaljethava017830

પ્રેરણાદાયક સુવિચાર

kajaljethava017830

👁️ धीरे-धीरे दिखना कम हो रहा है? हो सकता है काला मोतिया!
क्या आपको ऐसा लगता है कि आपकी आँखों से किनारे का दृश्य धुंधला हो गया है या जैसे एक टनल से देख रहे हों? यह काला मोतिया (Glaucoma) हो सकता है — एक गंभीर आँखों की बीमारी जो बिना किसी लक्षण के धीरे-धीरे आपकी दृष्टि को समाप्त कर सकती है।

⚠️ काला मोतिया क्या है?
काला मोतिया आंखों के अंदर बढ़ते प्रेशर की वजह से ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचाता है, जिससे व्यक्ति की दृष्टि धीरे-धीरे कम होती जाती है। अगर समय पर इलाज न हो, तो यह स्थायी अंधत्व का कारण बन सकता है।

🔍 लक्षण:
धीरे-धीरे साइड विजन का कम होना

आँखों में हल्का दर्द या दबाव

रात में देखने में परेशानी

अचानक धुंधलापन (कभी-कभी)

🏥 समाधान:
जल्दी जाँच और सही इलाज से काला मोतिया को रोका जा सकता है। Netram Eye Foundation में हम आधुनिक तकनीक और विशेषज्ञ डॉक्टरों के साथ आपकी दृष्टि की रक्षा के लिए तैयार हैं।

📍 पता: E-98, GK-2, New Delhi - 48
📞 संपर्क करें: 011-41046655, 9319909455

netrameyecentre

school Time में एक rough copy रखते थे
सभी किताबों का काम उसमें करते थे,
game खेलना, cartoon बनाने
होते तो उसी को आगे रखते थे।
भर जाती थी जब रद्दी में फेंक दिया करते थे।

same ऐसी ही life नारी की हैं ,
जो सारे घर की जिम्मेदारी उठाती हैं।
हंसी मज़ाक ताने tount सब बर्दाश्त करती है,
बच्चों को , घर को संभालते संभालते
खुद रद्दी जैसी बन जाती हैं।।

bita

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और जो मन से नहीं हारता, उसे ज़िंदगी भी हराने से डरती है…”

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My life book is already torn..

kattupayas.101947