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लोगों की फितरत पर भरोसा मत करो, क्योंकि अक्सर मीठा बोलकर खरीदने वाले लोग अमरूदों को नमक लगाकर खाते हैं। - Gaurav Pathak
मैं लेखक हूं ,अपनी किस्मत खुद लिखता हूं, लिखता हूं हकीकत, लिखता हूं दिल के उदगारों को, लिखता हूं दिलो के बाजारों को, लिखता हूं समाज, लिखता हूं परिवारों को, मैं लिखता हूं खुद को, लिखता हूं हजारों को।
किसने कहा कि हम तवाह नहीं है हमारे दर्द का कोई गवाह नहीं है लोगे ने देखा है हँसते हुये हमें सच तो ये है कि रोने के लिए जगाह नही है।
लिखना तो चाहता हूँ तेरे लिए बहुत कुछ, पर तेरे लिए कुछ लिखा नहीं जा सकता, तेरे बारे में कुछ शब्दों में कहा नहीं जा सकता। तेरी हँसी की मिठास, तेरी आँखों की रोशनी, ये सब तो बस एहसास हैं — जिन्हें अल्फ़ाज़ से परे ही समझा जा सकता है। अगर मैं धूप हूँ, तो तू छाँव सही, अगर मैं समंदर हूँ, तो तू नाव सही। अगर मैं बात हूँ, तो तू जज़्बात सही, अगर मैं हाल हूँ, तो तू हालत सही। अगर मैं काशी हूँ, तो तू मेरा घाट सही, मैं हूँ एक दरिया, तू है पार करने का ज़रिया। मैं चमचमाती धूप हूँ, तू चाँदनी रात सही, तू वो समंदर है, जिसमें समाती सारी नदियाँ। मैं हूँ एक राही, तू मेरी मंज़िल, मैं हूँ शरीर, तू धड़कता दिल। मैं शायर की शायरी, तू सजी हुई महफ़िल। और क्या लिखूँ तेरे लिए, सच तो ये है कि तुझे बयां करने के लिए, मेरे पास अल्फ़ाज़ कम पड़ जाते हैं। मगर फिर भी कलम थाम लेता हूँ हर बार, क्योंकि तेरा ज़िक्र ही मेरी रूह की सबसे प्यारी पुकार। तू ही वजह है मेरी हर कहानी की, तू ही है मेरी दास्ताँ और मेरी ज़ुबानी की।
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