Most popular trending quotes in Hindi, Gujarati , English

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New bites

क्या कहते हो जनाब?
मेरे साथ मिलता हैं आपको आराम।
तो मैं भी आपके गले लगते ही
भूल जाती हुं सारे ग़म जान।

bita

✤┈SuNo ┤_★_🦋
न कोई ग़म है अब, न  कोई
       शिकवा ज़माने से,

बस एक आस  बंधी है, तेरे
         आशियाने से,

तू  दिखा  चाहे ज़ितने भी
     नख़रे, मैं उठा लूँगा,

हर  मुश्किल  तेरी  राहों की
       खुद में समा लूँगा,

ये  क़दम  न रुकेंगे कभी, ये
        हौसला न टूटेगा,

हर  इम्तिहां  तेरी  ख़ातिर मैं
    हंसकर पार कर लूँगा,

जलते अंगारे हों, या तूफानों
       का शोर भी आए,

तेरी मंज़िल तक पहुँचने को
     हर क़तरा बहा दूँगा,

ये दिल है तेरा, धड़कनें तेरी,
       और रूह भी तेरी,

तेरी  रज़ा  ही  होगी,  जो तू
     चाहेगा, वो कर दूँगा,

न  कोई  अफ़सोस  होगा न
     कोई आह निकलेगी,

तेरी  खुशी  की  ख़ातिर,  मैं
      खुद को मिटा लूँगा,

ये दुनिया लाख समझाए, मैं
       न समझ पाऊँगा,

मेरा इश्क़ है ऐसा कि मैं बस
        तुझे ही चाहूँगा,

गर  मौत  भी  आ जाए तेरी
     चौखट पर 'ऐ हमदम'

लगा  कर  गले  मैं  उसे  भी
  इस्तक़बाल कर लूँगा..❤️
╭─❀🥺⊰╯ 
✤┈┈┈┈★┈┈┈┈━❥
♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦
#LoVeAaShiQ_SinGh 😊°
✤┈┈┈┈┈★┈┈┈━❥

loveguruaashiq.661810

ભૂમિતિનો પાયો એ,
ક્ષેત્રફળ અધૂરા જેનાં વિના!
વિસ્તરે એ અનંત સુધી,
કિંમત એની 22/7.
લખવી જો હોય કિંમત દશાંશમાં,
થાકી જાય લખનાર!
3.141592653589.....
કેટલા આંકડા લખું હું,
નથી સમજ એટલી મને!
આથી જ લેવી પડે છે કિંમત એની
3.14 અથવા 22/7
નથી શોધી શક્યું કોઈ કિંમત
πની ચોક્ક્સ હજુ!
એટલે જ તો ઉજવવો પડે છે,
22 જુલાઈએ
'પાઈ અંદાજિત દિવસ'

s13jyahoo.co.uk3258

rgposhiya2919

https://www.matrubharti.com/book/19977720/megharaja-festival



ભરૂચ અને એની આસપાસ વસતાં તમામને આ ઉત્સવ વિશે માહિતિ હશે જ!

s13jyahoo.co.uk3258

Likes were imaginary and It's neither reflect the true face of the person. I do like likes.

kattupayas.101947

तुम समझोगे क्या…????
जब अपने ही सवाल बन जाएँ,
और जवाब देने वाला कोई न हो।
जब दिल बोले बहुत कुछ,
पर होंठ बस ख़ामोश रह जाएँ.....

तुम समझोगे क्या…
वो अकेलापन, जो शोर के बीच भी
चुपचाप मेरे साथ रहता है,
जिसे कोई देख नहीं सकता,
पर वो हर वक़्त सीने पर पत्थर-सा बैठा रहता है.....

तुम समझोगे क्या…
जब किसी को सबकुछ दे दिया हो,
और फिर भी वो कह दे"तुमने किया ही क्या है?"
जब हर ख़ुशी उसके नाम कर दी हो,
और बदले में बस एक "अजनबी" शब्द मिल जाए...

तुम समझोगे क्या…
कभी-कभी सिसकियाँ भी बोलती हैं,
पर तुम तो आदत में हो,
सिर्फ़ आवाज़ें सुनने को बेचैन रहती हूं...

तुम समझोगे क्या…
मेरी हर एक परेशानी को जो
तुमसे दूरियां बढ़ने का एहसास करवाता है...
हम क्यों मुस्कुराते हैं दूसरों के सामने?
क्योंकि हमारे आँसू अब लोगों को बोझ लगता है.....

तुम समझोगे क्या...??
उस वक्त जब मैं खुद को खत्म करने की बात करती हूं
सिर्फ सोचती नहीं हूं एक दिन कर जाऊंगी
क्योंकि मेरा जीना बेमतलब लगता है..…...

_Manshi K

manshik094934

It is very difficult to adjust myself according to the audience's wishes or wherever your honesty is tested, then I will quit writing.

kattupayas.101947

स्त्रियां खुद को वृद्धा तभी मानती हैं

lotus 🪷

जब ब्यूटी पार्लर वाली भी जवाब दे दे

ऐ चाची अब ना होई हो

rohittalukdar7180

Stories are my world. In this world I am the king. I can create and destroy whatever I love in this world.

kattupayas.101947

​Thinking about new ideas . oh, god please shine with me

kattupayas.101947

This evening, everything is shining. Have a wonderful evening.

kattupayas.101947

read beautiful short story and give me your amazing comments 💖

dhrutirajput123

"फ़रिश्ते की तरह…"
सफ़ेद कोट में छुपा एक फरिश्ता होता है,
हर दर्द को अपनी मुस्कान से हरता होता है।
धड़कनों की जुबां वो बिन कहे समझ जाता है,
ज़ख्म क्या है, ये तो बस छूकर जान जाता है।

ना थके हैं कभी, ना रुकने की बात की,
हर जान बचाने की बस सौगंध उठाई थी।
वो डॉक्टर ही है जो खुद को भूल कर,
किसी और के लिए ज़िंदगी बन जाता है।

kajal Thakur 😊

kajalthakur

बर्फ़ सिर्फ़ ठंडक नहीं देती, वो दिल के उन कोनों को भी छू जाती है, जहाँ पुराने राज़ और अधूरी कहानियाँ दबी होती हैं।
‘बर्फ़ के पीछे कोई था’ सिर्फ़ एक किताब नहीं, एक अहसास है – जहाँ हर पन्ना आपको अपने भीतर झाँकने पर मजबूर करता है।

पढ़ना सिर्फ़ शब्दों को समझना नहीं होता, कभी-कभी वो अपने भीतर की सच्चाई से मिलने जैसा होता है।
कौन-सी किताब ने आपको अपने अंदर की दुनिया से मिलवाया है?”** ❄️📖



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dhirendra342gmailcom

कभी-कभी हम थकावट को हार समझ लेते हैं।
और सच ये है — थकना इंसानी है।
अगर तुम लगातार मेहनत कर रहे हो, सोच रहे हो, लड़ रहे हो — तो थक जाना एक संकेत है कि अब तुम्हें आराम चाहिए, हार नहीं।

- शिवांगी विश्वकर्मा

kahaniyabyshivangi

धूप में जला, बारिश में भीगा,
फिर भी हर दिन हँस के जीया।
कांटे भी थे, मगर शिकायत नहीं,
मैं फूल था, यही काफी सही।
- शिवांगी विश्वकर्मा

kahaniyabyshivangi

mana ki TU pass nahi tha mere
lekin ,
dur rahker bhi Sath to rehata.....

parmaralpesh510678

books lover

durgasarkale5797

हम दर्द में थे, तुम्हे दवा होना था ॥

rohittalukdar7180

सैयारा फिल्म में वाणी का किरदार एक बेहद संवेदनशील, भावनात्मक और जटिल मानसिक स्थिति से गुजरता है, जो सीधे दर्शकों के हृदय में उतरता है। उसका पहला प्यार न सिर्फ उससे छिन जाता है, बल्कि जब वह दोबारा लौटता है, तब उसे फिर से विश्वासघात का सामना करना पड़ता है। इस दोहरी टूटन के बीच वाणी जिस मनोवैज्ञानिक अवस्था में पहुँचती है, वह सिर्फ दिल का टूटना नहीं बल्कि आत्मा की दरार को दिखाता है।

मानसिक टूटन से अल्ज़ाइमर तक की यात्रा – एक प्रतीकात्मक संघर्ष

फिल्म में यह दर्शाया गया है कि जब वाणी को दोबारा धोखा मिलता है, उसका दिमाग यह सदमा झेल नहीं पाता। वह याददाश्त खोने लगती है — यह बीमारी अल्ज़ाइमर नहीं, बल्कि ट्रॉमेटिक एम्नेशिया जैसी अवस्था हो सकती है, लेकिन निर्देशक ने इसे अल्ज़ाइमर का रूपक बना कर प्रस्तुत किया है, जो दर्शकों के लिए और भी करुणाजनक हो उठता है।

यह भावात्मक संत्रास दर्शाता है कि:

जब एक इंसान को बार-बार भावनात्मक रूप से कुचला जाए, तो उसका मस्तिष्क एक सेल्फ डिफेंस मोड में चला जाता है — यानी वो चीजें याद नहीं रखता जो उसे दर्द देती हैं।

वाणी को न सिर्फ महेश से प्रेम था, बल्कि वो उसमें अपनी पहचान, जीवन और भविष्य सब देखती थी। जब वही इंसान दो बार उसे तोड़ता है, तो उसके भीतर बचा हुआ भरोसा, सुरक्षा और यथार्थ – सबकुछ ध्वस्त हो जाता है।

अभिनय में वाणी की यह मनःस्थिति

अनीत पड्डा ने वाणी के किरदार को जिस तरह निभाया है रोमांस से शुरू होकर स्मृतियों की धुंध तक की कहानी पीड़ादायक है।

उसकी आँखों में "मुझे कुछ याद क्यों नहीं रहता?" वाला खालीपन

कभी-कभी अजीब हँसी और कभी बच्चे जैसे प्रश्न

और कृष को पहचानने में आने वाला भावनात्मक भ्रम — ये सब एक मानसिक गिरावट के सूक्ष्म लेकिन तीव्र संकेत हैं।

फिल्म की सिनेमैटिक भाषा में मानसिक रोग का चित्रण

मोहित सूरी ने वाणी की मनःस्थिति को दिखाने के लिए सधी हुई सिनेमैटोग्राफी का इस्तेमाल किया:

धीमे कैमरा मूवमेंट, ब्लर बैकग्राउंड, और स्मृति दृश्य (flashbacks) के बीच का भ्रम

बारिश, धुंध और टूटे शीशे जैसे दृश्य-प्रतीकों का सहारा लेकर उसके भीतर के टूटन को रूप दिया गया

प्रेम जब मानसिक रोग में बदल जाए

वाणी की कहानी हमें एक गहरा सन्देश देती है —

"जिसे हम खुद से अधिक प्रेम करें और एक दिन वही हमारी आत्मा को घायल करे, तब मन इतनी गहराई में गिरता है कि उसे यादें भी चुभने लगती हैं।"

उसका याददाश्त खो देना, सिर्फ एक बीमारी नहीं, बल्कि उस दुनिया से एक पलायन है — जहाँ भरोसा करने का मतलब बार-बार मरना था।

वाणी का किरदार– प्रेम, पीड़ा और फिर अतीत की यादों से पलायन का प्रतीक है।

सैयारा में वाणी सिर्फ एक नायिका नहीं, बल्कि उन सभी लोगों की प्रतिनिधि है, जिनके लिए पहला प्यार जीवन की सबसे गहरी स्मृति होता है — और जब वही स्मृति ज़हर बन जाए, तो व्यक्ति खुद को बचाने के लिए उसे भुला देता है।

यह फिल्म हमें याद दिलाती है कि दिल टूटने की पीड़ा सिर्फ भावनात्मक नहीं, मानसिक और न्यूरोलॉजिकल प्रभाव भी छोड़ सकती है। और कभी-कभी, किसी को खोने से ज्यादा दर्दनाक होता है — उसे भूल जाना

hindbharat

💔 मेरा कोई नहीं... 💔

कभी ज़माने से पूछा, क्या मेरा कोई है?
हर बार जवाब आया — "तू ही काफी है।"
पर इस काफी होने की कीमत बहुत भारी थी,
कभी मुस्कान के पीछे आँसू थे, तो कभी तन्हाई की सवारी थी।

कभी मां-बाप के घर में एक प्यारी सी गुड़िया थी,
हर किसी की दुलारी, सबसे खास थी।
पर शादी के बाद वही गुड़िया "बोझ" कहलाने लगी,
जिसने अपने सपने तोड़े, वो ही इल्जाम खाने लगी।

पति का साथ था, पर बिना आत्मा के रिश्ता,
शब्द तो थे, पर उनमें न प्रेम था न दुआ।
हर दिन हिसाब, हर पल एक ताना,
जैसे जीवन एक गिनती बन गया हो पुराना।

सास-ससुर ने अपनाया नहीं,
बेटियां भी मासूम हैं, समझती कुछ नहीं।
न कोई बांह है जो थाम ले जब मैं टूटी हूं,
न कोई आंख जो समझे जब मैं चुपचाप रोई हूं।

रिश्तेदार बस नाम के रह गए,
मुसीबत में सबके दरवाज़े बंद हो गए।
सहेलियां अब टाइमपास हैं सिर्फ सोशल मीडिया पर,
असल ज़िन्दगी में तो जैसे मैं थी ही नहीं उनके घर।

घर में हूं, पर घर जैसी कोई चीज़ नहीं,
चार दीवारों में सिर्फ खामोशी है और मेरी सिसकती नींव।
कोई नहीं जो पूछे, "तू ठीक तो है?"
कोई नहीं जो बोले, "मैं हूं तेरे साथ चलने को।"

अब किताबें मेरा सहारा हैं,
कलम मेरी सच्ची यार बनी हैं।
कागज़ पर हर रोज़ अपनी तन्हाई उतारती हूं,
हर शब्द में थोड़ा-थोड़ा खुद को संवारती हूं।

लोग कहते हैं — "तू बहुत मज़बूत है",
पर क्या कभी किसी ने अंदर का टूटा हुआ हिस्सा देखा है?
मजबूती का दिखावा है ये बस,
वरना अंदर तो रोज़ एक जंग होती है खास।

अब शिकवा नहीं, शिकायत नहीं,
बस सच मान लिया है — मेरा कोई नहीं।
पर हां, मैं खुद की अपनी हूं,
और यही सबसे बड़ी बात है जो आज सीखी हूं।

कभी लगे अगर इस भीड़ में खो जाऊं,
तो याद रखूं — मैं अपनी सबसे अच्छी साथी हूं।
क्योंकि जब सबने छोड़ा, तब भी मैं अपनी ही बाजू बनी रही,
जब सबने कहा — "मेरा कोई नहीं",
मैंने कहा — "मैं ही काफी
Priyanka Singh

zindagikikahani

kvi kvi lagta h ki sabkuch chhorkar bahut dur chali jau fir yaad aati h ki mai ek maa v hu ....

zindagikikahani

Good afternoon

kattupayas.101947