एक जिंदगी - दो चाहतें

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बचपन से ही भारतीय सेना के जवानों के लिए मेरे मन में बहुत आदर था। मेरे परिवार में कोई भी सेना में नहीं है। मैंने सिर्फ सिनेमा में सैनिकों के बहादुरी भरे कामों को देखा और हमेशा ही उन्हें देखना मुझे बहुत अच्छा लगा। आज से पाँच वर्ष पूर्व एक सैनिक अधिकारी से मेरी पहचान हुई। कुछ ही दिनों में हम बहुत अच्छे दोस्त बन गए। वह सेना अधिकारी अपनी छुट्टियाँ खत्म होने पर अपनी ड्यूटी पर वापस चले गए। हम फोन पर बात करके अपनी दोस्ती को बनाए रखे हुए थे। वे अकसर अपने सेना जीवन के अनुभवों को मेरे साथ बाँटते। उनकी कहानियाँ बहुत रोमांचक होती थीं। मैं हमेशा उनके अनुभव सुनने के लिए उत्सुक रहती। फोन पर उनके अनुभव सुनते हुए मैं हमेशा सेना के जवानों के प्रति नतमस्तक हो जाती उनकी बहादुरी तथा मातृभूमि के लिए उनका भक्ति और प्रेम देखकर। जब मैंने भारतीय सेना के जवानों के काफी सारे बहादुरी पूर्ण कार्यों के बारे में सुना, उनके चुनौती भरे जीवन के बारे में जाना जो कभी-कभी काफी दिलचस्पी भी होता था तभी मुझे भारतीय सेना के जवानों पर एक उपन्यास लिख कर अपने पाठकों तक उनके जीवन के इन अनछुए पहलुओं को पहुँचाने की इच्छा हुई ताकि मैं सेना के जवानों की कर्तव्यनिष्ठा और देश भक्ति के प्रति इस तरह से अपना आदर तथा भावनाएँ अभिव्यक्त कर सकूँ।

Full Novel

1

एक जिंदगी - दो चाहतें - 1

बचपन से ही भारतीय सेना के जवानों के लिए मेरे मन में बहुत आदर था। मेरे परिवार में कोई सेना में नहीं है। मैंने सिर्फ सिनेमा में सैनिकों के बहादुरी भरे कामों को देखा और हमेशा ही उन्हें देखना मुझे बहुत अच्छा लगा। आज से पाँच वर्ष पूर्व एक सैनिक अधिकारी से मेरी पहचान हुई। कुछ ही दिनों में हम बहुत अच्छे दोस्त बन गए। वह सेना अधिकारी अपनी छुट्टियाँ खत्म होने पर अपनी ड्यूटी पर वापस चले गए। हम फोन पर बात करके अपनी दोस्ती को बनाए रखे हुए थे। वे अकसर अपने सेना जीवन के अनुभवों को मेरे साथ बाँटते। उनकी कहानियाँ बहुत रोमांचक होती थीं। मैं हमेशा उनके अनुभव सुनने के लिए उत्सुक रहती। फोन पर उनके अनुभव सुनते हुए मैं हमेशा सेना के जवानों के प्रति नतमस्तक हो जाती उनकी बहादुरी तथा मातृभूमि के लिए उनका भक्ति और प्रेम देखकर। जब मैंने भारतीय सेना के जवानों के काफी सारे बहादुरी पूर्ण कार्यों के बारे में सुना, उनके चुनौती भरे जीवन के बारे में जाना जो कभी-कभी काफी दिलचस्पी भी होता था तभी मुझे भारतीय सेना के जवानों पर एक उपन्यास लिख कर अपने पाठकों तक उनके जीवन के इन अनछुए पहलुओं को पहुँचाने की इच्छा हुई ताकि मैं सेना के जवानों की कर्तव्यनिष्ठा और देश भक्ति के प्रति इस तरह से अपना आदर तथा भावनाएँ अभिव्यक्त कर सकूँ। ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 2

तनु के चेहरे पर अब थकान लगने लगी थी। परम ने उसे अब बाकी का काम बाद में करने कहा। सूप पीकर और नूडल्स खाकर तनु और परम थोड़ी देर बाते करने ऊपर बालकनी में बैठ गये। दो-चार दिन में ही पूर्णिमा आने वाली होगी। आसमान में चांद चमक रहा था। कतार में खड़े घरों की छतों पर चांदनी छिटकी हुई थी। आसपास किसी घर में रातरानी लगी होगी, हवा के झौकों के साथ-साथ उसकी मंद मधुर सुगंध भी आ जाती थी। तनु ने तय कर लिया अपने बगीचे में वह भी रातरानी का पौधा जरूर लगाएगी। नीचे दो-चार लोग टहल रहे थे। कुछेक परम और तनु के घर के सामने से गुजरते हुए उत्सुकतावश घर की ओर देख लेते थे। ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 3

'अरे ये तुम्हारे चेहरे पर लाल-लाल दाने से क्या हो गये हैं? सुबह-सुबह तनु के गाल और ठोडी लाल दाने देखकर परम घबरा कर बोला। 'तीन दिन से आपने शेव नहीं किया है तो और क्या होगा। कहा था ना कल कि शेव बना लो। तनु नकली गुस्से से उसे देखते हुए बोली। 'ओ तोड्डी! कितनी नाजुक है मेरी बीवी। परम ठठाकर हँस पड़ा सही कहा था तुमने 'आई एम ए सिविलिएन। 'चुप रहो। तनु ने उसे झिड़का। ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 4

पाँच बरस पहले की वह रात आज भी याद है परम को, बरसात का मौसम था। उस साल आसमान सारी सीमाएँं तोड़कर बरस रहा था सारी सृष्टि तरबतर थी। रोज बाढ़ की खबरों से टी.वी. न्यूज चैनल भरे पड़े थे। जब भी न्यूज लगाओ पानी की विनाशलीला के अलावा कहीं कोई खबर नहीं। परम की उस समय जहाँ पोस्टिंग थी, पहाड़ों की सीमा पर, वहाँ भी यही हाल था। जल जैसे सभी को अपने अगोश में समेट लेने के लिये बेताब था। रात-दिन की झमाझम से परम त्रस्त हो गया था। आस-पास के पहाड़ी इलाकों में रोज कहीं न कहीं पहाड़ धसने से छोटी-मोटी विपत्तियाँ आती ही रहती थी। ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 5

सैकड़ों मील दूर अहमदाबाद शहर में। रात के डेढ़ बजे एक लड़का और एक लड़की अपनी पीठ पर सामान भरे बैग लादकर सड़क पर तेजी से चुपचाप चल रहे थे। ये नेहरू नगर था, अहमदाबाद का एक पॉश ईलाका। यहाँ बड़े-बड़े बंगले बने हुए थे। थोड़ी देर पहले ही लड़का एक बंगले के बाहर पहुँचा, उसने मोबाइल से किसी को मैसेज किया और दो मिनट बाद ही बंगले के पीछे बने एक दरवाजे से एक लड़की बाहर निकली। सामने वाले मुख्य दरवाजे पर दो दरबान खड़े पहरा दे रहे थे। उन्हें पता भी नहीं चला कि कब बंगले के पीछे के दरवाजे से बंगले के मालिक की बेटी फरार हो गयी। जिसने शायद शाम को ही उस दरवाजे का ताला चुपचाप खोलकर रख दिया था। वे बेचारे बड़ी मुस्तैदी से पहरा दे रहे थे उन्हें क्या पता था सुबह सबेरे ही उनकी शामत आने वाली है। जैसे ही वे दोनों बंगले से दूर आ गये लड़की ने एक गहरी साँस ली। ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 6

थोड़ा सा नीचे जाते ही सामने का दृश्य देखकर सबके रोंगटे खड़े हो गये। पहाड़ी पर थोड़े से समतल के बाद थोड़ी तीखी ढलान थी वहाँ झाडिय़ों में जगह-जगह इंसानी लाशें अटकी हुई थीं। क्षण भर को उन सबके फौलादी सीने भी दहल गये। बहुत ही विभत्स दृश्य था। झाडिय़ों में अटककर उनके कपड़े फट गये थे। कई दिन से पहाड़ों पर से रगड़ खाकर नीचे बहते और लगातार बरसते पानी में रहने से लाशों के चेहरे क्षत-विक्षत हो गये थे। पहचान में नहीं आ रहा था कि कौन औरत है और कौन आदमी। साँस लेना दुभर था। बहुत रोकने पर भी रजनीश को उल्टी हो गयी। ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 7

परम क्षणभर में ही पलट कर कृष्णन के साथ हेलीकॉप्टर में बैठ गया। अमरकांत भी आ गया। तीनों फिर पर लग गये। रिपोर्टर अपने कैमरों से शूट लेने लगे। परम का कतरा भर ध्यान उसके अनजाने में ही जमीन के उस हिस्से में रह गया जहाँ वो लड़की खड़ी थी। परम की खाई में सर्च करती आँखेंं बरबस उस लड़की की ओर भी उठ जाती। वह हेलीकॉप्टर की ओर ही देख रही थी और साथ वालों को कुछ निर्देश भी देती जा रही थी। शायद वह परम का लोगों को बचाते हुए शॉट लेना चाहती थी। ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 8

केंप आ गया था। तनु की ओर बिना देखे परम जल्दी से अंदर चला गया। राणा, रजनीश, अमरकांत, कृष्णन के सब स्लीपिंग बैग्स पर औंधे पड़े थे। परम भी पाँच मिनट पीठ सीधी करने के लिये अपनी स्लीपिंग बैग पर लेट गया। 'ऐ मायला। लेटते ही परम के पूरे शरीर में टीस उठने लगी। 'आ गये बड्डी ईश्क लड़ाकर। राणा ने परम को आँख मारकर पूछा। 'साला कालू किस्मत का बड़ा धनी है। जो लड़की देखो साले पर मर मिटती है। रजनीश ने आह भरी। ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 9

तनु उसी समय केंप के पास आयी। कृष्णन ने उसे हादसे के बारे में बताया। सुनकर तनु को भी बुरा लगा। बिना उसे कुछ पूछे ही कृष्णन ने ईशारा किया कि परम अंदर है और बहुत परेशान है। तनु धीरे से केंप के अंदर आयी। परम घुटनों में सिर दिये उदास बैठा था। तनु ने धीरे से परम के कंधे पर हाथ रखा। परम ने चौंक कर ऊपर देखा। तनु धीरे से परम के पास बैठ गयी। परम दो क्षण उसके चेहरे को देखता रहा। उसका मन कर रहा था कि तनु के कंधे पर सिर रखकर अपना दु:ख हल्का कर ले। कितना मजबूर होता है पुरुष भी, भावनाएँ होते हुए भी उन्हें व्यक्त नहीं कर सकता हमेशा डरता रहता है कि उसे 'कमजोर' ना समझ लिया जाय और उसी डर में अंदर ही अंदर घुटते हुए और भी ज्यादा कमजोर होता जाता है। ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 10

दोनों बहुत सारी बाते करते। अक्सर ही परम अपने स्कूल कॉलेज के दिनों की बातें बताता कि कैसे वह और मुहल्ले में मारपीट करने के लिए बदनाम था। उसके घर आए दिन शिकायतें पहुँचती थी। पिताजी तो नहीं मगर माँ उसे खूब जली कटी सुनाती थी। पढऩे में परम जितना अच्छा था स्पोट्र्स में उससे भी तेज था। उसका बक्सा ढेर सारे सर्टिफिकेट्स और मेडल्स से भरा पड़ा था। ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 11

विवाह का मतलब सिर्फ दो जिस्मों का एक होना ही तो नहीं होता। दो मानसिक धरातलों का एक होना तो जरूरी है। दो बौद्धिक स्तरों का एक होना भी जरूरी है। जहाँ यह जरूरत पूरी नहीं होती वहाँ मन की नदी में तलाश की लहरें उठने लगती हैं। और कभी पार किनारे तरफ अगर नदी को अपनी तलाश पूरी होते हुए दिखे तो यह पूरे वेग से अपने किनारों को तोड़ देती है। ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 12

और तभी परम को लगने लगा उसके मन में तनु को लेकर कोमल भावनाएँ और ईच्छाएँ जन्म लेने लगी अपने आप में ये ईच्छाएँ बहुत पवित्र और नाजुक हैं मगर सामाजिक दृष्टि से अवांछित है। तब जब भी परम घर जाता वहाँ उसे सब कुछ काट खाने को दौड़ता। उसे लगता कि कब वह अजमेर वापस लौटे और अपने एकांत में तनु के खयालों में खोया रहे। वाणी अक्सर उसे टोकती कि आजकल वह कहाँ खोया रहता है तब परम खीज जाता। लेकिन उसे तत्काल ही खयाल आता कि वह किस राह पर चल पड़ा है। इस राह की कोई मंजिल नहीं है। यह राह ना जाने किन गुमनाम अंधेरी गलियों में भटकती रहेगी और कही नहीं पहुँचेगी। ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 13

इधर अपने केबिन में बैठा अनूप पुरानी बातों को सोच रहा था। पहाड़ों पर हुई मुलाकात में परम की से अनूप भी बहुत प्रभावित हुआ था। उसके मन में भी परम के लिए एक स्वाभाविक श्रद्धा और आदर जाग गया था। लेकिन परम शादीशुदा है यह जानकर तनु को जितनी ठेस लगी थी, अनूप को भी तनु के लिए उतना ही दु:ख और अफसोस हुआ था। जीवन में पहली बार आपके मन में किसी के लिए भावनाएँ जागी हों और किस्मत उन्हें उसी समय खारिज कर दे तो मन को कितना दर्द होता है। अनूप हफ्तों, महीनों तनु के चेहरे पर वो दर्द देखता रहा था। ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 14

परसों अनूप से हुई बातों का असर अब भी तनु के चेहरे पर दिखाई दे रहा था। आज उसने फोन वायब्रेशन पर रखा था। लेकिन काम के बीच-बीच में से वह कनखियों से फोन की तरफ देख लेती। वीकली मैगजीन के लिए आए बहुत सारे आर्टिकल्स को पढऩे के बाद एडिटर ने कुछ चुने हुए आर्टिकल स्टोरीज और कॉलम्स के मटेरियल का गठ्ठा प्यून के हाथ से तनु को भिजवाया था। तनु वीकली मैगजीन की चीफ एडीटर थी। एडिटोरियल टीम के सिलेक्ट करने के बाद फायनली चुने हुए कंटेन्ट तनु के पास आते थे और तनु हर सप्ताह में दो दिन यह काम करती थी। ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 15

सैकड़ों मील दूर अहमदाबाद के नेहरू नगर की अपनी विशाल कोठी के शानदार कमरे के आरामदायक बिस्तर पर लेटी बेचैनी से करवटें बदल रही थी। कुछ देर पहले परम से हुई बातें कभी एक सपने जैसी प्रतीत होती थी तो कभी दिल में एक अजीब हलचल पैदा कर देतीं। ना कहेगी तो शायद परम को खो देगी। फिर उनके बीच कभी सामान्य रिश्ता नहीं रह पायेगा। और हाँ कह देगी तो। तो वह फिर उम्र भर क्या बनकर रहेगी? ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 16

परम फिर कभी ऑफिशियल काम से या कभी अपना व्यक्तिगत काम बताकर पन्द्रह दिन या महीने में एखाद बार की सुविधा देखकर अहमदाबाद आ जाता। दोनों दिन भर साथ रहते, घूमते, मंदिर जाते और शाम को परम वापस लौट जाता। उन्हीं दिनों वाणी जिद करके परम के पास रहने आ गयी थी। पहाड़ों पर तो उसे बैरक में रहना पड़ता था लेकिन जयपुर में उसे क्वार्टर मिला था तो वाणी ने जिद ठान ली साथ चलने की। ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 18

'मैं पहले से ही जानती थी। बहुत दिनों से शक हो रहा था मुझे कि आपके जीवन में कोई लड़की है। मैं तो शुरू से ही आपको पसंद ही नहीं थी। जबरदस्ती गले पड़ी थी आपके। लेकिन इसमें मेरा क्या दोष है। मैं आपको छोड़ नहीं सकती। मैं कानूनन आपकी पत्नी हूँ....। वाणी का प्रलाप बहुत देर तक चलता रहा। 'मैं घर की इज्जत हूँ। गाजे बाजे के साथ घर लाए थे आप लोग मुझे। मैं कोई मिट्टी की प्रतिमा नहीं हूँ कि मन भर गया तो विर्सजन कर दिया। ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 17

परम छुट्टी खत्म होने के तीन दिन पहले ही जयपुर चला आया। वाणी को घर पहुँचाया एक बैग में जोड़ी कपड़े रखे और हेडक्वार्टर जाने का बहाना बना कर अहमदाबाद चला आया। तनु की बेतरह याद आने लगी थी। एक रेस्टॉरेन्ट में देर तक वह तनु का हाथ अपने हाथ में थामकर अपनी आँखों से लगाए बैठा रहा। तनु उसके सिर पर हाथ फेरती रही। इतनी परेशानियों के बीच भी उसके चेहरे पर एक सजह मुस्कान थी। ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 19

इसी तरह छह महीने बीते और परम फिर कलकत्ता पहुँचा। घर में वही दमघोंटू माहौल था। माँ अब भी ठाने थी। पिता चुप-चुप ही रहते। भाई सामने आने से कतराता। सुबह जल्दि घर से निकल जाता रात में पता नहीं कब वापस आता। माँ परम से बात नहीं करती लेकिन उसे सुना-सुनाकर दुनिया जहान का जलाकटा बोलती रहती। कभी अपना माथा पीटती, कभी किस्मत को कोसती। सारी जली बुझी बातों का सार बस परम के जनम की घड़ी को कोसना होता था। परम की पलकों की कोरें भीग जातीं। ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 20

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-20 सुबह के साढ़े सात बज गये थे जब तनु की नींद उसने देखा वह वैसे ही परम के सीने पर सिर रखकर सो रही है। तनु उठकर बैठ गयी। परम उसे देखकर मुस्कुरा रहा था। 'आप सारी रात ऐसे ही लेटे रहे बाप रे। आपका हाथ सुन पड़ गया होगा। आपने मुझे तकिये पर क्यूँ नहीं सुला दिया। तनु झेंप कर बोली 'मैं भी तो ऐसे घोड़े बेचकर सो जाती हूँ कि बस कुछ होश ही नहीं रहता। 'ऐ पगली! तो क्या हुआ। तुझे चैन से सेाते देखकर मेरे दिल को ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 21

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-21 नहीं। अनूप तनु का बहुत अच्छा और नजदीकी दोस्त है। बचपन दोनों साथ पढ़े थे। जर्नेलिस्म और मास कम्यूनिकेशन का कोर्स भी दोनों ने साथ ही किया और एक साथ ही तनु के पिता के न्यूज चैनल में काम करने लगे। दोनों ने रात दिन मेहनत करके न्यूज चैनल और अखबार दोनों को ही नयी ऊंचाइयों पर पहुँचाया। अनूप बचपन से ही तनु को भली भांति जानता था। वह जानता था तनु का ध्यान अपनी पढ़ाई और काम के अलावा और कहीं नहीं था। तनु की सुंदरता पर स्कूल कॉलेज के ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 22

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-22 दूसरे दिन तय समय पर तनु के माता-पिता उनके घर आए। ने दोपहर से किचन में लगकर उनकी पसंद का खाना बनाया, अरहर की खट्टी मीठी दाल, भरवां करेला। परम पूरा समय किचन में तनु के साथ उसकी मदद करवाता रहा। दोनों के आने से पहले तनु ने सारा काम पूरा कर लिया था। तनु के माता-पिता के स्वागत में परम और तनु बरामदे में ही खड़े थे। भरत भाई का ध्यान नेमप्लेट पर गया तनु परम गोस्वामी बेटी के रिश्ते और भविष्य की मजबूती और सुरक्षा के अहसास ने उनके ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 23

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-23 दूसरे दिन सुबह तनु की नींद खुली तो सूरज निकल आया परम विस्तर पर नहीं था। वह उठकर नीचे आयी तो देखा वह किचन में चाय बना रहा था। तनु ने उसकी कमर में हाथ डाले और उसकी पीठ से लिपट गयी। 'सुबह-सुबह उठकर मुझे छोड़कर मत जाया करो। 'अरे कहीं गया कहाँ। यहीं तो आया था किचन में चाय बनाने। परम ने चाय छानते हुए जवाब दिया। तो मुझे भी उठा दिया करो। तनु ने उनींदे स्वर में कहा। 'पर क्यों? 'मुझे आँखेंं खुलते ही आपका चेहरा देखना अच्छा लगता ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 24

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-24 'एक बार पता नक्सलियों के पीछे हम पन्द्रह दिनों तक रात जंगलों में घूमते रहे थे। हम दस लोग थे और हमारे पास दो जीपें थीं। साथ में लाया हुआ राशन खत्म हो गया था आखरी तीन दिन से तो हम लोग सिर्फ घूँट-घूँट पानी पीकर बंजर ईलाकों की खाक छान रहे थे। कई रातों से हम लोग सोए नहीं थे और पेट में अन्न का एक दाना भी नहीं गया था। परम पनीर के चौकोर टुकड़े करते हुए एक पुराना किस्सा याद करके सुनाने लगा। आखरी वाक्य सुनते हुए तनु ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 25

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-25 पूरे बगीचे में परम और तनु के मनपसंद पेड़-पौधे लग चुके बगीचे के एक कोने में पत्थर की फर्शी पर परम ने मिट्टी के एक सकोरे में पानी रख दिया और रोज सुबह होते ही चिडिय़ों को बाजरा डालने लगा। रोज दोनों चिडिय़ों का कलरव सुनते हुए अपने छोटे से बगीचे में बैठ कर सुबह की चाय पीते। आस-पास के दो-तीन परिवारों से परम और तनु ने पहचान कर ली थी। अभी दोनों चाय पी ही रहे थे कि भरत भाई का फोन आया वो तनु से पूछ रहे थे कि ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 26

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-26 तनु को ऑफिस में छोडकर परम अपने चाचा के घर की निकल गया। रास्ते भर मन में विचारों का तूफान उठता रहा। एक मन कह रहा था जो लोग तुझे समझने को तैयार ही नही है क्यों उनके पीछे अपना समय और दिमाग खराब कर रहा है। तुझे तेरा मनचाहा मिल ही गया है अब छोड दे भूल जा पुरानी बातों को। लेकिन दूसरा मन नहीं मानता। अपना मनचाहा मिलने का अर्थ यह थोडे ही होता है कि बाकी सब को, जनम के रिश्ते को भुला दिया जाये। जीवन का अर्थ ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 27

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-27 परम वहाँ से निकलकर तनु के ऑफिस की ओर चल पडा। वह बहुत खुश था। चाचा-चाची ने उसे सही मान लिया था। उसे और तनु को स्वीकार कर लिया। कितना अच्छा लगता है जब आपकी खुशी में आपका परिवार भी साथ हो। आपके निर्णय पर घरवालों की स्वीकृति की मुहर लगाी हो। परम का चेहरा खुशी से दमक रहा था। बस अब उसके माता-पिता भी मान जायें। जैसे ही परम ने तनु के केबिन में पैर रखा उसके चेहरे की खुशी देखकर तनु की जान में जान आयी। इतनी देर से ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 28

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-28 तनु और परम लगभग रोज ही ऑफीस चले जाते। तनु के के साथ बैठना परम को भी बहुत अच्छा लगता। खास तौर पर जिस दिन वो पहली बार तनु और परम के घर पर खाना खाने आए थे उस दिन के बाद से उनकी आँखों में जो स्नेह तनु के लिए दिखाई देता है वही स्नेह और अपनापन उनकी आँखों में परम के लिए भी दिखाई देने लगा है। कभी तनु की माँ भी ऑफिस आ जाती थीं लंच टाईम में घर से खाना लेकर। तब वो सुबह ही तनु को ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 29

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-29 खाना खाने के बाद सब लोग वापस ड्राईंगरूम में बैठ गये फिर से गप्पे मारने का दौर शुरू हो गया। भरत भाई और शारदा बहुत कम बातें कर रहे थे लेकिन दोनों के चेहरे जिस तरह से प्रसन्न दिख रहे थे उन्हें देखकर साफ पता चल रहा था कि दोनों के दिल आज अंदर से कितने खुश हैं। बातों में ही जब रात के बारह बज गये तो तनु और उसकी बुआ सबके लिये गरमागरम कॉफी बना लाईं। रात डेढ़ बजे सब लोग उठकर सोने की तैयारी करने लगे तो आकाश ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 30

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-30 फिर परम ने कॉलबेल बजा दी। चाचा ने तुरंत ही दरवाजा वो शायद बड़ी व्यग्रता से उन दोनों की राह देख रहे थे। 'आओ-आओ भई कब से राह देख रहा था। चाचा उन दोनों को अंदर ड्राईंगरूम में ले जाते हुए बोले। तनु ने चाचा के पैर छुए। 'जीती रहो बहु जीती रहो। चाचा ने गदगद होकर आशिर्वाद दिया। तभी सावित्री भी उन लोगों की आवाज सुनकर रसोईघर से बाहर आ गयी। तनु ने झुककर उनके भी पैर छुए। 'जीत रहो बहु खुश रहो, दूधो नहाओ पूतो फलो। चाची ने उसका ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 31

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-31 दूसरे दिन तनु की नींद जल्दी खुल गयी। परम गहरी नींद सोया था। रोज ऐसा होता था कि परम जल्दी उठ जाता था और तनु सोती रहती थी। तब जब भी तनु की आँख खुलती वह कमरे में अकेली होती। आज वो पहले जग गयी तो आँख खुलते ही सामने परम का चेहरा दिखाई दिया। तनु उसे देखती रहीं। उसके दिल को बड़ी खुशी और निश्चिंती महसूस हो रही थी। आज उसे समझ आया कि क्यों परम रात-रात भर जाग कर उसे देखता रहता है। सुबह मुँह अंधेरे आपकी आँख खुले ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 32

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-32 फिल्म खत्म होने के बाद दोनों फूड कोर्ट में आ गये। तीन बज गये थे। भूख जम कर लगी थी। परम ने तनु की पसंद का खाना ऑर्डर किया और तनु की सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया। थोड़ी ही देर बाद खाना आ गया। दोनों ने खाना खत्म किया और मॉल से बाहर आ गये। साढ़े चार बज रहे थे। बाहर अच्छी तेज धूप थी। परम इस्कॉन मंदिर जाने वाले रास्ते पर आ गया। पहले भी कई बार वो तनु के साथ यहाँ आ चुका था। उसे तनु के साथ ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 33

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-33 शनिवार शाम को मौसी-मौसाजी वापस चले गये क्योंकि उन्हें रविवार सुबह किसी कार्यक्रम में जाना था। बुआ-फूफाजी भरत भाई के यहाँ चले गये। दोनों नौकरों ने पूरा घर साफ करके हर कमरा व्यवस्थित कर दिया। सावित्री और तनु ने पूजा घर का सारा सामान समेटा और ठीक से संभालकर ड्रावर में रख दिया। 'यहाँ अब इस सब का क्या काम, ये पूजा का सामान तो आप ही ले जाओ चाची। परम ने उन्हें सामान ड्रावर में रखते देखा तो कहा। 'अरे घर-गृहस्थी है। तीज-त्यौहार, पूजा-अनुष्ठान तो चलते ही रहेंगे। घर में ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 34

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-34 कमरे में पैर रखते ही तनु के दिल में एक हौल गहरे उतर गया। खाली घर, खाली कमरा, खाली पलंग। जिस कमरे में वह पिछले दो महीनों से परम के साथ सोती आयी थी आज वहाँ खाली सन्नाटा दीवारों पर पसरा हुआ था कटे पेड़ सी वह पलंग पर गिर पड़ी। पिछले दो महीने से तनु ने तकिया नहीं लिया था। परम रात भर उसके बालों को सहलाता अपनी बांह पर सुलाता था। आज कहाँ था उसका तकिया? तनु पलंग पर टिक कर बैठ गयी। आँखों से आंसुओं की धाराएं बह ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 35

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-35 तीन दिन अपनी माँ के यहाँ रहकर तनु चौथे दिन सुबह घर वापस आ गयी। शारदा ने उसके साथ रहने के लिए अपनी एक बहुत पुरानी और विश्वसनीय नौकरानी जो बरसों से उनके यहाँ काम कर रही थी दयाबेन को भेज दिया। ऊपर के एक खाली कमरे मे तनु ने दयाबेन का सामान रखवा दिया। दयाबेन विधवा थी। बेटी-दामाद सूरत में रहते थे और बेटा-बहू राजकोट में। दयाबेन स्वस्थ, हट्टीकट्टी, और बहुत अच्छे स्वभाव की महिला थी। बरसों से शारदा की गृहस्थी में ही रही थी। तनु को बचपन से ही ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 36

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-36 दयाबेन के आने से तनु का मन थोड़ा ठीक हुआ। घर अपने अलावा किसी और के भी पास होने का अहसास काफी तसल्ली भरा था। दयाबेन तनु की दिनचर्या में या काम में कोई बाधा नहीं डालती थी लेकिन घर में उनकी उपस्थिति से तनु को बहुत राहत मिलती थी और मन में एक अच्छापन सा लगता रहता था। और ऑफिस में अनूप के साथ बाते करके उसका मन लगा रहता। परम की याद तो काम के दौरान भी पूरे समय दिन दिमाग पर छायी रहती थी फिर भी अनूप से ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 37

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-37 अभी तीन दिन ही शांती से बीते होंगे कि एक दिन फिर खबर आयी। पास के एक गाँव का कोई आदमी था। उसने अपना नाम जमील बताया और कहा कि उसके घर पर मिलिटेंट्स ने कब्जा करके रखा है। परम को यह भी भ्रमित करने वाली सूचना लगी। भला जिसके घर पर मिलिटेंट्स घुसे हुए हैं वह बाहर आकर आर्मी ऑफिस में फोन कैसे कर रहा है। तब उस व्यक्ति जिसका नाम जमील था, ने बताया कि वे लोग तो कई दिनों से उसके घर पर हैं। उसकी तीन बेटियाँ हैं। ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 38

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-38 अपने रूम में पहुँचकर परम ने सबसे पहले जूूते खोले। दिनभर मोजों में बंधे पैर गरमी और पसीने से भीग गये थे। शाम के पाँच बजे थे। जोरों की भूख लग रही थी। परम ने अलमारी से अपने कपड़े लिये और वॉशरूम में शॉवर के नीचे जाकर खड़ा हो गया। सिर पर ठंडे पानी की फुहार पड़ते ही दिमाग थोड़ा ठिकाने हुआ ऐसे एनकाउंटरों के बाद परम का मन हमेशा बहुत विचलित हो जाता था। किसी की जान लेना... जानता था कि यह उसका फर्ज है। वह कोई पाप नहीं कर ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 39

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-39 सबके दिल इस कहानी को सुनकर भारी हो गये थे। बहुत तक फिर सब मिलकर इधर-उधर की हल्की-फुल्की बातें करके अपना मन बहलाने की कोशिश करते रहे। रात के नौ बज रहे थे। सब लोग बहुत थके हुए थे, खाना खाने जाने का किसी का भी मन नहीं कर रहा था। अनील और शमशेर मेस में जाकर दो थालियों में सबके लिए सब्जी रोटी ले आए। सबने उन्हीं थालियों में से थोड़ा बहुत खाया। जिनकी रात की ड्यूटी थी वे सब ड्यूटी पर चले गये। बाकी लोग अपने-अपने पलंगों पर सोने ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 40

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-40 शाम को घर जाते हुए तनु एक होम्योपैथिक डॉक्टर को दिखाकर दवाईयाँ लेकर घर आई। परम ने दिन भर में न जाने कितने फोन लगाकर उसे बार-बार ताकीद की थी कि वो डॉक्टर को दिखाए बिना शाम को घर में नही जायेगी। उसकी तसल्ली के लिए तनु डॉक्टर को दिखा आयी। परम रोज सुबह शाम उसे दवाईयाँ लेने की याद दिलाता रहता। तनु समय पर दवाईयाँ ले लेती लेकिन उसके सिर का भारीपन और थकान दूर नहीं हुई। पीठ भी दर्द करती रहती। एक दिन तो तनु ऑफिस भी नहीं जा ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 41

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-41 शाम को भरत भाई तनु से मिलने आये। पिता को देखकर शरमा गयी। भरत भाई ने तनु को सीने से लगाकर उसका माथा चूम लिया। 'तो इसलिये रसगुल्ले खाने का मन कर रहा था बिटिया का। वह हँसते हुए बोले। तभी ड्रायवर गाड़ी में से ढेर सारा सामान लेकर आया। ढेर सारे फूलों के सुंदर-सुंदर बुके, ढेर सारे खिलौने, मिठाई, तनु की पसंदीदा चॉकलेटें। देखते-देखते तनु का कमरा फूलों और खिलौनों से भर गया। प्यारे-प्यारे टेडी बियर, पपी, गुडिय़ा। रात का खाना खाकर और तनु को ढेर सारा प्यार करके भरत ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 42

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-42 दूसरे दिन सवा दस बजे परम और तनु डॉक्टर के यहाँ के लिए निकले। ड्रायवर ने कार लाकर घर के सामने खड़ी कर दी। परम ने उसे कहा कि ड्राईव वो खुद कर लेगा और कार की चाबियाँ ले लीं। उसने तनु को बिठाया और डॉक्टर के ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 43

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-43 सुबह अपने समय पर परम की आँख खुल गयी। आज उसे की याद आ गयी। छ: दिन हो गये थे परम को यहाँ आए पर उधर के कुछ हालचाल ही नहीं लिये थे उसने अभी सुबह के पाँच बजे थे। परम ने सेाचा सात बजे वह अर्जुन को फोन लगाएगा। अभी तो वह सो रहा होगा या फिर आफिस जाने की तैयारी कर रहा होगा। परम वॉशरूम में जाकर फे्रश हो आया। तनु अभी तक सो रही थी। परम उसके पास बैठ गया। उसके शरीर की बॉयोलॉजी आजकल हर पल बदलती ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 44

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-44 उस दिन यूनिट में वापस आकर सभी लोग थोड़े बहुत स्नैक्स व्हिस्की के ग्लास के साथ अपने पेट की भूख और दिल की जलन को शांत करने की कोशिश में बैठे बातें कर रहे थे। 'कुछ नहीं सर ये लोग हमसे चिढ़ते हैं इसलिये खुद ही हमे फोन करते हैं और पेरशान करते हैं। विक्रम बोला। 'विक्रम सही कह रहा है सर। कोई नहीं है। गाँव वाले ही झूठी खबरें दे-दे कर हमें परेशान कर रहे हैं और कुछ नहीं। शमशेर ने भी विक्रम का समर्थन किया। 'नहीं ये गाँव वाले ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 45

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-45 'तुमने आवाज किस दिशा से सुनी थी? अर्जुन ने शमशेर सवाल किया। शमशेर ने एक ओर इशारा किया। हांलाकी जंगल में आप ठीक अंदाजा नहीं लगा सकते कि आवाज इसी निश्चित दिशा से आ रही है लेकिन एहतियात के तौर पर अर्जुन ने उस दिशा की ओर लक्ष्य करते हुए सबको पेड़ों की आड़ में छुपकर अलर्ट रहने को कहा और उसी दिशा में निशाना साधकर ओपन फायर खोलने को तैयार रहने को कहकर खुद परम के साथ और शमशेर के साथ उस दिशा में आगे बढऩे लगा। थोड़ी ही दूरी ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 46

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-46 दूसरे दिन सुबह उठकर परम ऑफिस गया। दो दिन की लगातार से और भागदौड़ से उसका सिर अभी तक चकरा रहा था। उसने गणेश जी और बजरंगबली के आगे अगरबत्ती लगाकर प्रणाम किया और अपना रूटीन ऑफिशियल वर्क करने लगा। दोपहर में खाना खाने के बाद वह अर्जुन और विक्रम के साथ ऐसे ही पैदल ऊपर की ओर निकल गया। अभी के हालात को देखते हुए एहतियात के तौर पर उन्होंने रायफल हाथ में रखी थी और बुलेटप्रुफ जैकेट भी पहन लिये थे। काफी दूर जाने पर थोड़ी खुली सी जगह ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 47

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-47 भारी घुसपैठ के चलते एरिया में हाई अलर्ट लग गया था। छुट्टियाँ कैंसिल हो गयी थीं। अगले पन्द्रह दिनों में अनुमानत: सभी घुसपैठियों को या तो मारा जा चुका था या फिर पकड़ लिया गया था। लेकिन अभी भी परम के सोर्सेस बता रहे थे कि तीन अत्यन्त खुंखार आतंकवादी भूमिगत हैं उनका कहीं सुराग नहीं मिल रहा है कि वे कहाँ हैं। उन्हे जमीन लील गयी या आसमान खा गया। परम समझ गया कि अभी वे लोग मुँह बंद करके बैठे रहेंगे। जब मामला थोड़ा ठण्डा पड़ जायेगा फौज निश्चिंत ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 48

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-48 ''न.... नहीं यहाँ कोई तहखाना नहीं है।" अकरम हड़बड़ा कर बोला। तू तो यहाँ किसी के होने से भी इनकार कर रहा था फिर ऊपर वो तीन मुस्टन्डे क्या तेरे घर ने पैदा किये हरामजादे।" सूर्यवंशी चिल्लाया। विक्रम ने इशारा करके बाहर के भी चार पाँच लोगों को अंदर बुलवा लिया। लड़का अभी भी अपने पैर का अंगूठा जमीन पर मार रहा था। जवान तुरत-फुरत में जमीन पर बिछे गालीचे उठाने लगे। एक कमरा, दूसरा कमरा, तीसरे कमरे में पलंग पर दुबकी हुइ एक औरत डर से थर-थर कांप रही थी। ...Read More

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 49 - अंतिम भाग

एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-49 परम ने तनु को बताया नहीं था कि वह आ रहा वहाँ पहुँचकर वह उसे सरप्राईज देना चाहता था। तभी जब भरत विला पहुँचकर वह टैक्सी से उतरा तो दरबान भागे-भागे आये उसका सामान उठाने सब को आश्चर्य हो रहा था कि वह टैक्सी से क्यों आया है। ड्राइंगरूम में जैसे ही पहुँचा वह रसोईघर से बाहर निकलती शारदा की नजर उस पर पड़ी। क्षण भर के लिये वह भौचक्की सी खड़ी रही फिर अचानक खुश होकर परम की ओर आयी- ''अरे बेटा तुम अचानक खबर भी नहीं दी, कैसे आए?" ...Read More