Ek Jindagi - Do chahte - 13 in Hindi Motivational Stories by Dr Vinita Rahurikar books and stories PDF | एक जिंदगी - दो चाहतें - 13

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 13

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-13

इधर अपने केबिन में बैठा अनूप पुरानी बातों को सोच रहा था। पहाड़ों पर हुई मुलाकात में परम की कर्मठता से अनूप भी बहुत प्रभावित हुआ था। उसके मन में भी परम के लिए एक स्वाभाविक श्रद्धा और आदर जाग गया था। लेकिन परम शादीशुदा है यह जानकर तनु को जितनी ठेस लगी थी, अनूप को भी तनु के लिए उतना ही दु:ख और अफसोस हुआ था। जीवन में पहली बार आपके मन में किसी के लिए भावनाएँ जागी हों और किस्मत उन्हें उसी समय खारिज कर दे तो मन को कितना दर्द होता है। अनूप हफ्तों, महीनों तनु के चेहरे पर वो दर्द देखता रहा था। देखता था चोरी-चुपके से परम के फोटो देखती तनु की आँखें भर आना, एक ठण्डी आह भरना। देश के जांबाज सिपाहियों की कर्मठता और सेवा भावना पर बहुत अच्छी स्टोरी तैयार की थी तनु ने। रात भर जागकर कवरेज की क्लिपिंग के साथ ही वहाँ की दुर्घर्ष, भीषण परिस्थिति में, रात-दिन गिरती बारीश में फंसे लोगों की दारूण व करुण अवस्था के चित्रण के साथ बचाव कार्य में जुटे सेना के जवानों की अपनी जान पर खेलकर लोगों की जान बचाने की बहादुरी का चित्रण अत्यन्त कुशलता से किया था। न्यूज देखते और पढ़ते समय जनता की हालत का मार्मिक वर्णन और दूसरी ओर उसी समय भारतीय फौज के प्रति गर्व और सम्मान की भावना एक साथ पढऩे वाले के मन में उभरती थी। उस समय जितने भी अखबारों में वहाँ भी खबरें आ रही थीं उन सबमें सबसे सटीक और व्यवस्थित खबरें भरत देसाई के अखबार की थी। यही हाल भरत देसाई के टीवी चैनल का भी था। आशीष के लिए हुए शॉट्स इतने रोमांचक थे और साथ में अनूप और तनु की खबरें इतनी दिलचस्प और सजीव थीं कि देखने वालों के रोंगटे खड़े हो गये। भरत देसाई के अखबार और टीवी चैनल ने लोकप्रियता के मामले में अचानक ही प्रदेश के सारे अखबारों और न्यूज चैनलों को पीछे छोड़ दिया।

तनु के यँू अचानक बिना बताए चले जाने से भरत देसाई चिंतित भी हुए थे और नाराज भी। उन्हें तसल्ली बस इसी बात से थी कि अनूप और आशीष उसके साथ हैं। लेकिन जो काम तनु ने कर दिखाया था उसके बाद भरत भाई का मलाल जाता रहा। उन्हें अटूट विश्वास तो था ही अपनी बेटी पर और उस दिन से गर्व भी हो गया। भरत देसाई के अखबार और न्यूज चैनल को नम्बर वन पर पहुँचा दिया था तनु ने।

लेकिन खुद तनु के चेहरे की लौ जैसे बुझ सी गयी थी वहाँ से वापस आने के बाद। अनूप देखता और मन में दु:ख महसूस करता रहता। तनु का ऐसा मायूस चेहरा उससे देखा नहीं जाता था। तभी उस दिन स्टेशन पर परम को देखकर और पहचानकर अनूप उसे आवाज देने से खुद को रोक नहीं पाया। और तनु का भी बार-बार जिक्र किया। क्योंकि सिर्फ तनु ही क्यों अनूप ने परम के भाव भी तो देखे थे। वो चाहता था कि दोनों एक बार आपस में बात करके अपने दिलों का बोझा हलका कर लें या अच्छे दोस्त बनकर एक दूसरे से अच्छी अण्डरस्टेडिंग डेवलप कर लें। दोस्ती का रिश्ता भी तो बहुत खास और अपना होता है ना।

लेकिन वही अनूप आज फिक्रमंद हो रहा था। कहीं उससे कोई गलती तो नहीं हो गयी।

''अनूप भाई आपको साइंस सिटी जाना है रिपोर्टिंग के लिए। तीन बज गये हैं। चार बजे वहाँ बॉटनिस्ट पहुँच जाएंगे पौधों के बारे में स्टूडेंट्स को लेक्चर देने के लिए। सालण चौकड़ी से वहाँ पहुँचने में भी आपको आधा घण्टा लग जायेगा। जल्दी निकलिये।" आशीष ने याद दिलाया तो अनूप हड़बड़ा गया। रविवार के विशेष अंक के लिए उसे साइंस सिटी जाकर वहाँ आने वाले बॉटनिस्ट, साइंटिस्ट और रिसर्चर्स के इंटरव्यू लेने थे। वहाँ उगाए गए विभिन्न प्रजातियों के दुर्लभ पौधों की जानकारी लेनी थी। ग्रह, नक्षत्रों और अंतरिक्ष के बारे में विशेषज्ञों द्वारा बताई गयी बहुमूल्य जानकारी एकत्रित करनी थी।

''मर गया।" अनूप हड़बड़ा गया। ये तनु और परम की स्टोरी के बीच वो साइंस सीटि के बारे में तो बिलकुल ही भूल गया था। उसने तेजी से अपना बैग रेडी किया और ऑफिस से बाहर आकर अपनी बाईक निकाली और साईंस सीटी की ओर तेजी से चल दिया।

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''हैलो"

''हैलो! आज इतनी रात को?"

''बस ऐसे ही नींद नहीं आ रही थी। तुम क्या कर रही हो? सो तो नहीं रही थी।"

''नहीं किताब पढ़ रही थी।"

''कहाँ पर हो?"

''अपने कमरे में।"

''और मम्मी पापा?"

''पापा तो इस समय अपनी स्टडी में होंगे और मम्मी या तो पापा के लिए कॉफी बना रही होंगी या सो गयी होंगी।"

''तो मेडम जी इतनी रात गये आप क्यों जाग रही हैं। आप भी सो जाईये जी।"

''मैं भी सो जाती तो आपसे बात कैसे करती?"

''हाँ ये बात भी सच है। मैं तो एक-दो रिंग देकर डिस्कनेक्ट ही करने वाला था, ये सोचकर कि तुम सो गयी होंगी, लेकिन उतने में तुमने फोन रीसीव कर लिया।"

''हाँ आपको पता तो है कि मुझे थोड़ी देर किताब पढ़े बिना नींद नहीं आती।"

''चलो अब सो जाओ। सुबह ऑफिस भी तो जाना होगा।"

''अरे अब फोन लगाया है तो पाँच मिनट बात करिये ना।"

''हो तो गये पाँच मिनट।"

''नहीं अभी सिर्फ दो मिनट हुए हैं।"

''अच्छा चलो बोलो।"

और परम और तनु की बातें शुरू हुई तो तनु के काम परम के काम, परम की घर पर हुई बातचीत पर से होती हुई एक घण्टे बाद जाकर खत्म हुई। सुबह तनु की नींद खुली तो सुबह हुए काफी देर हो गयी थी। उसकी माँ ने दरवाजा खटखटाया तब उसकी आँख खुली। नाश्ते की टेबल पर उसकी ऊनिंदी आँखें देखकर भरत देसाई ने अपनी लाड़ली से पूछा ''क्या बात है बेटा, तबियत तो ठीक है ना?"

''हाँ पापा ठीक है। वो रात में देर तक किताब पढ़ती रही ना इसलिए सुबह आँख नहीं खुली।" तनु ने ढोकला उठाकर मुँह मे ंडालते हुए कहा।

''कौन सी किताब पढ़ रही है हमारी बिटिया?" भरत देसाई ने लाड़ से पूछा।

''द लॉज ऑफ स्पिरिट वल्ड।" तनु ने जवाब दिया।

———

***