एक जिंदगी - दो चाहतें
विनीता राहुरीकर
अध्याय-46
दूसरे दिन सुबह उठकर परम ऑफिस गया। दो दिन की लगातार गोलीबारी से और भागदौड़ से उसका सिर अभी तक चकरा रहा था। उसने गणेश जी और बजरंगबली के आगे अगरबत्ती लगाकर प्रणाम किया और अपना रूटीन ऑफिशियल वर्क करने लगा।
दोपहर में खाना खाने के बाद वह अर्जुन और विक्रम के साथ ऐसे ही पैदल ऊपर की ओर निकल गया। अभी के हालात को देखते हुए एहतियात के तौर पर उन्होंने रायफल हाथ में रखी थी और बुलेटप्रुफ जैकेट भी पहन लिये थे। काफी दूर जाने पर थोड़ी खुली सी जगह पर खड़े होकर तीनों ने चारों ओर नजर दौड़ाई। सब तरफ शांत था। जमीन पर गिरे एक चीड़ के पेड़ के लठ्ठे पर बैठ कर तीनों बातें करने लगे। थोड़ी ही देर बाद वहाँ से भेड़ बकरियों के झुण्ड और तीन चार खच्चरों को लेकर बकरवाल गुजरे। वे कुल तीन थे। परम ने एक उड़ती हुई सी नजर उन पर डाली और बातों में मशगुल हो गया। उनकी भेड़ बकरियाँ आस-पास की झाडिय़ों में चरने लगीं। वे लोग उन्हें आगे हाँकने लगे।
विक्रम संदिग्ध नजरों से उन लोगों को देख रहा था वे लोग तीन थे। दो अधेड़ और एक बाईस, एक साल का लड़का सा। विक्रम की ऊँगलियाँ अचानक अपनी रायफल के ट्रिगर पर कस गयीं परम इस बात से अनजान अर्जुन से बाते करने में लगा था। तभी परम उठ खड़ा हुआ और बोला कि चलो यूनिट वापस चलते हैं। परम का खड़ा होना था कि उन तीनों बकरवालों ने अपने पैंतरे बदल लिये। पल भर में ही उनके लम्बे ढीले-ढाले चोगों के भीतर से रायफलें निकल आयीं और उन्होंने तीनों पर फायर खोल दिया। परम और अर्जुन इस स्थिति के लिये जरा भी तैयार नहीं थे। इन तीनों के उठ खड़े होने से शायद वे मिलिटेंट्स घबरा गये होंगे और उन्होंने सोचा होगा कि शायद फौजियों ने उन्हे ताड़ लिया है और घबराकर उल्टा उन्होनें ही इन लोगों पर फायरिंग शुरू कर दी।
विक्रम की रायफल लेकिन तैयार थी। उसने पहले ही उस जवान लड़के के चेहरे पर घबराहट के चिह्न देख लिये थे और सतर्क हो गया था। तीनों बकरवाल शायद, नौसिखिया ही थे। उनकी एक भी गोली इन लोगों तक नहीं पहुँची। हाँ विक्रम ने क्षण भर में ही एक अधेड़ को ढेर कर दिया था और बाकी दो भी जल्दी ही अर्जुन की गोलियाँ खा कर ढेर हो गये। गोलियों की आवाज से जानवर घबरा कर इधर-उधर भागने लगे। भेड़ बकरियों को तो भागने दिया तीनों ने लेकिन दौड़ भागकर पन्द्रह मिनट की मशक्कत के बाद खच्चरों को पकड़कर एक जगह बांध दिया।
पहले तीनों अलग-अलग जगहों पर पड़े मिलिटेंट्स के पास गये। तीनों ही मर चुके थे।
''हरामजादे साले! कफन जैसा चौगा पहनकर मौत का तांडव मचाते रहते हैं।" विक्रम ने उनके चौगे उठाकर देखा। अंदर और भी हथियार छुपा रखे थे उन्होंने।
परम ने लड़के के चेहरे की ओर देखा। बीस-बाईस साल का जवान होता, गोरा चिट्टा मासूम सा लड़का बहुत सुंदर था। धार्मिक कट्टरता और सांप्रदायिकता की भेंट चढ़ गया। अपने ही दिलों की आग में खुद ही जिंदगियाँ होम करते जा रहे हैं ये लोग। परम एक गहरी सांस लेकर रह गया। उसका दिल अफसोस से भर गया। एक अच्छी भली जिंदगी जो कितनी खुशहाल हो सकती थी असमय ही मौत के मुँह में जा समाई। अर्जुन और विक्रम जाकर खच्चरों पर लदे सामानो की तलाशी लेने घास-फूस और कपड़े लत्तों के बीच पोटलियों में मैगजीन और बंदूकें छुपाई हुई थीं।
''जिस तरह से ये लोग घबरा गये थे और जिस आसानी से मारे गये। उससे यही जाहिर होता है कि ये लोग उस पार के नहीं वरन इसी पार के हैं। या तो लालच से या दबाव में आकर ये काम कर रहे थे। ये लोग जरूर जानवर लेकर फेन्स के पास चरा रहे होंगे और मौके का फायदा उठाकर उस पार से हथियार इन्हे सौंप दिये गये होंगे। अब ये जानवर चराते हुए उस जगह ले जाते जहाँ इन्हे ये हथियार पहुँचाने होते।" अर्जुन ने अपना मत प्रकट किया।
''तुम्हारा कहना बिलकुल सही है।" परम ने कहा।
शाम होने लगी थी। पास के थाने में खबर भिजवा दी गयी। रात तनु से जी भरकर बातें करने के बाद जब परम ने फोन रखा और सोने के लिए पलंग पर लेटा तो सारी रात उसके दिमाग में उल्टे सीधे विचार आते रहे। कभी तनु का ख्याल आता था तो कभी अपने होने वाले बच्चे का। कभी सीमा पार से घुसपैठ होते हुए दिखती तो कभी देश मे कई जगह मिलिटेंट्स की वजह से होने वाली दुर्घटनाऐं दिखाई देती थीं। रात भर वह बहुत विचलित रहा।
तनु हर बार पूछती 'आप कब आ रहे हो?'
और परम हर बार कहता 'एक दो दिन में बताता हूँ।'
एक तरफ पत्नी है एक तरफ देश है। पत्नी के लिए माता-पिता हैं वह सुरक्षित हाथों में है लेकिन देश की सुरक्षा उसके हाथों में है।
इसलिए आखीर में परम ने मन पक्का करके यह तय किया कि अभी वह सिर्फ देश के बारे में ही सोचेगा। हाल ही में जो समस्या सुरसा की तरह मुँह फाड़े खड़ी हो गयी है पहले उसका समाधान जरूरी है।
दूसरे दिन परम ने अपने सभी खबरियों और सोर्सेस को ताकीद कर दी कि सभी दूर हर एक घर पर नजर रखो। कहाँ कोई नया आया है कौन आया है। किस घर में अचानक राशन-पानी, साग-भाजी ज्यादा जाने लगा है। हर एक गतिविधि पर बहुत बारीकी से नजर रखे। सारे ईलाकों में उसने अपने सोर्सेस फैला दिये।बैक सपोर्ट फोर्स तैयार कर लीं। हथियार और मैगजिन्स का भंडार मंगवा लिया। पूरी टीम के लिए ड्राय राशन इकठ्ठा करवा लिया। अपने जरूरी डॉक्यूमेंट्स और कागजातों का काम निपटा लिया। गाडिय़ाँ इंधन भरवाकर रेडी करवा लीं। नागरिकों से सहयोग की अपील की गयी। ईलाकों में सेना की गश्त बढ़ा दी गयी। हर कुछ मीटर पर सेना के जवान तैनात हो गये। दो-तीन दिन शांति से बीते। तीसरे दिन से सोर्सेस से खबर आयी 'सर' उधमपुर में!'
'सर कूपवाडा'
'सर गुंडगाँव'
'सर राजौरी में'
पास के गाँवों में परम ने अपनी यूनिट के प्रशिक्षित जवानों को भेजा और खुद अर्जुन को साथ लेकर और छ: और जवानों को लेकर उधमपुर रवाना हो गया। उधमपुर से भेडिय़ों को हटाना सबसे पहले जरूरी था। यहाँ से वे घनी बस्ती वाले इलाकों में जा सकते थे या फिर तीर्थ स्थान पर जनहानी कर सकते थे। या देश के अंदरूनी हिस्सों में भी पहुँच सकते थे। इसलिये सबसे पहले इसी हिस्से का ईलाज किया जाना जरूरी था। परम उधमपुर कॉनटोनमेन्ट एरिया में रूका। रात भर प्लानिंग की, एक पुख्ता योजना तैयार की और दुसरे दिन अपने सातों आदमियों और उधमपुर की बैक सपोर्ट टीम के साथ स्टिंग आपरेशन पर निकल गया। जहाँ-जहाँ सोर्सेस ने खबर दी थी वहाँ-वहाँ के स्थानिय थानों में रिर्पोटिंग करके थाना इंचार्ज से परमिशन लेकर वहीं सारी औपचारिकताएँ पूरी करते। कॉन्स्टेबल से रेडियो लाउड स्पीकर पर मुनादी करवाना। सरपंच-मुखिया से बात करना गाँववालों को इकठ्ठा करना, घरों की तलाशी और तलाशी में मिलिटेंट्स
मिलिटेंट्स....
एक घर...
दूसरा घर...
कभी गलियों में मिलिटेंट्स के पीछे भागते हुए ओपन फायरिंग। परम और अर्जुन की बंदूकें मौत उगल रही थीं। कई घरों के अंदर छुपे हुए मिलिटेंट्स ने आत्मरक्षा हेतु आत्मसमर्पण कर दिया यह अर्जुन के नाम का प्रताप था।
अर्जुन के सिर पर जुनून सवार था कि वह पूरे ईलाके को आतंकवाद के खौफ से मुक्त करेगा। कई बार वे लोग मौत के मुँह में जाते बचे। रात और दिन का फर्क मिट गया। पचास लोगों की धर पकड़ ओर मौत के घाट उतारने के बाद चौथे दिन परम को होश आया कि उसने तीन दिनों से तनु से बात ही नहीं की थी। चौथे दिन सुबह वह बाथरूम गया नहाने तो उसने तुरंत तनु को फोन लगाया। उसे तनु से ज्यादा उसके पेट में पलने वाली नन्ही सी जान की चिंता थी। वह नहीं चाहता था कि तनु उसकी वजह से किसी भी तरह के तनाव से गुजरे और उसके बच्चे को कोई नुकसान हो।
फोन उठाते ही उधर से तनु का रूआंसा सा स्वर आया। परम ने उसे धीरज बंधाया कि वह ठीकठाक है बिलकुल।
''सबसे पहले तो यह बताइये आप कब आ रहे हैं। आपकी छुट्टी के दिन तो आ चुके। अभी तो आपको यहाँ होना चाहिये था।"
''होना तो चाहिये था मेरी जान लेकिन जो बंदा मेरी जगह आने वाला था वो इमरजेंसी ड्यूटी पर चला गया है। अब जब तक यहाँ वो आ नहीं जाता मैं यहाँ से रिलीव नहीं हो सकता ना। जैसे ही वह आकर जॉइन कर लेगा मैं घर आ जाऊँगा।" परम ने उसे आश्वासन दिया।
''कब से यही कह रहे हो। कब आओगे जी। बहुत याद आ रही है।" तनु उदास और थके स्वर में बोली।
''अभी आ गया तो बच्चे के जन्म के समय तेरे पास नहीं रह पाऊँगा। अच्छा है अभी भले ही थोड़ी देर लग जाये लेकिन जब तुम्हे सबसे ज्यादा मेरी जरूरत होगी तब तो तुम्हारे पास रहूँगा ना और वो भी पूरे दो महीने।" परम ने उसे बहलाया।
ज्यादा वक्त नहीं था। परम ने उससे माफी मांगी। जल्दी ही फोन करने का वादा किया और भरे मन से फोन रख दिया।
अगले आठ दिनों तक वे लोग उधमपुर के आस-पास के गाँवों के अंदरूनी एकांत इलाकों की तलाशी लेते रहे। पकडऩे की बजाए सीधे मृत्युलोक में भेजने में ही अर्जुन को भलाई नजर आती थी। साला टंटा ही खत्म। पकड़ो फिर सालों मुकदमा चलेगा फिर कोई यहाँ के किसी प्रमुख का अपहरण कर लेगा और बदले में मिलिटेंट को छोड़ दिया जायेगा....
बस हमारी मेहनत पर पानी फिर जायेगा।
किस्सा खत्म।
हम गये भाड़ में। हमारी जान की मानो कोई कीमत ही नहीं। इसीलिये अर्जुन वहीं किस्सा खत्म करने में उत्सुक रहता था। ऐसे ही एक दिन जंगलों में भटकते हुए रात हो गयी। देा दिन से वह फिर तनु से बात नहीं कर पाया था। रात के दो बजे सब लोग जंगल में एक खुले स्थान पर बैठ कर सुस्ताने लगे। बैग कंधे से उतारते ही परम को थोड़ा आराम महसूस हुआ। उसने कमर पर हाथ रखकर पीछे की ओर झुकते हुए अपनी पीठ तानी। दो बंदे आस-पास से लकडिय़ाँ बटोर लाए। दो ने पत्थर जमा कर चुल्हा बनाया और लकडिय़ाँ सुलगा दी। एक पतेली में पानी उबलने रख दिया। सुबह चलते हुए उन्होंने एक गाँव से नूडल्स के पैकेट खरीद लिये थे। रात के दो बज रहे थे। भूख के मारे आंते कुलबुला रही थीं।
परम ने तनु को फोन लगाया। अभी समय है तो पाँच मिनट बात कर लेगा फिर कल पता नहीं समय मिले या नहीं। नेटवर्क नहीं मिल रहा था। परम चहल कदमी कर रहा था एक जगह नेटवर्क आ गया तो परम ने तुरंत फोन लगाया।
''हैलो।" पहली रिंग में ही तनु ने फोन उठा लिया।
''क्या हुआ सोई नहीं थी क्या अब तक?" परम ने पूछा।
''नींद नहीं आ रही है।" तनु ने कहा "आप केैसे हो?"
''मैं बिलकुल ठीक हूँ मेडम जी।" परम स्वर को हल्का बनाते हुए बोला। तनु अखबार और टीवी चैनल के मालिक की बेटी है। भरत भाई ने भरसक उस तक यहाँ के हालात की खबर पहुँचने से रोका होगा फिर भी उसे भनक लग ही गयी होगी। और वह अपना पूरा प्रयत्न कर रही होगी कि परम को इस बात का पता न चल जाये कि उसे पता चल गया है।
तनु के बारे में सोचते ही परम के दिल में एक होल सा उठा और अचानक ही उसकी आँखें भर आयीं। वह तो यहाँ रात दिन इतना व्यस्त रहता है कि ना अपने बारे में सोचने की फुरसत मिलती है उसेे और ना ही तनु का ख्याल आ पाता है। लेकिन तनु...?
उसने कभी तनु के बारे में नहीं सोचा। उसे कभी इस बात का ख्याल ही नहीं आया कि तनु वहाँ सबकुछ जानती समझती हर पल कितने तनाव में जी रही होगी।
''और बोलो मेडम जी।" परम भारी गले से बोला।
''क्या हुआ आपकी आवाज इतनी सुस्त क्यों हो रही है।" तनु ने चिंतित स्वर में पूछा।
''कुछ नहीं जानू ऐसी कोई बात नहीं है तू काहे टेन्शन ले रही है।"
''नहीं कुछ तो है।"
परम बोला नहीं मगर तनु समझ गयी। उन दोनों का रिश्ता इतना करीबी है जहाँ शब्दों में कुछ कहने की जरूरत नहीं है। दिल के तार दिल तक सारी खबरें पहुँचा देते थे। तनु बिना परम के बोले भी समझ गयी कि उसका मन बहुत परेशान है।
''मेरी चिंता नहीं करना जी मैं बिलकुल ठीक हूँ। आप बस अपना ध्यान रखना।"
''हूँ...।"
''अभी क्या कर रहे हो?"
''कुछ नहीं बस नूडल्स बन रही है। अब बैठ कर खाएँगे।"
''नूडल्स क्यों खा रहे हो? सब्जी रोटी खाओ ना।"
''अरे बाबा यहाँ रात के दो बजे जंगल में लकड़ी के फट्टों को जलाकर नूडल्स उबाल कर खा पा रहे हैं वही बहुत है। सब्जी रोटी कहाँ से लाऊँ। इस जंगल में रात के दो बजे नूडल्स मिल रही है खाने को वही बहुत हैं।"
तनु के दिल में मरोड़ सी उठी। आज दोपहर को पिताजी ने क्या कुछ नहीं बनवाया था उसके लिए। घर में खाने का भंडार भरा रहता था। पता नहीं तनु को कब क्या खाने को मन कर जाये और वहाँ परम...
भूखा-प्यासा दुश्मनों के पीछे दौड़ता-भागता। सारे दिन भूखा रहने के बाद रात के दो बजे नूडल्स उबाल कर खा रहा है। तनु की आँखें छलछला आयीं।
तभी अर्जुन ने उसे आवाज लगाई। नूडल्स तैयार थी। तनु को बाय बोलकर परम अर्जुन के पास आकर बैठ गया। राघव नाम के जवान ने कटोरों में डालकर सबको नूडल्स दी। रात के ढाई बजे भूखे पेटों को वो नूडल्स इतनी स्वादिष्ट लग रही थी कि पाँच पकवान भी क्या लगेंगे।
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