एक जिंदगी - दो चाहतें
विनीता राहुरीकर
अध्याय-14
परसों अनूप से हुई बातों का असर अब भी तनु के चेहरे पर दिखाई दे रहा था। आज उसने अपना फोन वायब्रेशन पर रखा था। लेकिन काम के बीच-बीच में से वह कनखियों से फोन की तरफ देख लेती। वीकली मैगजीन के लिए आए बहुत सारे आर्टिकल्स को पढऩे के बाद एडिटर ने कुछ चुने हुए आर्टिकल स्टोरीज और कॉलम्स के मटेरियल का गठ्ठा प्यून के हाथ से तनु को भिजवाया था। तनु वीकली मैगजीन की चीफ एडीटर थी। एडिटोरियल टीम के सिलेक्ट करने के बाद फायनली चुने हुए कंटेन्ट तनु के पास आते थे और तनु हर सप्ताह में दो दिन यह काम करती थी। वीकली मैगजीन के लिए मटेरियल चुनकर वह उन्हें कम्पोजर के पास भेज देती। अनूप सण्डे वीकली देखता था और तनु थर्सडे वीकली। आज भी वह एक के बाद एक कंटेंट पढ़ती जा रही थी और जो लेना था उसे अलग करती जा रही थी। लेकिन उसका मन बरबस फोन में अटका हुआ था। अभी तक परम का ना तो फोन आया था और न ही मैसेज। परसों रात में उससे एक घण्टा बात हुई थी बस उसके बाद से अभी तक उसके कोई पते ही नहीं थे। तनु ने मैसेज डाला, फोन लगाया। मैसेज डिलिवर नहीं हुआ और फोन आउट ऑफ कवरेज एरिया बता रहा था।
तनु का दिमाग काम करता रहा लेकिन दिल पूरे समय परम के आस-पास अटका रहा। यह सोचने लगी। क्या पहले भी कभी किसी के लिए उसने ऐसी बेचेनी महसूस की है। क्या पहले भी किसी से बात न हो पाने के कारण या किसी का फोन लग न पाने के कारण वह इतनी परेशान हुई है। लेकिन उसे याद नहीं आया कि ऐसा कभी भी किसी के लिए भी हुआ था। और उसे अचानक परम की कही बात याद आ गयी।
''मेरे साथ ऐसा पहली बार हुआ है कि मुझे ऐसे किसी की याद आयी है।"
और तनु के मन में अजीब खयाल आने लगे।
रात में देर तक किताब पढ़ती रही तनु को कब नींद लग गयी पता ही नहीं चला। मन में तब भी परम के बारे में ही विचार उमड़-घुमड़ रहे थे। अचानक हाथ में पकड़ा फोन घर्राने लगा तो तनु की नींद खुल गयी। वह फोन हाथ में ही पकड़े सो गयी थी। रात का डेढ़ बज रहा था। परम का फोन था। तनु उछलकर बैठ गयी।
''हैलो। आप कहाँ हो दो दिन से" उसने व्यग्रता से पूछा।
''अरे मुझे कॉन्फिडेंशियल काम से अचानक जैसलमेर के पास हेडऑफिस में आना पड़ा। वहाँ से देर रात में निकला था रास्ते से ही नेटवर्क चला गया था। अभी बस जैसे ही दिखा कि नेटवर्क है तुरंत ही तुम्हें फोन लगाया कि तुम दो दिन से परेशान हो गयी होंगी।" परम के स्वर में तनु से भी अधिक व्यग्रता थी।
''अचानक ऐसा क्या काम पड़ गया? सब ठीक तो है ना?" तनु के स्वर में चिंता की झलक थी।
''हाँ सब ठीक है। चिंता मत करना। कुछ जरूरी डॉक्यूमेन्ट्स हेडक्वार्टर पहुंँचाने थे इसलिए अचानक ही निकलना पड़ा। कल रात में काम खत्म करके यहाँ से निकलूँगा तो परसों वापस पहुँच जाऊँगा।" परम ने उसे दिलासा दिया।
''तो क्या फिर से परसों तक बात नहीं करोगे?" तनु के स्वर में मायूसी छा गयी।
''देखो कल अगर थोड़ा सा भी नेटवर्क आ गया तो लगा लूँगा फोन लेकिन अगर नहीं तो परसों सुबह वहाँ पहुँचते बराबर ही सबसे पहले तुम्हें ही फोन लगाऊँगा।" परम ने उसे आश्वासन दिया।
''प्रॉमिस?"
''हाँ बाबा पक्का प्रॉमीस।"
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अक्सर ऑफीस टाईम में मैसेज में और रात में फोन पर दोनों लम्बी बातें करते। तनु का स्वर संयत रहता लेकिन अपने गुजरे जीवन का या वर्तमान समय में घरवालों के व्यवहार को लेकर परम अकसर मानसिक स्तर पर विचलित हो जाता था। तब तनु उसे घन्टों समझाती रहती। शान्त करती, उसे सांत्वना देती।
और परम।
परम धीरे-धीरे उसे प्यार करने लगा था। रात भर उसे नींद नहीं आती थी। चांदनी रातों में अक्सर उसे अपने अंदर कुछ जलता हुआ, सुलगता हुआ महसूस होता। उसे लगने लगा था कि तनु ही वो लउ़की है जो उसे हर स्तर पर समझ सकती है, उसके साथ एक समान, सामंजस्यपूर्ण धरातल पर रहा जा सकता है।
परम का अंतर छटपटा रहा था।
वह जानता था वह तनु से प्यार करने लगा है लेकिन उसे जबरदस्ती अपने मन को दबाना पड़ रहा था। वह तो अपने प्यार का इजहार करने की सोच भी नहीं सकता था। कैसे कहे कि तनु मैं तुमसे प्यार करता हूँ। कह भी दे तो आगे क्या?
क्या वह जीवन में तनु को कुछ दे पायेगा कभी?
सिवाए एक अधूरेपन या भटकन के। और बेबसी की वजह से परम की आँखों की कोरें भीग जाती। तनु कई दिनों से परम के स्वर में उदासी की एक छाया देख रही थी। वह उससे कुरेद-कुरेद कर पूछती लेकिन वह टाल जाता। लेकिन एक इनसान आखीर कब तक अपने दिल मे उठते तूफान के खिलाफ रूढिय़ों और परंपराओं की कश्ती पर बिना डूबे चल सकता है। एक दिन बेकली की हालत में रात में बात करते-करते उसके मुँह से अचानक निकल गया।
''आजकल तुम्हें लेकर कुछ अजीब सा महसूस करने लगा हूँ तनु।"
''क्या अजीब सा?" तनु ने हैरान होते हुए पूछा।
''पता नहीं कुछ अजीब सी फीलिंग आती है मन में।" परम के स्वर मे असमंजस का भाव था।
''कैसी फीलिंग?" तनु आशंकित स्वर में बोली।
''मुझे खुद को समझ में नहीं आ रहा। पर तुमसे बात करना मुझे न जाने क्यों बहुत अच्छा लगता है।" परम ने बात आगे बढ़ाई।
''ओह हो।" तनु को हँसी आ गयी ''ये बात है। तो उसमें अजीब लगने वाली क्या बात है बहुत लोग होते हैं जिनसे हमारे विचार मिलते हैं तो उनसे बातें करना भी हमें अच्छा लगता है।"
परम फिर उहापोह की स्थिति में पड़ गया। बातों ही बातों में उसे इतना तो पता चल ही चुका था कि तनु के जीवन में कोई लड़का नहीं है। और बाढ़ वाली जगह वह अपने लिए तनु के भाव भी देख चुका था। उसने हिम्मत करके बात आगे बढ़ाई।
''नहीं ये सिर्फ अच्छा लगने वाली बात नहीं है।"
''देन व्हाट?" तनु ने पूछा।
''देन व्हाट क्या? आय लव यू।" परम ने अपने अंदर की सारी उर्जा को एकत्रित करके एकबारगी कह ही डाला।
तनु का दिल जोरो से धड़क गया। उसे अपने दिल की धड़कन बाहर तक सुनाई दे रही थी।
''कुछ बोलो ना? नाराज हो गयी क्या?" परम का स्वर संजीदा था।
''न... नहीं तो। नाराज क्यों होऊंगी।" तनु का दिमाग अब भी समझ नहीं पा रहा था कि थोड़ी देर पहले उसने क्या सुना था।
''तो कुछ तो बोलो। जवाब दो ना।" परम के स्वर में आग्रह था।
'' क्या बोलूँ...।"
'' कुछ भी बोलो। कुछ तो जवाब दो।"
'' क्या जवाब दूँ?"
'' क्या फीलिंग्स हैं तुम्हारे मन में मेरे लिए?" परम ने जानना चाहा।
''म... मैं कैसी फीलिंग्स रखूँ आपके लिए। आप शादीशुदा हो। मेरे लिए तो ऐसा सोचना भी...।" तनु को समझ नहीं आया वो क्या कहे।
''सच में? बताओ ना क्या सच में मेरे लिए कभी कोई फीलिंग्स नहीं थी तुम्हारे मन में।" परम ने आग्रह से पूछा।
तनु पेसोपेश में पड़ गयी। पहाड़ों पर जब वो दोनों मिले थे तब तनु से अनजाने में ही अपनी भावनाओं का खुलकर इजहार हो गया था। अब कैसे कह दे कि कभी कुछ दिल में था ही नहीं। या ये पता चलते ही कि परम विवाहित है उसने अपनी भावनाओं का गला घोंट लिया था।
''मैं जिद नहीं करता। तुम दो-चार दिन सोच लो।" तनु को चुप देखकर परम ने कहा और फोन काट दिया।
मैं विवाहित हूँ फिर भी तनु के आकर्षण से खुद को बचा नहीं पा रहा हूँ। क्यों ये लड़की मुझे पागल बनाती जा रही है। ऐसा लगता है मेरे अंदर आज तक जो भी अधूरापन था उसे बस यही लड़की पूरा कर सकती है। मन में जो खालीपान था उसे बस तनु ही भर सकती है। एक आदर्श साथी की, एक समान बौद्धिक साथी की जो तलाश थी वो तनु को पाकर पूरी हो सकती है। परम बेचेन होकर गैलरी में जाकर खड़ा हो गया।
मैं ये गलत कर रहा हूँ, फिर भी अपनेआप को रोक नहीं पा रहा। अगर तनु मना कर देती है तो भविष्य में वो एक प्यारा सा रिश्ता खो देगा।
और अगर वह हाँ बोल देती है तो?
इस कल्पना के साथ ही परम के दिल में रोमांच और खुशी के साथ ही एक हौल भी उठ खड़ा होता है। अगर तनु उसके प्यार को स्वीकार कर लेती है तो वह जीवन में उसे क्या दे पायेगा?
थोड़े दिन रिश्ता निभाएगा, फिर उसे लोक और समाज का वास्ता देकर किसी और के साथ विवाह की बलिवेदी पर खड़ा कर देगा।
तनु के साथ उसके रिश्ते का बस यही भविष्य होगा इस समाज में। या फिर तनु आजन्म कुवांरी रहकर परम के साथ एक विवाहेतर संबंध को निभाकर लांछित होती रहे?
दोनों ही विचार परम के लिए कष्टदायक थे और उसके मन को स्वीकार नहीं थे। उसने एक सिगरेट सुलगाई और तनाव से जूझते हुए लम्बे-लम्बे कश लेने लगा।
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