एक जिंदगी - दो चाहतें
विनीता राहुरीकर
अध्याय-8
केंप आ गया था। तनु की ओर बिना देखे परम जल्दी से अंदर चला गया। राणा, रजनीश, अमरकांत, कृष्णन सब के सब स्लीपिंग बैग्स पर औंधे पड़े थे।
परम भी पाँच मिनट पीठ सीधी करने के लिये अपनी स्लीपिंग बैग पर लेट गया।
''ऐ मायला।" लेटते ही परम के पूरे शरीर में टीस उठने लगी।
''आ गये बड्डी ईश्क लड़ाकर।" राणा ने परम को आँख मारकर पूछा।
''साला कालू किस्मत का बड़ा धनी है। जो लड़की देखो साले पर मर मिटती है।" रजनीश ने आह भरी।
''हाँ लेकिन इस बार मामला जरा गंभीर हो रहा है। अबकी बार लगता है कालू भी लड़की पर मर मिटने की तैयारी में है।" राणा ने फुलझड़ी छोड़ी।
कृष्णन ने रिपोर्ट दे दी थी।
''चुप बे (-)" परम ने राणा को गाली दी।
''सही है बड्डी सही है। दिखता है बच्चा, सब दिखता है।" रजनीश और राणा ठहाका मारकर हँस पड़े। परम दोनों पर गुर्राया। लेकिन पता नहीं क्यों, उसके जिस हाथ ने तनु का हाथ थामा था, वह अपने आप उसके होंठों तक चला आया।
तभी डॉक्टर राठौर ने केंप में प्रवेश किया। राणा और रजनीश ने चुप होकर प्रश्नवाचक निगाहों से उसकी ओर देखा।
''वो न्यूज रिपोर्टर लड़की ने अभी-अभी मुझे बताया कि आपको बुखार है।" राठौर ने अपनी बैग जमीन पर रखकर परम के पास बैठते हुए कहा।
''ओहो! बड्डी अब तुझे बुखार है ये बात भी हमें बाहर से पता चल रही है।" राणा ने ताना मारा।
''अरे जब इतनी तेज आग लगी है तो बुखार तो आयेगा ही।" रजनीश ने तीर छोड़ा।
परम झेंप कर उठ बैठा ''अरे नहीं डॉक्टर! सब ठीक है। हमारी लाईफ में ये सब तो चलता ही रहता है। आदत है।"
''नहीं सर हालात को देखते हुए प्रिकॉशन लेना जरूरी है। बॉडी की इम्यूनिटी अगर कम हो गयी तो बुखार शरीर को बहुत कमजोर कर देगा। और इस वातावरण में ऐसा होना ठीक नहीं है। " राठौर ने बैग में से दो-तीन इंजेक्शन निकाले और एक-एक कर परम को लगा दिये।
स्प्रीट से भीगा कॉटन बॉल इंजेक्शन वाली जगह पर रगड़ते हुए परम ने धीमे स्वर में डॉक्टर राठौर से कहा ''वो न्यूज रिपोर्टर अगर आपको मिले तो उसे समझाइये ऐसे प्रदूषित वातावरण में ज्यादा देर रहना ठीक नहीं है। उसे घर वापस लौट जाने को कहिये।"
राठौर कुछ देर हतप्रभ सा देखता रहा, फिर मुस्कुरा कर सिर हिलाता हुआ, परम का कंधा थपथपाकर चला गया।
''हाय ऽऽऽ।" रजनीश सीने पर हाथ रखकर औंधा गिर पड़ा।
आधे घण्टे का रेस्ट करके सब लोग फिर से ड्यूटी के लिये रेडी हो गये। सब लोग चले गये। परम दो मिनट बाद बाहर निकला। सामने ही तनु खड़ी थी। वह आगे बढ़कर परम की तबियत पूछने लगी। उसके चेहरे पर एक सलज्ज मुस्कान थी। तभी उसके मोबाइल की रिंग बजने लगी। तनु फोन पर बात करने लगी। तभी सिग्नल मिल जाने पर परम को भी फोन कॉल आ गया। वह भी बात करने लगा। ज्यादा देर बात करने का समय नहीं था। दो मिनट बात करके परम ने फोन डिस्कनेक्ट करके अपनी जेब में वापस रख दिया। तनु भी बात खत्म कर चुकी थी। वह बड़े प्रसन्न चेहरे से परम की ओर देखते हुए बोली -
''माँ का फोन था। दो दिन में पहली बार बात हो पायी है। माँ को बच्चो की कितनी चिन्ता होती है चाहे बच्चे कितने भी बड़े हो जाये। आपकी भी माँ का ही फोन था ना? फिकर हो रही होगी उन्हें आपकी।"
''माँ!" परम के मन में यह शब्द एक फाँस की तरह चुभता है। माँ को उसकी इतनी ही फिक्र होती तो...
और हठात ना चाहते हुए भी परम के मुँह से एक कड़वा सच निकल गया ''नहीं मेरी पत्नी का फोन था।"
''पत्नी?" तनु का चेहरा सफेद हो गया। उसकी तो हथेली अनायास ही भींच गयी जिसमें उसने परम का हाथ पकड़ा था और वो तब से अब तक ना जाने कितनी बार उसके गालों और होंठों को छू चुकी थी।
ये बात सुनकर तनु को जितना धक्का लगा होगा, उससे ज्यादा दर्द परम के सीने में उठा था। और पाँच बरस बाद भी वही दर्द कच्ची-पक्की नींद में ये सारी बातें याद करते परम के सीने में उठ खड़ा हुआ और उसने घबराकर तनु को जोर से अपने सीने में भींच लिया।
''क्या हुआ जी?" तनु ने चौंक कर उठते हुए पूछा ''कितने बजे हैं? अभी तक सोऐ नहीं।"
''कुछ नहीं हुआ बुच्ची।" परम ने उसकी नाक पर प्यार से चूमते हुए कहा ''सो जाओ।"
तनु उसके सीने पर सिर रखकर सो गयी। परम उसके बाल सहलाते हुए फिर पुरानी यादों में खो गया।
***
उस दिन तनु को वहीं छोड़कर परम अपनी ड्यूटी पर चला गया। शरीर एक सौर चार बुखार में भी पूरी निष्ठा से अपने कर्तव्यों को पूरा करने में जुटा रहा लेकिन मन में...
मन में सारा समय एक गुनाह के अहसास सा कुछ उठता रहा। परम समझ नहीं पा रहा था किसलिए। वह शादीशुदा है तो है। उसने कभी किसी से कोई वादा या इकरार नहीं किया तो फिर...? फिर क्यों रह-रह कर उसकी आँखों के सामने तनु का सफेद चेहरा आ जाता और मन में तकलीफ हो रही थी।
उससे कुछ गलत हो गया है।
वह गुनहगार है।
पर क्यों?
उसे क्यों किसी गुनाह का अहसास सता रहा है? ना उसने तनु को कुछ कहा है और ना ही उसने परम से। फिर किसने किससे कब और क्या ऐसा कह दिया है जो परम को नहीं पता लेकिन उसके चेहरे पर राणा और रजनीश को दिखाई दे गया।
क्यों उसे लग रहा है कि उससे तनु के हक में कुछ गलत हो गया कि वह कोई अपनी थी और उसने उसे धक्का देकर दूर धकेल दिया है।
सच जानते ही अब तनु यहाँ से चली जायेगी। अब तक तो चली गयी होगी। अब वह तनु को कभी नहीं देख पायेगा, कभी नहीं, जिंदगी में कभी नहीं। और परम के सीने में इतना गहरा दर्द उठा कि उसकी आँखों की कोरें भीग गयीं।
एक तरफ से लोगों को निकालते हुए रात हो गयी। परम वापस ले चलने का ईशारा किया। जमीन पर आते ही परम, कृष्णन और अमरकांत केंप की ओर चलने लगे।
सुबह इस रास्ते पर तनु साथ थी। परम के सीने में मरोड़ उठी। पैर मन भर भारी हो गये। डेढ़-दो दिन के परिचय में यह कैसा लगाव पैदा हो गया था। जैसे सीने से किसी ने दिल ही चुरा लिया हो।
क्यूँ?
क्यूं उसी समय घर से फोन आया।
क्यूं परम के मुँह से सच निकल गया।
हाँ नहीं कह सकता था कि माँ का ही फोन था।
अपनी शादी में परम का कभी मन नहीं था। बस ढो रहा था। लेकिन अपना शादीशुदा होना कभी भी इतना ज्यादा बुरा नहीं लगा था जितना आज लग रहा था। वह क्यों अपने आप को तनु का गुनहगार मान बैठा था।
थके मन से परम ने यूनिफॉर्म बदला और बेग पर बैठ गया। सिर बहुत तेज दर्द कर रहा था। परम का मन कर रहा था कई सारे पैग चढ़ाकर बस सो जाये। सब कुछ भूल जाये।
और तनु?
बहुत बाद में महीनों बाद तनु ने एक दिन बताया था, उसके मन में देश और जनता की सेवा करने वाले जवानों के प्रति बहुत श्रद्धा थी। सैनिकों की बहादुरी, पुरुषार्थ और देशभक्ति की भावना उसे शुरू से ही बहुत आकर्षित करती थी। परम की बहादुरी और कर्मठता देखकर वह पहली ही नजर में उससे प्रभावित हो गयी थी। उस दिन तपते बुखार में भी उसे पूरी लगन और जीवटता से अपना फर्ज निभाते देखकर उसके दिल में परम के लिये बहुत खास जगह बन गयी थी। तनु की शुरू से ही इच्छा थी किसी आर्मी ऑफिसर से शादी करने की। परम को देखते ही उसे अपना सपना साकार होता हुआ लगा था। इसलिए वह पहली नजर में ही परम को पसंद करने लगी थी।
लेकिन परम शादीशुदा है यह सुनते ही तनु के नाजुक मन को ठेस लग गयी थी। तनु ने वहाँ से चला जाना चाहा था लेकिन ना जाने कौन सी अदृश्य शक्ति उसे रोक रही थी। जब ईश्वर दो लोगों को मिलाने की ठान लेता है तो विपरीत से विपरीत हालातों में भी उन्हें अलग नहीं होने देता। तनु भी उस दिन जा नहीं पायी थी।
परम को छोड़कर। हालांकी वह फिर परम से ज्यादा बात नहीं कर पायी थी। पर उसकी आँखेंं और चेहरा परम के सामने आते ही बहुत कुछ कह देते थे।
उस रात परम जी-जान से बचे हुए लोगों को निकालने में जुटा रहा था क्योंकि बारीश फिर तेज होकर अपने तेवर दिखाने लगी थी। लेकिन एक-दम सुबह-सुबह मुँह अंधेरे में उसे एक झाड़ी में फंसी औरत दिखाई दी। परम उसे निकालने लगा। वह औरत गर्भवती थी। हेलीकॉप्टर से लटके-लटके परम ने जैसे-तैसे उसे वेस्ट लॉक लगाया और उसे समतल की ओर ले जाने लगा। हेलीकॉप्टर ऊपर उठकर खाई के बीचों बीच पहुँच गया था। औरत बहुत घबराई हुई थी और बहुत ज्यादा हिल रही थी। परम ने कई बार उससे प्रार्थना की कि वह शांत रहे लेकिन...
उस औरत का वेस्टलॉक खुल गया और वह नीचे गहरी खाई में चली गयी। दूर तक उसकी चीख गूंजती रही
''मुझे बचा लो, मुझे बचा लो।"
परम गहरे अफसोस और दु:ख से भर गया। उसके हाथ से एक जिंदगी फिसल गयी और उसके साथ ही वो मासूम जिंदगी भी खत्म हो गयी जो अभी इस दुनिया में आयी भी नहीं थी।
अब तक वह एक सौ छयासी लोगों को जीवित निकालने में सफल रहा था पर अंत में जाकर...।
परम कैंप में आकर घुटनों में सिर टिकाकर उदास बैठ गया।
कृष्णन और अमरकांत बाहर ही खड़े थे। परम अब और अधिक वहाँ नहीं रह पाया। उसने फैसला कर लिया था वहाँ से वापस लौट जाने का।
तनु से दूर चले जाने का। क्योंकि वह उसे कुछ भी दे नहीं पाता तो क्यों व्यर्थ किसी लड़की की भावनाओं को बढ़ावा दिया जाये। अभी-अभी हुए हादसे ने उसे बुरी तरह से तोड़ दिया था। उसे हद से ज्यादा अफसोस हो रहा था। उस समय परम को नहीं पता था कि तनु गयी नहीं है।
***