Ek Jindagi - Do chahte - 19 in Hindi Motivational Stories by Dr Vinita Rahurikar books and stories PDF | एक जिंदगी - दो चाहतें - 19

Featured Books
Categories
Share

एक जिंदगी - दो चाहतें - 19

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-19

इसी तरह छह महीने बीते और परम फिर कलकत्ता पहुँचा। घर में वही दमघोंटू माहौल था। माँ अब भी अबोला ठाने थी। पिता चुप-चुप ही रहते। भाई सामने आने से कतराता। सुबह जल्दि घर से निकल जाता रात में पता नहीं कब वापस आता। माँ परम से बात नहीं करती लेकिन उसे सुना-सुनाकर दुनिया जहान का जलाकटा बोलती रहती। कभी अपना माथा पीटती, कभी किस्मत को कोसती। सारी जली बुझी बातों का सार बस परम के जनम की घड़ी को कोसना होता था। परम की पलकों की कोरें भीग जातीं।

वाणी नियत समय पर अपने वकील के साथ कोर्ट पहुँच गयी थी। फिर से दोनों अपने-अपने वकील के साथ काउंसलिंग के लिए जज के सामने अलग-अलग हाजिर हुए। एकबारगी फिर परम का दिल धड़क उठा। कहीं वाणी पलट न जाये।

लेकिन वाणी की काउंसलिंग के बाद जज ने दोनों के तलाक का निर्णय दे दिया। परम ने राहत की सांस ली और वाणी को तहे दिल से धन्यवाद दिया। वाणी मुस्कुरा दी।

एक महीने बाद परम को डिग्री मिल गयी। अब परम अपने मनचाहे साथी के साथ जीवन बिताने के लिए पूरी तरह आजाद था। अगले महीने ही वह शादी कर सकता था लेकिन तलाक के चक्कर में परम की ये छुट्टियाँ खत्म हो गयी थीं। उसने भरत देसाई से तीन महीने रूकने को कहा। ताकि उसे फिर एक महीने की छुट्टी मिल सके। भरत भाई ने परम की बात स्वीकार कर ली। तीन महीने बाद एक सादे मगर भव्य समारोह में तनु और परम का विवाह हो गया। इसमें परम की ओर से सिर्फ राणा और रजनीश ही शामिल हुए। भरत देसाई ने अहमदाबाद में ही रहने वाले परम के चाचा-चाची को स्वयं घर जाकर न्यौता दिया लेकिन वे लोग नहीं आये। परम ने बुरी तरह अपमानित महसूस किया। परम का नहीं तो कम से कम भरत देसाई का मान रखने तो आना चाहिये था उन्हे।

दो दिन में विवाह की सारी रस्में पूरी हुई। एक शानदार रिसेप्शन हुआ। और तीसरे दिन तनु और परम घूमने निकल गये। जैसे ही होटल पहुँचे, रूम ब्याय ने सामान रखा और जैसे ही वह लड़का सामान रखकर बाहर गया परम ने तेजी से रूम लॉक किया और इससे पहले कि तनु कुछ समझ पाती परम ने उसका दुपट्टा निकालकर एक और फेंका, उसका कुरता उतारा और उसे पलंग पर पटककर टूट पड़ा।

''आय एम नॉट एन आर्मि पर्सन आय एम ऐ सिविलियन।" तनु घबराकर चिल्लाई। उसकी सांस ही घुटने लगी थी।

''व्हाट" परम चौंक कर बोला।

''अरे बाबा आराम से। मैं फौजी नहीं हूँ सिविलियन हूँ।" तनु सांस लेने की कोशिश करते हुए बोली।

''ओहो" परम ठठाकर हँस पड़ा।

''मेरा शोना"

''मेरी जान"

''मेरा स्वीटू"

''मेरा बुच्चा, तो अब फौजी बन जा। जब पति फौजी है तो पत्नी सिविलियन क्यों रहे।" और परम ने तनु को अपनी बाहों में कस लिया।

छुट्टी खत्म होते ही परम की पोस्टिंग का ऑर्डर आ गया। जयपुर से उसकी पोस्टिंग सीधे पुँछ हो गयी थी। तनु को घोर अफसोस हुआ। वह कुछ दिन भी परम के साथ नहीं रह पायी। पुँछ में परिवार को साथ नहीं रखा जा सकता था लाचार परम को अकेले जाना पड़ा और तनु अपने घर में ही रह गयी।

तभी कृष्णा सोसायटी वाले घर के बार में पता चला और परम ने तनु से घर बुक करने को कहा। जब भी छुट्टी आती परम तनु के साथ भरत देसाई के घर में ही रहता। फिर उनका अपना घर पूरा हुआ और एक गहरी साँस भरकर परम अपनी पुरानी यादों में से बाहर आया। कुछ देर वह तनु के बालों में ऊंगलियाँ फेरता रहा फिर एक सिगरेट सुलगाकर लम्बे-लम्बे कश लेने लगा। हर बार धुँए के साथ वह अपने अंतर के डर, असुरक्षा को भी जोर लगाकर अपने मस्तिष्क से बाहर उगल देेने का भरपूर प्रयास कर रहा था। उसका ऊपरी मन जानता था, मानता था, समझता था कि अब उसके जीवन में जो प्यार उसने चाहा था वो उसके पास है, साथ है, लेकिन अंदर का मन अभी भी डरा हुआ था, असुरक्षित सा महसूस करता रहता। अभी भी रात में अचानक पसीने से भीगा परम चौंक कर उठ जाता है।

जब परविार साथ था तो जीवन में मनचाहा प्यार साथ नहीं था। अब जब सच्चा प्यार साथ है तो परिवार ने छोड़ दिया।

परम के आँखों की कोरें भीग गयी। जीवन में हमेशा उसके साथ ऐसा क्यों होता है। हमेशा किसी एक मोर्चे पर वह अधूरा ही रह जाता है। पिता प्यार करते तो माँ हमेशा छोटे भाई को ज्यादा प्यार करती और परम से सौतेले जैसा व्यवहार करती। बचपन से आज तक कभी रिश्तों में, प्यार में पूर्णता नहीं मिली उसे। तभी एक ओर वह अपनी जान की परवाह न करते हुए देश की खातिर बहादुरी से लड़ता है तो वहीं दूसरी ओर भावनात्मक स्तर पर अपने आपको बेहद कमजोर और डरा हुआ पाता है। बचपन से उपेक्षा अवहेलना ने उसके मन को कच्चा कर दिया था। तभी वह कोई भी दबाव या मानसिक तनाव सहन नहीं कर पाता। तनु माता-पिता के प्यार और अपनेपन के बीच पली बढ़ी है। उसने कभी उपेक्षा या प्रताडऩा नहीं सही तभी वह भावनात्मक स्तर पर इतनी स्थिर, इतनी दृढ़ है। प्रतिकूल परिस्थितियों में या मानसिक परेशानियों वाले दौर में भी सहज सामान्य रह लेती है और परम को भी संभाल लेती है।

तनु एक बहुत प्यारा उपहार है, साक्षात ईश्वर का परम को दिया गया बहुत ही प्यारा और अनमोल उपहार है।

और परम ने तनु को बहुत तेजी से अपनी बाहों में कस लिया। तनु कसमसाकर जाग गयी।

''ओ हो आपको नींद क्यों नहीं आती जी। क्या सोचते रहते हो रात-रात भर पता नहीं। सो जाओ ना।"

''कुछ नहीं जान! बस पुरानी बातें याद कर रहा था।"

''अब भूल भी जाओ ना वो डर। अब तो मैं आपकी हो गयी ना अब तो हम दोनों एक हैं, कोई नहीं है हमारे बीच।"

''है तो।"परम ने कहा।

''कौन है" तनु ने आश्चर्य से पूछा।

''ये।" परम ने तनु की टी शर्ट पकड़ते हुए कहा "हमारे बीच दीवार बन रही है। इसे हटाओ ना।"

''हट बेशरम!" तनु ने परम के हाथ पर चपत मारते हुए कहा" जब देखो तब मजाक। सो जाओ अब।"

परम खिलखिलाकर हँस दिया।

———

***