एक जिंदगी - दो चाहतें
विनीता राहुरीकर
अध्याय-49
परम ने तनु को बताया नहीं था कि वह आ रहा है। वहाँ पहुँचकर वह उसे सरप्राईज देना चाहता था। तभी जब भरत विला पहुँचकर वह टैक्सी से उतरा तो दरबान भागे-भागे आये उसका सामान उठाने सब को आश्चर्य हो रहा था कि वह टैक्सी से क्यों आया है। ड्राइंगरूम में जैसे ही पहुँचा वह रसोईघर से बाहर निकलती शारदा की नजर उस पर पड़ी। क्षण भर के लिये वह भौचक्की सी खड़ी रही फिर अचानक खुश होकर परम की ओर आयी-
''अरे बेटा तुम अचानक खबर भी नहीं दी, कैसे आए?"
''बस अचानक छुटटी सेक्शन हो गयी तो सोचा चलकर सरप्राईज दूँ। बस अभी टैक्सी से उतरा हूँ।" परम ने उनके पैर हुए।
''अच्छा हुआ बेटा बच्चे के जन्म के पहले आ गये।" शारदा बोली" तनु को मैने अभी आराम करने के लिए कमरे में भेजा है जाओं तुम भी हाथ मुँह धो लो उससे मिल लो मैं तुम्हारा सामान और चाय नाश्ता कमरे में ही भिजवाती हूँ।"
परम धीरे से तनु के कमरे में आया। तनु आँख बंद करके पलंग पर लेटी थी। दरवाजे का खटका सुनते ही उसने आँखेंं खोलकर देखा कि कौन है। परम को देखते ही वह उठ बैठी।
''आप? आपने तो बताया ही नहीं कि छुटटी मिली या नहीं।" तनु खुशी से भरकर बोली।
''बस मेरी जान छुट्टी मिली तो भागा चला आया, बताया इसलिये नहीं कि अचानक पहुँचकर तुझे सरप्राईज देना चाहता था।" परम उसके पास पहुँचकर उसे बाहों मे ंभरकर बोला।
''ओ जी।" तनु का गला भर आया। ''तो कल आप टे्रन में थे क्या जब आपने फोन लाया था।"
''नही अजमेर के बस स्टेण्ड पर था।" परम ने उसका माथा चूमते हुए कहा।
''कैसा है मेरा बच्चा?
''मेरी जान।"
''मेरा सोना"
''मेरा स्वीटू।"
''मेरी लाल मिर्च।" परम से खुशी संभाली नही जा रही थी।
''आपकी छुटटी कितने दिनों की है?" तनु ने पूछा।
''दो महीने की है सोना।"
''सच और पोस्टिंग कहाँ की मिली है जी?" तनु ने पूछा।
''वो कुछ दिनों बाद आयेगी। अभी पता नहीं है।" परम ने कहा। वो ये खबर अभी नहीं बाद में देना चाहता था। ''कैसा है मेरा बच्चा।" परम ने तनु के पेट पर हाथ रखा बच्चे ने हाथ-पैर हिलाए।
''ओ, जान गया कि पापा आ गये है।" परम और तनु मुस्कुरा दिये।
तभी दरवाजे पर खटका हुआ। परम थोडा दूर होकर बैठ गया। नौकर अंदर आकर सामान कमरे में रख गया।
''चल मैं जल्दी से नहाकर आता हूँ हाँ।" परम कपड़े लेकर नहाने चला गया।
वापस आया तो नौकर चाय-नाश्ते की टे्र लेकर आया। परम ने उससे कहा कि वह नाश्ता बाहर यानि टेबल पर ही करेगा। नौकर टे्र लेकर चला गया। परम ने तनु का हाथ पकड़कर उठाया और बाहर डायनिंग रूम में कुर्सि पर बिठा दिया। शारदा भी वहीं आ गयी। तीनों बैठकर बातों करने लगे। शारदा ने बताया कि कल तनु को चेकअप के लिए ले जाना है। तभी डॉक्टर डेट बताएगी। परम ने कहा कि वह ले जायेगा तनु को।
भरत भाई रात में परम को आया देख बहुत खुश हुए। दिन में शारदा ने उन्हें बता तो दिया ही था। उस रात परम को बहुत नींद आयी। सारी रात वह तनु का सिर अपने हाथ पर रखकर चैन से बेसुध सोता रहा। सुबह सात बजे परम की नींद खुली। चाय पीकर उसने सबके साथ ब्रेकफास्ट किया और नहा-धोकर रेडी होकर तनु को डॉक्टर के यहाँ ले गया।
अल्ट्रासाउण्ड करते हुए डॉक्टर बोली ''बच्चा तो अभी भी ब्रीच कंडीशन में है। डिलीवरी तो ऑपरेशन से ही करवानी पड़ेगी। बच्चा फुल टर्म हो चुका है। आप कल से लेकर अगले पाँच दिनों के बीच अपनी सुविधा से कभी भी ऑपरेशन करवा सकते है।" डॉक्टर ने बताया।
तभी मॉनीटर पर परम ने देखा बच्चा अपनी ऊँगलियाँ चूस रहा था। डॉक्टर मुस्कुरा दी।
''देखिये उसे भूख लगी है। अपना हाथ चाट रहा है।"
परम डॉक्टर को धन्यवाद देकर तनु को लेकर घर आ गया। घर आकर उसने शारदा को बताया कि डॉक्टर ने क्या कहा। शारदा ने उससे कहा कि हमें कोई अच्छा दिन और महुरत देखना चाहिये। परम ने चाची को फोन लगाकर बताया और उनसे कहा कि पंचांग देखकर कोई अच्छा मुहुर्त बता दें। चाची ने तुरंत ही पंचांग देखकर मुहुर्त बता दिया। परम ने शारदा को बताया तो शारदा ने कहा कि ठीक है अब हमें बच्चे के लिए कपड़े ले आने चाहिये।
उसी शाम तनु, परम, शारदा और भरत भाई मॉल के न्यू बॉर्न वियर सेक्शन में गये और बच्चे का सामान देखने लगे। बैग रूमाल छोटी-छोटी चादरें, कपड़े, मोजे-टोपियाँ। सब लोग अपनी-अपनी पसंद और उत्साह से सामान चुन रहे थे।
परम को यकीन नहीं हो रहा था कि पाँच दिन पहले तक बंदूक से गोलियाँ बरसाने वाले हाथ आज टोपी-मोजे चुन रहे है। पाँच दिन पहले तक जिन हाथों में ए.के. 47 गन रायफल थी आज उनमें छोटे बच्चे के झबले हंै। ढेर सारा सामान खरीद कर सब लोग घर पहुँचे। सबसे ज्यादा भरत भाई उत्साहित थे।
दूसरे दिन सुबह उठकर परम ने बच्चे के सारे कपड़े अपने हाथ सें डिटॉल के पाने में धोए-सुखाए और शाम को प्रेस करके रख दिये। शारदा ने अस्पताल ले जाने वाले कपड़े एक अलग बैग में भर दिये और बैग रेडी कर दी। बाकी कपड़े उसने अलमारी में रख दिये। तनु की बुआ, मौसी-मामी सबको खबर कर दी गयी थी। तनु की बुआ दो दिन पहले आ गयी। ऑपरेशन के एक दिन पहले रात में तनु को अस्पताल में एडमिट कर दिया। शारदा और परम रात में वहीं रूके।
सुबह साढ़े सात बजे तनु को ऑपरेशन थियेटर ले जाने लगे। परम का घबराहट के मारे बुरा हाल था। गोलियों की बौछार के बीच भी निडऱ रहने वाला परम तनु को लेकर इतना डर रहा था कि रोआँसा हो गया। उसने कस कर तनु का हाथ पकड़ लिया। तनु ने उसका हाथ थपथपाकर आश्वासन दिया कि सब ठीक है।
तनु की बुआ, भरत भाई परम के चाचा-चाची सब आ गये। भरत भाई की आँखें भर आयी तनु को देखते ही। 'पापा मैं ठीक हूँ।' तनु उनकी छाती से सिर टिकाकर बोली। तभी सिस्टर आकर तनु को अंदर ले गयी। परम को लग रहा था कि उसे रोना आ जायेगा। वह अपनी बेचैनी छिपाने के लिए कॉरीडोर में चहल कदमी करने लगा।
ठीक आधे घण्टे बाद सिस्टर ने आकर बताया-
''बधाई हो बेटी हुई है।"
10 अक्टूबर सन् 2014
सुबह के ठीक आठ बजकर एक मिनट दस सेकण्ड पर बिटिया का जन्म हुआ। सबके चेहरे खुशी से खिल गये।
''मेरी वाईफ कैसी है? ठीक तो है ना। मैं मिल सकता हूँ क्या उससे।" परम ने व्यग्रता से पूछा।
''अभी नहीं। अभी डॉक्टर स्टिेचज लगा रही है। आधे घण्टे में हम उन्हें रूम में शिफ्ट कर देंगे। सिस्टर हँसते हुए बोली।" बच्चे के कपड़े दे दीजिये। शारदा ने कपड़े दे दिये।
पंद्रह मिनट बाद डॉक्टर ऑरेंज कलर के कंबल में लिपटी, ऑरेज फ्रॉक और टोपी पहनी प्यारी सी गुडिय़ा को लेकर बाहर आयी।
''ये लीजिये। बधाई हो। सब्सोल्यूटली हेल्दी बेबी थ्री पॉइट टू फाईव केजी वेट।" डॉक्टर ने बच्ची को परम की गोद में दे दिया। परम की आँखें छलछला आयीं। गोरी-चिटटी, रुई के फाहे सी, नाजुक गुडिय़ा, लाल गुलाबी होंठ। ऐसा लग रहा था दूध के कटोरे में किसी ने केसर घोल दिया हो। बिलकुल तनु जैसी। परम ने बच्ची को शारदा की गोद में दे दिया। सब लोग बच्ची को लेकर रूम में चले गये। परम तनु के इंतजार में वहीं खड़ा रहा। थोड़ी ही देर में तनु को बाहर लाया गया। परम ने लपककर उसका हाथ पकड़ लिया। तनु को रूम में शिफ्ट करके सिस्टर चली गयी। बच्ची को पालने में लिटाकर सब बाहर चले गये।
परम ने तनु का माथा चूम कर पूछा" ठीक हो ना?"
''बिलकुल। आप खुश हो?"
''तुमने आज मेरे जीवन की दूसरी सबसे बड़ी खुशी दी है मुझे एक अच्छी खबर मेरे पास भी है। मेरी पोस्टिंग अहमदाबाद हो गयी है अब मैं यहीं रहूँगा। तुम्हारे साथ, अपने घर में।" परम उसका हाथ चूमकर बोला।
''सच जी?" तनु भावविभोर हो गयी।
तभी डॉक्टर आयी और तनु को नींद का इंजक्शन देकर आराम करने को कहा।
पाँचवे दिन तनु भरत विला आ गयी और सवा महीने बाद अपने घर। परम ने घर को दुल्हन की तरह सजाया था। तनु के साथ दयाबेन और तनु की मौसी आयी। सबका पूरा समय बच्ची के आस-पास रहते कटता। बच्ची रात भर जागती तो परम उसे रात भर बाहों में झुलाता घूमता रहता। जब वह उससे बातें करता तो बिटिया बड़ी-बड़ी आँखों से टुकुर-टुकुर उसे ताकती रहती। आँखें उसकी बिलकुल परम जैसी थी।
परम बीच-बीच में अर्जुन और विक्रम से बातें करता रहता। वहाँ सब दूर अमन चैन था। सुनकर परम को सुकून मिलता। दो महीने बाद भरत भाई ने बच्ची के जन्म के उपलक्ष्य में एक भव्य समारोह का आयोजन किया। एक बार फिर भरत विला परम के चाचा-चाची, तनु की मौसी-मौसा, बुआ-फुफा मामा-मामी, आशीष और बाकी मेहमानों के आने से उनकी खिलखिलाहटों से गंूजने लगा। सबकी दिन भर, मस्ती-मजाक चलता रहा। परम और तनु भी तीन-चार दिन के लिए वापस वहीं चले गये थे।
पार्टी वाली रात सारे मेहमानों का आना-जाना चल रहा था। परम के चाचा सतीश ने परम और तनु को हॉल के आखरी छोर पर बुलाया। बच्ची को साथ लेकर दोनों चाचा के साथ गये। वहाँ परम के माता-पिता और भाई खड़े थे।
''माँ-पिताजी आप?" परम ने आगे बढ़कर दोनों के पैर छुए। बच्ची को सावित्री के हाथ में देकर तनु ने भी दोनों के पैर छुए।
''सुंदर, अतिसुंदर बोऊ।" परम की माँ ने तनु की ठोडी चूमकर उसे आर्शिवाद दिया।
सावित्री ने बच्ची को उनकी गोद में दिया ''ओ माँ कित्ती सुंदर। अप्रतिम, साक्षात दुर्गा माँ का अवतार। परिवार में पहली बार माँ दुर्गा आयी है। अहोभाग्य।" परम की माँ बच्ची का माथा चूमकर बोली।
सतीश और सावित्री उन्हें लेकर भरत भाई और शारदा से मिलवाने चले गये। सब लोग आपस में एक दूसरे से मिलकर बहुत खुश हुए।
''ये कायाकल्प कैसे हुआ रे?" परम ने छोटे भाई से पूछा।
''दादा थोड़े दिन पहले वाणी भाभी अचानक एक समारोह में माँ को मिली थीं अपने पति के साथ। बहुत खुश थी। कह रही थी कि आपने अच्छा ही किया था कि जबरदस्ती एक अनचाहे रिश्ते को समाज के डर से उम्र भर लादकर घुटन में जीते रहने की अपेक्षा उसे तोड दिया था। अगर आप उन्हें छोड़ते नहीं तो उनकी दूसरी शादी कभी नहीं हो पाती और उन्हें कभी पता नहीं चल पाता कि पति का सच्चा प्यार और सुख क्या होता है। वो अपने पति के साथ बहुत खुश थीं और आपको धन्यवाद दे रही थीं। बस उनकी बातें सुनकर माँ को भी अहसास हुआ कि वो आज तक आपके साथ गलत करती आ रहीं थी। तभी चाचा का फोन आया कि उनको पोती हुई है तो बस उसी के लिए धीरे-धीरे उनके मन में ममता जगी और आज वो यहाँ चली आयी।" भाई ने बताया।
परम के मन पर जो एक थोडा सा अपराध बोध और बोझा था वाणी के प्रति आज वो उतर गया। उसके दिल को आज बड़ा संतोष मिला कि वाणी अपने पति के साथ खुश है। और आज तक जो काम वह नहीं कर पाया, उसे उसकी बिटिया ने कर दिखाया। आज उसका पूरा परिवार एक हो गया। उसने तनु की ओर देखा। आज वह सबसे ज्यादा सुंदर लग रही थी। परम की बेतरह इच्छा हुई उसे गले लगाकर चूमने की। तनु उसकी मंशा समझ गयी, उसने परम की ओर देखकर आँखें तरेरी ''अभी नही रात में।"
''सड़ी, बुच्ची, लाल मिर्च।" परम धीरे से बोला।
तभी आशीष भागता हुआ आया ''जीजू चलो सब ग्रुप फोटो के लिये आपको और दीदी को बुला रहे हैं।"
परम तनु और अपने भाई के साथ सब लोगों तक आ गया। बीच में परम और तनु, परम की गोद में उसकी बेटी, बगल में भाई और आशीष एक ओर परम के माता-पिता, चाचा-चाची दूसरी ओर भरत भाई, शारदा, मौसा मौसी, बुआ-फुआ, मामा-मामी, और चाचा का बेटा।
परम का परिवार आज एक हो गया। देश के प्रति और अपने परिवार के प्रति प्यार निभाने में वह सफल रहा। वह दोनों मोर्चों पर विजयी रहा।
समाप्त
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