Ek Jindagi - Do chahte - 6 in Hindi Motivational Stories by Dr Vinita Rahurikar books and stories PDF | एक जिंदगी - दो चाहतें - 6

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 6

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-6

थोड़ा सा नीचे जाते ही सामने का दृश्य देखकर सबके रोंगटे खड़े हो गये। पहाड़ी पर थोड़े से समतल स्थान के बाद थोड़ी तीखी ढलान थी वहाँ झाडिय़ों में जगह-जगह इंसानी लाशें अटकी हुई थीं। क्षण भर को उन सबके फौलादी सीने भी दहल गये। बहुत ही विभत्स दृश्य था। झाडिय़ों में अटककर उनके कपड़े फट गये थे। कई दिन से पहाड़ों पर से रगड़ खाकर नीचे बहते और लगातार बरसते पानी में रहने से लाशों के चेहरे क्षत-विक्षत हो गये थे। पहचान में नहीं आ रहा था कि कौन औरत है और कौन आदमी। साँस लेना दुभर था। बहुत रोकने पर भी रजनीश को उल्टी हो गयी।

राणा ने उसे गाली दी ''अबे साले बारीश ने पहले ही क्या कम गंदगी मचाकर रखी है जो तू भी शुरू हो गया।"

लेकिन कमोबेश सभी की हालत वैसी ही थी। लेकिन फर्ज सारी बातों से ऊपर था। सेवा का जज्बा एक बार दिल में भर जाये फिर हालात चाहे जो भी हो, कैसे भी हो, कर्तव्य की भावना सर्वोपरी होती है। वही शरीर में ऊर्जा का भरपूर संचार कर देती है। परम और उसके जवानों के सामने भी उनका कर्तव्य प्रमुख था।

क्षण भर में सारी बातों को दिमाग में हटाकर इन लोगों ने इस बात पर ध्यान केन्द्रित किया कि वहाँ से लाशों को बाहर कैसे निकाला जाये। परम ने एक सदस्य को कैंप की तरफ दौड़ाया कि एम्बूलेंस लेकर आए। परम और राणा एक ओर ढलान पर उतरने लगे। पास की झाड़ी में एक शरीर अटका हुआ था। पास जाते ही दोनों ने आँखें भींच ली। उस व्यक्ति के शरीर के सारे कपड़े फट चुके थे। उसकी हालत और पास से उठती दुर्गन्ध से दोनो समझ गये कि वह जीवित नहीं है। उसका एक हाथ और पैर झाडिय़ों में फंस गया था। शरीर अकड़ा हुआ था। राणा और परम को उसे टहनियाँ तोड़कर और खींचतान कर बाहर निकालना पड़ा।

''ऐ मायला..." उसे ऊपर समतल जगह पर रखते हुए परम के मुँह से निकला।

तब तक फोर्स के अन्य सदस्यों ने आस-पास से चार-छह लाशें और लाकर रख दी। जब तक एम्बूलेंस आयी तब तक दस-बारह लोगों को निकाला जा चुका था। दो लोगों ने फटाफट लाशों को एम्बूलेंस में भरा और केंप की ओर ले गये। लाशों के दावेदार मिल गये तो ठीक वरना उन्हें पास के शहर की मोरच्यूरी में भेज दिया जायेगा।

रात होने तक परम और उसकी फोर्स पहाड़ी पर जितना नीचे तक उतर सकते थे उतर कर तिरसठ लाशें निकाल चुके थे। अब तक एक भी व्यक्ति जीवित नहीं मिला था। अभी तो बहते पानी में न जाने कितने डूबकर खाई में बह गये होंगे।

''अब और नीचे उतरने के लिये हेलीकॉप्टर से ही उतरना पड़ेगा। ऐसे तो नीचे जाना संभव नहीं है।" परम ने खाई की तरफ देखते हुए कहा।

''हाँ, मैं अमरकान्त को बोल देता हूँ वह हेलीकॉप्टर लगा देगा।" रजनीश ने हाथ-पैर तानते हुए कहा ''चलो थोड़ी देर के लिए केंप में चलते हैं। वैसे क्या लगता है तुम्हें उस तरफ वाली ढलान पर कोई हो सकता है क्या।"

''हो तो सकते हैं कुछ लोग। ऊपर उधर से पानी का जो बहाव है तो वहाँ से बहे हुए लोग उसी तरफ वाली ढलान पर फँसे होंगे।" परम ने केंप की ओर चलते-चलते ही पीछे की ओर ईशारा किया।

''अभी तक तो कोई भी जीवित नहीं मिला। पता नहीं कोई बचा भी है या नहीं।" रजनीश अफसोस भरे स्वर में बोला।

''क्या पता यार।" लोगों की ऐसी हालत देख-देख कर परम का दिल दर्द से भरा जा रहा था। और उस हवा में साँस लेते हुए अब उसका सिर भारी होने लगा था। केंप में पैर रखते बराबर ही दोनों ने देखा राणा, डॉक्टर राठौर और बाकी सब भी बैठ कर व्हिस्की के पैग चढ़ा रहे थे। रजनीश ने एक नजर घूर कर राणा को देखा उसके हाथ से ग्लास लिया और एक ही साँस में खाली कर दिया।

राणा जोर से हँस दिया ''स्साले, बॉटल रख रहा था तब तूने गालियाँ दी थी और अब पड़ गयी ना जरूरत।"

रजनीश भी जोर से हँस दिया। राठौर ने एक ग्लास में पैग बनाकर परम को दिया। दस मिनट सब अपना दिल और दिमाग हल्की-फुल्की बातों और मजाक से बहलाते रहे फिर अगली पारी की बातचीत और योजना बनाने लगे। आधे लोग एक तरफ, आधे दूसरी ओर की पहाड़ी पर जायेंगे और परम, अमरकांत के साथ हेलीकॉप्टर से गहरी खाई की ओर तलाश करेगा। राठौर ने राहत कार्य के अंतर्गत एक संस्था की ओर से आए खाने के पैकेट लाकर सबसे कुछ खाने का आग्रह किया, लेकिन किसी का भी खाने का मन नहीं किया। दो-दो पैग लेकर सब वापस मुस्तैदी से कमर कसकर तैयार हो गये ड्यूटी पूरी करने के लिये।

रस्सियाँ, पीने का पानी सब जरूरी सामान पीठ पर लाद कर आठों जवान निकल पड़े। बारीश फिर शुरू हो गयी। सबके मुँह से गालियाँ निकलने लगी। रात का समय वैसे भी थोड़ा दिक्कत भरा होता है, उस पर अब यह बारीश उनके काम में विध्न डालने के लिये फिर आ गयी सर्च एरिया तक पहुँचने तक बारीश खासी तेज हो चुकी थी जवान तरबतर हो गये।

''इस बहाव के कारण जो थोड़े बहुत लोग उपर की ओर अभी तक अटके भी होंगे तो वो भी फिसलकर और नीचे चले जायेंगे।" राणा ने चिंतातुर स्वर में कहा।

''हाँ, और बादलों की स्थिति देखकर लगता नहीं है कि बारीश सारा दिन रुकेगी।" अमरकांत ने आसमान की ओर देखते हुए कहा।

''धत्त। मायड़ा....।" परम ने सिर झटका। जवानों को सदी, गर्मी, धूप, बरसात, तपती लू और गिरती बर्फ में हर तरह की विकट परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्य निभाने की कठिन ट्रेनिंग मिली हुई थी लेकिन अभी उन्हें चिंता इस बात की थी कि फंसे हुए लोग पानी में बहकर गहरी खाईयों की ओर ना चले जायें। सब लोग अलग-अलग जोडिय़ाँ बनाकर काम में जुट गये। परम, कृष्णन और अमरकांत हेलीकॉप्टर में बैठकर गहरी ढलान की ओर निकल गये। परम और अमरकांत गौर से देखते रहे कि कहाँ कोई फंसा हुआ लग रहा है। एक जगह झाडिय़ों में कुछ लोगों के फंसे होने की आशंका हुई। परम ने तुरंत अमरकांत को हेलीकॉप्टर निर्देशित स्थान पर ले चलने को कहा और अपना वेस्ट लॉक लगाकर झाडिय़ों के ऊपर पहुँचते ही अमरकांत को जरूरी निर्देश देकर परम हेलीकॉप्टर से नीचे कूद गया।

कृष्णन नीचे झाँककर स्थिति का जायजा लेता हुआ अमरकांत को हेलीकॉप्टर आगे पीछे या ऊपर-नीचे लेने का निर्देश देता रहा।

परम जब नीचे पहुँचा तो उसने देखा उसका अंदाजा सही था, झाडिय़ों में चार-पाँच लोग फंसे हुए थे। लेकिन कोई भी जीवित नहीं था शरीर फूल कर अकड़ गये। भयानक दुर्गन्ध से परम का साँस लेना दुभर हो गया, सिर चकराने लगा। कमर से चाकू निकालकर उसने तेजी से झाडिय़ों की टहनियाँ काटी और दो लोगों को कंधे पर लाद लिया। कृष्णन ने अमरकांत को ऊपर चलने का इशारा किया।

समतल जगह पर शरीरों को रखकर परम ने वापस वही प्रक्रिया दोहराई। गहरी खाईयों में जाकर उसने तैतीस लोगों को बाहर निकाला। लेकिन कोई भी जीवित नहीं मिला। दिन ढल गया था। परम थक गया था। गिरती बारीश की ठंडक ने हड्डीयाँ तोड़ दी थीं। कपड़े तरबतर हो गये थे। बरसाती पानी लगातार लगते रहने के कारण आँखें बुरी तरह से जलने लगी थी। लगातार दुर्गंध के कारण जी बुरी तरह मिचला रहा था। केंप में जाकर परम ने साबुन से हाथ पैर धोए और कीचड़ में लथपथ यूनिफॉर्म निकालकर सूखी यूनिफॉर्म पहनी। एम्बूलेंस को बॉडीज उठाने के लिये भेजा। इतने में बाकी लोग भी आ गये। राणा और रजनीश ने बारह लोगों को जीवित निकाला था जिसमें से चार-पाँच की हालत गंभीर थी। सबको पास के शहर के अस्पताल में भेज दिया गया था।

अब तक कुल एक सौ उन्तीस लोगों को इन लोगों ने निकाल लिया था। सब लोग बैठकर आगे के सर्च की योजना बनाने लगे। तभी केंप के बाहर गाडिय़ाँ आकर रुकी। सरकारी और कुछ एक गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से खाने के पैकेट और पानी की बोतलें आयीं थीं। कर्मचारी सारा सामान निकालकर बांटने लगे। बिसलरी की बोतलें एक ओर रख दी गयीं। राणा ने खाने का एक पैकेट परम को दिया।

''नहीं यार मन नहीं कर रहा कुछ भी खाने का।" परम ने कहा।

''खा लो सर। यह तो नीयति है क्या कर सकते हैं।" राणा ने आग्रह किया।

''नहीं यार। रहने दो।" परम ने बेचेनी से अपनी गरदन पर हाथ फेरते हुए कहा। उसका जी बहुत बुरी तरह से मचला रहा था। उसे पता था कुछ भी अगर खाया तो उलट जाएगा।

राणा फिर से आग्रह करने ही वाला था मगर तभी कृष्णन ने उसे रोक दिया। वो जानता था परम साल के दोनों नवरात्र पूरे नौ दिन सिर्फ पानी पीकर उपवास करता था। दो-चार दिन भूखा रहने से उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। फौजी है तो क्या हुआ है तो इंसान ही, और उस पर भी कृष्णन को पता था परम के सीने मे अत्यन्त संवेदनशील ह्दय बसता है। वो किसी के भी दर्द से बहुत ज्यादा विचलित हो जाता है। कृष्णन ने व्हीस्की का एक लार्ज पैग बनाकर परम को थमाया।

परम के चेहरे पर एक कृतज्ञता भरी मुस्कान आ गयी। उसे सच में अभी इसी की जरूरत थी।

''थैंक्स बड्डी।" परम ने व्हिस्की का एक लम्बा घूंट भरते हुए कहा।

आधे घन्टे बाद ही सब लोग वापस दूसरी पहाड़ी पर सर्च करने के लिए रवाना हो गये। परम कृष्णन और अमरकांत हेलीकॉप्टर की तरफ चलने लगे। हेलीकॉप्टर के आस-पास पाँच छ: लोग खड़े थे उनमें से एक के कंधे पर वीडियो कैमेरा था।

एक के हाथों में मंहगा प्रोफेशनल फोटोग्राफी केमेरा था। सबके बीच में एक व्यक्ति छाता लेकर खड़ा था। परम समझ गया वो सब लोग किसी टीवी चैनल के न्यूज रिपोर्टर है। ईलाके के हालात के कवरेज के लिये आये हैं। अमरकांत हेलीकॉप्टर के पास पहुँच गया तो वो लोग उससे बातें करने लगे। पानी अब भी लगातार बरस ही रहा था। सूखी यूनीफॉर्म भी गीली हो गयी। जूते कीचड़ में लथपथ हो गये। परम और कृष्णन हेलीकॉप्टर में बैठने की तैयारी करने लगे। परम ने अपना वेस्टलॉक लगाया और खाई के उस ओर का जायजा लेने लगा जहाँ उसे आज सर्च करना था।

''आप क्या सोचते हैं, क्या वहाँ इतनी गहरी खाई में भी कोई हो सकता है।"

अपने पीछे एक लड़की की आवाज सुनकर परम ने चौंककर पीछे देखा। बाईस-तेईस बरस की एक लड़की छाता लेकर खड़ी थी। जींस पहनी होने के कारण दूर से परम ने उसे भी लड़का ही समझा था।

''हाँ एहतियात के तौर पर हमें पूरे ईलाके को ही छानना पड़ेगा। पहाड़ी के उस तरफ काफी मकान हैं और खेत भी हैं बहुत लोग हो सकता है कि उधर से बहते हुए इस खाई की ओर आ गये होंगे।" परम ने जवाब दिया।

''ओह।" लड़की ने कहा ''ये स्पेशल फोर्स आपकी ही है ना?"

''हाँ।" परम ने संक्षिप्त उत्तर दिया। वह समझ गया यह लड़की अमरकांत से बातें करके आयी है।

लड़की की आँखों में प्रशंसा के गहरे भाव उभर आए और चेहरे पर एक स्निग्ध मुस्कुराहट छा गयी। परम उसके भाव देखकर समझ गया, यह लड़की फौजी जवानो के प्रति बहुत भक्ति और श्रद्धा रखती है। जवाब में परम के चेहरे पर भी एक कोमल मुस्कुराहट आ गयी। उस लड़की ने एक गहरी दृष्टी से परम को देखा। परम झेंप गया। कुछ चेहरे प्रथम झलक में ही मन को बरबस अपनी ओर खींच लेते हैं। आँखों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, बड़े भले से लगते हैं। इस लड़की का चेहरा भी बड़ा मीठा-सा अहसास दे रहा था। गोरा चि_ा रंग, छोटी पर भावपूर्ण आँखेंं। कान में छोटे-छोटे टॉप्स, नाक में हीरे की छोटी सी लौंग। लम्बी सीधी नाक और उसके होंट और मुस्कान बहुत प्यारी थी, बहुत ही प्यारी।

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