एक जिंदगी - दो चाहतें
विनीता राहुरीकर
अध्याय-20
सुबह के साढ़े सात बज गये थे जब तनु की नींद खुली। उसने देखा वह वैसे ही परम के सीने पर सिर रखकर सो रही है। तनु उठकर बैठ गयी। परम उसे देखकर मुस्कुरा रहा था।
''आप सारी रात ऐसे ही लेटे रहे बाप रे। आपका हाथ सुन पड़ गया होगा। आपने मुझे तकिये पर क्यूँ नहीं सुला दिया।" तनु झेंप कर बोली ''मैं भी तो ऐसे घोड़े बेचकर सो जाती हूँ कि बस कुछ होश ही नहीं रहता।"
''ऐ पगली! तो क्या हुआ। तुझे चैन से सेाते देखकर मेरे दिल को इतना सुकून मिलता है कि बता नहीं सकता। ऐसा लगता है कि बस रात भर मुझे देखता रहूँ।" परम उसके गालों पर से बालों की लटें हटाते हुए बोला। जवाब में तनु मुस्कुरा दी। "मैं चाय बना लाती हूँ।
तनु नीचे चाय बनाने चली गयी। परम मुँह हाथ धोने वॉशरूम में चला गया।
''अभी तो कुछ काम नहीं है ना? बस साढ़े दस बजे सुपर मार्केट चलेंगे।" परम किचन में आते हुए बोला।
''हाँ जी।" तनु चाय की ट्रे लेकर डायनिंग रूम में आ गयी।
परम न्यूज पेपर पढऩे लग गया। बीच वाले पन्ने पर एक आर्टिकल था भरत भाई देसाई का। भरत भाई देसाई याने तनु के पिताजी। गुजरात के एक प्रसिद्व न्यूज चैनल और न्यूज पेपर के मालिक। सिर्फ उनके खुद के ही नहीं बल्की देश भर के अखबारों में उनके लेख बड़े आग्रह से मंगवाए जाते थे। उन्ही के न्यूज चैनल के लिए कव्हरेज लेने के लिए तनु उस बाढ़ वाली जगह आयी थी और परम से मिली थी। उस समय उस बाढ़ वाली स्टोरी से भरत भाइ का चैनल रातों रात प्रसिद्व हो गया था।
तनु ने बाद में बताया था जब वो दिल्ली में मिले थे... उसने चुपचाप से परम के सारे शॉट्स एक सीडी में कॉपी कर लिये थे और रात-रात भर चोरी छुपे अपने कमरे में लैपटॉप पर परम को देखती रहती थी।
तनु तुम्हारे पापा का आर्टिकल आया है।" परम ने पेपर तनु को दिखाया।
तनु उत्सुक होकर पढऩे लगी।
''जैसे ही तुम खाना बनाना शुरू कर दोगी। हम सबसे पहले तुम्हारे मम्मी-पापा को घर बुलाएंगे।" परम ने कहा।
''और आपके चाचा-चाची उन्हें कब बुलाएंगे?" तनु ने सवाल किया।
''उन्हें मनाने में थोड़ा वक्त लगेगा, पर मुझे पूरा विश्वास है कि मैं जल्द ही उनको मना लूँगा। क्या करूँ वाणी को चाचा-चाची ने ही पसंद करके माँ को बताया था। और मैंने उनकी पसंद को अपने जीवन से ही खारिज कर दिया, अस्वीकार करके छोड़ दिया तो उनके स्वाभिमान को ठेस पहुँचना स्वाभाविक ही है। उन्हे इस नयी परिस्थिति को स्वीकार करने में थोड़ा समय लगेगा।" परम ने जवाब दिया।
तनु गंभीर हो गयी अचानक। ऐसे प्रसंगों से वह आज भी थोड़ा संजीदा सी हो जाती है।
''ऐ मेरी बुच्चू।" परम ने प्यार से उसकी नाक को छूते हुए कहा ''सबकुछ बहुत जल्द ठीक हो जायेगा। ऐसे उदास नहीं होते। हमारा सारा परिवार जल्दी ही साथ में होगा।"
तनु मुस्कुरा दी।
''हाँ बस ऐसे ही मुस्कुराते रहिये जी, आपकी मुस्कुराहट ही हमारे जीने का सहारा है।" परम ने हँसते हुए कहा। "चलिए चाय पी लीजिये, ठण्डी हो जायेगी।" तनु भी हँस पड़ी।
साढ़े दस बजे दोनों बे्रकफास्ट करके सुपर मार्केट चले गये। एक के बाद एक सारा सामान लेते डेढ़ बज गया।"
''कुछ एक बचा हुआ सामान ले लेते हैं और खाना खाकर ही घर वापस जायेंगे ताकि दुबारा ना आना पड़े ठीक है ना?" हल्दी, लाल मिर्च और धनिया पाउडर के पैकेट उठाते हुए तनु ने परम से पूछा।
''बिलकुल ठीक है जी श्रीमती जी। आपका हुकुम सिर आँखों पर।" परम ने ढेर सारे अलग-अलग ब्रांड के साबुन, शैम्पू, डियो, पाउडर और परफ्यूम ट्रॉली में रखते हुए कहा।
तनु बड़े उत्साह से एक-एक मसाले, दालें, चावल और रसोई की अन्य चीजें चुन रही थी। परम उसकी खुशी देखकर मन ही मन अपार संतोष का अनुभव कर रहा था।
''इतनी चीजें भर लीं। मेडम जी आपको खाना बनाना भी आता है या नहीं। पता चला कल से रोज मुझे ही खाना बनाना पड़ रहा है।" परम ट्रॉली में भरे हुऐ ढेर सारे सामान को देखकर बोला।
''अच्छा जी। और इतनी बार जो आपको खाना बनाकर खिलाया है वो?" तनु ने नूडल्स के पैकेट उठाते हुए कहा।
''अब मुझे क्या पता कि वो आपने बनाया था या मम्मी ने। हो सकता है खाना पूरा मम्मी ने बनाया है और आपने अपना नाम ले लिया हो। मेरे सामने बनाओ तो मानूंगा ना।" परम ने तनु को चिढ़ाया।
''कितने बुरे हो आप। उस दिन तो बड़ी तारीफों के पुल बांध रहे थे।" तनु ने भौंहे चढ़ाते हुए कहा।
''वो तो बिवी को खुश रखने के लिए करनी पड़ती है। आखीर घर में रहना है ना।" परम हँसने लगा।
तनु भी हँस दी।
ट्रॉली पूरी भर चुकी थी। उसमें अब और अधिक सामान रखने की गुंजाईश नहीं बची थी। परम जाकर दूसरी ट्रॉली ले आया। जल्दी ही दूसरी ट्रॉली भी भर गयी।
''उफ"... परम ने सामान से भरी हुई ट्रालियों की ओर देखते हुए सोचा। नये सिरे से गृहस्थी जमाना कितनी मेहनत का काम है। पुश्तैनी घर में दादी और माँ ही सारा काम देखती थी। घर का सारा सामान वो ही लाती थीं। परम तो बहुत कम उम्र में ही मिलेट्री में चला गया था। छुट्टियों में कभी घर जाता भी था तो बस सब्जी भाजी ला दिया करता था या कार में बिठाकर माँ को बाजार ले जाता था। सामान माँ ही देखती चुनती थी परम का काम बस बिल अदा करना होता था।
जब उसकी अजमेर में पोस्टींग थी तब उसे रहने के लिए मकान मिला हुआ था। उस समय वाणी दो-चार बार कुछेक दिनों के लिए उसके पास आकर रही थी। तब पहली बार परम को मार्केट जाकर किराने का सामान लाना पड़ा था क्योंकि वाणी जितने दिन रहती खाना खुद ही बनाती थी। लेकिन तब भी सामान इतना ज्यादा नहीं आता था। या शायद परम को भी इतना उत्साह नहीं था जितना आज है। तब वह बस जेब से पर्स निकालकर बिलों का भुगतान करके ही अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता था। किसी भी काम में उसका व्यक्तिगत इन्वोल्वमेंट नहीं होता था।
आज तनु के साथ हर बात में वह पूरे मन और उत्साह से शामिल होता है शायद इसीलिए उसे आश्चर्य हो रहा था कि रसोईघर में इतने सारे सामान की जरूरत होती है।
दोनों ट्रॉलियाँ सामान से खचाखच भर चुकी थीं। परम बिल बनवाने के लिऐ पैमेन्ट काउन्टर पर लाईन में लग गया। बिल बनाने वाला व्यक्ति इतना सारा सामान देखकर हँसने लगा। जवाब में परम भी मुस्कुरा दिया।
''नये घर में शिफ्ट हुए हैं क्या सर?" काउन्टर पर बैठे व्यक्ति ने पूछा।
''हाँ।"
''तभी इतना सामान है।"
उस समय तक शॉप में इक्का दुक्का लोग ही थे तो बिलिंग जल्द ही हो गयी। परम ने राहत की साँस ली। अच्छा हुआ सुबह सबसे पहले आ गये। अगर कभी शाम को आते तो भीड़ बढ़ जाती और बिलिंग करवाने में पता नहीं कितना समय लग जाता।
शॉप के दो लागों ने फटाफट सारा सामान कार्टन्स में पैक किया और कार में रखवा दिया। कार की डिक्की के साथ ही पिछली पूरी सीट भी सामान से भर गयी। तनु परम के साथ अगली सीट पर बैठ गयी। दोपहर का डेढ़ बज रहा था परम ने कार सीधे होटल पे्रसिडेन्ट के समाने रोकी।
दोनों उतर कर होटल के डायनिंग में आकर बैठ गये।
''बाप रे घर सेट करना कितना मेहनत भरा और मुश्किल काम है।" तनु ने अपनी पीठ कुर्सि से टिकाते हुए कहा। परम तनु के चेहरे की ओर देखता रह गया। लड़कियाँ शादी के बाद ससुराल जाती हैं तो उन्हे जमी-जमायी घर गृहस्थी मिलती है। यदि पति की नौकरी दूसरे शहर में हो तब भी बहु के घर में आने से पहले सास बेटे का घर सेट कर देती है। शादी के बाद तो तोहफे में मिले सामान से बचाखुचा भी घर सेट हो जाता है। लड़कियों को इतनी भागदौड़ और मेहनत नहीं करनी पड़ती।
लेकिन तनु तो बिलकुल खाली घर में आयी है। जहाँ एक चम्मच से लेकर डबलबेड तक सब कुछ उसे खुद ही लाना पड़ा है। और सिर्फ सामान ही क्यों घर बनते समय भी तो बुकिंग से लेकर इंटिरियर करवाने तक सारी दौड़भाग उसी ने की थी। परम चार महीने बाद जब छुट्टी पर आता तब वह भी तनु के साथ दिन-दिन भर घूमकर कभी फर्नीचर खरीदता कभी किचन बाथरूम की टाईल्स सिलेक्ट करने जाता तो कभी इंटिरियर डेकोरेटर के साथ बैठकर घर का इंटिरियर डिजाईन करता।...
''हाँ मेहनत तो बहुत हो गयी है। तुम्हारी सास होती तो तुम्हारे घर में आने से पहले ही घर सेट कर देती तुम्हे इतनी परेशानी नहीं होती फिर।" परम को बहुत अफसोस होता है कि उसकी माँ क्यूँ तनु को स्वीकारने को तैयार नहीं है। वह डेढ़ साल पहले वाणी को कानूनन तलाक देकर छोड़ चुका है फिर भी।
''ओए। मेजर साहब! सास नहीं है तो क्या हुआ आप हो मेरे साथ तो मुझे किसी की भी क्या जरूरत है जी। तिनका-तिनका करके हमने अपना घर खुद बनाया है। एक-एक चीज हमने अपनी पसंद से सजाई है। कितनी लड़कियों को यह सौभाग्य मिलता है बताइये। ये हमारा घर है, इसमें सबकुछ बस हमारा है।" तनु ने परम की बाँह पर अपनी हथेली फिराते हुए कहा।
जवाब में परम ने आँखों मे ढेर सारा प्यार भरकर तनु की ओर देखा। तनु की यही भावनाएँ, सोचने का यह तरीका परम को छू जाता था। यही वजह थी कि वह तनु से इतना प्यार करता था।
वेटर आकर ऑर्डर ले गया। आज पता नहीं क्यूँ परम को बड़ी जम कर भूख लगी थी। उसने वेटर से खाना जल्दी सर्व करने को कहा। वेटर मुस्कुराते हुए चला गया। वह देख रहा था कि यह जोड़ा पिछले कई दिनों से रोज दोपहर का खाना खाने आ रहा है, मगर समझ नहीं पा रहा था कि ये लोग शहर घूमने आए हैं कि काम से।
''घर लौटते हुए फल सब्जियाँ भी लेते चलते हैं।" अचानक तनु ने कहा।
''क्यूँ जी? मेडम कल से घर पर खाना बनाना शुरू कर रही है क्या?" परम ने चहककर पूछा। तीन महीनों तक सुबह शाम मेस का खाना खा-खाकर वह उकता जाता है। तरस जाता है घर के, अपनी पसंद के खाने के लिए।
''सुबह बना लूँगी शाम को बाहर खा लेगें" तनु ने कहा।
''आलसी कहीं की। उसमें भी एक टाईम बाहर खाना ही है।" परम हँसने लगा।
''बस जी दो दिन और।" तनु ने बड़ी मासूमियत से कहा।
वेटर ने आकर खाना सर्व कर दिया। परम तनु से कहने लगा कि एक दो दिन में अनुप को घर बुला ले। अनुप के लिए परम के मन में खास जगह थी। उस दिन दिल्ली रेलवे स्टेशर पर अनुप परम को पहचानकर आवाज नहीं देता, उससे आकर मिलता नहीं तो तनु परम को कभी भी नहीं मिल पाती।
और 'नहीं मिल पाती' इस खयाल से ही परम कांप जाता। इसीलिए वह हर घड़ी उस घड़ी को धन्यवाद देता है जिस घड़ी अनूप उससे मिला था।
तनु भी अनूप का आभार मानती है। अगर वह परम के सामने तनु का जिक्र नहीं करता, उसे तनु का फोन नम्बर नहीं देता तो...
तनु ताउम्र परम के प्यार की एक प्यास मन में लिए घुटती रहती लेकिन क्या अनूप ने यूँं ही परम के सामने तनु का जिक्र कर दिया था।
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