Ek Jindagi - Do chahte - 42 in Hindi Motivational Stories by Dr Vinita Rahurikar books and stories PDF | एक जिंदगी - दो चाहतें - 42

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 42

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-42

दूसरे दिन सवा दस बजे परम और तनु डॉक्टर के यहाँ जाने के लिए निकले। ड्रायवर ने कार लाकर घर के सामने खड़ी कर दी। परम ने उसे कहा कि ड्राईव वो खुद कर लेगा और कार की चाबियाँ ले लीं। उसने तनु को बिठाया और डॉक्टर के क्लिीनिक पर ले गया ठीक ग्यारह बजे डॉक्टर ने उसे अंदर बुलाया। अल्ट्रासाउण्ड के वक्त परम ने डॉक्टर से रिकवेस्ट की कि वह तनु के साथ अंदर रहना चाहता है जिसे डॉक्टर ने सहर्ष स्वीकार किया।

परम अंदर चला आया। तनु की सोनेग्राफी शुरू हुई। मॉनीटर पर बच्चे की छवी दिखने लगी। परम का कलेजा खुशी से धकडने लगा। उसका बच्चा। परम ने रोमांचित होकर तनु का हाथ पकड लिया। डॉक्टर चेकअप करते हएु परम को बताती जा रही थी।

''यह बच्चे के हाथ है।"

''यह पैर"

''यह सिर है।" मॉनीटर पर उसने बच्चे की धडकन सुनी। परम की खुशी के मारे आँखें भर आयी। दस मिनट तक वह अलग-अलग दिशाओं से अपने बच्चे को देखता रहा। फिर परम और तनु बाहर आकर बैठ गये। दो मिनट बाद ही डॉक्टर बाहर आयी। तनु और परम को जरूरी हिदायतें दी। कुछ दवाईयाँ और टॉनिक दिये और तुरंत ही अल्ट्रासाउण्ड की रिपोर्ट दे दी।

''सब कुछ एक दम बढिय़ा है। सब नार्मल है। बच्चे की ग्रोथ भी अच्छी है।" डॉक्टर ने मुस्कुराकर कहा।

परम और तनु उन्हें धन्यवाद देकर वापस घर आ गये। परम को जल्दी हो रही थी कि वह तनु के साथ अपने घर चला जाये लेकिन तनु के माता-पिता का मन भी तोड नही सकता था। जब वह घर पहुँचा तो शारदा ने बताया कि उसने दो-तीन नौकर भेज दिए हैं परम के घर पर साफ-सफाई करने के लिए। आज कल में काम पूरा हो जायेगा। परम के दिल को तसल्ली मिली।

तीसरे दिन शाम को परम तनु को साथ लेकर अपने घर चला आया। घर को देखते ही परम के दिल को एक सुकुन सा मिला। अपना घर अपना ही होता है। तनु का चेहरा भी खिल गया अपने घर को देखते ही। बरामदे में पैर रखते ही परम ने नेमप्लेट की ओर देखा-''तनु परम गोस्वामी-मेजर परम गोस्वामी।

परम ने घर का ताला खोला और अंदर ड्राइंग रूम में आकर लाईट जलाई। ड्राइवर ने कार में से परम और तनु का सारा सामान निकालकर अंदर रख दिया और परम से बिदा लेकर भरत विला वापस चला गया। ड्राइवर के जाते ही परम ने अंदर से दरवाजा बंद किया और लपककर तनु को गले लगाकर देर तक उसे चूमता रहा। चाहे दो दिन से वह तनु के साथ ही था लेकिन अभी भी भरत विला में उस पर एक तरह की झिझक सी छायी रहती थी हर समय। अब अपने घर में वह हर तरह की झिझक से मुक्त था।

तनु को अपने सीने से सटाए ही उसने ड्रॉइंग रूम पर नजर डाली। हर चीज वैसी ही रखी थी जैसी वह छोड गया था तीन महीने पहले। नौकरों ने घर साफ सुथरा करके एकदम चमका दिया था।

''तनु घर में सामान लाना होना। क्योंकि डेढ दो महीने से तो तुम भी घर में नहीं हो।" अचानक परम को याद आया।

''हाँ लाना तो पडेगा। और फ्रिज तो वैसे भी मैं पूरा खाली करके गयी थी।" तनु ने बताया।

''तो चल मैं देख लेता हूँ घर में क्या-क्या है और क्या लाना पडेगा।" परम और तनु किचन में आए। परम ने तनु को एक कुर्सि पर बिठा दिया और उसे कागज पेन दे दिया कि वह नोट करती चले कि क्या लाना है बाजार से। इसके बाद परम एक-एक डिब्बा खोल-खोलकर देखता जा रहा था और तनु को बताता जा रहा था कि क्या खत्म है। आधे घण्टे में ही परम ने अपना काम पूरा कर लिया। कुछेक चीजे पुरानी सी लग रही थी उन्हें उसने फैंक दिया।

''चल अभी सुपर मार्केट चलते हैं सामान ले आते है और आते हुए बाहर खाना खाकर आयेगें। खुश मेरा बच्चा।" परम ने उसकी नाक हिलाते हुए कहा।

''आपके साथ तो हर हाल में हर काम में खुश हूँ। " तनु हँसते हुए बोली। ''तो चल फिर" परम ने हाथ-मुँह धोए और कार की चाबी और बैग्स लेेकर बाहर आ गया। जब तनु बाहर आयी तो उसने घर को ताला लगाया ओर कार स्टार्ट की। ड्रायवर ने सर्विसिंग और क्लिीनिंग करवाकर कार में पेट्रोल डलवाकर रखा था। परम ने तनु को बिठाया और कार को सुपर मार्केट की ओर ले गया। सुपर मार्केट की पार्किंग में गाडी खडी करके परम और तनु अंदर चले आए। तनु ने लिस्ट हाथ में पकड ली।और परम को बताती गयी। परम उसकी बताई हुई चीजे उठाकर ट्राली में डालता जा रहा था। कुछ चीजें शेल्फ पर दिखाई देने से भी याद आ रही थीं। लेकिन परम को पता था वह और तनु केवल बाईस दिन ही अपने घर में साथ रह पायेगें। उसके बाद तनु वापस अपने माता-पिता के घर चली जायेगी तो ज्यादा सामान लेकर क्या करना। जरूरत लायक सामान लेकर दोनों काउन्टर पर आ गये सामान की बिलिंग करवाई और बाहर आ गये। सामान गाडी की डिक्की में रखा और अपने पुराने चिरपरिचित होटल प्रेसिडेन्ट में आकर खडी कर दी। होटल की पार्किंग में कार पार्क करके दोनों डायनिग लॉन्ज में आ गये। वहाँ के वेटर ने उन्हें पहचान लिया ओर लपककर दोनों की ओर आया- ''गुड इवनिंग सर! क्या बात है सर बहुत दिनों बाद आयें।"वेटर उन्हें देखकर खुश होते हुए बोला।

''हाँ मैं ड्यूटी पर था। दो दिन पहले ही वापस आया हूँ।" परम ने बताया।

रात के समय तनु के लिये ज्यादा भारी खाना खाना ठीक नहीं था। परम ने हल्का-फुल्का खाना ऑर्डर किया। वेटर के जाने के बाद परम तनु को देखने लगा। उसे महसूस हो रहा था कि जैसे वह पता नही कितने बरसों बाद ऐसी निश्चिंती से तनु के साथ बैठा है। एकदम फुरसत से। कितना अच्छा लग रहा है। दिमाग में कोई तनाव नहीं, मन में कोई हलचल नहीं। सब कुछ शान्त सुव्यवस्थित ढंग से चलता हुआ। परम ने एक गहरी साँस ली। काश उसने सोचा...।

काश जीवन हमेशा ऐसा ही होता शांत, सुव्यवस्थित, निश्चिंत। बस वो तनु उनका बच्चा और घर। बचपने से ही परम को घर में कभी प्यार नही मिला इसलिये उसे कभी पता ही नहीं था घर के असली मायने क्या होते है, घर का सुख क्या होता है। उस समय तो वह पूरे समय बस ड्यूटी पर ही रहता। छुटिटयों के दिन उसे काट खाने को दौडते। बड़ी बेचैनी से कटते।

घर क्या होता है, उसका सुख, उसमें रहने का सुकून क्या होता है यह तो तनु से मिलने के बाद, उसके साथ रहने के बाद ही पता चला।

इसलिये अब परम को लगता कि वह लम्बे समय तक सुख शांती से तनु के साथ अपने घर में रह पाये।

वेटर खाना लगा गया। परम और तनु ने खाना खत्म किया। परम ने बिल चुकाया और दोनों बाहर आ गये।

घर पहुँचकर परम ने सामान बाहर निकाला और किचन में लाकर रख दिया। तनु कुर्सी पर बैठे-बैठे बैग्स में से सामान निकाल कर देती जा रही थी और परम उन्हें डिब्बें मेें भरता जा रहा था। सबसे आखरी में उसने दूध, फल, सब्जी, पनीर आदि सामान फ्रिज में रख दिया। आधे घण्टे में सारा काम हो गया।

''चलो अब तुम कमरे में चल कर आराम करो आज बहुत एक्सरशन हो गया है तुम्हें।" परम ने तनु का हाथ पकडा और उसे ऊपर कमरे में ले जाकर पलंग पर लिटा दिया। परम जाकर कपडे चेंज कर आया। थोडी देर तक तनु से बातें करता रहा। रात के साढ़े ग्यारह बजे नीचे जा तनु के लिए दूध और अपने लिए कॉफी बना लाया।

''वहाँ भी ड्यूटी यहाँ भी ड्यूटी आपको तो कहीं भी आराम नहीं है। वहाँ से इतना थक कर आए हैं और यहाँ भी चैन नहीं है। " तनु दूध का ग्लास लेती हुई बोली।

''ऐ पागल है क्या। इस ड्यूटी के लिए तो कब से तरस रहा था। भला तेरे लिये कुछ करने में मुझे थकान लग सकती है क्या।" परम प्यार से बोला।

''कितना चाहते हो मुझे।" तनु बोली।

''तू तो मेरी सांस है रे। तेरे प्यार के सहारे तो जी रहा हूँ वरना ये परम तो कब का मर चुका होता घुट-घुट कर।" परम ने कहा।

''छी कितनी बार बोला है रात के समय ऐसी अशुभ बातें मुँह से नहीं निकालते।" तनु उसके होठों पर हाथ रखकर बोली।

''चल आगे से नही कहूँगा ओके।" परम ने उसके गाल थपथपाते हए कहा।

दूध पीकर तनु लेट गयी। परम भी उसकी बगल में लेट कर उससे बाते करता जा रहा था और बालों में हाथ भी फेर रहा था। तनु को जल्दी ही नींद आ गयी। परम भी थका हुआ था लाईट बुझाकर वह भी जल्दी ही सो गया।

सुबह छ: बजे परम की आँख खुली तो देखा तनु वॉशरूम से बाहर आ रही है।

''बाप रे कल रात तो जबरदस्त नींद आयी।" परम अंगडाई लेते हुए बोला।

''अच्छा है आराम हो गया। कितने दिनों से थके हुए भी तो थे।" तनु बोली।

परम वॉशरूम जाकर हाथ मुँह धो आया तब तक तनु नीचे जाकर चाय की तैयारी करने लगी।

''अरे तू यह सब क्या कर रही है। आराम से बैठ मैं करता हूँ।" परम उसे किचन में काम करते देखकर बोला।

''तो क्या हुआ। डॉक्टर ने काम करने को मना थोड ही किया है। थोडा बहुत काम करती रहूँगी तो सब ठीक ठाक रहेगा।" तनु ने केतली में चाय छानते हुए जवाब दिया।

''चल मेडमजी को भूख लगी होगी ना। क्या खायेगा मेरा बच्चा आज?" परम ने तनु के पेट पर हाथ रखते हुए पूछा।

''कॉर्नफ्लेक्स" तनु बोली।

परम ने फटाफट दूध गरम किया और बादाम, पिश्ता, मेवे डालकर कॉर्नफ्लेक्स तैयार करके चाय की केतली के साथ बाहर बगीचे में ले आया। दोनों झूले पर बैठ गये। सुबह की ठण्डी हवा चल रही थी। सामने सूरजमुखी के पीले फूलों वाला टी-सेट था। साथ में तनु थी, और परम आज की खुशनुमा सुबह में अपने घर पर था।

सामने वाले घरों से लोग बाहर आने लगे तो परम और तनु को देखकर खुश हो गये। परम खडे होकर सबसे बातें करने लगा। थोड़ी देर परम से बाते करके सब अपने-अपने घरों मे चले गये। आठ बजे परम और तनु भी अंदर चले आए।

दोनों पहले की तरह आपस में बाते करते हए साथ मिल कर खाना बनाने लगे। पुराने दिन फिर लौट आए थे। बीच के तीन महीने के बिरहा के बादल छट गये। फिर प्यार की सुनहरी धूप खिल गयी।

खाना बनाने के बाद दोनों ऊपर गये नहा-धोकर तैयार हुए। परम ने डीवीडी प्लेयर पर एक मूवी लगा दी। दोनों बैठ कर फिल्म देखने लगे। थोड़ी देर बाद परम नीचे से फल और चाकू ले आया और फल काट कर तनु को खिलाने लगा। तनु ने उसे भी खाने को कहा।

डेढ़ बजे परम नीचे से खाना गरम करके ऊपर ले आया।

''मैं नीचे आ जाती ना। आप ऊपर क्यों ले आए। कितने चक्कर लगाओगे।" तनु ने कहा।

''तुम क्यों सीढ़ी उतरोगी चढ़ोगी बार-बार। यह ठीक नहीं है। इसलिये मैं खाना ऊपर ही ले आया।" परम थाली में खाना परोसते हुए बोला।

''डॉक्टर ने ऐसा कुछ मना थोड़े ही किया है।" तनु बोली।

''भले ही मना नहीं किया हो लेकिन आपके लिए बार-बार चढऩा-उतरना ठीक नहीं है जी। समझी जी! तो आप आराम से बैठिये आपके पतिदेव आपकी सेवा में हाजिर हैं।" परम थाली उसके हाथ में देते हुए बोला।

''कितनी सेवा करेागे जी।"

''हम तो सेवा करने के लिये ही पैदा हुए हैं जी। ड्यूटी पर भारत माता की सेवा करते हैं और छुट्टी पर पत्नी माता की।" परम ने कहा।

''मैं आपकी माता हूँ क्या?"

''मेरी नहीं तो मेरे बच्चे की तो हैं। मेरी पत्नी और मेरे बच्चे की माता।" परम ने स्पष्ट किया।

''आहो जी।" तनु हँसने लगी।

फिल्म भी बहुत मजेदार थी। हँसते-हँसते पेट में बल पड़ गये। खाना खत्म होन पर परम सारा सामान और बर्तन नीचे रख कर आ गया तनु वहीं सोफे पर लेट गयी। फिल्म खत्म होने पर उसे वहीं सोफे पर लेटे-लेटे नींद लग गयी। शाम पाँच बजे तनु सो कर उठी। परम ने उससे पूछा कि क्या वह चाचा-चाची से मिलने चल सकती है। तनु ने कहा कि हाँ वह अभी तैयार हो जाती है।

आधा घण्टे में ही वे दोनों सावित्री के यहाँ जाने के लिए निकल गये। सावित्री और सतीश दोनों को देखकर बहुत खुश हुए। बातों-बातों में चाचा ने बताया कि वे परम के घर आने-जाने लगे हैं ये पता चलने के बाद से भाभी अर्थात परम की माँ उनसे बहुत नाराज है। अभी उन्होंने परम के घर आने वाली खुशखबरी के बारे में बताने के लिऐ उन्हे फोन लगाया था। सुनकर भैया अर्थात् परम के पिता ने तो खुशी प्रकट की लेकिन भाभी चुप्पी साधकर बैठी थी।

सुनकर परम को अपनी माँ की सोच पर अफसोस हुआ। इतना भी अहं किस काम का। बड़े बेटे के घर पहली बार नयी खुशी आने वाली है तब भी माँ पुराने कारणों को लेकर बेवजह का अहम् और गुस्सा पाले बैठी है मन में।

लेकिन परम ने सारे विचारों को जल्दी ही दिमाग से झटक दिया। अभी वह खुश रहना और तनु को खुश रखना चाहता है। इसलिये वह किसी भी तरह का और किसी के लिए भी तनाव महसूस करना नहीं चाहता। वह बस अपनी खुशी को जीना चाहता है अभी और कुछ भी नहीं।

चाचा-चाची के साथ बातें करनें में ही परम खुश था। वापस आने लगा तो सावित्री ने डपट दिया--

''इतने महीनों बाद तू और बहू घर आए हैं ऐसे बिना खाना खाए जाने दूंगी क्या। तुम लोग बातें करो मैं अभी खाना बनाती हूँ।"

सावित्री उठकर किचन में जाने लगी तो तनु भी उनके साथ उठने लगी।

''अरे तू कहाँ आ रही है मैं कर लूँगी। तू आराम से बैठ।" सावित्री तनु से बोली।

''चलो चाची के साथ आज खाना मैं बनवाता हूँ।" परम उठ खड़ा हुआ।

''ओफ्फो अरे तुम सब लोग बैठो बाबा। मैं बना लूँगी।" सावित्री बोली।

''अरे सबसे अच्छा है हम सब किचन में ही बैठते हैं। काम भी हो जायेगा और बातें भी।" सतीश का आयडिया सबको पसंद आया। परम ने डायनिंग चेयर्स उठा ली और किचन में दीवार के सहारे बने टेबल के आस-पास रख दीं। सब वहीं मिल बैठकर बातें करते हुए काम भी निपटाते जा रहे थे। घण्टे भर में ही खाना तैयार हो गया। महीनों बाद परम ने स्वादिष्ट बंगाली खाना खाया। तनु की खातिर सावित्री ने मिर्च मसाले बहुत कम डाले थे पर खाना बना बहुत अच्छा था। खाना खाकर देर तक बातें चलती रहीं।

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