एक जिंदगी - दो चाहतें
विनीता राहुरीकर
अध्याय-47
भारी घुसपैठ के चलते एरिया में हाई अलर्ट लग गया था। सबकी छुट्टियाँ कैंसिल हो गयी थीं। अगले पन्द्रह दिनों में अनुमानत: सभी घुसपैठियों को या तो मारा जा चुका था या फिर पकड़ लिया गया था। लेकिन अभी भी परम के सोर्सेस बता रहे थे कि तीन अत्यन्त खुंखार आतंकवादी भूमिगत हैं उनका कहीं सुराग नहीं मिल रहा है कि वे कहाँ हैं। उन्हे जमीन लील गयी या आसमान खा गया। परम समझ गया कि अभी वे लोग मुँह बंद करके बैठे रहेंगे। जब मामला थोड़ा ठण्डा पड़ जायेगा फौज निश्चिंत हो जायेगी तब वे लोग अचानक धमाके करेंगे। लेकिन उसके पहले ही सांप का सिर कुचलना होगा। उधमपुर का अपना मिशन पूरा करके परम बीस दिनों बाद अपनी यूनिट वापस आ गया। वहाँ के हालात काबू में थे।
आते ही परम अपने रूटीन ऑफिशियल वर्क में जुट गया। कमाण्डो का जीवन भी कितना कठिन होता है। सर पर कफन बांध कर मौत का सामाना करो, प्राकृतिक आपदाओं से जूझो, हर जगह जान जोखिम में डालो। कहीं भी चैन नहीं है। आते साथ ही पिछले बीस दिनों का पूरा हिसाब-किताब और अकाउन्ट्स चेक करने बैठ गया परम। चार-पाँच दिनों में उसने पिछला पूरा काम खत्म कर डाला।
तनु की डिलिवरी में बस बाईस दिन बचे थे। सोनोग्राफी में पता चला था कि बच्चा ब्रीच कन्डीशन में है। अगर ऐसा ही रहा तो ऑपरेशन करना पड़ेगा। परम के मन में चिंता लगी रहती। कब यहाँ के हालात सामान्य होंगे और कब वह घर जा पायेगा। अब उसका मन पूरे समय तनु के लिए चिंता में घिरा रहता। घर जाने की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। कब उसकी छुट्टी मंजूर हो और कब वह तनु के पास पहुँचकर उसके साथ रह पाये। साढ़े चार महीने हो गये थे उसको देखे बिना। देश के प्रति अपने फर्ज को वह पूरी ईमानदारी से निभा चुका था। अब वह उतनी ही निष्ठा से एक पति का फर्ज पूरा करना चाहता था।
एक सप्ताह और आगे सरक गया। उन तीनों खुंखार मिलिटेंट्स का पता नही चल पा रहा था। परम के सोर्सेस जी जान से पता लगाने में जुटे थे। आठवें दिन अचानक सुबह के आठ-साढ़़े आठ बजे परम के पास फोन आया। फोन करने वाला अठारह-उन्नीस बरस का लड़का था। उसे ठीक से हिन्दी बोलना भी नहीं आ रहा था। पंद्रह मिनट में जो कुछ भी परम को समझ में आया वो इतना था कि उसके घर से थोड़ी दूरी पर एक घर पहाड़ की ऊँचाई पर बना हुआ था। उस घर में उसी की हमउम्र एक लड़की रहती है। वह लड़की और उसका छोटा भाई रोज इस लड़के के साथ स्कूल जाते-आते थे। लेकिन पन्द्रह बीस दिनों से वो दोनों स्कूल नहीं जा रहे। यहाँ तक कि दोनों गाँव में भी नजर नहीं आ रहे हैं। यह लड़का उसके घर दो-तीन बार गया तो उसके बाप जिसका नाम अकरम है ने उससे कह दिया कि दोनों दूसरे शहर अपने चाचा के यहाँ गये हैं। उसकी माँ भी दिखाई नहीं देती आजकल। घर के सारे खिड़की दरवाजे बंद रहते हैं। और उसका बाप रोज खाने का ढेर सारा सामान अण्डे, मुर्गे ले कर घर जाता है। एक दिन उस लड़के ने उस आदमी को शराब की बोतलें खरीदते देखा।
'अकरम शराब नहीं पीता साब।'
'जब उसके दोनों बच्चे घर पर नहीं हैं तो इतना खाना कौन खाता है साब।'
परम का माथा ठनका। ये मिलिटेंट्स गाँव के किसी कोने में बने हुए गरीब मजबूर आदमी के घर में जबरदस्ती डेरा डाल देते हैं और उसी के पैसों पर मौज उड़ाते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि...
परम ने तुरंत अर्जून को बुलवाया और उससे सारी बातें कहीं। अठारह-उन्नीस बरस का कोई अल्हड़ लड़का भारतीय फौज के इतने बहादुरी भरे कारनामो ंके ढंके बजने के बाद उससे मजाक करने की हिम्मत तो करेगा नहीं।
लेकिन किसी के दबाव में आकर या लालच में आकर उन्हें फंसाने की साजिश में शामिल हो सकता है।
ये भी हो सकता है कि सच बोल रहा हो अपने दोस्तों को बचाने की खातिर।
खबर मिली है तो तफ्तीश तो करवानी ही पड़ेगी। परम ने तुरंत अपने सोर्सेस को सतर्क कर दिया कि बताए गए ठिकानों पर इस तरह से नजर रखें कि किसी को शक ना हो। दो दिन बाद ही खबर मिली की उस घर में कुछ तो गड़बड़ है। सारा दिन मनहूस सन्नाटा छाया रहता है जैसे कि किसी की मौत हो गयी हो। सिर्फ रोज दिन में एक बार अकरम बाहर निकलता है और बाजार से ढेर सामान लेकर वापस घर में समा जाता है। पता नहीं रोज रात में उसके यहाँ भूत-प्रेतों की दावत होती है या क्या होता है। इतना सारा खाने का सामान कहाँ किस कुण्ड में स्वाहा होता है।
परम को अब यकीन हो गया कि वह लड़का सच बोल रहा था। तीसरे दिन परम ने स्टिंग आपरेशन की पूरी तैयारी कर ली। इस बार वह अतिरिक्त सावधान था क्योंकि जो नाम थे वो मामूली नाम नहीं थे।
बैक सपोर्ट फोर्स में भी उसने चुने हुए कमाण्डों को रखा कवर देने के लिए एक तो विक्रम था और एक कमाण्डो सूर्यवंशी था। दोनों पर ही परम को पूरा विश्वास था। और अर्जुन तो उसके साथ था ही।
गाँव कोई तीस किलोमीटर दूर था। चार गाडिय़ाँ एक साथ रवाना हुईं। बैक सपोर्ट फोर्स को परम ने रात में ही भेज दिया था ताकि घर की निगरानी होती रहे और मिलिटेंट्स भागने की कोशिश न करें। और अगर कोई भागता हुआ दिखाई देता है तो उसे तुरंत सायलेंसर लगी गन से शूट कर दिया जाये। फोर्स को रात में ही वहाँ तैनात करने के पीछे एक उद्देश्य यह भी था कि जब परम अपनी यूनीट को लेकर वहाँ पहुँचे तो उसके आने की भनक लगते ही वे लोग कहीं भाग न खड़े हों। यही सब सोच कर परम ने रात में ही वहाँ फोर्स तैनात करवा दी।
अलसुबह ही परम अपने सात कमाण्डों को लेकर वहाँ पहुँच गया। गाडिय़ाँ सीधे थाने के सामने जाकर खड़ी हो गयी परम ने थाना इंचार्ज को सारी बातें बताई और कहा कि वह गाँव की तलाशी लेना चाहता है।
थाना इंचार्ज ने उसे घूरकर देखा और बोला" आप लोगों को और कोई काम नहीं होता है। जब तब आ खड़े हो जाते हैं सिर पर तलाशी लेने के लिए।" मेरे गाँव में कुछ नहीं है सब दूर शांती है। सब कुछ ठीक है।"
''हमें पक्की खबर मिली है। इस गाँव में कोई तो आया हुआ है।" परम ने अपने गुस्से को काबू में रखते हुए कहा।
''किसने खबर दी? मैंने दी क्या? यहाँ की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी हमारी है। मैं कह रहा हूँ न कि यहाँ कोई नहीं आया है।" इंचार्ज अमजद बदतमीजी से बोला।
''तुम लोग अपनी जिम्मेदारियों को अगर ईमानदारी से निभाते तो हमें अपने घरबार छोड़कर यहाँ नहीं आना पड़ता। और वेा जो डेढ़ सौ मारे गये या पकड़े गये। वो पड़ोस से तेरे बाप ने क्या तेरी बरात में भेजे थे।" विक्रम गुस्से से बोला।
''तमीज से बात करो। ये मेरा थाना है।" अमजद ताव से बोला" नहीं देता परमिशन तलाशी की जा क्या कर लेगा।"
''मेरा नाम अर्जुन है। अर्जुन मानसिंग राठौर। जैसे कानून की नजरों में मिलिटेंट्स के सरगने मोस्ट वांटेड होते हैं ना वैसे ही मिलिटेंट्स के बीच मैं मोस्ट वांटेड हूँ। अब तक मेरी रायफल इकसठ मिलिटेंट्स को मार चुकी है। साले चुपचाप हमारा साथ दे नहीं तो बासठवां नम्बर तेरा होगा।" अर्जुन की आँखों के भाव उसकी उभरती भुजाओं की गोलाइयाँ और बंदूक पर कसती उसकी ऊँगलियों को देखकर अमजद अचानक दहशत में आ गया। उसकी पैंट ढीली हो गयी उसने शायद सोचा नही होगी कि आने वाला खुद अर्जुन होगा। उसकी सारी हेकड़ी निकल गयी।
उसने बाहर से एक कॉन्स्टेबल को बुलवाकर मुखिया को खबर करने को कहा। मुखिया आया, रेडियो लाउड स्पीकर पर मुनादी करवाकर गाँव वालों को बुलवाया गया। मुखिया ने देखा' अकरम नहीं है साहब।'
अकरम का नाम सुनते ही परम को पूरा भरोसा हो आया। वह लड़का बिलकुल ठीक कह रहा था। मिलिटेंट्स अकरम के घर में ही हैं। परम ने आज बाकी घरों की तलाशी लेने की बजाए सीधे उसी घर पर टारगेट किया। कॉन्स्टेबल ने दरवाजा खोलने की मुनादी की तब भी दरवाजा नहीं खुला। परम ने चारों तरफ नजर दौड़ाई सारे जवान अपनी सही पोजीशन पर थे। परम, विक्रम, अर्जुन और सूर्यवंशी। मकान की ओर बढ़े। बाकी जवान मकान की एक-एक खिड़की दरवाजे पर निशाना बांध कर खड़े थे कि अगर कोई वहाँ से बम फेंकने की या इन लोगों पर गोलियाँ चलाने की कोशिश करता तो तुरंत उसे खत्म कर देते।
परम ने लात मारकर दरवाजा तोड़ दिया। अंदर पन्द्रह साल का एक लड़का खड़ा था। एक कमरे से एक दाढ़ीवाला अधेड़ बाहर आया। परम समझ गया यही अकरम है।
''आप घर में कैसे घुसे आए जनाब।" अकरम बोला।
''हमें खबर मिली है कि इस घर में तुमने कुछ लोगों को छुपाया हुआ है।" परम ने कहा।
''आपको गलत खबर मिली है। यहाँ कोई नहीं है।" अकरम बोला।
''अगर कोई नहीं है तो मुनादी करवाने पर गाँव में हाजिर क्यों नहीं हुए।" विक्रम ने सवाल किया।
अकरम कुछ जवाब देता इससे पहले ही मकान के ऊपरी मंजिल से गोलियाँ चलने की आवाज आयी। जवाब में सामने से फौजी जवानों की तरफ से भी फायरिंग की आवाज आयी। परम समझ गया कि ऊपर की खिड़कियों से उन लोगों ने छुपकर हमला कर दिया।
''मकान में कोई नहीं है तो ये गोलियाँ कौन चला रहा है साले हरामजादे।"
परम और विक्रम ऊपर की मंजिल की ओर दबे पाँव चल दिये ऊपर दो कमरे थे दोनों अंदर से बंद थे। पता नहीं था कि अंदर कितने लोग होंगे। खबर तो तीन लोगों के होने की थी मगर ज्यादा भी हो सकते हैं। जान का जोखिम तो हर जगह रहता ही है। परम और विक्रम ने एक साथ दरवाजे पर धक्का मारकर उसे तोड़ा और बिना एक क्षण की देर किये ओपन फायर खोल दिया। खिड़की से बाहर फायर करते दोनों लोग जब तक कुछ समझ पाते परम और विक्रम ने दोनों की कनपटी पर एक-एक गोली चला दी।
दूसरे कमरे का दरवाजा भी ऐसे ही तोड़ा दोनों ने लेकिन तभी बाहर से आयी एक गोली दाढ़ी वाले के सीने पर लगी और वह जमीन पर गिरकर तड़पने लगा। विक्रम ने उसके सिर पर गोली मारकर उसे आजाद कर दिया।
परम और विक्रम ने एक दूसरे की ओर देखा। तीन लोगों के होने की खबर थी। तीनों मारे जा चुके हैं। दोनों नीचे आए। विक्रम ने हिकारत से अकरम को देखा। अकरम ने सिर झुका लिया। विक्रम ने अर्जुन और सूर्यवंशी को ऊपर की घटनाओं के बारे में बताया। चारों बाहर जाने लगे तभी परम को लगा कि वह लड़का अपने पैर का अंगूठा बड़ी तेजी से फर्श पर मार रहा है। इसी बात पर अर्जुन की भी नजर पड़ गयी। दोनों ठिठक कर रूक गये। उन्हे रूकता देखकर सूर्यवंशी और विक्रम भी रूक गये।
''क्या हुआ सर।" सूर्यवंशी ने पूछा।
''तहखाना! इन लोगों के घरों में तहखाने जरूर होते हैं। इसके घर में भी जरूर होगा।" अर्जुन ने कहा।
''तलाशी लेते हैं।"
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