Ek Jindagi - Do chahte - 7 in Hindi Motivational Stories by Dr Vinita Rahurikar books and stories PDF | एक जिंदगी - दो चाहतें - 7

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 7

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-7

परम क्षणभर में ही पलट कर कृष्णन के साथ हेलीकॉप्टर में बैठ गया। अमरकांत भी आ गया। तीनों फिर डयूटी पर लग गये। रिपोर्टर अपने कैमरों से शूट लेने लगे। परम का कतरा भर ध्यान उसके अनजाने में ही जमीन के उस हिस्से में रह गया जहाँ वो लड़की खड़ी थी। परम की खाई में सर्च करती आँखेंं बरबस उस लड़की की ओर भी उठ जाती। वह हेलीकॉप्टर की ओर ही देख रही थी और साथ वालों को कुछ निर्देश भी देती जा रही थी। शायद वह परम का लोगों को बचाते हुए शॉट लेना चाहती थी।

दिन भर परम गहरी खाईयों की ओर से लोगों को बाहर निकालता रहा। आज वह सतरह लोगों को जीवित बचाने में सफल रहा। उसके मन को एक गहरा संतोष हुआ। शाम ढले वो लोग समतल जमीन पर उतर आए। वह लड़की अपने एक रिपोर्टर साथी के साथ वहीं खड़ी थी। उसके बाकी साथी शायद केंप में चले गये थे। छाता होने के बावजूद वह पानी की बौछारों से पूरी भीग चुकी थी और उसका साथी भी तरबतर खड़ा था और बहुत खीजा हुआ सा लग रहा था। एम्बूलेंस बराबरी से चक्कर लगाकर घायलों और मृत देहों को ले जा रही थी। जमीन पर पैर रखते ही परम ने कमर पर हाथ रखकर अपने शरीर को पीछे की ओर ताना। हाथ पैर, कमर सब टीसें मार रहे थे।

''आप यहीं खड़ी हैं। केंप में नहीं गयीं? आपके बाकी साथी तो गये न? कृष्णन ने उस लड़की से पूछा।

''हाँ मुझे कुछ खास शॉट लेने थे तो मैं यहीं रूक गयी।" वह चलते-चलते कृष्णन की बगल से परम के साथ-साथ चलने लगी। उसने परम की ओर बहुत ही प्यारी मुस्कुराहट के साथ देखा।

जवाब में परम भी औपचारिक रूप से मुस्कुरा दिया। वह समझ गया था कि लड़की उसी के शॉट लिये जा रही थी जब वह लटककर लोगों को बाहर निकाल रहा था।

''मेरा नाम तनु है, तनु देसाई।" लड़की ने आगे रहकर अपना परिचय दिया।

''ओ.के.।" परम ने मुस्कुराकर कहा लेकिन अपना नाम नहीं बताया।

दो क्षण तनु राह देखती रही लेकिन जब परम ने उसे अपना परिचय नहीं दिया तो उसने खुद ही पूछ लिया।

''आप...?"

''मेरा नाम परम है, परम गोस्वामी।" परम ने बताया।

''बंगाली?" तनु ने पूछा।

''हाँ।"

केंप तक के रास्ते में तनु कुछ ना कुछ बातें करती रही या अपने टी.वी. चैनल और अखबार के बारे में बताती रही। उसके पिताजी का अहमदाबाद में एक प्रसिद्ध टी.वी. न्यूज चैनल है और एक गुजराती अखबार के मालिक हैं। परम बस धीमे-धीमे मुस्कुरा रहा था। वह समझ रहा था कि तनु उससे बहुत प्रभावित हो गयी है यह पहला मौका नहीं है, परम के साथ ऐसा अक्सर होता है कि लड़कियाँ उसके पक्के रंग के बावजूद उसकी तरफ ना जाने क्यूं बुरी तरह आकर्षित हो जाती है। एक बार जब उसकी दिल्ली में पोस्टिंग थी तब पूजा नाम की एक गोरी-चिट्टी, सुंदर लड़की उसके ऊपर बुरी तरह लट्टू हो गयी थी। पूजा ने अपने माँ-पिता से भी परम की पहचान यही कहकर करवाई थी कि यह उनका भावी दामाद है।

लेकिन पता नहीं क्यूँ परम पूजा को उस दृष्टि से कभी देख ही नहीं पाया। शायद पूजा के रंग और बिंदास स्वभाव से डर गया था।

पूजा की शादी के बाद अपने पति से भी उसने परम का परिचय यही कहकर करवाया था -

''नरेश इनसे मिलो यह है मेरा एक्स हसबैंड-परम।" और तब परम और नरेश दोनों ही बुरी तरह झेंप गये थे

और दिप्ती...

दिप्ती उसे मिलने अपने घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर चली आयी थी।

ऐसी ना जाने कितनी ही कहानियाँ थी परम के जीवन में लेकिन परम का किसी कहानी में मन ही नहीं लगा।

केंप पहुँचने पर परम अंदर चला गया। गीली और कीचड़ से लथपथ यूनीफॉर्म बदलने। तनु शिष्टाचारवश बाहर खड़ी रही फिर वह भी दूसरे केंप में चली गयी। बारीश पूरे समय से हो ही रही थी। थोड़ी ही देर बाद जब वह वापस पहाड़ी पर रेस्क्यू ऑपरेशन पर जायेगा तो यह यूनीफॉर्म भी गीली हो जायेगी लेकिन कुछ मिनट ही सही वह अपना शरीर पोंछ कर सूखा तो रह पायेगा। राणा-रजनीश वगैरह भी कुछ समय अंतराल से वापस आ गये। सब लोग बैठकर आगे की योजना पर बात करने लगे।

केंप में एक लड़का खाने के पैकेट लेकर आया। तभी तनु और उसकी टीम के लोग भी वहीं आ गये। वीडियो शूट करने वाले लड़कें ने बताया कि वे लोग कल सुबह वहाँ से दूसरी जगह चले जायेंगे कवरेज के लिये। लड़कंे जवानो से और परम से बातचीत करने लगे। उन लोगों ने जवानों के इंटरव्यू भी लिये और व्यक्तिगत फोटो भी। परम की निगाहें अचानक तनु पर पड़ी वो खोए-खोए अंदाज में उसे एकटक देख रही थी। परम ने नजरें घुमा लीं।

सब लोग खाना खाने लगे। परम से उस समय भी कुछ नहीं खाया गया। तनु ने परम की ओर अपना पैकेट बढ़ा दिया और आग्रह करने लगी। परम ने मना किया पर फिर उसके आग्रह को टाल नहीं सका। उसने तनु के साथ जैसे-तैसे दो चार कौर खा लिये।

जब सब लोग केंप से बाहर चले गये तो राणा रहस्यमयी हँसी के साथ परम से बोला -

''देखना सर से कल भी यहीं रहेगी, यहाँ से कहीं नहीं जायेगी।"

उसकी मंशा समझकर परम ने बुरा सा मुँह बनाया और उसे धकेलते हुए केंप से बाहर आ गया।

परम अमरकांत और कृष्णन के साथ फिर सर्च पर चला गया। तनु ने उनकी इस समय की भी शूट ली। अपने काम में पूरी तरह से व्यस्त परम को आश्चर्य हो रहा था कि तनु के माता पिता ने अकेली लड़की को सब लड़कों के साथ ऐसी विपत्ती वाली जगह पर भेज कैसे दिया। या फिर यह घर पर बिना बताए ही आ गयी है। परम को समझ में नहीं आ रहा था कि वह आखिर तनु के बारे में इतना क्यों सोच रहा है, लेकिन रात भर उसका शरीर बिना थके देश और जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाता रहा और दिल रह-रह कर किसी प्यारे से मासूम से चेहरे की याद करता रहा।

पौ फटने के समय परम केंप में वापस आया। हेलीकॉप्टर को थोड़ी दूर पर उतारकर वह और कृष्णन केंप की ओर जाने लगे। अमरकांत हेलीकॉप्टर में ही कुछ कर रहा था। सुबह के धुधलके में अचानक एक साया परम के बगल में आया और साथ चलने लगा।

''गुडमार्निंग।"

अपनी बगल में तनु की आवाज सुनकर परम बुरी तरह चौंक गया।

''आप यहाँ? इतने अंधेरे में? अकेले क्या कर रही हैं?" परम ने एक साथ कई सवाल कर दिये।

''ऐसे ही नींद नहीं आ रही थी तो....।" तनु ने इतने अंधेरे में भी गौर से परम का चेहरा देखते हुए कहा। फिर वह बचाव कार्य के बारे में पूछने लगी। दोनों को ही पता नहीं चला कि कृष्णन कब उनसे अलग हटकर गायब हो गया।

''यहाँ महामारी की आशंका है। आपका काम हो गया है अब आपको जल्द से जल्द यहाँ से चले जाना चाहिए।" परम ने उसे दोस्ताना सलाह दी।

''आप भी तो यहाँ है।"

तनु की आवाज की कोमलता में परम के लिए कुछ खास भाव छलक रहा था। परम के लिए यह भाव कुछ नया था। उसका दिल ना चाहते हुए भी धड़क गया। तनु की आवाज में बहुत स्पष्ट और गहरे भाव थे। आज तक दसियों लड़कियाँ परम के पीछे पड़ चुकी है मगर परम के दिल को बहुत दूर तक भी किसी ने नहीं छुआ था।

ल्ेकिन यह लड़की?

तनु!

जब से इसे देखा है तब से पता नहीं क्यों दिल जबदस्ती इसकी तरफ खिंचा चला जा रहा है। परम के शरीर में हल्का सा कंपन दौड़ गया लेकिन उसने अपने आपको जल्दी संभाल लिया।

''मेरी बात अलग है। यह तो मेरा फर्ज है। अपने देश और लोगों की हर तरह की विपत्ती से रक्षा करना। लेकिन आपका जो काम था वह हो चुका है। अब आपको यहाँ से चला जाना चाहिये।" परम ने देखा यह सुनकर तनु के चेहरे पर अचानक एक उदास सी छाया तैर गयी।

''आह...।" कीचड़ भरे रास्ते पर अचानक तनु का पैर फिसल गया। वह गिरती उसके पहले परम के मजबूत हाथों ने उसे थाम लिया। घबराकर तनु ने परम का हाथ पकड़ लिया लेकिन तुरंत ही वह चौंक गयी।

''अरे आप को तो बहुत तेज बुखार है। और आप तब भी लगातार गिरती बारीश में चैबीसों घण्टे काम कर रहे हैं।"

''कोई बात नहीं। हमें इन सब की आदत हो गयी है। इतने बुखार से कोई फर्क नहीं पड़ता।" परम ने पास आते केंप की ओर देखकर कहा। तभी उसका दिल एकबारगी फिर से धड़क गया और सिर से पैर तक एक मीठी सी सिहरन दौड़ गयी। उसके बुखार को महसूस कर तनु के स्पर्श में जैसे एक फिकर, सांत्वना सी भर आयी थी। अपने साथ होने का एक दिलासा देता सा स्पर्श था। पहली बार...

पहली बार किसी के छूने से शरीर में यह अहसास जागा था। पता नहीं उन क्षणों में क्या जादू था। परम जैसे किसी एहसास के वशीभूत होकर मुँह अंधेरे के उस किमीयाई उजाले में नहा गया। आँख उठाकर उसने एक भरपूर नजर से तनु को देखा। पता नहीं चला कब उसकी ऊंगलियाँ हाथ में थमें तनु के हाथ पर कस गयीं। कभी-कभी शरीर शब्दों से भी आगे, बहुत आगे की बातें कह जाता है। स्पर्श की भाषा हमेशा शब्दों की भाषा से अधिक ताकतवर होती है। तनु के चेहरे पर अचानक खुशी के बावरे से भावों को देखकर परम को अपनी गलती का अहसास हुआ। उसने तुरंत धीरे से अपना हाथ तनु के हाथ से छुड़ा लिया। आसमान की ओर देखकर एक गहरी साँस ली।

''हे भगवान! यह क्या हो रहा है?"

***