Ek Jindagi - Do chahte - 23 in Hindi Motivational Stories by Dr Vinita Rahurikar books and stories PDF | एक जिंदगी - दो चाहतें - 23

Featured Books
Categories
Share

एक जिंदगी - दो चाहतें - 23

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-23

दूसरे दिन सुबह तनु की नींद खुली तो सूरज निकल आया था परम विस्तर पर नहीं था। वह उठकर नीचे आयी तो देखा वह किचन में चाय बना रहा था। तनु ने उसकी कमर में हाथ डाले और उसकी पीठ से लिपट गयी।

''सुबह-सुबह उठकर मुझे छोड़कर मत जाया करो।"

''अरे कहीं गया कहाँ। यहीं तो आया था किचन में चाय बनाने।" परम ने चाय छानते हुए जवाब दिया।

"तो मुझे भी उठा दिया करो।" तनु ने उनींदे स्वर में कहा।

''पर क्यों?"

''मुझे आँखेंं खुलते ही आपका चेहरा देखना अच्छा लगता है।" तनु अब भी उसकी पीठ से चिपकी थी।

''अच्छा जी ये बात है, हमें क्या पता था। लीजिये मेडम जी देख लीजिये हमारा चेहरा।" परम हँसते हुए बोला और तनु की ओर घूम गया। " क्या बात है जानू रात में बहुत ज्यादा थक गयी थी क्या। बड़ी देर तक सोती रही।"

''हाँ थक तो गयी थी। बिलकुल ही पता नहीं चला आप कब उठ गये और नीचे चले आए।" तनु उसके सीने पर सिर टिकाकर बोली।

''ओहो। रात को ज्यादा हो गया। चल अभी हैंगओवर कर देता हूँ।" परम एक आँख दबाकर बोला।

''क्या?" तनु कुछ समझ नहीं पायी।

''अरे जो लोग रात में ज्यादा पीकर टल्ली हो जाते हैं उन्हे सुबह थोड़ी और पिलाते हैं ताकि रात की उतर जाये। ऐसे ही तुम्हारी रात की थकान दूर करने के लिये।" परम अपनी बात पूरी कर पाता इसके पहले ही तनु ने उसे दूर धकेलते हुए खीजकर कहा-

''और कोई काम नहीं है। चैबीस घण्टे बस वही सोचते रहते हो।"

''जब तेरे जैसी खूबसूरत बिवी सामने हो तो कोई कुछ और सोच भी कैसे सकता है।" परम ने उसे दोबारा अपनी ओर खींचते हुए कहा।

''मैं तो एक साल से ज्यादा हो गया आपकी बीवी हूँ" तनु छूटने के लिए कसमसाई।

''हाँ पर अब तक हमेशा तुम्हारे पिताजी के घर पर रहे ना। वहाँ पता नहीं क्यों बड़ा ऑक्वर्ड फील होता था यार। तू वहाँ मेरी बीवी कम उनकी बेटी ज्यादा लगती थी ना इसलिये।" परम ने कहा।

''अच्छा। ये तो कोई बात नहीं हुई।" तनु को हँसी आ गयी। अक्सर ही जब छुट्टियों में परम आता था तो तनु के पिता के घर ही रहता था। तब रात को सोते समय उसे तनु के साथ कमरे में जाते हुए बड़ी शर्म आती थी। देर तक तो वह तनु की माँ के साथ बातें करता बैठा रहता था, टीवी देखता रहता जब तक कि भरत देसाई सो नहीं जाते थे।

''और नहीं तो क्या। लेकिन अब बात अलग है। अब घर अपना और पूरे अधिकार वाले घर में मेरी बीवी मेरे पास है। बस सिर्फ और सिर्फ मेरी बीवी, किसी की बेटी नहीं।" परम ने समझाया "ये बात ये आजादी अलग ही बात है जी। टोटली फ्री माइंड।"

''तो टोटली फ्री माइंड जी चाय ठण्डी हो रही है, चलिये।" ट्रे हाथ में लेकर तनु बोली" चलिए बाहर गार्डन में बैठकर चाय पीते हैं।"

दोनों बाहर आकर लॉन में चेयर्स पर बैठ गये। परम ने चाय का एक कप खुद लिया और दूसरा तनु को थमा दिया।

''आज तो कहीं शॉपिंग नहीं करनी है ना?" परम ने पूछा।

''नहीं लेकिन शाम को चलकर नर्सरी से पौधे ले आएंगे।" तनु ने चाय का घूंट भरते हुए कहा।

''ओके मेडम जी एट युअर सर्विस ऑल द टाईम।" परम ने हाथ माथे से छुआकर उसे सेल्युट किया।

थोड़ी देर दोनों बगीचे को देख-देखकर प्लानिंग करते रहे कि कौन सा पौधा कहाँ लगेगा। कौन सी क्यारी में किस प्रजाति के कितने पौधे लगेंगे।

''हम झूले के पीछे वाली और बरामदे के सामने वाली क्यारियाँ तो गुलाब के पौधों के लिए रख देंगे। यहाँ हमेशा के लिऐ गुलाब लगे रहेंगे। और बाउन्ड्री के सामने वाली क्यारी को सीजनल फ्लावर्स के लिए रख देंगे। हर सीजन में इसके पौधे बदलते रहेंगे।" परम ने कहा।

''और यहाँ इन पिलर्स पर अलमण्डा की बेलें चढ़ा देंगे। और इधर सेन्सेविरिया लगा देंगे। वहाँ उस कोने में कोई बड़ा छायादार पेड़ लगाएँगे। मेरे हिसाब से अमरूद ठीक रहेगा बहुत ज्यादा बड़ा भी नहीं होगा और छायादार भी रहेगा और सबसे बड़ी बात बगीचे में कचरा भी नहीं होगा।" तनु ने सुझाव दिया।

''हाँ ये बिलकुल ठीक रहेगा। और उस तरफ से एक रातरानी की बेल चढ़ा दंगे तो वो ऊपर बेडरूम की गैलरी मे फैल जायेगी जब भी फूल आएंगे हमारा बेडरूम भी महका करेगा।" परम ने ऊपर गैलरी में दिखते अपनी बेडरूम के दरवाजे को देखते हुए कहा।

''उसके लिए रातरानी की क्या जरूरत आप वैसे ही इतना परफ्यूम स्पे्र कर देते हो।" तनु हँसने लगी।

''वो अभी रातरानी नहीं है ना इसलिये परफ्यूम स्पे्र करता हूँ। जब रात रानी फूलने लगेगी तो नहीं किया करूँगा।" परम के तर्क पर तनु को हँसी आ गयी।

चाय खत्म हो चुकी थी। दोनों अंदर आकर ड्राइंगरूम में बैठ गये। इतने दिनों से दोनों बस घर को सजाने और सामान जमाने की भागदौड़ में लगे हुए थे। आज पहली बार दोनों इतनी निश्चिंतता से साथ में बैठे अपना ड्राइंगरूम निहार रहे थे। खास तौर पर परम बहुत खुश था। उसे जीवन में पहली बार अपने घर में रहने का अनुभव मिल रहा था। ऐसा घर जिसकी हर दीवार पे्रम में रची-बसी थी। जिसके हर खिड़की-दरवाजे से अपनेपन की सुगंध भरी हवा अंदर आती थी। दिन मस्ति भरे थे और रातें प्यार भरी जादूई थी। परम तनु की गोद में सिर रखकर लेट गया। तनु उसके बालों में उँगलियाँ फेरने लगी।

''बहुत दिनों से आपने घर पर बात नहीं की है। आज फोन लगा लेना पिताजी को।" तनु ने कहा।

''क्या फोन लगाऊँ माँ तो बात करती नहीं हैं। पिताजी ऑफिस में हुए तो बस हाँ हूँ में जवाब दे देते हैं।" परम एक उदास साँस भरकर बोला।

''कोई बात नहीं। आप अपना कर्तव्य निभाइये। आखिर माता-पिता हैं वो आपके। जन्मदाता हैं।" तनु ने कहा।

''काश कि ये बात वो भी समझते। मुझे आज तक समझ नहीं आया कि माँ का व्यवहार ऐसा क्यों रहा मेरे प्रति। क्या गलती थी मेरी। क्यों उन्होंने मेरी हर बात को अन्यथा लिया। मेरी हर ईच्छा का विरोध किया। उम्र भर वो अपना हर फैसला मुझपर लादती रही और जिंदगी में एक बार मैंने जंजीरें तोड़कर स्वतंत्र होना चाहा अपना जीवन अपनी खुशी से जीना चाहा तो उन्हे वो सहन नहीं हुआ। पता नहीं प्यार की कमी क्यों रही मेरी जिंदगी में।" परम की आवाज भर्रा गयी।

''ऐ मेजर साहब। भगवान प्यार की कमी नहीं रखता किसी की जिंदगी में। किसी न किसी रूप में उसकी भरपाई कर देता है। आगे से फिर कभी ऐसा नहीं कहना।" तनु ने उसके मुँह पर हाथ रखते हुए कहा।

''सॉरी जान! अब कभी नहीं कहूँगा। सच तनु तुम मेरी जिंदगी में नहीं आती तो मैं इतना स्टेबल नहीं हो पाता दूसरी कोई भी औरत मुझे इतनी स्थिरता नहीं दे पाती। सिर्फ तुम ही हो जिसकी वजह से मैं जिंदगी के हर पहलू में, काम में, पर्सनल लाईफ में, सोच में हर बात में इतना स्टेबल हो पाया हूँ।" परम ने उसका हाथ पकड़कर अपने सीने पर रखते हुए कहा।

तनु ने धीर से उसका हाथ थपथपा दिया ''अब मैं खाना बनाऊँ जी।"

''ओ तोड्डी मैं तो भूल ही गया कि आज से मेडम जी खुद खाना बनाएँगी।" परम खड़ा हुआ। ''चल साथ में बनाते हैं।"

''अरे आप बैठो मैं बना लूँगी।" तनु ने उठते हुए कहा।

''अकेला बैठकर क्या करूँ। इससे तो अच्छा है कि तुम्हारे साथ किचन में ही रहूँ। साथ भी हो जायेगा और मदद भी।" परम उसके साथ ही उठकर किचन में चला आया।

''जब तक मेरे साथ रहते है आप मच्छी भी नहीं खा पाते। बाजार से ही ले आया करो या होटल में ही खा लिया करो कम से कम।" तनु थाली में आटा निकालते हुए बोली।

''ऐ पागल। नहीं खा पाता तो क्या हुआ। ऐसे भी कौन सी मुझे रोज-रोज खाने की आदत है। घर पर रोज बनती है तो परिवार के साथ खाने की एक आदत बन गयी थी। ड्यूटी और ट्रेनिंग पर तो हर चीज खाना मजबूरी है। लेकिन ऐसा थोड़े ही न है कि बिना माँस-मच्छी खाए रह नहीं सकता। जब मेरी बीवी शाकाहारी है तो मैं भी शाकाहारी हूँ। मजबूरी की बात और है पर स्वाद के लिए जानबूझकर माँस-मच्छी नहीं खाऊँगा।" परम फ्रिज में से सब्जियाँ निकालता हुआ बोला।

तनु मुस्कुराकर आटा गूंथने लगी। परम टमाटर और शिमला मिर्च के बारीक टुकड़े करने लगा।

***