Ek Jindagi - Do chahte - 31 in Hindi Motivational Stories by Dr Vinita Rahurikar books and stories PDF | एक जिंदगी - दो चाहतें - 31

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एक जिंदगी - दो चाहतें - 31

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-31

दूसरे दिन तनु की नींद जल्दी खुल गयी। परम गहरी नींद में सोया था। रोज ऐसा होता था कि परम जल्दी उठ जाता था और तनु सोती रहती थी। तब जब भी तनु की आँख खुलती वह कमरे में अकेली होती। आज वो पहले जग गयी तो आँख खुलते ही सामने परम का चेहरा दिखाई दिया। तनु उसे देखती रहीं। उसके दिल को बड़ी खुशी और निश्चिंती महसूस हो रही थी। आज उसे समझ आया कि क्यों परम रात-रात भर जाग कर उसे देखता रहता है। सुबह मुँह अंधेरे आपकी आँख खुले और दिन की शुरुआत आपके जीवन के सबसे प्यारे व्यक्ति का चेहरा देखकर हो तो इससे बढ़कर सकारात्मक बात क्या हो सकती है। तनु देर तक परम को देखती रही। फिर धीरे से उठकर गैलरी में आ गयी। सुबह के साढ़े पाँच बजे थे। पेड़ों पर चिडिय़ों का चहचहाना शुरू हो गया था। हवा ओस में नहाई हुई और ताजा दम थी। तनु ने पाँच-छ: गहरी साँसे भरी। अभी पूरब तरफ बहुत हल्का उजाला था। दस मिनट गैलरी में खड़े होने के बाद तनु नीचे रसोई में आ गयी। पिछले कई दिनों से सुबह की चाय परम ही बना रहा था। आज तनु ने फटाफट चाय बनाई। सूरजमुखी के फूलों वाले खुशनुमा टी-सेट में चाय छानी। केतली को टीकोजी से ढंका और ट्रे में चाय के कप रखकर ऊपर ले आयी। परम अभी भी सोया था। तनु ने मुस्कुरा कर उसे देखा और गैलरी में आकर चाय की ट्रे टेबल पर रखकर खुद कुर्सी पर बैठ गयी। पौने छ: बज चुके थे। चिडिय़ों का कलरव थोड़ा और तेज हो गया था। आसमान में उजाला फैलने लगा। तनु दिलचस्पी से पल-पल में आसमान का रंग बदलना देख रही थी। कभी कोई बादल उगते सूरज की किरणों के सामने आ जाता तो वह सूर्य की रौशनी को परावर्तित कर देता। तब आकाश का वो हिस्सा बाकी जगह से अधिक उजियारा लगने लगता। उस बादल के आगे बढ़ते ही उस जगह पर वापस रौशनी कम हो जाती।

दस मिनट तक तनु आसमान में तरह-तरह के रंगों का उतरना और चले जाना देखती रही। चिडिय़ाएँ अब अपने घोंसलों से बाहर निकलकर उधर-उधर उड़ रही थी। इस पेड़ से उस पेड़, इस डाल से उस डाल फुदक रही थीं।

तभी परम की भी नींद खुल गयी। वह गैलरी में बैठी तनु को देखकर बोला-

''गुडमॉर्निंग श्रीमति जी। आज तो आप अपने पतिदेव से भी पहले उठ गयीं।"

''गुडमॉर्निंग जी। आज नींद जल्दी खुद गयी। आईये चाय पी लीजिये।" तनु ने बुलाया।

''अरे वाह गरमा गरम चाय भी तैयार है आज तो पहले से।"

परम गैलरी में आकर तनु के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया।

''कल रात बड़ी गहरी नींद आयी। कब सोया पता ही नहीं चला। सीधे अभी नींद खुली है।" परम जम्हाई लेता हुआ बोला।

''अच्छा है। नींद हमेशा अच्छी और गहरी आनी चाहिये।" तनु ने दो कपों में चाय डाली और एक कप परम को दिया। परम ने चाय का एक लम्बा घूँट भरा। दोनों बातें करने लगे कौन सी तारीख को सबको बुलाया जाये। क्या-क्या इंतजाम करेंगे, खाने में किस दिन क्या बनेगा, कौन किस कमरे में सोएगा।

''अरे यार हमारे घर में बेडरूम तो चार ही हैं अब कोई दो कपल कहाँ सोएंगे?" परम ने सवाल किया।

''चार बेडरूम में से एक में तो स्टडी रूम है जी। सोने के लिए कमरे तीन ही हैं।" तनु ने याद दिलाया।

''अरे हाँ।" परम को भी ध्यान आया ''अब क्या करेंगे?"

''कुछ नहीं जी मम्मी पापा हमारे बेडरूम में सो जायेंगे, टीवी वाले रूम में गद्दे डालकर आप, मौसाजी, मामाजी, फुफाजी और चाचाजी सो जाना। हम लोग बाकी दो कमरों में सो जायेंगे।" तनु ने सहज समाधान दिया।

''तो श्रीमति जी मेरे पास नहीं सोएंगी? नहीं रात में सबको वापस घर भेज देंगे और रविवार सुबह फिर से बुला लेंगे।" परम ने व्यग्रता से कहा तो तनु जोर से खिलखिलाकर हँस दी।

''चलिये अब मैं नहाकर कपड़े बदल लूँ नहीं तो काम में नयी साड़ी खराब हो जायेगी।" तनु चाय का खाली कप ट्रे में रखकर उठ गयी। परम भी उठ गया। तनु नहाकर बाहर आयी तब परम भी नहा आया। दोनों नीचे आए। तनु ने मंदिर में भगवान कृष्ण जी की मूर्ति के आगे दीया लगाया और परम की चाची ने दी हुई माँ दुर्गा की मूर्ति मंदिर के नीचे बने ड्रावर में रख दी। चाची ने कहा था कि किसी दिन शुभ महूरत देखकर वो पंडित जी को बुलवाकर देवी माँ की प्राण प्रतिष्ठा करवा देंगे घर में।

परम ने तनु की मांग में सिंदूर भरा और फिर दोनों ने कृष्ण जी को प्रणाम किया।

किचन में आकर तनु ब्रेकफास्ट बनाने लगी। परम उसकी मदद करने लगा। दोनों ने ब्रेकफास्ट किया। अभी सुबह के साढ़े दस ही बजे थे। नौकरानियाँ काम करके जा चुकी थी।

''चलो थोड़ी देर ऐसे ही मॉल में घूमते हैं फिर वहीं फिल्म देखने बैठ जायेंगे। शो तो साढ़े ग्यारह बजे से स्टार्ट हो जायेगा वहीं चलकर देखेंगे कि कौन सी फिल्म ठीक-ठाक और देखने लायक है।" परम ने अखबार तह करके टेबल पर रखा और तनु से कहा।

''चलिये जी"।

तनु ने फटाफट दस मिनट में जाकर कपड़े बदले और तैयार हो कर नीचे आ गयी। परम ने घर को ताला लगाया और कार पोर्च से बाहर निकाली। सामने वाले बंगले के भावेश व्यास ने परम को देखकर हैलो किया।

''कहाँ चल दिये सुबह-सुबह कमांडर साहब।"

''बस देश सेवा से छुट्टी मिली है तो पत्नी की सेवा में लगा हूँ जी। यहाँ की छुट्टी खत्म हो जायेगी तो वापस देश सेवा में लग जाऊँगा। हम तो सेवक हैं जी बस हर मोर्चे पर सेवा करना हमारा धर्म है।" परम हँसते हुए बोला।

भावेश ठहाका मारकर हँस दिया ''अच्छा है, लगे रहो सेवा में।" तनु ने पोर्च का गेट बंद किया और आकर परम की बगल वाली सीट पर बैठ गयी। परम ने भावेश से विदा ली और कार आगे बढ़ा दी।

पन्द्रह मिनट में ही दोनों मॉल में पहुँच गये। बेसमेंट पार्किंग में कार पार्क करके वे ऊपर आकर घूमने लगे। अभी ग्यारह बजकर दस मिनट ही हुआ था। ज्यादातर दुकानें बंद थीं। कुछेक में साफ-सफाई चल रही थी। दोनों पहले थर्ड फ्लोर पर गये। वहाँ देखा कि कौन-कौन सी मूवीज चल रही हैं और उनके टाईम क्या है। साढ़े बारह बजे डेढ़ इश्किया थी। परम ने उसके टिकिट बुक कर लिये। टिकिट लेकर दोनों फिर नीचे आकर एक दूसरे का हाथ पकड़कर घूमने लगे। परम को याद आया शादी के पहले जब वो जयपुर से तनु को मिलने आता था तो दोनों ऐसे ही मॉल में घूमते हुए बातें करते थे या मेक-डोनॉल्ड में जाकर बैठते थे। तब तनु का हाथ पकडऩे का तो सवाल ही नहीं उठता था, साथ बैठते हुए भी परम को पूरे समय तनाव बना रहता था कि कहीं कोई देख न ले। परम को तो कोई नहीं पहचानता था लेकिन उसे सारा समय चिंता रहती थी कि तनु को न देख ले कोई। उसके चले जाने के बाद कहीं तनु को किसी के कहने-सुनने से परेशानी न उठानी पड़े।

तनु साथ में चलती थी, साथ में बैठती थी। परम का दिल मचल जाता था एक बार उसे सीने से लगाने के लिये। लेकिन उसे अपनी भावनाओं को जब्त कर लेना पड़ता था। एक दिन दोनों इसी मॉल में फिल्म देखने आए थे। इंटरवल में दोनों कॉफी पीने बाहर आए। जब फिल्म वापस शुरू हुई तो तनु वॉशरूम चली गयी। जब दोनों गेट खोलकर अंदर गये तो फिल्म शुरू हो चुकी थी और थियेटर में अंधेरा था। यूँ भी दोपहर के शो मे टॉकीज लगभग खाली होती है। तब परम को अपनेआप को रोकना मुश्किल हो गया। उसने उस दिन पहली बार तनु को गले लगाया और उसके होंठों को चूमा था।

थियेटर नम्बर थ्री।

हाँ वो इसी मॉल का तीसरा थियेटर था। उसके बाद दोनों थियेटर की सबसे आखिरी कोने वाली सीट पर जा बैठे थे। फिर फिल्म में क्या हुआ क्या पता।

तनु और परम आज भी वो दिन याद करके मुस्कुरा दिये। आज शादी हो गयी तो परम को कोई तनाव नहीं है वो आराम से तनु के कंधे पर हाथ रखकर घूम रहा है। और जब डर नहीं है तो कोई जानपहचान वाला मिलेगा भी नहीं। पहचान वाले सिर्फ तभी मिलते हैं जब आप बिलकुल भी नहीं चाहते कि वो मिले।

सवा बारह बजे तक वे विन्डो शॉपिंग करते रहे। नयी-नयी चीजें देखते रहे। फिर ऊपर आ गये। थियेटर खुला था परम दो कप गरमागरम कॉफी ले आया। दस मिनट बाद फिल्म शुरू हो गयी। इंटरवल में दोनों हॉल में ही बैठे बातें करते रहे। जब फिल्म शुरू होने लगी और थियेटर में अंधेरा हो गया तब परम तनु से बोला कि ''चलो बाहर चलें।"

''लेकिन क्यों?" तनु ने आश्चर्य से पूछा ''वॉशरूम जाना है क्या?"

''अरे नहीं अब गेट के पास अंधेरा होगा ना।" परम बोला।

''ओह!" तनु उसका आशय समझकर हँस दी ''वो तो तब की बात थी अब तो पूरा घर ही हमारा है, चाहे जब, चाहे जो करिये।"

''पर वो डर, वो चार्म भी कितना मजेदार था न।" परम तनु के कान में धीरे से बोला।

''अब बोल रहे हो तब तो पूरे समय आपकी जान सूखती रहती थी कि कोई देख न ले।" तनु बोली।

''पागल मैं तो तेरे लिये डरता था कि तुझे कोई परेशानी न हो जाये।" परम ने स्पष्ट किया ''लेकिन तुम्हारे चेहरे पर मैंने कभी भी जरा सा भी डर नहीं देखा। तुम कितनी कॉन्फीडेंट रहती थी।"

''वो इसलिये क्योंकि मुझे अपनेआप पर ये विश्वास था कि अगर कभी किसी ने देख भी लिया और घर पर पता चल गया तो मैं इस सच को सबके सामने स्वीकार भी कर लेती और पूरी उम्र आपके साथ रहने को भी तैयार थी। पर आपके ऊपर मुझे डाउट था कि आप अंदर से ये कदम उठाने के लिये तैयार नहीं थे तभी इतना डरते थे कि कहीं कोई देख लेगा तो बेकार की मुसीबत गले पड़ जायेगी। क्योंकि डरता वही है जिसे अपनेआप पर और अपने कार्यों पर कॉन्फीडेन्स ना हो।" तनु ने उसे चिढ़ाया।

''ऐ मेरा सोना ऐसा नहीं है।" परम बोला।

''ऐसा ही था तभी तो बार-बार कहते थे कि मुझे तुमसे और कुछ नहीं चाहिये मैं तो सारी उम्र तुमसे फोन पर बातें करके भी खुश रह सकता हूँ।" तनु अब भी उसे चिढ़ाने से बाज नहीं आ रही थी।

''हाँ बाबा ये बात तो मानता हूँ कि शुरू में मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि अपनी खुशी के लिए घरवालों के खिलाफ जाकर कोई कदम उठा सकूँ। लेकिन मेरे प्यार में तो इतनी हिम्मत थी ना कि मुझमे भी हिम्मत पैदा करके, मेरा हाथ थाम कर मुझे एक मंजिल पर ले आया।" परम ने तनु की आँखों में देखते हुए प्यार से कहा। ''मैं मानता हूँ आज जो हम दोनों साथ हैं, हमारा घर है गृहस्थी है, समाज में हमारे रिश्ते की जो स्वीकृति है, सम्मान है वो सच में सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी सोच, दृढ़ निश्चय और विश्वास के कारण ही है।"

***