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........................सूर्या और नानी............................
रोज की तरह उसदिन भी चिड़ियों को चहचहआहट तथा मुर्गो की बाग देने की आवाजो के गुजन के साथ पेड़ के छोटी टहनियों की सरसराहट के साथ कोयल की सुरीली आवाजो की कुक और घर के पिछवाड़े लगे गुलाब तथा चमेली के फूलों की मंदमुग्ध करने वाली खुसबू ने सूर्या को जगा दिया।
आंख मिजते हुवे अंगाडिया लेते हुवे एक आवाज देता है अरे ओ मौसी जरा बेड टी तो ला दो।
झाड़ू लगाते हुवे मासी माँ देख तेरे साहेब जादे उठ गए उनको बेड टी चाहिए सूर्या को तो आदत हो गयी थी मासी की ये बाते सुनने की जबतक एक बार सुन नही लेता तबतक इसका सुबह नही होता।
खाट पे बिछाये कथरी को उठाते हुवे अरे ओ नानी जी नानी जी कहा हो आप सुबह हुआ कि नही उसकी नानी को खिझाने की आदत जो था इससे नानी को भी एक सुख की अनुभूती हो जाया करता था ये कहते हुवे
सूर्या अपना बिस्तर चौपत कर नानी के पास गया। क्यों सूर्या अभी तक ब्रूस नही किया जा कर ले क्यों मौसी को खीजता रहता है। हाँ मैं रात को बताना भूल ही गयी थी आज तो तुम्हे घर जाना है न गैस सिलेंडर लेकर जा जल्दी तैयार हो जा बेटा नाना से बोल दूंगी तुम्हे लेजाकर गाड़ी पे बिठा देंगे।
ठीक है नानी जी कहते हुवे सूर्या अपने दिनचर्या पूरा करने चला गया थोड़ी देर बाद नानी की आवाज आई बीटा बाहर आ जल्दी आ दौड़ता हुआ वह वहा गया।
बेटा पड़ोस के तेरे नाना अभी पंजाब से आये है तू जल्दी से खाना खा ले उसी से तुझे भेज दूंगी नही तो तू परेसान हो जाएगा भरा हुआ सिलेंडर लेकर।
ये सुनते ही मौसी के पास जाकर उनके कान में तेजी से चिल्लाया मौसी चीखते हुवे तू अपनी आदतों से बाज नही आएगा तूने तो मेरी जान ही नीकाल दी थी ।मासी खाना निकाल दो ।
ठीक है बेटा कहते हुवे मासी ने खाना निकाल ही रही थी कि नानी ने उन्हें आवाज दी आती हु मा कह के मासी जल्दी-2 खाना निकलने लगी बेटा तू खा कुछ चाहिए तो मांग लेना मैं अभी आती हु।
बाहर से आवाज सुनकर तेजी से बाहर जाते हुवे मासी मेरा बैग पैक कर देना मैं अभी आता हूं ।
बेटा ये टेम्पू तेरे गांव के पासतक जाएगा इसी से चला जा नानी ये कहते हुवे उस टेम्पू वाले को आवाज लगती है बेटा रुक जा मेरे नाती को जरा वहां तक छोडदेना।
जल्दी आ बेटा हा बस आया नानी ये कहते हुवे मासी प्रणाम फिर मिलेंगे कह के टेम्पू में बैठगया।
ठीक है प्रणाम नानी बाय बाय नानी तेरी शैतानियां नही जाएगी घर पहुच कर फ़ोन कर लेना बाई-बाई नानी ने सरमाते हुवे बोला शैतान कही का।
ये कहते हुवे नानी की आंखे आसुओ से भर गई।
जारि है............... .............
लेखक-दुर्गेश तिवारी
लिहायच बरच काही असत
लिहताना मात्र सुचत काही च़ नाही
सांगायच बरच काही असत
पण बोलतांना शब्द सापडत नाही
मन मात्र हजारो प्रश्न घेऊन उभ असत
पण नेमका प्रॉब्लम काय कळत काही च़ नाही
कधी कधी वाटत असं की सोडून द्याव सगळ
पण ते सोडून देताना त्या व्यक्ती साठी जीव मात्र तुटत असतो खूप
आयुष्य रुपी कोड मरताना तरी उलगडत का
की जगण्याची इच्छा असूनही..आयुष्य दूर घेऊन जात स्वःता पासून
खरंच आयुष्य म्हणजे आहे तरी काय
जवळच्या माणसांचं जाण पाहण की
त्याचं माणसाच्या आठवणीत तडफडत राहण
ती व्यक्ती आयुष्यात असती तर किती छान झालं असत
असं बोलतो पन त्या व्यक्ती शिवाय जगन म्हणजे अशक्य असत ..खरंच आपल्या माणसांपासून दूर असन खूप कठीण असत
મજાની સૃષ્ટિ
રચી ઈશ્વરે આ સુંદર મજાની સૃષ્ટિ,
સુખ સગવડતાઓની તેમાં કરી અતિવૃષ્ટિ.
જુદાં જુદાં ક્રમોને બનાવ્યા ખૂબ જ સુંદર,
જેને જાણીએ આ કવિતાની જ અંદર.
સવાર થતા જ ફૂલ આળસ મરડીને ઊભું થતું,
કંઈક નવા સ્વપ્નાઓ સંગાથે ફરી ખીલી ઉઠતું.
મધ્યાહ્ન વેળાએ પ્રકૃતિ તડકાની વેદના સહન કરતી,
અને જીવનને રંગીન બનાવવા તે વેદનામાંથી પણ ઉભરતી.
સાંજ સમયે પ્રકૃતિ પવનના ઝોકા સંગ થનગનાટ નાચતી,
અને જીવનને રંગબેરંગી બનાવવાની દિશાઓ સૂચવતી.
રાત થયે અંધકાર થાય છે જરૂર પરંતુ,
પ્રકૃતિને આશા છે ફરી એક નવા સવારની,
ફરી એક નવા સ્વપ્નની,
ફરી એક નવી વેદનાની,
ફરી એક નવા રંગબેરંગી જીવનની.
"હૈયા ની હાટડી મા હેત વેચવા બેઠો છુ.
વગર દામે લઈ જાઓ હુ વહાલ વહેચવા બેઠો છુ"
"ના રાજ જોઈએ,
ના તાજ જોઈએ,
માણસ ને માણસ સાથે શોભે,
એવો મિજાજ જોઈએ...."
''બંધ આંખે હુ ચાલતો નથી,
સંબંધો વિશે હુ કઈ જાણતો નથી,
હસી ને લોકો ને મળવુ,
અને થઈ શકે એટલી મદદ કરવી,
એ મારો શોખ છે,
મળ્યા પછી કોઈ મને ભુલી જાય કે,
રમત રમી જાય તો
એનો હું હિસાબ રાખતો નથી
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